Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-3) ~ Ancient India

Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-3)

नमस्कार मित्रों,जैसा की हमने आपको पिछले मगध के राजवंशों का इतिहास भाग-2 में बताया कि मौर्य वंश में 3 महान सम्राट हुए चन्द्रगुप्त मौर्य, बिम्बिसार तथा सम्राट अशोक । अशोक के समय में भारतवर्ष को पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त हुई ।लेकिन अशोक की मृत्यु के पश्चात मौर्य वंश पतन की कगार पर पहुँच गया ।अशोक के बाद उसके उत्तराधिकारियों ने लगभग 50 वर्ष तक शासन किया ।मौर्य वंश का अन्तिम सम्राट वृहद्रथ था जिसकी पुष्यमित्र शुंग नामक एक व्यक्ति ने हत्या कर मौर्य वंश का शासन समाप्त कर दिया और एक नए राजवंश शुंग वंश की स्थापना की।

शुंग वंश की जानकारी के स्रोत

साहित्यिक स्त्रोत

  • पुराण-दोस्तों जैसा की आपको विदित होगा की हमारे पुराणों की संख्या 18 है जिनमे से मत्स्य पुराण तथा वायु पुराण शुंग वंश की जानकारी के मुख्य आधार है ।
  • हर्षचरित-जिसकी रचना हर्षवर्धन ने की थी जो शुंगों के दरबारी कवि थे),महाभाष्य (जिसकी रचना महान आयुर्वेदाचार्य पतंजलि ने की थी जो पतंजलि ने अपने गुरु पाणिनि के व्याकरण ग्रंथ अष्टाध्यायी पर लिखा है जिसमे शुंग वंश के बारे में भी काफी जानकारी मिलती है ।
  • मालविकाग्निमित्रम् -कालिदास द्वारा रचित मालविकाग्निमित्रम् को शुंग वंश की जानकारी के लिए सबसे प्रमाणिक माना जाता है ।
  • गार्गी संहिता-एक ज्योतिष ग्रन्थ है जिसमे जो कि पुराण का ही एक भाग है इससे भी शुंग वंश के बारे में जानकारी मिलती है ।
  • दिव्यावदान- बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में भी शुंगों के बारे में जानकारी मिलती है।

पुरातात्विक स्त्रोत

  • अयोध्या अभिलेख-अयोध्या में एक अभिलेख की प्राप्ति हुई है जिसे अयोध्या के तत्कालीन राजयपाल धनदेव ने बनवाया था ।इसमें पुष्यमित्र शुंग के बारे में काफी जानकारी मिलती है ।
  • विदिशा(बेसनगर) का अभिलेख-यह स्तम्भ मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में आधुनिक बेसनगर के पास स्थित है ।इसका निर्माण हेलियोडोरस ने करवाया था जिसे यवन नरेश एण्टियालकीड्स ने शुंग राजा भागभद्र के दरबार में अपना राजदूत बनाकर भेजा था ।इस स्तंभ पर उत्कीर्ण लेखों से हमें शुंग वंश की जानकारी मलती है ।
  • भरहुत का अभिलेख-भरहुत मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है ।भरहुत अभिलेख से भी हमें शुंग वंश की अच्छी-खासी जानकारी मिलती है ।

शुंग कौन थे

दोस्तों, इस बारे में इतिहासकारों का एक मत नहीं है की शुंग कौन थे,उनकी जाति क्या थी ।हर्षचरित में इन्हें अनार्य कहा गया है ।कई विद्वानों का मानना है कि सेनापति पुष्यमित्र ने धोखे से अपने राजा की हत्या कर दी है जो एक आर्य अथवा क्षत्रिय नहीं कर सकता ।महाभाष्य में पतंजलि और अष्टाध्यायी में पाणिनि ने पुष्यमित्र शुंग को भारद्वाज गोत्र का ब्राह्मण बताया गया है ।तत्पश्चात कई विद्वान इस बात से सहमत हुए कि शुंग मौर्यों के पुरोहित थे ।विद्वानों का मत है की मौर्यों के काल में सर्वत्र बौद्ध धर्म का विस्तार हो गया था और हिन्दू धर्म/सनातन धर्म संकट में आ गया था जिसकी वजह से ब्राह्मणों के पास आजीविका के साधन समाप्त हो गए थे ,ब्राह्मणों में मौर्यों के प्रति रोष था, इसीलिए उन्होंने शास्त्र की जगह शस्त्र उठा लिए।धीरे-धीरे ब्राह्मण मौर्य सेनाओं में आने लगे और सेनापति जैसे पदों तक पहुंच गए ।पुष्यमित्र शुंग मौर्य सम्राट बृहद्रथ का सेनापति था ।इसके अलावा बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में लिखा है की पुष्यमित्र शुंग बौद्धों का प्रबल शत्रु था,उसने अनेक बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवा दी थी तथा बौद्ध स्तूपों को नष्ट करवा दिया था ।पुष्यमित्र शुंग पर लगाए गए आरोप कितने प्रमाणिक हैं यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह सपष्ट है की उसने बौद्ध धर्म के विस्तार पर लगाम लगाई और सनातन धर्म/हिंदुत्व का पुनर्विस्तार किया जो एक हिन्दू ब्राह्मण ही कर सकता था ।

शुंग वंश के शासक

पुष्यमित्र शुंग(185 ई. पू.-149 ई. पू.)

मौर्य वंश के अन्तिम राजा वृहद्रथ ने पुष्यमित्र को अपना सेनापति नियुक्त किया था ।जब मौर्य सम्राट वृहद्रथ सैन्य-प्रदर्शन का निरिक्षण कर रहा था तो उसी दौरान सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने खुले मैदान में सेना के समक्ष उसकी हत्या कर दी ।इस हत्या के दो प्रमुख कारण सामने आते है पहला यह कि पुष्यमित्र बौद्ध धर्म को नष्ट करके पुनः हिन्दू धर्म स्थापित करना चाहता था तथा दूसरा कारण था कि मौर्य काल में यवनों(यवन सम्राट डेमेट्रियस के नेतृत्व में) ने भारत में घुसपैठ शुरू कर दी थी ,यवनों ने बैक्ट्रिया,कंधार और साकल(सियालकोट) के सिंधु नदी के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था ।सेनापति पुष्यमित्र के कहने पर भी मौर्य सम्राट वृहद्रथ ने यवन आक्रमणों की इस तरफ ध्यान नहीं दिया जिसकी वजह से पुष्यमित्र शुंग ने वृहद्रथ की हत्या कर दी ।इसके पश्चात उसने मगध की गद्दी संभाल ली और एक नए राजवंश शुंग वंश की स्थापना की ।मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात् साम्राज्य में बिखराव की आशंका से पुष्यमित्र ने विदिशा नगर(बेसनगर म.प्र.) को साम्राज्य की दूसरी राजधानी बनाया ताकि इससे पाटलिपुत्र से दूर के प्रदेशों पर आसानी से नियंत्रण रखा जा सके ।पुष्यमित्र ने अपने पुत्र अग्निमित्र को विदिशा का राजा बनाया ।

पुष्यमित्र शुंग के शासन काल की दो उपलब्धियों का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है- 1.विदर्भ विजय, 2.यवन आक्रमण ।

1.विदर्भ विजय- वृदृथ मौर्य ने विदर्भ की शासन व्यवस्था के लिए अपने एक सचिव की नियुक्ति की थी ।लेकिन मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात इस सचिव को पुष्यमित्र शुंग द्वारा पाटिलपुत्र की जेल में डाल दिया गया ।इसके पश्चात् यज्ञसेन ने जो कि इसी सचिव का साला था तथा मौर्य साम्राज्य द्वारा विदर्भ का राज्यपाल नियुक्त था अब अपने आप को विदर्भ का स्वतंत्र शासक घोषित कर देता है ।

पुष्यमित्र शुंग द्वारा विदर्भ पर आक्रमण का एक और भी कारण था माघवसेन ।माघवसेन यज्ञसेन का चचेरा भाई तथा अग्निमित्र का मित्र था ।यज्ञसेन तथा माघवसेन विदर्भ पर शासन करने के लिए आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे ।एक दिन यज्ञसेन माघवसेन को बंदी बना लेता है और जेल में डाल देता है ।अपने मित्र माधवसेन के जेल में होने की सूचना पाकर अग्निमित्र क्रोधित होता है और यज्ञसेन को चेतावनी देता है की वह उसे छोड़ दे ।जिस पर यज्ञसेन शर्त रखता है कि वह उसके जीजा (सचिव जो पाटिलपुत्र की जेल में बंद था) को छोड़ दे इसके बदले में वह माधवसेन को छोड़ देगा ।परन्तु सम्राट पुष्यमित्र को यह शर्त मंजूर नहीं थी और उसने अपने पुत्र अग्निमित्र को आदेश दिया की वह विदर्भ पर आक्रमण कर दे ।इस विदर्भ युद्ध में यज्ञसेन पराजित होता है और वह अग्निमित्र की अधीनता स्वीकार कर लेता है ।वर्धा नदी को सीमा मानकर अग्निमित्र नदी के उस पार का क्षेत्र यज्ञसेन को तथा इस पार का क्षेत्र माधवसेन को अपने आधीन शासन करने के लिए दे दिया ।

2.यवन आक्रमण -दोस्तों एवं कौन थे,यवनों का मुख्य नेता कौन था इसके बारे में हम किसी अन्य पोस्ट में विस्तार से जानकारी देंगे ।फिलहाल आपको बता दें कि पुष्यमित्र को अपने शासनकाल में दो यवन आक्रमणों का सामना करना पड़ता है पहला आक्रमण डेमेट्रियस के नेतृत्व में तथा दूसरा आक्रमण मेनाण्डर (नागसेन द्वारा रचित मिलिन्दपन्हो में मेनाण्डर को मिलिन्द बताया गया है)के नेतृत्व में ।

दोस्तों,पुष्यमित्र का यवनों के साथ युद्ध का कारण था अश्वमेध यज्ञ ।महर्षि पतंजलि की सलाह पर पुष्यमित्र ने अश्वमेध यज्ञ करवाये ।धनदेव के अयोध्या अभिलेख में भी यह उल्लेख मिलता है की पुष्यमित्र शुंग ने अपने जीवनकाल में दो अश्वमेध यज्ञ किये थे ।पहला यज्ञ उसने अपने राज्यारोहण के तुरंत बाद किया था तथा दूसरा यज्ञ यवनों से साथ युद्ध के समय किया था ।अश्वमेध का यह घोड़ा चलते-चलते पश्चिमोत्तर में सिंधु नदी के क्षेत्र में पहुँच गया जहाँ पर यवनों (डेमेट्रियस की सेना) ने इसे को रोक लिया ।कुछ विद्वानों का मानना था की यह काली सिंधु नदी थी जहाँ यवनों के साथ युद्ध होता है जो मालवा के पठार के पास से निकलती है ।परन्तु यह सही नहीं था क्योंकि यह क्षेत्र तो पूरी तरह से अग्निमित्र के अधिकार में था इसके साथ ही कालिदास रचित मालविकाग्निमित्रम में यह जिक्र मिलता है पुष्यमित्र की सेनाओं को घोड़े तक पहुँचने में एक वर्ष का समय लगता गया था ,तो अन्ततोगत्वा यही माना गया की वो पश्चिमोत्तर में स्थित सिन्धु नदी जहाँ यवनों के साथ युद्ध होता है ।पुष्यमित्र ने अपने पौत्र वसुमित्र(अग्निमित्र का पुत्र) को अश्वमेध घोड़े के साथ भेजा था परन्तु सिन्धु नदी के पास यवनों ने उसे रोक लिया ।तत्पश्चात पुष्यमित्र ने एक बड़ी सेना वहां पर भेजी जहाँ यवनों और पुष्यमित्र की सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध होता है जिसमें यवनों को पराजित होना पड़ता है ।

बौद्धों का शत्रु

दोस्तों, बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान में उल्लेख मिलता है कि पुष्यमित्र शुंग बौद्धों का घोर शत्रु था ।दिव्यावदान में कहा गया है कि पुष्यमित्र शुंग ने सभी 84000 बौद्ध स्तूपों को नष्ट कर दिया तथा अनेकों बौद्ध विहारों को जला दिया था अनेकों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवा दी थी ।यहां तक कि उसने सियालकोट(शाकल) में यह घोषणा की जो मुझे 1 बौद्ध का सर लाकर देगा उसे में 100 दीनार दूंगा ।दोस्तों ये बात सच है कि पुष्यमित्र शुंग मे बौद्ध धर्म के प्रति असंतोष था लेकिन वह इतना भी क्रूर नहीं था जितना कि उसे बताया गया है।हालांकि शुरूआत में उसने बौद्ध स्तूपों को नष्ट करवाया था परंतु बाद में उसका मन परिवर्तन हुआ और उसने कई बौद्ध स्तूपों का निर्माण भी करवाया था जिनमें मुख्य हैं भरहुत स्तूप (जो सतना मध्य प्रदेश में है और जिसकी खोज अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1873 ई. में की थी इन्हें भारतिय पुरातत्व विभाग का जनक भी कहा जाता है।) तथा सांची के स्तूप, दोस्तों सांची के स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में है यहां पर एक बड़ा स्तूप (महास्तूप) था ,इस स्तूप में महात्मा बुद्ध के धातु अवशेष रखे हुए थे तथा इसके अलावा दो छोटे-छोटे स्तूप भी थे ।हालांकि सांची के स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था ।लेकिन पुष्यमित्र शुंग ने महास्तूप का पुनर्निर्माण करवाया क्योंकि इस स्तूप के चारों तरफ जो लकड़ी की वेदिका(घेरे की तरह) लगी हुई थी वो खराब हो चुकी थी पुष्यमित्र ने इसके चारों ओर पत्थर की वेदिकाएँ लगवा दी थीं ।इस प्रकार यह कहा जा सकता है की पुष्यमित्र शुंग बौद्ध धर्म का शत्रु था और उसने सनातन धर्म को पुनः स्थापित किया था परन्तु इतना बड़ा धर्म असहिष्णु नहीं था जितना कि उसे बताया गया है ।

पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी

अग्निमित्र (149 ई. पू.-141 ई. पू.)

अग्निमित्र शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग का पुत्र था ।पुष्यमित्र के पश्चात् अग्निमित्र 149 ई. पू. में  शुंग वंश का सम्राट बनता है।पुष्यमित्र के शासनकाल में उसने विदिशा का शासन संभाल रखा था ।सम्राट बनने के पश्चात इसने विदिशा को ही अपनी राजधानी बनाया ।जैसा की हम आपको बता चुके हैं विदर्भ के युद्ध के बारे में जिस पर अग्निमित्र ने विजय प्राप्त की थी ।दोस्तों,कालिदास की एक रचना है मालविकाग्निमित्रम् जिसमे मालविका और अग्निमित्र की प्रेम कहानी का उल्लेख मिलता है ।मालविका यज्ञसेन की चचेरी बहिन थी ।जब अग्निमित्र विदर्भ पर आक्रमण करने के लिए जाता है तो वहां उसकी मुलाकात मालविका से होती है दोनों को एक-दूसरे से प्रेम हो जाता है ।अग्निमित्र विदर्भ की इस राजकुमारी से विवाह कर लेता है यह अग्निमित्र की तीसरी पत्नी होती है,पहली दो पत्नियों का नाम धारिणी और इरावती था ।

दोस्तों,अग्निमित्र के पश्चात् शुंग वंश  8 और शासकों के नामों का उल्लेख मिलता है जिन्होंने 73 ई. पू. तक शासन किया,कुल मिलाकर शुंग वंश 10 शासकों ने लगभग 112 वर्षों तक मगध पर शासन किया ।इन 8 शासकों के समय की किसी विशेष घटना का उल्लेख नहीं मिलता है ।बहरहाल अग्निमित्र के उत्तराधिकारियों की जानकारी आपको नीचे दी जा रही है ।

सुज्येष्ठ (141 ई. पू.-133 ई. पू.)

अग्निमित्र के पश्चात् सुज्येष्ठ ने शुंग वंश की गद्दी संभाली ।

वसुमित्र (133 ई. पू.-123 ई. पू.)

वसुमित्र अग्निमित्र का पुत्र तथा पुष्यमित्र शुंग का पौत्र था जिसने पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल में यवनों के साथ युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

अन्ध्रक (123 ई. पू.-121 ई. पू.)

पुलिन्दक (121 ई. पू.-118 ई. पू.)

घोष (118 ई. पू.-116 ई. पू.)

वज्रमित्र (116 ई. पू.-114 ई. पू.)

घोष के पश्चात् वज्रमित्र ने शुंग राजवंश का नेतृत्व किया जो इस वंश का आठवाँ शासक था ।

भागभद्र अथवा भागवत (114 ई. पू.-82 ई. पू.)

दोस्तों जैसा की हमने आपको इसकी जानकारी दी थी की भागभद्र के शासनकाल में यवन नरेश एण्टियालकीड्स ने अपने एक राजदूत हेलियोडोरस को विदिशा भेजा । विदिशा आकर वह वैष्णव धर्म से इतना प्रभावित होता है की  वैष्णव धर्म को वह अंगीकार(अपना )कर लेता है और विदिशा में ही बेसनगर के पास गरुड़ ध्वज का निर्माण करवाता है ।

भवभूति अथवा देवभूति (82 ई. पू.-73 ई. पू.)

देवभूति शुंग वंश का अन्तिम राजा था ।कहा जाता है कि वह अत्यंत ही निर्बल और विलासी राजा था जो अपने ही एक ब्राह्मण मंत्री वसुदेव के षड्यंत्र का शिकार हो जाता है और मारा जाता है ।देवभूति की हत्या करके वसुदेव कण्व वंश की स्थापना करता है ।

इतिहास से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

मनुसमृति जो दुनिया की सबसे प्राचीन स्मृति है उसके वर्तमान स्वरूप की रचना शुंग काल मे हुई थी ।

अजन्ता का नोवां चैत्य मंदिर भी शुंग काल बनाया गया था ।

नाशिक तथा कार्ले का चैत्य मंदिर भी शुंग शासकों द्वारा बनवाया गया था ।

मथुरा में अनेकों यक्ष-यक्षिणीयों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं प्रमाण मिलता है कि वे भी शुंग शासनकाल में ही बनवाई गई थीं ।

कुकुटाराम विहार जो पाटिलपुत्र में स्थित है पुष्यमित्र शुंग ने इसे नष्ट करने के लिये 3 बार प्रयास किया लेकिन तीनों बार असफल रहा ।

कुछ अविश्वसनीय जानकारी

भारतीयों ने यवन लोगों ज्योतिष के क्षेत्र में बहुत सारा ज्ञान प्राप्त किया ।जैसे सप्ताह में सात दिन होते हैं और इनका नाम विभिन्न ग्रहों के नाम पर रखा गया है ।नक्षत्रों को देखकर भविष्य बताने की कला आदि ।हालांकि भारत को इस बारे में जानकारी पहले से ही थी परंतु यवनों से ज्योतिष ज्ञान में ओर अधिक इजाफा किया ।

दोस्तों गार्गी और वराहमिहिर की रचनाएं इस बात को प्रमाणित करती हैं ।

गार्गी संहिता- गार्गी एक महान विदुषी महिला थी जिसने लिखा है कि यधपि यवन बर्बर थे परन्तु ज्योतिष के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए भारत उनका ऋणी है ।

वराहमिहिर-वराहमिहिर जो पांचवीं-छठी ई. सदी के खगोलज्ञ और गणितज्ञ थे ने लिखा है की यधपि युनानी मलेच्छ थे किन्तु वे ज्योतिष के विद्धवान थे इसलिए वे प्राचीन ऋषियों की भांति पूजनीय हैं

सोने के लिखित सिक्के बनाने की कला भी भारत ने यवनों से सीखी थी ।

यूनानी शैली और मथुरा शैली को मिलाकर एक नई शैली का जन्म हुआ गांधार शैली ।

ये थी दोस्तों कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां, आज इस पोस्ट में हमने आपको शुंग वंश के इतिहास की जानकारी दी है । इसके बाद कण्व वंश आता जिसकी जानकारी हम आपको अगली पोस्ट में देंगे ।दोस्तों आपको हमारी ये जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरुर बताएं।


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