दोस्तों, शाक्य कौन हैं, ये कहाँ से आये थे, शाक्य वंश कब अस्तित्व में आया यानि इस वंश की शुरूआत कहाँ से होती है, यह सब जानने के लिए हमें इस वंश की वंशावली को समझना आवश्यक है ।
दोस्तों, भगवान ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की थी । मानव जाति की रचना के लिए भगवान ब्रह्मा ने कई मनुओं की रचना की । इन मनुओं में प्रथम मनु था सवयंभू मनु जिसके साथ प्रथम स्त्री शतरूपा थी । मनु से ही हम, मानव, मनुष्य कहलाए । अंग्रेजी भाषा का Man, human शब्द भी मनु नाम से मिलता-जुलता है । हम सभी उसी स्वयंभू मनु की संताने है । एक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है । स्वयंभू मनु के कुल में आगे चलकर 14 मनु हुए जिनमे से एक थे वैवस्वत मनु । वर्तमान में जो मन्वन्तर चल रहा है उसके प्रथम पुरुष वैवस्वत मनु हैं । यही वो वैवस्वत मनु हैं जिनके दस पुत्र हुए जिनमे से एक पुत्र का नाम था ईक्ष्वाकु । इन्ही से शुरू हुआ था इक्ष्वाकु वंश ।
इक्ष्वाकु वंश
राजा भगीरथ इसी ईक्ष्वाकु वंश से थे जो गंगा को स्वर्ग से उतारकर धरती पर लाये थे। राजा सगर और भगवान राम भी इक्ष्वाकु वंश से ही थे । वैवस्वत मनु के 10 पुत्रों के नाम क्रमशः हैं-
- इल्ल
- इक्ष्वाकु
- कुशनाम
- अरिष्ट
- धृष्ट
- नरिष्यन्त
- करुष
- महाबली
- शर्याति
- पृषध
इन दसों पुत्रों में इक्ष्वाकु के कुल का ही मुख्य रूप से विस्तार हुआ ।
दोस्तों, इक्ष्वाकु वंश की सम्पूर्ण वंशावली की जानकारी हम आपको किसी अन्य लेख में देंगे । हम यहाँ पर इस वंश की वंशावली का संक्षिप्त विवरण दे रहे हैं ।इक्ष्वाकु से इक्ष्वाकु वंश की शुरुआत हुई । इक्ष्वाकु के 100 पुत्र थे इनमें मुख्य तीन थे।
- विकुक्षि
- निभी
- दंड ।
इसमें विकुक्षि का वंश आगे बढ़ा ओर आगे चलकर इसी वंश के युवानश्र्व से मान्धाता चक्रवर्ती हुए । मान्धाता से मन्धाता वंश प्रारम्भ हुआ ।
मन्धाता वंश
मान्धाता ने बिन्दुमती से विवाह किया जो शतबिंदु की पुत्री थी । मान्धाता के 3 पुत्र और 50 पुत्रियां हुईं । इसके तीन पुत्र पुरुकुत्स, अम्बरीष और मुचकुन्द थे । इसी वंश में राजा सगर हुए जिनकी दो पत्नियां थीं कश्यप की पुत्री सुमति तथा विदर्भ राज की पुत्री केशनी । राजा सागर की पहली पत्नी सुमति से 60,000 पुत्र हुए जो कपिल मुनि के श्राप से भस्म हो गए थे तथा दूसरी पत्नी केशनी से असमंजस हुआ जो बड़ा ही दुराचारी था, असमंजस से अंशुमान हुए, अंशुमान से दलीप तथा दलीप से भगीरथ हुए जो गंगा नदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाये थे ।
इस वंश के दीर्घबाहु से रघु नामक पुत्र हुआ। इन्हीं से रघु कुल का आरम्भ हुआ तथा इनके वंशज रघुवंशी कहलाए । रघु से अज्ज, अज्ज से दशरथ, दशरथ से श्रीरामचंद्र, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न नामक पुत्र हुए ।
राम।। राम।। राम ।।
रघुवंश
श्रीरामचंद्र के कुश और लव, लक्ष्मण के अंगद और चन्द्रकेत, भरत से तक्ष और पुष्कल तथा शत्रुघ्न से सुबाहु और शूरसेन नामक पुत्र हुए ।
कुश वंश
श्रीरामचन्द्र के पुत्र कुश से कुश वंश आरम्भ हुआ । कुश से अतिथि, अतिथि से निषध, निषध से अनल, अनल से नभ तथा इसी श्रंखला में बृहद्बल, दिवाकर, बृहदश्व, भानुरथ, बृहद्राज, धर्मी और कृतंजय हुए तथा कृतंजय से रणन्जय, रणन्जय से संजय और संजय से शाक्य हुए ।
शाक्य वंश
इस प्रकार शाक्य से शाक्य वंश का आरम्भ हुआ । शाक्य से ही शाक्य वंश अस्तित्व में आया । दोस्तों विदित रहे उपर्युक्त सभी वंश इक्ष्वाकु वंश की ही शाखा है । इस प्रकार शाक्य वंश इक्ष्वाकु कुल से भी है, रघु कुल से भी है तथा कुश कुल से भी ।
शाक्य वंश में ही आगे चलकर राजा शुद्धोधन हुए, शुद्धोधन से सिद्धार्थ (महात्मा बुद्ध) हुए । सिद्धार्थ ने बौद्ध धर्म की स्थापना की और दुनिया को सत्य, अहिंसा और परोपकार की राह दिखाई ।
शाक्यों का नरसंहार
छठी शताब्दी ई. पू. के आस-पास कोशल राज्य पर प्रसेनजित नामक राजा का शासन था । आपने प्राचीन भारत के इतिहास में मगध का नाम तो अवश्य ही पढ़ा होगा । मगध पर उस समय हर्यंक वंश के शासक बिम्बिसार का शासन था । प्रसेनजित को कोशल राज्य अपने पिता से वंश परम्परा के अंतर्गत प्राप्त हुआ था ।प्रसेनजित ने मगध की मित्रता प्राप्त करने के लिए अपनी बहिन महाकोशला का विवाह मगध सम्राट बिम्बिसार से कर दिया। प्रसेनजित एक महत्वकांक्षी सम्राट था जिसने सम्राट बनते ही सर्वप्रथम कपिलवस्तु में शाक्यों के राज्य पर आक्रमण किया तथा शाक्यों को परास्त कर दिया । शाक्यों के पराजित होने पर तत्कालीन राजनीतिक परम्परा के अनुसार प्रसेनजित ने शाक्य राजकुमारी से अपने विवाह की मांग की (यह उस समय राजनीतिक परम्परा थी कि विजित सम्राट को अपनी कन्या का विवाह विजेता सम्राट से करना पड़ता था) ।
शाक्य वंश के लोग रक्तशुद्धि को अधिक महत्व देते थे ओर इस बात पर दृढ़ रहे कि वो अपनी कन्या का विवाह प्रसेनजित से नहीं करेंगे । शाक्यों ने बड़ी होशियारी से व छलपूर्वक प्रसेनजित का विवाह एक अत्यंत नीच कुल की कन्या वासव खत्रिया से सम्पन्न कराया । वासव खत्रिया से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम विरुद्धक रखा गया ।
एक बार राजकुमार विरुद्धक अपने ननिहाल कपिलवस्तु गया जहां उसका अपमान किया गया । जिन संस्थागारों ओर आसनों पर वह बैठा था उन्हें दूध से धुलाया गया । इस घटनाक्रम का सम्पूर्ण विवरण उपन्यासकार चतुरसेन द्वारा रचित 'वैशाली की नगरवधू' में मिलता है ।
जब विरुद्धक कपिलवस्तु से चला गया तो उसका एक सामन्त अपना भाला कपिलवस्तु भूल आया था जब सामन्त अपना भाला लेने के लिए वापिस वहां पहुंचा तो उसने देखा कि संस्थागारों और आसनों को दूध से धोया जा रहा था तथा एक दासी विरुद्धक के लिए गालियां बुड़बूड़ा रही थी और कह रही थी कि इस नीच जाती के अधम ने संस्थागारों को अपवित्र कर दिया ।
जब विरुद्धक ने वापिस आकर उसने शाक्यों द्वारा अपने पिता प्रसेनजित के साथ किये गए इस षड्यंत्र की जानकारी प्रसेनजित को दी तो प्रसेनजित ने कुपित होकर विरुद्धक ओर उसकी माता वासव खत्रिया को ही राज्य से निष्कासन का दंड दे दिया । इस अपमान से क्रोधित होकर विरुद्धक ने प्रण लिया जिस स्थान को शाक्यों ने दूध से धुलवाया था उस स्थान को वह शाक्यों के खून से धोयेगा तथा शाक्यों का समूल विनाश कर देगा । उसने कौशल का सिंहासन प्राप्त करने के लिए अपने पिता प्रसेनजित के विरुद्ध षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया । उसने श्रावस्ती को छोड़कर आसपास के क्षेत्रों में लूटमार करना शुरू कर दिया । विरुद्धक ने कौशल को प्राप्त करने के लिए अजातशत्रु से सहायता भी मांगी परंतु वज्जिरा से अजातशत्रु के विवाह ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । विरुद्धक अपने सतत प्रयासों ओर कूटनीति षड्यंत्रो तथा अमात्यों की मदद से अपने उद्देश्य में सफल रहा ।
उसने कौशल में अपना राज्याभिषेक करवाया तथा राज्याभिषेक के पश्चात वह विदूड़भ कहलाया । कौशल का सम्राट बनने के तुरंत बाद शाक्यों के विनाश का अपना प्रण पूरा करने के लिए वह अपने हजारों सैनिकों के साथ कपिलवस्तु जा पहुंचा ओर शाक्यों पर हमला कर दिया । देखते ही देखते हजारों शाक्य लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, रक्त की नदी बह चली, घोड़ों की हिनहिनाहट पूरे आसमान में गूंजने लगी । चारों तरफ औरतों ओर बच्चों की चीत्कार सुनाई दे रही थी जिससे सारा वातावरण भयावह हो गया था । ऐसा कहा जाता है कि शाक्यों का संहार करने के पश्चात जब विरुद्धक वापिस जा रहा था तो रास्ते में वह एक भयंकर तूफान में फंस गया था तथा अपने सैनिकों सहित अचिरावती नदी (वर्तमान राप्ती नदी) में बह गया और मारा गया ।
शाक्य वंश की शाखाएं
दोस्तों, इस नरसंहार के पश्चात जो थोड़े बहुत शाक्यों के परिवार बच कर भाग गए थे वो कपिलवस्तु के उत्तर में स्थित पहाड़ियों में छुपकर रहने लगे तत्पश्चात वे बिहार में भाग आये और गंगा के मैदानी भागों में पिप्पलिवन नामक स्थान पर रहने लगे और कालन्तर में ये अपने जीवन यापन के लिए सब्जी उगाने, फूलों की खेती करने और बाग उगाने के कार्य करने लगे । इस नरसंहार ने शाक्यों को झकझोर कर रख दिया, उनके जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल गयी । दुर्भाग्य ये रहा की शाक्य वंश के लोग बिखर गए और अलग -अलग स्थानों पर रहने के कारण ये वंश कई उपजातियों व शाखाओं में बंट गया जैसे: मौर्य, कुशवाहा, काछी, सैनी, सक्सेना, मुराव, महतो इत्यादी ।
पिप्पलिवन में मोरों (Peacocks) के आधिक्य के कारण यहां पर रहने वाले शाक्यों को मौर्य कहा जाने लगा । मौर्य वंश में चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक जैसे महान सम्राट हुए जिन्होंने अखंड भारत का निर्माण किया ।
वर्तमान भारत में शाक्यों की स्थिति
दोस्तों शाक्य वंश में जन्में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं ने पूरे विश्व को शांति और अमन का संदेश दिया । शाक्यों की दूसरी उपशाखा मौर्य वंश ने अखंड भारत का निर्माण किया और भारत को वैश्विक पहचान दिलाई । बड़ी ही व्यथा की बात है दोस्तों, इन सब के बावजूद आज अपने ही देश भारत में महात्मा बुद्ध व इनके वंशजों की पहचान खतरे में है, इनका अस्तित्व खतरे में है जबकि नेपाल, बांग्लादेश, बर्मा, श्रीलंका और तिब्बत जैसे देशों में इनका सम्मानजनक स्थान है ।
बौद्ध मत
दोस्तों, हम सब सनातन धर्म से हैं ओर सभी धर्म सनातन धर्म से ही निकले हैं । महात्मा बुद्ध ने कभी भी अपनी शिक्षाओं व धार्मिक प्रचार प्रसार को धर्म का नाम नहीं दिया । हकीकत यह है कि बुद्धवाद (Buddhism) एक विचारधारा है लेकिन दुनिया ने धीरे-धीरे बुद्ध के विचारों को बौद्ध धर्म का नाम दे दिया ।
महात्मा बुद्ध की उदारता के कारण न केवल समकालीन सम्राटों का उन्हें समर्थन मिला बल्कि उनको, समाज की मुख्य धारा से बाहर हुए लोगों का भी सहयोग मिला ।महात्मा बुद्ध के महापरिवान (मृत्यु) के समय तक बौद्ध का विचार काफी हद तक हिंदुस्तान में फैलने लगा था । लेकिन उनकी मृत्यु के 200 वर्षों पश्चात् सम्राट अशोक के समय बौद्ध धर्म की महत्ता काफी अधिक बढ़ गयी थी । सम्राट अशोक के समय तक बौद्ध मत केवल सनातन धर्म की ही एक शाखा के रूप में था लेकिन कनिष्क के समय बौद्ध धर्म का एक अलग धर्म के रूप में प्रचार आरम्भ हो गया ।
यह एक विडंबना ही है की जिस धर्म ने भारत में जन्म लिया, यहाँ से दूर-दूर के देशों में पहुंचा वही धर्म आज भारत में ही बड़ी मुश्किल से पहचाना जाता है । आज भी यह धर्म नेपाल, श्रीलंका, तिब्बत, चीन, बर्मा, कम्पूचिया और जापान जैसे देशों में जीवित है । जावा, सुमात्रा, बाली सहित कोरियाई प्रायद्वीप और चीन तथा जापान तक इसका प्रसार कनिष्क के काल तक हो चुका था । सम्राट अशोक बौद्ध धर्म को सनातन धर्म से अलग देखने की बजाय उसे सनातन धर्म में ही देखना चाहते थे । लेकिन फिर भी यह धर्म एक अलग धर्म के रूप में दुनिया के समक्ष आया इसका मुख्य कारण उस समय हिन्दू धर्म में सामाजिक अत्याचार, ऊंच-नीच व छुआछूत जैसी खामियों का व्याप्त होना था ।
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14 comments
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Replyगौतम बुद्ध के पुत्र राहुल का पुत्र कौन था जिससे कि शाक्य वंश आगे बढ़ा होगा।
Replyसत्य जानकारी पहुंचाने के लिए आपको कोटि कोटि नमन मेरे भाई..
ReplyJo vansavwali di h usme kahi gautam ka nam nahi aaya
ReplyFir Ye gautam gotra ke kaise ho gaye
इतिहास की सही जानकारी देने का आपका प्रयास सराहनीय है ।
Replyमुझे कोरी जाति मे बारे मे बताये क्युकी वो भी खुद को शाक्य बताती है
ReplyGautam buddha shakyakoli the koioki shakya aur koli apas mein shadi karate the jisase shakya koli jati h aur gautam buddha shakya koli jaati h hamare paas pure pramaan h ashali shakya shakya koli h
ReplyRahul sidhharth ka Putra tha.goutam budh banne se phle...
ReplyKori ek alag jaati hai uska shakya se koi sambandh nahi hai...
Koli aur shakya alag hai ek nahi hai...
Gautam budh sirf ek margdarshak the koi bhagwan nahi hai logo ne unke vicharo ke adhar par unhe bhagwan bna diya....
To fir mp mein aja phir bata hu shakya kiski subcaste kachhi shakya koli sub caste jo madhyapradesh rajsthaan aur Gujaraat haryana Panjaab chhatisgarh aur up mein bhi h gandu kachhi maali shakya ni h meine bhi meine baud granth jain granth mein kachhi maali shakya ni aur nepal mein bhi shakya koli ki subcaste laude shakya aur koliya kingdom mein intermarriage hoti thi jo shakya koliya samjha baud granth ko thike pade le kachhi Or maali varma caste jo shakya hi h mp mein h aur kachhi maali Kushwah h shakya thoda science janta h to sun shakya koliya marriage karege to unki generation shakya koliya hi hogi na kachhi Or maali aur sun jo shakya bach kar bhag gye the shankh vihar mein ruke the kirat naresh ke yaha ve shakhwar kahlaye samjha chutiya aur science students hu genetic padi tune laude jo gyan pel rha h chodu Tu kachhi maali ho shakya ni panga mat le ham shakya se ni to gand phad dege jab history knowledge na ho to gyan mat pel kachhi Or mali Kushwah h har jagah up bihar mein kanjade laog h jo kisi ko bhi apna baap bol dete h bihar se mpb mein kuchh bhikhmange loug ate jo apne apko brahman kahate kya bihar mein sab brahman hi h saale jaati na pta na lag jaye aur sun comment ko reply karane se pahle history pad lena varify kar lena mp up Rajasthan chhattisgarh mein ake varna teri gand fad duga jo ulta seedha prachaar kiya to
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Bhai gadariya samaj kehti hai ki chandragupta maurya unke vanshj hai tho fhir tho vo ghlt bhol rhe hai
ReplyShat present mein koliya rajput ka part hai aur shakya koliya brother hai unke aadipurush mahasammat hai aur eastdev mandhata koliya ye dono sabse unchh koti ke kshatriya h aur kachhi maali se shakya ka koi lena dena ni hai
ReplyShakya present mein koliya rajput samil hai kachhi maali caste se koi relation ni hai
ReplySHAKYA ka kachhi maali se koi lena dena kachhi maali shudra jati jabki shakya🌞 kshatriya caste
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