मगध के इतिहास के पिछले भाग में आपको जानकारी दी गई थी शुंग वंश की । इसी श्रृंखला के इस लेख में आज आपको जानकारी दी जायेगी कण्व वंश की । यदि आपने पिछले भागों को नहीं पढ़ा है तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर क्रमवार पढ़ सकते हैं ।
कण्व वंश
कण्व वंश एक ब्राह्मण वंश था ।इस वंश को 'कण्व वंश' या 'काण्वायन वंश' के नाम के नाम से जाना जाता था ।कण्व वंश के शासकों ने 73 ई. पू. से लेकर 28 ई. पू. तक शासन किया ।वसुदेव ने शुंग वंश के अन्तिम राजा देवभूति की हत्या करके कण्व वंश की स्थापना की ।वसुदेव देवभूति की सेना का सेनापति था ।कहा जाता कि शुंग वंश का अन्तिम सम्राट देवभूति विलासिता का शिकार था ।
दोस्तों बाणभट्ट की रचना हर्षचरित में उल्लेख मिलता है कि वसुदेव देवभूति की दासी की कन्या को देवभूति के विरुद्ध उकसाता है और उसे रानी बनाकर देवभूति के पास भेजता है जो उसकी हत्या कर देती है ।इस प्रकार शुंग वंश का अंत होता है और और एक नए राजवंश कण्व वंश का उदय होता है ।
दोस्तों दुर्भाग्यवश कण्व वंश के बारे में, उनके शासनकाल की घटनाओं के बारे में हमें बहुत अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती है लेकिन जितनी भी प्राप्त होती है उसके अनुसार इस वंश में कुल चार शासक हुए जिन्होंने लगभग 45 वर्षों तक शासन किया जो निम्नानुसार हैं:-
वसुदेव (73 ई. पू.-64 ई. पू.)
इस वंश का प्रथम शासक वसुदेव था जिसने अन्तिम शुंग शासक देवभूति की हत्या कर दी थी तथा कण्व वंश की स्थापना की ।
भूमिपुत्र (64 ई. पू.-50 ई. पू.)
भूमिपुत्र वसुदेव का पुत्र था तथा कण्व वंश का दूसरा शासक था जिसने लगभग 14 वर्षों तक शासन किया ।भूमिपुत्र का सिक्का भी भारतीय पुरातत्व विभाग को खुदाई से प्राप्त हुआ है ।
नारायण (50 ई. पू.-38 ई. पू.)
नारायण कण्व वंश का तीसरा शासक था जो अपने पिता भूमिपुत्र के बाद इस वंश का शासक बना ।इसने लगभग 12 वर्षों तक शासन किया ।नारायण के दो और नामों का भी उल्लेख मिलता है विष्णु नारायण और विष्णुपुत्र ।
सुशर्मन (38 ई. पू.-28 ई. पू.)
सुशर्मन नारायण का पुत्र था जिसने 10 वर्ष तक शासन किया । सुशर्मन इस कण्व वंश का अन्तिम राजा होता है ।वायुपुराण के अनुसार सुशर्मन अपने सामन्त आन्ध्रजातीय सातवाहन सिमुक द्वारा मार दिया जाता है ।सुशर्मन की हत्या करके सिमुक सातवाहन वंश (आंध्र सातवाहन वंश) की स्थापना करता है ।
दोस्तों ,वायुपुराण के अनुसार सुशर्मन की हत्या सातवाहनों ने की थी परन्तु इस बात का कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है कि सातवाहनों ने मगध पर शासन किया था ।इसके विपरीत हमें ,मित्र वंश के कुछ प्रमाण प्राप्त होते हैं जिन्होंने संभवतः मगध पर शासन किया था ।मगध के राजाओं द्वारा जारी किये गये अनेक सिक्के प्राप्त हुए हैं जिन पर मित्र नाम उत्कीर्ण है ।इसलिए इस बात की सम्भावना ज्यादा है की कण्वों का उन्मूलन मगध के मित्र शासकों द्वारा किया गया हो ।इसके साथ ही सातवाहनों की उत्पत्ति का प्रश्न भी अभी अनसुलझा है ।पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि आन्ध्रों ने कण्व वंश को समाप्त करके मगध पर अधिकार कर लिया था परन्तु इस बात की पुष्टि नहीं होती है कि सातवाहन वंश की नीवं यहीं से रखी गई थी ।बहरहाल जो भी हो इतना सपष्ट है कि कण्व वंश के नष्ट होने के बाद मगध सातवाहनों के अधिकार क्षेत्र में आ गया था और मगध के राजवंशों का साम्राज्य लगभग समाप्त हो गया था ।इसके साथ ही उत्तर भारत की तरह ही दक्षिणी भारत में भी कई छोटे-बड़े नए राज्यों का उदय होने लगा था जो स्वतंत्र शासन करने लगे थे। इन राज्यों में दो प्रमुख राज्य थे प्रतिष्ठान (पैठण ,महाराष्ट्र) का सातवाहन वंश एवं कलिंग का चेटि/चेदि वंश ।प्रतिष्ठान के सातवाहनों के शासनकाल की शुरुआत 60 ई. पू. से मानी जाती है ।
दोस्तों जैसा की हमने आपको बताया कण्व वंश के शासनकाल की घटनाओं के बारे में कोई विशेष जानकारी हमें किसी स्रोत से प्राप्त नहीं हुई है ।अगली पोस्ट में हम आपके लिए जानकारी लाएँगे आंध्र सातवाहन वंश के इतिहास की,तब तक के लिए धन्यवाद ।
- Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-1)
- Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-2)
- Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-3)
- Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-5)
दोस्तों यदि पोस्ट अच्छी लगी तो लाइक जरूर करें तथा अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में लिखे इसके साथ ही इस ब्लॉग को Follow और Subscribe भी कर लेवें क्योंकि मैं इसी प्रकार की तथ्य पर आधारित जानकारियां आपके लिए हर रोज लेकर आता हूँ ।
धन्यवाद
ConversionConversion EmoticonEmoticon