History of Rajasthan ~ महाराणा लाखा (मेवाड़ का इतिहास) ~ Ancient India

History of Rajasthan ~ महाराणा लाखा (मेवाड़ का इतिहास)

महाराणा लाखा सिंह 1382 ई. में मेवाड़ के शासक बने । इनके पिता महाराणा क्षेत्र सिंह थे । राणा लाखा को राणा लक्ष सिंह के नाम से भी जाना जाता है ।

दोस्तों यद्दपि राणा लाखा के बारे में उनके सामरिक इतिहास की कोई ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है तथापि उनके शासनकाल की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं पर चर्चा कर लेते हैं ।

जावर की खान- राणा लक्ष सिंह के शासनकाल में उदयपुर में जावर की खान का पता चला । इस खान में शीशा, जस्ता और चांदी का भंडार था । इस खान के मिलने से राज्य की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई ।

मंदिरों का जीर्णोद्धार- रावल रतन सिंह के समय में अल्लाउद्दीन खिलजी व तुर्क सेनाओं द्वारा मेवाड़ में जिन मंदिरों व किलों को तोड़ दिया गया था उनका राणा लाखा द्वारा पुनर्निर्माण करवाया गया ।

पिछोला झील- राणा लाखा के शासनकाल में बिछुमार व चिड़ीमार नामक बंजारों ने अपने बैलों की स्मृति में तत्कालीन उदयपुर में पिछोला गांव के निकट एक झील का निर्माण करवाया जिसे हम पिछोला झील के नाम से जानते हैं ।

नटनी का चबूतरा- इनके शासनकाल में पिछोला झील के पास नटनी के चबूतरे का निर्माण करवाया गया । दोस्तों नटनी एक महिला थी जिसका नाम गलकी था । यह नटनी रस्सी के उपर चलने में माहिर थी । एक बार जब राणा लाखा को नटनी के इन करतबों का पता चला तो उन्होंने नटनी से मिलने की इच्छा जाहिर की । राणा लाखा ने नटनी के सामने यह शर्त रखी कि यदि वह पिछोला झील को रस्सी पर चलकर पार कर देगी तो वह उसे मेवाड़ राज्य का आधा हिस्सा दे देगा । नटनी ने शर्त मान ली । झील के दोनों छोर पर पोल गाड़कर रस्सी बांधी गई । लेकिन राणा लाखा के सामंतो को यह बात कुछ हजम नहीं हो रही थी । जैसे ही नटनी रस्सी पर चलकर कुछ ही दूर पहुंची थी कि सामंतों ने आधा राज्य जाने के डर से नटनी की रस्सी काट दी जिससे नटनी पिछोला झील में गिर पड़ी और मर गई ।

इसी नटनी की स्मृति में राणा लाखा ने पिछोला झील के पास ही नटनी के चबूतरे का निर्माण करवाया । वर्तमान में इस झील में जगमहल व जगमंदिर हैं जिनका निर्माण राणा लाखा सिंह के बाद के शासकों ने करवाया था । जगमंदिर का निर्माण कर्ण सिंह ने आरम्भ करवाया था लेकिन इसका पूरा निर्माण कार्य राणा जगत सिंह प्रथम ने करवाया था । जबकि जगमहल का निर्माण जगत सिंह द्वितीय ने करवाया था ।

बदनौर की स्थापना- महाराणा लाखा ने उदयपुर के निकट बदनौर नामक नगर बसाया । उस समय वैराटगढ़ के पहाड़ी लुटेरों ने मेवाड़ के इन क्षेत्रों में काफी लूटपाट मचा रखी थी । राणा लाखा की सेनाओं ने इन लुटेरों को वहां से खदेड़ दिया तथा वैराटगढ़ को पूरी तरह नष्ट कर उसके नजदीक बदनौर नामक नगर बसाया । बदनौर पर दिल्ली के शासक मुहम्मद शाह लौदी ने आक्रमण कर दिया था लेकिन राणा लाखा की सेना ने इन तुर्कों को वहां से खदेड़ दिया ।

राणा लाखा व हंसाबाई का विवाह

जैसा कि दोस्तों आपको विदित हो गया कि राणा लाखा मेवाड़ के शासक थे । राणा लाखा के दो पुत्र थे जिनका नाम कुँवर चूंडा/राणा चूंडा व राघव देव सिसोदिया था । मेवाड़ के पास ही मारवाड़ राज्य की सीमा लगती थी । तत्कालीन समय में मारवाड़ पर राठौड़ शासक राव चूडा का शासन था । राव चूड़ा की दो रानियां थीं जिनका नाम चाँद कंवर व किशोरी देवी था । दोस्तों इस कहानी को समझने के लिए आपको ध्यान देना होगा कि चूंडा व चूड़ा दोनों अलग-अलग व्यक्ति हैं । राव चूडा की रानी चाँद कंवर से उत्पन्न दो संतानें थीं पुत्री हंसाबाई व पुत्र राव रणमल । जबकि किशोरी देवी के एक पुत्र था जिसका नाम कान्हा था ।

दोस्तों यहां पर थोड़ी सी चर्चा राव चूड़ा पर करनी जरूरी है । राव चूड़ा व प्रतिहारों की संयुक्त सेना ने तुर्कों के विरुद्ध अभियान कर मंडौर पर अधिकार कर लिया । इससे खुश होकर प्रतिहारों ने अपनी राजकुमारी किशोरी देवी का विवाह राव चूड़ा के साथ करा दिया तथा मंडौर दहेज स्वरूप राव चूड़ा को दे दिया । राव चूड़ा अपनी नई राजधानी मंडौर को ही बनाता है । राव चूड़ा अपनी रानी किशोरी देवी के प्रभाव में आकर कान्हा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देता है ।

दोस्तों, मेवाड़ का राजकुमार कुँवर चूंडा व मारवाड़ की राजकुमारी हंसाबाई एक दूसरे से प्रेम करते थे । जब राव चूड़ा को इस बात का पता चला तो उसने यह रिश्ता लेकर अपने बेटे रणमल को मेवाड़ भेजा । जब रणमल दरबार में पहुंचा तो उस समय राणा चूंडा दरबार में उपस्थित नहीं था अतः रणमल ने नारियल राणा लाखा के हाथ में थमा दिया । हालांकि उस समय तक राणा लाखा बुड्ढे हो चुके थे । लेकिन राणा लाखा ने यह समझ लिया कि यह नारियल उसके लिए है अतः रिश्ते के लिए अपनी सहमति जताते हुए राणा लाखा ने कहा कि इस उम्र में मेरे लिए रिश्ता भला क्यों लेकर आये हो । प्रत्योत्तर में राव रणमल ने कहा कि यह रिश्ता आपके लिए नहीं बल्कि आपके पुत्र चूंडा के लिए है,राणा चूंडा की दरबार में अनुपस्थित के कारण यह नारियल आपको पकड़ाया है । इतना कहकर राव रणमल मारवाड़ लौट आया तथा सारा घटनाक्रम अपने पिता राव चूड़ा को बताया ।

जब राणा चूंडा को इस घटनाक्रम की जानकारी हुई तो उसने अपने प्रेम को त्यागने का विचार किया । अतः उसने अपने पिता राणा लाखा से यह विवाह करने पर जोर दिया,और परम्पराओं के आधार पर भी जिसके हाथ में रिश्ते के लिए नारियल दे दिया जाता है उसी को उस कन्या से विवाह करना होता है ।

राणा चूंडा ने राव रणमल से अपने पिता राणा लाखा के लिए हंसाबाई के विवाह की पेशकश की । हालांकि राव चूड़ा व राव रणमल की इच्छा हंसाबाई के विवाह के जरिये मेवाड़ की राजनीति में हस्तक्षेप करने की थी । चाहे यह विवाह राणा चूंडा से हो या राणा लाखा से । अतः उन्होंने इस विवाह के लिए अपनी एक शर्त राणा चूंडा के समक्ष रखी । शर्त के अनुसार हंसाबाई का विवाह राणा लाखा से कर दिया जाएगा मगर मेवाड़ के लिए राणा चूंडा को अपने उत्तराधिकार के अधिकार को त्यागना होगा तथा हंसाबाई से उत्पन्न पुत्र को ही मेवाड़ का अगला राजा बनाया जाए । हालांकि मंशा तो राव रणमल की यही थी कि राणा लाखा के बाद राणा चूंडा ही अगले शासक होंगे और यदि हंसाबाई का विवाह राणा चूंडा से होता है हंसाबाई का पुत्र ही राणा चूंडा के बाद अगला मेवाड़ शासक बनेगा । लेकिन ऐसा हुआ नहीं, राणा चूंडा ने स्वयं अपने पिता लाखा सिंह के साथ हंसाबाई के विवाह की सिफारिश की है तो ऐसी स्थिति में राव रणमल द्वारा राणा चूंडा के समक्ष यह शर्त रखी गई । राणा चूंडा ने अपने पिता की इच्छा के लिए इस शर्त को मान लिया । अपनी इसी त्याग भावना के कारण राणा चूंडा को राजस्थान का भीष्म पितामह कहा जाता है ।

इस विवाह के 13 माह बाद हंसाबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम मोकल था । 1421 ई. में महाराणा लाखा की मृत्यु हो गई थी । राणा लाखा की मृत्यु के पश्चात शर्तानुसार मोकल को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया गया था जो अभी अल्पवयस्क था । अतः राणा चूंडा को मोकल के संरक्षक के पद पर नियुक्त किया गया । दोस्तों, हम मेवाड़ का इतिहास श्रृंखला का अगला भाग लेकर जल्द ही प्रस्तुत होंगे ।


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