नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका इतिहास के हिंदी ब्लॉग पर । दोस्तों ये मेरे ब्लॉग की पहली पोस्ट है आशा करता हूं आपको पसंद आएगी।दोस्तों आज में आपको जानकारी दूंगा प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों के बारे में।इससे पहले की में आपको 16 महाजनपदों के बारे जानकारी दूँ आपके लिए यह जानना भी जरूरी है कि महाजनपद ( mahajanpadas) काल कब प्रारम्भ होता है और महाजनपद काल से पहले के समय को क्या कहा जाता था ।
महाजनपद क्या है (what is mahajanpadas)
हड़प्पा सभ्यता के पश्चात का काल ऋग्वेदिक काल कहलाता है जिसका समय 1500 ई. पू. से 1000 ई. पू. है तथा 1000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक का काल उत्तरवैदिक काल कहलाता है और उसके बाद जो समय शुरू होता है वह महाजनपद काल कहलाता है यानी महाजनपद की शुरुआत 600 ई.पू. में होती है।इस काल मे छोटे-छोटे कबिलाई राज्यों के स्थान पर क्षेत्रीय राज्यों की स्थापना की परवर्ती शुरू हुई ।जिसका पूर्ण विकास 6 वीं शताब्दी ई. पू. तक हो जाता है ।
महाजनपद ( mahajanpadas) काल के बारे में जानकारी सबसे पहले हमें सूत्र साहित्यों से मिलती है।वैदिक साहित्यों को आसानी से समझने के लिए उन्हें संक्षिप्त करने के लिए सूत्र साहित्य की रचना की गयी थी ओर यही सूत्र साहित्य वेदांग के नाम से जाने जाते हैं।वैदिक साहित्यों का विभाजन 6 अंगों में हुआ था इस प्रकार वेदांगों की संख्या 6 है।अष्टाध्यायी वेदोत्तर संस्कृत साहित्य की सबसे बड़ी रचना है जिसकी रचना महर्षि पाणिनि ने की थी।पास्क ने निरुक्त नामक ग्रंथ की रचना की जो कि शास्त्रीय संगीत संस्कृत का सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ है। सूत्र काल में सामाजिक स्थिति में काफी बदलाव देखने को मिलता है ।सूत्र काल मे वर्ण जातियों में परिवर्तित हो गए और अब जातियों का आधार कर्म न होकर जन्म हो गया।पहले विद्वत्ता के अनुसार कर्म निर्धारित होते थे लेकिन अब जन्म के आधार पर निर्धारित होने लगा ।
समाज तीन वर्गों में बंट गया ब्राह्मण,क्षत्रिय ओर वैश्य(शुद्र) ।ब्राह्मण और क्षत्रियों को द्विज तथा शूद्रों को चांडाल कहा जाता था।समाज मे शूद्रों की स्थिति बड़ी ही दयनीय थी उन्हें अस्पृश्य माना जाता था । शुद्र जाती को नगर से बाहर रखा जाता था और यहीं से ही अश्पृश्यता का दौर शुरू होता है जो वर्तमान भारत मे भी देखने को मिलता है । अश्पृश्यता इतनी ज्यादा प्रभावी थी कि यदि किसी शुद्र को मन्दिर के आस-पास भी देख लिया जाता था तो इसे अपशुगन माना जाता था ओर उसे पीटकर भगा दिया जाता था अथवा उसकी हत्या कर दी जाती थी ।
गृह सूत्र में 16 संस्कारों के बारे में बताया गया है तथा विवाह के 8 प्रकारों का भी वर्णन मिलता है ।गृह सूत्र में बताया गया है कि इस काल मे स्त्रियों की स्थिति उत्तरवैदिक काल से भी अधिक दयनीय हो गयी थी।परंतु हड़प्पा काल मे स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी ।इसके पश्चात ऋग्वैदिक काल,उत्तरवैदिक काल और महाजनपद काल के आते आते समाज में स्त्रियों की स्थिति बहुत खराब हो गयी थी ।
इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि महाजनपद काल मे समाज मे निचले तबके के लोगों की स्थिति बहुत ज्यादा दयनीय हो गयी और यही कारण था कि शुद्र समाज के लोग हिन्दू धर्म से विमुख होकर बुद्ध की शरण मे चले गए थे और बौद्ध धर्म अपना लिया था । सूत्र काल में सबसे पहले सिक्कों का प्रचलन देखने को मिलता है इन सिक्कों को आहत सिक्के या पंचमार्क सिक्के कहा जाता था।ये सिक्के मुख्यतः चांदी के होते थे ।इन सिक्कों पर सूर्य, चंद्र या पीपल वृक्ष की आकृति होती थी ।
महाजनपदों के प्रमाण
16 महाजनपदों ( 16 mahajanpadas) के प्रमाण मुख्यतः बौद्ध व जैन ग्रन्थों में मिलते हैं।इन ग्रंथों में महाजनपदों का सर्वाधिक उल्लेख बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय व जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में मिलता है।
दोस्तों मुझे उम्मीद है कि आप शायद समझ पाए होंगे कि महाजनपद क्या थे ,किस प्रकार से महाजनपदों की शुरुआत होती है तथा महाजनपद काल मे ओर उससे पहले समाज की स्थिति क्या थी।दोस्तों महाजनपद 16 थे लेकिन इन सब का एक-दूसरे में विलय हो गया और सबसे शक्तिशाली महाजनपद के रूप में जो उभरकर सामने आया वह था मगध ।तो आइये दोस्तों जानते हैं कि ये 16 महाजनपद कोनसे थे।इन सबका विलय कैसे हो गया तथा मगध ही सबसे शक्तिशाली महाजनपद के रूप में सामने क्यों आया।
16 महाजनपद (16 mahajanpadas)
1.काशी महाजनपद
बनारस (वारणसी) के आप-पास का क्षेत्र को ही काशी कहा जाता था।काशी का शासक ब्रह्मदत्त था।काशी का सबसे पहला उल्लेख अर्थर्ववेद में मिलता है।काशी का कौशल राज्य के साथ हमेशा संघर्ष चलता रहता था।(कौशल राज्य का नाम कोशल्या से पड़ा जो भगवान श्री राम की माता थी जो अवध यानी अयोध्या से थीं)।कोशल के राजा दीक्षित थे।इन दोनों राज्यों के बीच एक निर्णायक युद्ध भी होता है जिसमे राजा दीक्षित की हार होती है तथा कोशल राज्य का काशी में विलय हो जाता है।कई वर्षों बाद कौशल में एक राजा होता है कंश जो विद्रोह कर देता है जो पूरी सत्ता को पलटकर रख देता है ओर काशी को फिर से कौशल में मिला लेता है ।
2.कौशल महाजनपद
कौशल की राजधानी श्रावस्ती थी ।श्रावस्ती बहराइच, फैजाबाद व गोंडा के क्षेत्रों में बसा हुआ था।इस समय यहां का राजा प्रसेनजित था जो अपनी दानवीरता के बहुत प्रसिद्ध था।राजा प्रसेनजित ने तक्षशिला से शिक्षा प्राप्त की थी ,तक्षशिला गंधार(वर्तमान का पाकिस्तान) के पास था जो विश्व का पहला विश्वविद्यालय था।प्रसेनजित अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था उसने ब्राह्मणों को दो नगर दान में दे दिए थे।आगे चलकर कोशल बहुत ही शक्तिशाली राज्य बन जाता है।कौशल और मगध के बीच हमेशा युद्ध चलता रहता था । मगध का राजा अजातशत्रु था जो बिम्बिसार का पुत्र था। इन दोनों के बीच एक निर्णायक युद्ध भी होता है जिसमे अजातशत्रु बंदी बना लिया जाता है ।अजातशत्रु बहुत ही शक्तिशाली राजा था परन्तु वह प्रसेनजित के आगे टिक नहीं पाता है और ऐसी स्थिति में अजातशत्रु को प्रसेनजित की पुत्री वजीरा से विवाह करना पड़ता है ।
रिश्ते में प्रसेनजित अजातशत्रु का मामा था,अजातशत्रु की माँ यानि बिम्बिसार की पत्नी महाकौशला राजा प्रसेनजित की बहन थी ।इस प्रकार अपने मामा की लड़की वजीरा से अजातशत्रु की शादी हो जाती है ।इन दोनों के बीच पहले से ही प्रेम प्रसंग चल रहा होता है ।इस प्रकार दोनों राज्यों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होने के कारण प्रसेनजित अजातशत्रु को काशी दान में दे देता है ।प्रसेनजित वृद्धावस्था में शाक्य नगर में बुद्ध की शरण में चला जाता है ।जैसे ही वह कौशल छोड़कर जाता है उसकी अनुपस्थिति में कौशल में क्रांति हो जाती है लेकिन जब प्रसेनजित वापिस कौशल आता है और सहायता मांगने के लिए अजातशत्रु के पास जाता है तो रास्ते में ही प्रसेनजित की मृत्यु हो जाती है ।ऐसे में कौशल की गद्दी खाली हो जाती है और वहां कोई राजा बनने के योग्य नहीं रहता है और इस प्रकार कौशल का विलय भी मगध में कर दिया जाता है ।
इस प्रकार दोस्तों इतिहास में मगध ही सबसे बड़े साम्राज्य के रूप में उभरकर सामने आता है क्योंकि आप यहाँ देख चुके हैं कि काशी और कौशल का विलय मगध में हो चुका है बाकी के महाजनपद भी अंततः मगध में विलय हो जाते हैं ।
3.अंग महाजनपद
अंग की राजधानी चंपा होती है ।इसमें आधुनिक भागलपुर और मुंगेर का क्षेत्र आता है ।कौशल के राजा बिम्बिसार (अजातशत्रु से पहले ) के समय अंग ने बिम्बिसार की अधीनता स्वीकार कर ली थी और अंग को भी कौशल में मिला लिया गया था ।
4.मगध महाजनपद
मगध की राजधानी गिरिव्रज एवं राजगृह थी ।इसमें आधुनिक पटना और गया के क्षेत्र आते हैं ।पहली बौद्ध महासभा राजगृह में सप्तपर्णि नामक गुफा में होती है ।मगध का सबसे प्रथम राजा वृहद्रथ होता है । दोस्तों ये बड़े ही संयोग की बात है की मगध का प्रथम राजा भी वृहद्रथ होता और अंतिम राजा भी कई सालों बाद वृहद्रथ नाम का ही होता है ।बिम्बिसार और अजातशत्रु के समय मगध की प्रसिद्धि होती है इनके समय में मगध बहुत बड़ा राज्य बन जाता है ।इनके समय में मगध इतना शक्तिशाली हो जाता है की धीरे-धीरे करके इसके पड़ोसी राज्य मगध में विलीन हो जाते हैं ।
5.वज्जि महाजनपद
इसमें कबिले शामिल थे ।दोस्तों ज्ञात रहे इससे पहले लगभग सभी राज्यों में क़ाबिले शामिल थे,कई कबीले मिलकर जनपद का निर्माण करते हैं और कई जनपद मिलकर महाजनपद का निर्माण करते हैं ।वज्जि में दो प्रकार के काबिल होते हैं-विदेह और लिच्छवी ।विदेह के राजा जनक थे जिन्हे मिथिला नरेश कहा जाता है,मिथिला को हम जनकपुरी के नाम से भी जानते हैं ।विदेह का अन्तिम राजा कलार होता है ।कलार के बारे में कहा जाता है कि यह एक ब्राह्मण कन्या का अपमान कर देता है जिसके कारण इसे श्राप मिलता है और यह वंश और राज्य सहित नष्ट हो जाता है ।राजा जनक के समय विदेह राज्य को बहुत प्रसिद्धि मिलती है ।
लिच्छवि राज्य के लोग बहुत ही स्वाधीनता प्रिय थे तथा युद्ध करने में बड़े ही तेज-तार्राक थे ।लिच्छवियों की राजधानी वैशाली थी ।इसी वैशाली में ही महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। लिच्छवि के राजा चेटक थे ।चेटक की बहिन त्रिशला थीं जो महावीर स्वामी की माँ थीं यानि चेटक महावीर स्वामी के मामा थे ।चेटक की एक पुत्री थी छलना(चलना) जिसकी शादी बिम्बिसार से होती है ।दोस्तों पीछे हमने आपको बताया था बिम्बिसार की पत्नी महाकौशला के बारे में जो की उनकी पहली पत्नी थी जबकि छलना उनकी दूसरी पत्नी थी । बिम्बिसार ने अपने जीवन में कई शादियां की थी।लिच्छवि बुद्ध के अनुयायी थे ।महावीर स्वामी का जन्म यहाँ जरूर होता है परन्तु वे उम्र में बुद्ध से छोटे होते हैं ।महावीर स्वामी से पहले ही बुद्ध प्रसिद्ध हो जाते हैं इसलिए लिच्छी के लोग बुद्ध के ही अनुयायी रहते हैं। द्वित्य बौद्ध महासभा वज्जि की राजधानी वैशाली में होती है ।वैशाली वर्तमान का मुजफ्फरनगर जिला है और यह विश्व का प्रथम गणतंत्र था ।
6.मल्ल महाजनपद
मल्ल एक प्रजातंत्रीय राज्य था जो दो भागों में बंटा होता है-कुशीनगर और पावा ।कुशीनगर आज के कस्यां गांव को कहा जाता है जो वर्तमान गोरखपुर में पड़ता है। पावा को पड़रौना कहा जाता है और ये भी गोरखपुर में पड़ता है।पूरा का पूरा मल्ल देवरिया क्षेत्र में पड़ता है। बुद्ध ने अंतिम भोजन इसी पावा में ही किया था ।
7.चेदि महाजनपद
चेदि आधुनिक बुंदेलखण्ड को कहा जाता है उस समय इसकी राजधानी सोत्थिवती या शक्तिमती थी ।महाभारत काल में यहाँ का राजा शिशुपाल था जो कृष्ण जी की बुआ का लड़का था । वह बहुत ही अत्याचारी और दुर्जन किस्म का था जिसका श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से वध किया था ।
8.वत्स महाजनपद
वर्तमान इलाहाबाद का क्षेत्र वत्स महाजनपद में आता था ।वत्स की राजधानी कोशाम्बी थी ।छठी शताब्दी ई.पू. में यहाँ का राजा उदयन होता जो बड़ा ही दुर्जन था जिसे शिकार का बड़ा शौक था इसके लिए उसने वन भी लगवाया था ।इसके अपने पड़ोसी राज्यों के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। मगध के राजा अजातशत्रु और अवंति के राजा प्रद्योत के साथ उसका निरंतर युद्ध चलता रहता था ।एक युद्ध के दौरान उदयन ने मगध के राजा के साथ विवाह संधि कर ली ।बाद में,उदयन के साथ युद्ध में अवन्ति की हार हो जाती है जिसके कारण अवन्ति को उदयन के साथ विवाह संधि करनी पड़ती है ।हालाँकि प्रद्योत भी एक खूंखार राजा था जिसके कारण उसे चंडप्रद्योत भी कहा जाता था लेकिन यहाँ उसे हार का सामना करना पड़ता है क्योंकि उदयन के साथ मगध का राजा अजातशत्रु और विशाल मगध सेना थी।हार के बदले में प्रद्योत को अपनी कन्या वासदत्ता का विवाह उदयन से करना पड़ता है ।हाँ दोस्तों ये वही वासदत्ता है जिस पर भास नामक लेखक ने नाटक लिखा है जिसका नाम है 'स्वपन वासदत्ता'।उदयन पहले तो बौद्ध धर्म का विरोधी होता लेकिन जब बुद्ध के सम्पर्क में आता है तो वह इसका अनुयायी बन जाता है और बौद्ध धर्म को राष्ट्र धर्म घोषित कर देता है ।
9.अवन्ति महाजनपद
आधुनिक मालवा व मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा आता है ।अवन्ति दो भागों में बंटा हुआ था उत्तरी अवन्ति और दक्षिणी अवन्ति ।उत्तरी अवन्ति उज्जैन को कहा जाता था(उज्जैन में क्षिप्रा नदी यानि मालवा की गंगा के किनारे महाकालेश्वर का मंदिर है) ।दक्षणी अवन्ति महिष्यति को कहा जाता था ।यहाँ का राजा प्रद्योत था जो बड़ा ही खूंखार प्रवर्ति का था इसीलिए इसे चंडप्रद्योत भी कहा जाता था ।इसने अपनी पुत्री का विवाह कोशाम्बी के राजा उदयन से कर दिया था ।मथुरा के राजा शूरसेन से भी प्रद्योत के वैवाहिक सम्बन्ध थे ।बौद्ध धर्म को अपनाकर प्रद्योत भी बुद्ध का अनुयायी बन जाता है ।
10.कुरू महाजनपद
वर्तमान दिल्ली और मेरठ के क्षेत्र कुरु राज्य में आते थे जिसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी और इसकी स्थापना अर्जुन ने की थी ।बुद्ध काल में यहाँ का राजा कौरव्य था ।महाजनपद काल में कुरु की इतनी प्रतिष्ठा और महत्व नहीं था जितना कि वैदिक काल में था ।महाभारत काल में कुरु और पांचाल की प्रतिष्ठा चरम सीमा पर थी ।यह राज्य अपने आचार और सदाचार के लिए जाना जाता था ।
11.पांचाल महाजनपद
रूहेलखंड के बरेली,बदायूं और फर्रूखाबाद के क्षेत्र को प्राचीन समय के पांचाल के नाम से जाना जाता था ।पांचाल भी दो भागों में बंटा हुआ था -उत्तरी पांचाल और दक्षिणी पांचाल ।उत्तरी पांचाल की राजधानी अहिच्छल और दक्षिणी पांचाल की काम्पिल्य थी ।द्रोपती पांचाल राज्य से ही थी ।वैदिक काल में पांचाल का बड़ा ही नाम होता है । परन्तु महाजनपद काल के आते आते पांचाल का महत्व ना के बराबर हो जाता है ।
12.मत्स्य महाजनपद
वर्तमान जयपुर के आस-पास का क्षेत्र मत्स्य महाजनपद के अंतर्गत आता था । इस राज्य का संस्थापक विराट था तथा इसकी राजधानी विराटनगर थी ।वैदिक काल में यहाँ पांडवों ने 13 वर्षों का वनवास काटा था।
13.शूरसेन महाजनपद
आधुनिक मथुरा और ब्रजमण्डल के आस-पास के क्षेत्र शूरसेन महाजनपद के अंतर्गत आते थे ।शूरसेन की राजधानी मथुरा थी ।बुद्ध के समय में यहाँ का राजा अवंतिपुत्र था ।
14.अस्सक या अश्मक महाजनपद
यह दक्षिणी भारत का एकमात्र महाजनपद था । इसकी राजधानी पोटील या पोतना थी । यह गोदावरी नदी के तट पर स्थित था ।
15.गांधार महाजनपद
गांधार की राजधानी तक्षशिला थी ।तक्षशिला विश्व का पहला विश्वविद्यालय है ।इस महाजनपद के अंतर्गत रावलपिंडी,पेशावर,तक्षशिला और कश्मीर के क्षेत्र आते थे ।रामायण के अनुसार इस नगर की स्थापना भरत पुत्र तक्ष ने की थी ।राजा पुष्कर सरित बुद्ध का समकालीन राजा था जिसने अवन्ति के शासक चंडप्रद्योत को युद्ध में पराजित किया था ।
16.कम्बोज महाजनपद
कम्बोज उत्तरापथ में स्थित था । कम्बोज की राजधानी राजपुर या हाटक थी ।कहीं कहीं द्वारका के राजधानी होने के उल्लेख मिलते हैं ।
दोस्तों ,छठी शताब्दी ई.पू. में गंगा-जमुना दोआब (दो नदियों के बीच का क्षेत्र) और बिहार में लोहे का प्रयोग होने से बिहार काफी अच्छी स्थिति में पहुँच गया था ।धीरे धीरे मगध इतना शक्तिशाली हो गया था की सभी महाजनपदों का विलय मगध में हो जाता है ।सभी 16 राज्यों के मिलने से इतिहास में एक बहुत बड़ा साम्राज्य उभरकर सामने आता मगध साम्राज्य ।
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