History of Rajasthan ~ बप्पारावल (गुहिल वंश मेवाड़) ~ Ancient India

History of Rajasthan ~ बप्पारावल (गुहिल वंश मेवाड़)

बप्पा रावल का वास्तविक नाम कालभोज था । उनका जन्म 713 ई. में ईडर (उदयपुर) नामक स्थान पर हुआ था । उनके पिता का नाम नागादित्य था । बचपन में भीलों द्वारा इनके पिता नागादित्य की हत्या कर दी गई । नागादित्य अपने अहंकार के कारण भीलों में अप्रिय हो गया था । उसने भीलों पर अत्याचार किये तथा उनसे कर वसूला । भीलों का कहना था कि नागादित्य के पूर्वज गुहिल ने उनके पूर्वजों से वादा किया था कि उनके वंशज कभी भीलों से कर नहीं लेंगे तथा ना ही उन पर कभी अत्याचार करेंगें । लेकिन नागादित्य ने अपने पूर्वजों का वादा तोड़ा है । अतः इससे नाराज होकर भीलों ने नागादित्य की हत्या कर दी । भील बप्पारावल को भी मार डालना चाहते थे लेकिन राज्य के सेवकों ने उन्हें सुरक्षित हारित ऋषि के आश्रम भेज दिया था । बप्पा रावल हारित ऋषि की गायें चराया करते थे ।

बप्पारावल को मेवाड़ में गुलिह साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है । मेवाड़ पर उन दिनों मौर्यों का शासन था । हारित ऋषि के आशीर्वाद से 734 ई. उन्होंने मौर्य शासक मान मौर्य को पराजित कर चितौड़ दुर्ग( मेवाड़) पर अधिकार कर लिया । इस समय मेवाड़ की राजधानी नागदा (उदयपुर) थी । हारित ऋषि ने उन्हें बप्पा रावल की उपाधि दी ।

बप्पारावल की उपाधि

बप्पारावल के नाम व उपाधि को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं । कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनका वास्तविक नाम बप्पारावल था जबकि कालभोज/ मालभोज उनकी उपाधि ।

  • राजस्थान के इतिहासकार श्यामल दास (वीर विनोद के रचनाकार) के अनुसार इनका मूल नाम बप्पारावल था जबकि कालभोज उनकी उपाधि थी ।

  • मुहणोत नैणसी व कर्नल जेम्स टॉड ने बप्पारावल को उनकी उपाधि बताया है ।

  • कुम्भलगढ़ प्रशस्ति, रणकपुर प्रशस्ति व आबू अभिलेख में बप्पारावल व कालभोज/मालभोज दोनों को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है ।

बप्पारावल के सिक्के व उनके द्वारा बनवाये गए मंदिर

बप्पारावल भगवान शिव (एकलिंग जी) के भक्त थे । ऐसा माना जाता है कि बप्पा रावल खुद को कभी शासक नहीं मानते थे । वह एकलिंग जी को ही अपना शासक व खुद को उनका दीवान मानकर शासन करते थे । वह कहीं भी जाने से पहले एकलिंग जी से आज्ञा लेते थे । इस आज्ञा लेने को आसकां लेना कहा जाता था । उदयपुर के निकट कैलाशपुरी में उन्होंने एकलिंग जी का मंदिर भी बनवाया था । इसके अलावा उन्होंने सास-बहू का मंदिर बनवाया जो नागदा में है ।मेवाड़ में सबसे पहले सोने के सिक्के बप्पारावल ने ही चलवाये थे । अजमेर से प्राप्त उनके सिक्कों पर कामधेनु(गाय), शिवलिंग, त्रिशूल,उगते सूर्य व सूर्य को प्रणाम करते व्यक्ति(सम्भवतः बप्पारावल) के चित्र प्राप्त हुए हैं।

अरबों का आक्रमण

बप्पारावल के शासनकाल में अरब आक्रमणों का सिलसिला शुरू हो चुका था । मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध के राजा दाहिर सेन को पराजित कर पूरे सिंध पर अधिकार कर लिया था । सिंध में अपनी सफलता के बाद अरबों की दृष्टि अब मेवाड़,गुजरात, मालवा व सौराष्ट्र पर अधिकार करने की थी । लगभग 730 ई. में जुनैद के नेतृत्व में अरबों ने सिंध के रास्ते पश्चिमी राजस्थान में प्रवेश किया । यहां अरबों ने चावड़ों,मौर्यों,सैन्धवों व गुर्जर शासकों को पराजित कर मारवाड़, मेवाड़ व गुजरात के कुछ भू-भागों में लूटपाट मचाई ।

738 ई. में राजस्थान की सीमा पर बप्पारावल, प्रतिहार शासक नागभट्ट व चालुक्य शासक विक्रमादित्य द्वितीय की संयुक्त सेनाओं का अरबों के साथ कई युद्ध हुए । इन युद्धों को राजस्थान का युद्ध की संज्ञा दी गई है । इन युद्धों में अरबी नेता जुनैद हिन्दू सैना से लड़ता हुआ मारा गया । अरबी सेना सिंध की तरफ भाग गई । बप्पारावल ने अरब सेना का पीछा किया तथा उन्हें अफगानिस्तान तक धकेल दिया । सम्पूर्ण सिंध को अरबों से मुक्त करा लिया गया । वर्तमान में पाकिस्तान का शहर रावलपिंडी बप्पारावल के द्वारा बसाया गया था । इस स्थान पर बप्पारावल ने अरबों को सिंध से खदेड़ने के लिए अपनी सेना का केम्प बनाया था ।

बप्पारावल रावल एक बहुत विशालकाय शरीर के व्यक्ति थे । उनके बारे में कहा जाता है कि उनकी धोती 35 हाथ लंबी थी तथा 16 हाथ लंबा दुपट्टा, वह एक बार में चार बकरे खाते थे, उनके हाथों में 32 मण का खड़ग होता था तथा वह एक साथ 2 भैंसों की बलि दे दिया करते थे । हालांकि यह एक जनश्रुति है लेकिन इतना अवश्य है कि वह एक कुशल सेनानायक होने के साथ-साथ साहसी व पराक्रमी थे । तभी तो वह अरबों को खदेड़ते हुए अफगानिस्तान तक जा पहुंचे थे ।

बप्पारावल का निधन

बप्पारावल का शासनकाल 734 ई. से 753 ई. तक था । ऐसा माना जाता है कि 753 ई. में बप्पारावल का निधन हो गया था । नागदा में बप्पारावल का समाधि स्थल है । हालांकि इतिहास में बप्पारावल के बारे में कोई ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है और ना ही उनके बाद के शासकों के बारे में पूरी जानकारी है । बप्पारावल के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्होंने 753 ई. शासन की जिम्मेदारी रावल खुमाण प्रथम को सौंपकर सन्यास ले लिया था और बाकी का जीवन उन्होंने भगवान एकलिंग जी की भक्ति में लगा दिया तथा उनका निधन 97 वर्ष की आयु में हुआ था । अतः मित्रों,बप्पारावल की जन्म तिथि, उनकी शासन अवधि व उनकी मृत्यु की तिथि स्पष्ट रूप से बता पाना संभव नहीं है लेकिन इतना अवश्य है उपर्युक्त जानकारी की कई ऐतिहासिक स्त्रोतों में समानता मिलती है ।


हमारी वेबसाइट अपने विजिटर्स को भारतीय इतिहास (History of India in Hindi) से सम्बंधित जानकारियां बिलकुल मुफ्त प्रदान करती है । हमारा संकल्प है की हम अपने सब्सक्राइबर्स को सही और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करें तथा हमारी हर नई पोस्ट की जानकारी आप तक सबसे पहले पहुंचाएं । इसीलिए आपसे अनुरोध करते हैं की आप हमारी वेबसाइट को सब्सक्राइब करें तथा वेबसाइट पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन पर क्लिक जरूर करें ।


मेवाड़ का इतिहास भाग-2

मेवाड़ का इतिहास भाग-4

Previous
Next Post »