काशी विश्वनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 ई. में करवाया था । यह मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है । यह मंदिर उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है । भगवान शिवजी का यह मंदिर हिन्दुओं के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है । ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव व माता पार्वती का आदि स्थल है तथा इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । यह मंदिर हजारों वर्षों से यहां स्थित है । वेदों और पुराणों में भी इस मंदिर की जानकारी मिलती है ।
वाराणसी को काशी व बनारस आदि नामों से भी जाना जाता है । इस मंदिर में देश-विदेशों से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है । इस मंदिर में आदि शंकराचार्य, महर्षि दयानंद, स्वामी विवेकानंद, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस व गोस्वामी तुलसीदास जैसे महापुरुष भी दर्शन के लिए आये थे ।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास
इस मंदिर के मूल स्वरूप को मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा नष्ट कर दिया गया था । 1194 ई. में मुहम्मद गौरी की सेनाओं द्वारा इस मंदिर को तोड़ा गया था जिसे इल्तुतमिश के शासनकाल के दौरान गुजरात के एक व्यापारी द्वारा पुनर्निर्मित किया गया । जौनपुर के शासक हुसैन शाह शर्की (1458 ई.-1485 ई.) तथा दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी (1489 ई.-1517 ई.) के समय इस मंदिर को पुनः तोड़ा गया था । मुगलकाल के दौरान राजा मान सिंह ने इस मंदिर को पुनः बनवाने का प्रयत्न किया लेकिन हिंदुओं के प्रतिरोध के कारण वह ऐसा नहीं कर पाए । क्योंकी राजा मान सिंह द्वारा अपनी पुत्री का विवाह मुगल परिवार में करने से कुछ हिन्दू उनसे नाराज थे । मुगल नवरत्नों में शामिल अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल ने 1585 ई. में पं.नारायण भट्ट को इस मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए धन उपलब्ध कराया ।
1632 ई. में मुगल शासक शाहजहां ने काशी विश्वनाथ मंदिर को पुनः तोड़ने के आदेश दिए लेकिन हिन्दुओं के साथ कड़ी टक्कर के कारण मुगल सेना मंदिर को पूरी तरह तोड़ने में सफल नहीं हो पाई । किन्तु मुगल सेना ने काशी के अन्य 63 मंदिरों को तोड़ डाला । काशी विश्वनाथ मंदिर को अंतिम बार मुगल शासक औरंगजेब द्वारा 2 सितम्बर 1669 ई. को ध्वस्त किया गया तथा इसके स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया गया । हजारों हिंदुओं को मौत के घाट उतारा गया तथा जबरन हिंदुओं का धर्मांतरण कर मुस्लिम बनाया गया ।
इस प्रकार काशी विश्वनाथ मंदिर को कई बार तोड़ा गया तथा कई बार हिन्दू शासकों द्वारा इसका पुनर्निर्माण करवाया गया । अंतिम बार 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा 1853 ई. में पंजाब के राजा रणजीत सिंह ने मंदिर को लगभग 10 क्विंटल सोना दिया । हालांकि आज यह मंदिर अपना मूल स्वरूप व मूल स्थान दोनों खो चुका है । यह मंदिर अपने मूल स्थान से 150 मीटर की दूरी पर स्थित है । मंदिर के मूल स्थान पर अब ज्ञानवापी मस्जिद है।मंदिर व मस्जिद दोनों ज्ञानवापी परिसर में स्थित हैं । यह मस्जिद आज ठीक उसी स्थान पर है जिस स्थान पर पहले काशी विश्वनाथ मंदिर था । इस मंदिर के अवशेषों को मस्जिद की नींव,स्तंभों व पीछे के हिस्सों में खंडहर के रूप में आज भी देखा जा सकता हैं ।
काशी विश्वनाथ मंदिर व ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
दोस्तों, अयोध्या में राम मंदिर व बाबरी मस्जिद को लेकर वर्षों से जो विवाद चल था ठीक उसी प्रकार का विवाद काशी विश्वनाथ मंदिर व ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी है । हालांकि उच्चतम न्यायालय द्वारा 09 नवंबर,2019 को अयोध्या का विवाद सुलझा लिया गया है लेकिन वाराणसी (काशी) को लेकर अभी भी मामला न्यायालय में लंबित है । वर्ष 1991 में इस मामले को लेकर पहली बार याचिका दाखिल की गई थी। 1998 ई. इस मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी गई थी । लेकिन 22 वर्षों बाद इस वर्ष इस मामले को लेकर पुनः सुनवाई शुरू हुई है जिसे फिलहाल कोरोना महामारी के चलते टाल दिया गया है ।
काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना
पिछले कुछ वर्षों से काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना के तहत यहां गंगा नदी के तट से काशी विश्वनाथ मंदिर तक सड़क मार्ग बनाया जा रहा है । इसके लिए आसपास के लगभग 300 घरों को सरकार द्वारा खरीदा गया है । यहां खुदाई के दौरान कई प्राचीन मंदिर मिले हैं । कुछ घर तो ऐसे थे जो मंदिरों के अवशेषों पर बने थे जो अब तक जमीन में दबे हुए थे । यहां खुदाई में 4 से 5 हजार वर्ष पुराने मंदिर मिले हैं । अब तक मिले कुल 60 मंदिरों में से कुछ मंदिरों का जिक्र स्कंदपुराण के काशी खंड में मिलता है ।
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