~ बीते हुए युगों की घटनाओं के संबंध में जानकारी देने वाले साधनों (स्त्रोतों) को 'ऐतिहासिक स्त्रोत'(Historical Sources) कहा जाता है।
~ ऐतिहासिक स्त्रोत दो प्रकार के होते हैं-साहित्यिक स्त्रोत(Literary Sources) एवं पुरातात्विक स्रोत(Archaeological Sources)।साहित्यिक स्रोतों की तुलना में पुरातात्विक स्त्रोत अधिक विश्वसनीय है,क्योंकि इनमें हेर-फेर करना सम्भव नही है।
~ प्राचीन भारत के अध्ययन के लिये पुरातात्विक स्रोतों का अधिक महत्व है।
साहित्यिक स्रोतों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-देशी और विदेशी।
देशी ग्रंथों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है-धार्मिक और गैर धार्मिक।धार्मिक ग्रंथों के अंतर्गत आते है-ब्राह्मण ग्रंथ,बौद्ध ग्रंथ और जैन ग्रंथ।गेर धार्मिक ग्रंथों के अंतर्गत आते हैं-ऐतिहासिक ग्रंथ,अर्धेतिहासिक ग्रंथ, जीवनियां आदि।
■ब्राह्मण ग्रंथों के अंतर्गत आते हैं-
■ सहिंता या वेंदो की संख्या चार है-ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद व अर्थवेद।
रचना काल-1500 ई.पू.से 1000 ई.पू.
रचना प्रदेश-सप्तसैंधव प्रदेश
रचना काल-1000 ई.पू. से 600 ई.पू.
रचना प्रदेश-कुरु पांचाल देश
इतिहास की दृष्टि से ऋग्वेद व अथर्ववेद का विशेष महत्व है।
●ब्राह्मणों का रचनाकाल 1000 ई.पू.से 600 ई.पू.है।शथपथ ब्राह्मण से पश्चिमोत्तर के गंधार,शाल्य, केकय आदि एवं प्राच्य के कुरु पांचाल,कौशल,विदेह राज्यों पर प्रकाश पड़ता है।
●आरण्यकों का रचनाकाल 1000 ई.पू.से 600 ई.पू.है।आरण्यकों का ऐतिहासिक महत्व नगण्य है।
●उपनिषदों का रचनाकाल 800 ई.पू.से 500 ई.पू.है।उपनिषदों में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा पराविद्या या आध्यात्म विद्या है।जीवन का उद्देश्य मनुष्य की आत्मा का विश्व की आत्मा से मिलना है जिसे पराविद्या कहा गया है।
●ब्राह्मणों व उपनिषदों के समिल्लित अध्ययन से परीक्षित से लेकर बिम्बिसार तक के इतिहास की जानकारी मिलती है।
●वेदांगों का रचनाकाल 600 ई.पू.से 200 ई.है।वेदांगों में प्राचीन भारतीय इतिहास,सभ्यता व संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है।
●समृतियों का रचना काल 200 ई.पू.से 600 ई.है।समृतियों से सामाजिक संगठन,तत्सम्बन्धी सिद्धान्तों, प्रथाओं,रीति-रिवाजों,राजा-प्रजा के सम्बन्धों, कर्तव्यों आदि का पूर्ण ज्ञान होता है।
●महाकाव्यों(रामायण व महाभारत) का रचनाकाल 400 ई.पू.से 400 ई. है।
●रामायण से तत्कालीन भारत की राजनीतिक,सामाजिक व धार्मिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।इससे हमें जनपदों की उत्पत्ति व विकस की जानकारी मिलती है।इसके अलावा इसमें यवनों(यूनानियों) व शकों(सीथियनों) का भी उल्लेख मिलता है।
●महाभारत(वेद व्यास) से तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।यह लगभग 950 ई.पू.में पांडवों व कौरवों के बीच हुए युद्ध का विस्तृत रूप है।महाभारत का दावा है "जो महाभारत में है वो विश्व मे है और जो महाभारत में नहीं है वो विश्व में अलभ्य है।"इसमें हमें मगध की राजधानी गिरिव्रज का उल्लेख मिलता है।इससे जानकारी मिलती है कि पांचाल राज्य महाभारत के समय अस्तित्व में था।इसके अलावा इसमें यवनों व शकों के साथ साथ हुणों का भी जिक्र मिलता है।
●पुराणों का रचना काल 400 ई. पू.से 400 ई.है।पुराणो से अति प्राचीन काल से लेकर गुप्त काल तक के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।यों तो पुराणों के पाँच विषय हैं-सर्ग,प्रतिसर्ग,वंश,मन्वंतर एवं वंशानुचरित आदि।किन्तु इसमें इतिहास की दृष्टि से वंशानुचरित का अधिक महत्व है।दुर्भाग्यवश सभी पुराणों में वंशानुचरित का प्रकरण प्राप्त नहीं होता है।वंशानुचरित मात्र सात पुराणों-मतस्य, भागवत,विष्णु, वायु,ब्रह्मा,भविष्य व गरूड़ में प्राप्त होता है।
●बौद्ध ग्रंथों को दो भागों में विभाजित किया जाता है-पालि ग्रंथ एवं अनुपालि ग्रंथ।
●पालि ग्रंथों में 'त्रिपिटक', 'दीपवंश' व 'मिलिन्दपण्णहो' आदि महत्वपूर्ण हैं।
●'त्रिपिटक' बौद्ध ग्रंथों में प्राचीनतम एवं सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।त्रिपिटक के नाम हैं-विनयपिटक,सुत्तपिटक एवं अभिधम्म पिटिक।
●त्रिपिटकों में 'सुत्तपिटक' वृहतम्म व सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।सुत्तपिटक के अंगुत्तर निकाय में 16 महाजनपदों की सूची मिलती है।सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के 'जातक' में बुद्ध के पूर्व जन्मों की 549 काल्पनिक कथाएँ हैं।
●'दीपवंश'(4थी सदी ई.) व 'महावंश'(5वीं सदी ई.) की रचना श्रीलंका में हुई। यद्धपि इसमे श्रीलंका के इतिहास वर्णित है तथापि इसमे भारत के प्राचीन इतिहास, विशेषकर मोर्य साम्राज्य इतिहास निर्माण, पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
●अनुपालि या संस्कृत ग्रन्थों में 'दिव्यावदान','आर्यमंजुश्रीमूल्यकल्प','ललित विस्तर' आदि महत्वपूर्ण हैं।
●'दिव्यावदान' में परिवर्ती मोर्य सम्राटों एवं शुंग सम्राट (पुष्यमित्र शुंग) की कथाओं एवं बुद्ध के जीवन का उल्लेख मिलता है।
●'आर्यमंजुश्रीमूल्यकल्प' में मोर्य के पूर्व से लेकर हर्षवर्द्धन तक के युग की राजनीतिक घटनाओं का यत्र-यत्र विवरण मिलता है
●'ललित विस्तर' में बुद्ध की लीलाओं का वर्णण तो है ही,साथ ही प्रसंगत: तत्कालीन धार्मिक व सामाजिक अवस्थाओं का वर्णण भी है।
●जैन ग्रंथों से तत्कालीन धार्मिक व सामाजिक दशा पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
●जैन आगमों का वर्तमान रूप 512 ई. में वल्लभी (गुजरात)मे आयोजित द्वितीय जैन महासभा में निश्चित किया गया।
●जैन आगमों में 12 अंग महत्वपूर्ण हैं।'आचारांग सूत्र' में जैन भिक्षुओं के आचार नियम हैं।'भगवती सूत्र' में महावीर के जीवन पर प्रकाश पड़ता है तथा इसमें 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
●'भद्रबाहु चरित' में जैन आचार्य भद्रबाहु का जीवन-चरित है।साथ ही चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन के अंतिम वर्षों की झलकियां हैं।
●जैन ग्रंथों में ऐतिहासिक दृष्टि से हेमचन्द्र के 'परिशिष्ट पर्व' (12वीं सदी ई. में रचित) का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है।
●यद्धपि प्राचीन भारत का कोई ऐसा ग्रंथ नहीं है,जिसे विशुद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ कहा जा सके क्योंकि लगभग सभी ग्रंथों पर साहित्यिक छाप,दर्शन व धर्म का लेप चढ़ा हुआ है तथापि कुछ ऐसे ग्रंथ हैं जिनमे ऐतिहासिक सामग्री मिलती है।
●कौटिल्य ने 'अर्थशास्त्र' की रचना 4थी सदी ई. पू. में की।यह राजनीतिक शास्त्र व प्रशासन प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है।यह मौर्यकालीन प्रशानिक व्यवस्था(विशेषकर चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन) की अच्छी जानकारी देता है।इसमें राज्य की उत्पत्ति ,उसका संगठन,उसकी सुरक्षा के उपाय,राजा के अधिकारी व कर्तव्य, मंत्रियों व अधिकारियों की नियुक्ति के नियम,सामाजिक संस्थाओं, आर्थिक क्रियाकलापों इत्यादि का विशद विवेचन मिलता है।
●कामंदक के 'नीतिसार' (4थी सदी-6ठी सदी ई.) से गुप्तकालीन राजतंत्र पर कुछ प्रकाश पड़ता है।
●सोमदेव सूरी के 'नीतिसार नीतिवाक्यामतृ' से तत्कालीन राजकीय मशीनरी के बारे में जानकारी मिलती है।
●शुक्र के 'शुक्रनीतिसार' से तत्कालीन राजतंत्र पर कुछ प्रकाश पड़ता है।
●बृहस्पति का 'बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र' (9वीं-10वीं सदी ई.)कौटिल्य के अर्थशास्त्र परम्परा में रचित एक ग्रंथ है।
●कल्हण की 'राजतरंगिणी' (1148-1150 ई.) के संबंध में इतिहासकार आर.सी. मजूमदार का कहना है:"राजतरंगिणी प्राचीन भारतीय साहित्य का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसे सही अर्थ में ऐतिहासिक कहा जा सकता है।" कल्हण ने कश्मीर-विषयक सभी उपलब्ध सभी ऐतिहासिक सामग्रियों के सम्यक अध्ययन के आधार पर कश्मीर का चित्र प्रस्तुत किया।
●पाणिनि का 'अष्टाध्यायी' मूलतः एक व्याकरण ग्रंथ है,किन्तु इसमे मौर्य पूर्व एवं मौर्यकालीन राजनीतिक अवस्था पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
●ऋषि का 'गार्गी संहिता' युग पुराण का एक भाग है।यह मूलतः एक ज्योतिष ग्रंथ है किंतु इसमें यवन एवं सीथियन आक्रमणों का उल्लेख मिलता है।
●पतंजलि का 'महाभाष्य' मूलतः पाणिनि के व्याकरण 'अष्टध्यायी की टीका है किंतु इसमे प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री मिलती है।
●कालिदास का 'मालविकाग्निमित्र' मूलतः एक नाट्य-ग्रंथ है।यह कालिदास की पहली नाट्य-रचना है।इसमें शुंग वंश एवं इसके पूर्ववर्ती राजवंशों की राजनीतिक परिस्थिति की जानकारी मिलती है।
●विशाखदत्त के 'मुद्राराक्षस' मूलतः एक नाट्य-ग्रंथ है,किन्तु इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य,उसके मंत्री चाण्क्य तथा कुछ तत्कालीन राजाओं का विवरण मिलता है।
●इसमे भारतीय जीवनी ग्रंथ प्रायः प्रशस्तिपरक है इसलिये इन्हें प्रशस्ति काव्य भी कहा जाता है।
●बाणभट्ट ने अपने आश्रयदाता नरेश हर्षवर्धन के जीवन को आधार बनाकर 'हर्षचरित' की रचना 620 ई.में की।यह भारत का प्राचीनतम उपलब्ध जीवनी ग्रन्थ है।
●वाक्पतिराज की संस्कृति रचना 'गौड़वाहो'(गौड़वधः) में कन्नौज के चंद्रवंशी शासक यशोवर्मन के दिग्विजय का सविस्तार वर्णण है।इसमें सर्वप्रमुख है यशोवर्मन द्वारा गौड़ राजा का वध।
●पद्मगुप्त परिमल के 'नावसाहसांक' चरित' में मालवा के परमारवंशी शासक वाक्पति मंजू का जीवन चरित है।
●बल्लाल के 'भोज प्रबंध' में परमार शासक भोज का जीवन चरित है।
इसके अलावा निम्न मुख्य दरबारी कवियों ने अपने आश्रयदातों का जीवन चरित लिखा-
कवि- आश्रयदाता नरेश(वंश)
1.बाणभट्ट- हर्षवर्द्धन:606-47(वर्द्धन)
2.वाक्पतिराज-यशोवर्मन:700-40(चंद्र)
3.पद्मगुप्त परिमल-वाक्पति मुंज:973-96(परमार)
4.वल्लाल-भोज:1010-55(परमार)
5.विल्हण-विक्रमादित्य VI: 1076-1126(चालुक्य)
6.संध्याकर नंदिन-राजपाल:1077-1120(पाल)
7.हेमचन्द्र-कुमारपाल:1088-1172(सोलंकी)
8.जय सिंह सूरी-कुमारपाल:1088-1172(सोलंकी)
9.आनंद भट्ट-वल्लाल सेन:1158-78(सेन)
10.चंदबरदाई-पृथ्वीराज III:1178-92(चौहान)
11.जयनक-पृथ्वीराज III: 1178-92(चौहान)
12.जयचन्द्र:हम्मीरदेव:1288-1301(चौहान)
13.राजनाथ II-अच्युतदेव राय:1529-42(तुलुव)
~ ऐतिहासिक स्त्रोत दो प्रकार के होते हैं-साहित्यिक स्त्रोत(Literary Sources) एवं पुरातात्विक स्रोत(Archaeological Sources)।साहित्यिक स्रोतों की तुलना में पुरातात्विक स्त्रोत अधिक विश्वसनीय है,क्योंकि इनमें हेर-फेर करना सम्भव नही है।
~ प्राचीन भारत के अध्ययन के लिये पुरातात्विक स्रोतों का अधिक महत्व है।
साहित्यिक स्त्रोत
(Literary Sources)
साहित्यिक स्रोतों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है-देशी और विदेशी।
A. देशी स्त्रोत
देशी ग्रंथों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है-धार्मिक और गैर धार्मिक।धार्मिक ग्रंथों के अंतर्गत आते है-ब्राह्मण ग्रंथ,बौद्ध ग्रंथ और जैन ग्रंथ।गेर धार्मिक ग्रंथों के अंतर्गत आते हैं-ऐतिहासिक ग्रंथ,अर्धेतिहासिक ग्रंथ, जीवनियां आदि।
ब्राह्मण ग्रंथ
(1) श्रुती ग्रंथ: सहिंता या वेद,ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद।
(2) समृति ग्रंथ: वेदांग या सुत्र, समृति,महाकाव्य(रामायण या महाभारत) एवं पुराण।
■ सहिंता या वेंदो की संख्या चार है-ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद व अर्थवेद।
ऋग्वेद
रचना काल-1500 ई.पू.से 1000 ई.पू.
रचना प्रदेश-सप्तसैंधव प्रदेश
यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद
रचना काल-1000 ई.पू. से 600 ई.पू.रचना प्रदेश-कुरु पांचाल देश
इतिहास की दृष्टि से ऋग्वेद व अथर्ववेद का विशेष महत्व है।
●ब्राह्मणों का रचनाकाल 1000 ई.पू.से 600 ई.पू.है।शथपथ ब्राह्मण से पश्चिमोत्तर के गंधार,शाल्य, केकय आदि एवं प्राच्य के कुरु पांचाल,कौशल,विदेह राज्यों पर प्रकाश पड़ता है।
●आरण्यकों का रचनाकाल 1000 ई.पू.से 600 ई.पू.है।आरण्यकों का ऐतिहासिक महत्व नगण्य है।
●उपनिषदों का रचनाकाल 800 ई.पू.से 500 ई.पू.है।उपनिषदों में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा पराविद्या या आध्यात्म विद्या है।जीवन का उद्देश्य मनुष्य की आत्मा का विश्व की आत्मा से मिलना है जिसे पराविद्या कहा गया है।
●ब्राह्मणों व उपनिषदों के समिल्लित अध्ययन से परीक्षित से लेकर बिम्बिसार तक के इतिहास की जानकारी मिलती है।
●वेदांगों का रचनाकाल 600 ई.पू.से 200 ई.है।वेदांगों में प्राचीन भारतीय इतिहास,सभ्यता व संस्कृति पर प्रकाश पड़ता है।
●समृतियों का रचना काल 200 ई.पू.से 600 ई.है।समृतियों से सामाजिक संगठन,तत्सम्बन्धी सिद्धान्तों, प्रथाओं,रीति-रिवाजों,राजा-प्रजा के सम्बन्धों, कर्तव्यों आदि का पूर्ण ज्ञान होता है।
●महाकाव्यों(रामायण व महाभारत) का रचनाकाल 400 ई.पू.से 400 ई. है।
●रामायण से तत्कालीन भारत की राजनीतिक,सामाजिक व धार्मिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।इससे हमें जनपदों की उत्पत्ति व विकस की जानकारी मिलती है।इसके अलावा इसमें यवनों(यूनानियों) व शकों(सीथियनों) का भी उल्लेख मिलता है।
●महाभारत(वेद व्यास) से तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है।यह लगभग 950 ई.पू.में पांडवों व कौरवों के बीच हुए युद्ध का विस्तृत रूप है।महाभारत का दावा है "जो महाभारत में है वो विश्व मे है और जो महाभारत में नहीं है वो विश्व में अलभ्य है।"इसमें हमें मगध की राजधानी गिरिव्रज का उल्लेख मिलता है।इससे जानकारी मिलती है कि पांचाल राज्य महाभारत के समय अस्तित्व में था।इसके अलावा इसमें यवनों व शकों के साथ साथ हुणों का भी जिक्र मिलता है।
●पुराणों का रचना काल 400 ई. पू.से 400 ई.है।पुराणो से अति प्राचीन काल से लेकर गुप्त काल तक के इतिहास पर प्रकाश पड़ता है।यों तो पुराणों के पाँच विषय हैं-सर्ग,प्रतिसर्ग,वंश,मन्वंतर एवं वंशानुचरित आदि।किन्तु इसमें इतिहास की दृष्टि से वंशानुचरित का अधिक महत्व है।दुर्भाग्यवश सभी पुराणों में वंशानुचरित का प्रकरण प्राप्त नहीं होता है।वंशानुचरित मात्र सात पुराणों-मतस्य, भागवत,विष्णु, वायु,ब्रह्मा,भविष्य व गरूड़ में प्राप्त होता है।
बौद्ध ग्रंथ
●बौद्ध ग्रंथों को दो भागों में विभाजित किया जाता है-पालि ग्रंथ एवं अनुपालि ग्रंथ।
●पालि ग्रंथों में 'त्रिपिटक', 'दीपवंश' व 'मिलिन्दपण्णहो' आदि महत्वपूर्ण हैं।
●'त्रिपिटक' बौद्ध ग्रंथों में प्राचीनतम एवं सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।त्रिपिटक के नाम हैं-विनयपिटक,सुत्तपिटक एवं अभिधम्म पिटिक।
●त्रिपिटकों में 'सुत्तपिटक' वृहतम्म व सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।सुत्तपिटक के अंगुत्तर निकाय में 16 महाजनपदों की सूची मिलती है।सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय के 'जातक' में बुद्ध के पूर्व जन्मों की 549 काल्पनिक कथाएँ हैं।
●'दीपवंश'(4थी सदी ई.) व 'महावंश'(5वीं सदी ई.) की रचना श्रीलंका में हुई। यद्धपि इसमे श्रीलंका के इतिहास वर्णित है तथापि इसमे भारत के प्राचीन इतिहास, विशेषकर मोर्य साम्राज्य इतिहास निर्माण, पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
●अनुपालि या संस्कृत ग्रन्थों में 'दिव्यावदान','आर्यमंजुश्रीमूल्यकल्प','ललित विस्तर' आदि महत्वपूर्ण हैं।
●'दिव्यावदान' में परिवर्ती मोर्य सम्राटों एवं शुंग सम्राट (पुष्यमित्र शुंग) की कथाओं एवं बुद्ध के जीवन का उल्लेख मिलता है।
●'आर्यमंजुश्रीमूल्यकल्प' में मोर्य के पूर्व से लेकर हर्षवर्द्धन तक के युग की राजनीतिक घटनाओं का यत्र-यत्र विवरण मिलता है
●'ललित विस्तर' में बुद्ध की लीलाओं का वर्णण तो है ही,साथ ही प्रसंगत: तत्कालीन धार्मिक व सामाजिक अवस्थाओं का वर्णण भी है।
जैन ग्रंथ
●जैन ग्रंथों से तत्कालीन धार्मिक व सामाजिक दशा पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
●जैन आगमों का वर्तमान रूप 512 ई. में वल्लभी (गुजरात)मे आयोजित द्वितीय जैन महासभा में निश्चित किया गया।
●जैन आगमों में 12 अंग महत्वपूर्ण हैं।'आचारांग सूत्र' में जैन भिक्षुओं के आचार नियम हैं।'भगवती सूत्र' में महावीर के जीवन पर प्रकाश पड़ता है तथा इसमें 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है।
●'भद्रबाहु चरित' में जैन आचार्य भद्रबाहु का जीवन-चरित है।साथ ही चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन के अंतिम वर्षों की झलकियां हैं।
●जैन ग्रंथों में ऐतिहासिक दृष्टि से हेमचन्द्र के 'परिशिष्ट पर्व' (12वीं सदी ई. में रचित) का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है।
ऐतिहासिक ग्रंथ
●यद्धपि प्राचीन भारत का कोई ऐसा ग्रंथ नहीं है,जिसे विशुद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ कहा जा सके क्योंकि लगभग सभी ग्रंथों पर साहित्यिक छाप,दर्शन व धर्म का लेप चढ़ा हुआ है तथापि कुछ ऐसे ग्रंथ हैं जिनमे ऐतिहासिक सामग्री मिलती है।
●कौटिल्य ने 'अर्थशास्त्र' की रचना 4थी सदी ई. पू. में की।यह राजनीतिक शास्त्र व प्रशासन प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है।यह मौर्यकालीन प्रशानिक व्यवस्था(विशेषकर चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन) की अच्छी जानकारी देता है।इसमें राज्य की उत्पत्ति ,उसका संगठन,उसकी सुरक्षा के उपाय,राजा के अधिकारी व कर्तव्य, मंत्रियों व अधिकारियों की नियुक्ति के नियम,सामाजिक संस्थाओं, आर्थिक क्रियाकलापों इत्यादि का विशद विवेचन मिलता है।
●कामंदक के 'नीतिसार' (4थी सदी-6ठी सदी ई.) से गुप्तकालीन राजतंत्र पर कुछ प्रकाश पड़ता है।
●सोमदेव सूरी के 'नीतिसार नीतिवाक्यामतृ' से तत्कालीन राजकीय मशीनरी के बारे में जानकारी मिलती है।
●शुक्र के 'शुक्रनीतिसार' से तत्कालीन राजतंत्र पर कुछ प्रकाश पड़ता है।
●बृहस्पति का 'बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र' (9वीं-10वीं सदी ई.)कौटिल्य के अर्थशास्त्र परम्परा में रचित एक ग्रंथ है।
●कल्हण की 'राजतरंगिणी' (1148-1150 ई.) के संबंध में इतिहासकार आर.सी. मजूमदार का कहना है:"राजतरंगिणी प्राचीन भारतीय साहित्य का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जिसे सही अर्थ में ऐतिहासिक कहा जा सकता है।" कल्हण ने कश्मीर-विषयक सभी उपलब्ध सभी ऐतिहासिक सामग्रियों के सम्यक अध्ययन के आधार पर कश्मीर का चित्र प्रस्तुत किया।
अर्धे-ऐतिहासिक ग्रंथ
●पाणिनि का 'अष्टाध्यायी' मूलतः एक व्याकरण ग्रंथ है,किन्तु इसमे मौर्य पूर्व एवं मौर्यकालीन राजनीतिक अवस्था पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
●ऋषि का 'गार्गी संहिता' युग पुराण का एक भाग है।यह मूलतः एक ज्योतिष ग्रंथ है किंतु इसमें यवन एवं सीथियन आक्रमणों का उल्लेख मिलता है।
●पतंजलि का 'महाभाष्य' मूलतः पाणिनि के व्याकरण 'अष्टध्यायी की टीका है किंतु इसमे प्रचुर ऐतिहासिक सामग्री मिलती है।
●कालिदास का 'मालविकाग्निमित्र' मूलतः एक नाट्य-ग्रंथ है।यह कालिदास की पहली नाट्य-रचना है।इसमें शुंग वंश एवं इसके पूर्ववर्ती राजवंशों की राजनीतिक परिस्थिति की जानकारी मिलती है।
●विशाखदत्त के 'मुद्राराक्षस' मूलतः एक नाट्य-ग्रंथ है,किन्तु इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य,उसके मंत्री चाण्क्य तथा कुछ तत्कालीन राजाओं का विवरण मिलता है।
जीवनी ग्रन्थ
●इसमे भारतीय जीवनी ग्रंथ प्रायः प्रशस्तिपरक है इसलिये इन्हें प्रशस्ति काव्य भी कहा जाता है।
●बाणभट्ट ने अपने आश्रयदाता नरेश हर्षवर्धन के जीवन को आधार बनाकर 'हर्षचरित' की रचना 620 ई.में की।यह भारत का प्राचीनतम उपलब्ध जीवनी ग्रन्थ है।
●वाक्पतिराज की संस्कृति रचना 'गौड़वाहो'(गौड़वधः) में कन्नौज के चंद्रवंशी शासक यशोवर्मन के दिग्विजय का सविस्तार वर्णण है।इसमें सर्वप्रमुख है यशोवर्मन द्वारा गौड़ राजा का वध।
●पद्मगुप्त परिमल के 'नावसाहसांक' चरित' में मालवा के परमारवंशी शासक वाक्पति मंजू का जीवन चरित है।
●बल्लाल के 'भोज प्रबंध' में परमार शासक भोज का जीवन चरित है।
इसके अलावा निम्न मुख्य दरबारी कवियों ने अपने आश्रयदातों का जीवन चरित लिखा-
कवि- आश्रयदाता नरेश(वंश)
1.बाणभट्ट- हर्षवर्द्धन:606-47(वर्द्धन)
2.वाक्पतिराज-यशोवर्मन:700-40(चंद्र)
3.पद्मगुप्त परिमल-वाक्पति मुंज:973-96(परमार)
4.वल्लाल-भोज:1010-55(परमार)
5.विल्हण-विक्रमादित्य VI: 1076-1126(चालुक्य)
6.संध्याकर नंदिन-राजपाल:1077-1120(पाल)
7.हेमचन्द्र-कुमारपाल:1088-1172(सोलंकी)
8.जय सिंह सूरी-कुमारपाल:1088-1172(सोलंकी)
9.आनंद भट्ट-वल्लाल सेन:1158-78(सेन)
10.चंदबरदाई-पृथ्वीराज III:1178-92(चौहान)
11.जयनक-पृथ्वीराज III: 1178-92(चौहान)
12.जयचन्द्र:हम्मीरदेव:1288-1301(चौहान)
13.राजनाथ II-अच्युतदेव राय:1529-42(तुलुव)
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