नमस्कार दोस्तों आधुनिक भारत के इतिहास की इस श्रंखला को शुरू करते हैं पुर्तगालियों के भारत में आगमन से हालांकि कुछ इतिहासकार आधुनिक भारत की शुरुआत उत्तर मुगल काल से मानते हैं जब मुगलों का पतन होता है तथा भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना से लेकर 1947 में भारत की आजादी तक ।
भारत मे आने वाली यूरोपीय कंपनियां
दोस्तों, 15 वीं शताब्दी के अंत में हुई भौगोलिक खोजों ने भारत व यूरोप के व्यापारिक सम्बन्धों पर सकारात्मक प्रभाव डाला ।पुर्तगाल के राजकुमार 'हेनरी द नेविगेटर' ने समुंद्री यत्रों व् भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहन दिया ।1487 ई. में पुर्तगाली नाविक 'बर्थोलम्यो डियाज' ने उत्तमाशा अंतरीप की खोज की जो अफ्रीका के दक्षिणी छोर में स्थित है जिसे केप ऑफ गुड होप(वर्तमान केपटाउन) के नाम से भी जाना जाता है । उस समय भारत तुर्कियों के आक्रमणों से प्रभावित था और वे भारत की अपार धन -सम्पदा लूट कर अपने देशों में ले जा रहे थे ।
भारत की सांस्कृतिक विरासत,आर्थिक संपन्नता,दर्शन और कला आदि से प्रोत्साहित होकर यूरोपीय व्यापारी भारत आने का समुंद्री रास्ता खोजने लगे ।कोलम्बस समुद्री रास्ते खोजने में माहिर था ।वह इटली का नागरिक था जो स्पेन की सहायता से भारत की खोज करने के लिए निकलता है परन्तु रास्ता भटकने की वजह से गलती से भारत की बजाय अमेरिका की खोज कर देता है ।इस प्रकार कोलम्बस द्वारा 1492 में अमेरिका की खोज हुई थी ।भारत में सर्वप्रथम, पुर्तगाली आते है इसके पश्चात डच, अंग्रेज, डेनिस और फ्रांसीसी आते हैं । वास्कोडिगामा नामक व्यक्ति 'केप ऑफ़ गुड होप' के रास्ते 17 मई,1498 को भारत के कालीकट(कोच्चिकोट,केरल) बंदरगाह पहुँचता है ।
पुर्तगाल
पुर्तगाल स्पेन के पास स्थित एक छोटा सा यूरोपीय देश है जिसकी राजधानी लिस्बन है ।उस समय पूरे यूरोप में इटली,मिस्र और तुर्की का व्यापार फैला हुआ था इसलिए जो छोटे यूरोपीय देश थे उनके लिए वहां व्यापार करना संभव नहीं था इसलिए पुर्तगालियों ने एशिया की तरफ रुख किया ।वास्कोडिगामा भारत आने वाला पहला पुर्तगाली और यूरोपीय यात्री था जो पुर्तगाल से समुद्री रास्ते 'केप ऑफ गुड होप' पहुँचता है ।यहाँ उसे एक गुजराती व्यापारी अब्दुल मणिक मिलता है जिसकी सहायता से वह कालीकट के बंदरगाह पर पहुँचता है ।
कालीकट पहुँचने पर वहाँ के शासक जमोरिन (नाम संभवतः समुथरी) ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया ।कालीकट के शासक जमोरिन ने पुर्तगालियों को भारत में व्यापार करने के लिए अधिकार-पत्र प्रदान किये परन्तु अरब के व्यापारियों ने जिन्होंने वहां पहले से व्यापारिक केंद्र स्थापित कर रखे थे वास्कोडिगामा का विरोध करने लगे ।जमोरिन कालीकट के हिन्दू शासकों की उपाधि थी ।वास्कोडिगामा भारत से वापिस जाते समय अपने जहाज में काली मिर्चें भरकर ले गया,जिससे यूरोपीय बाजार में उसे 60 गुणा अधिक लाभ मिला ।इससे अन्य पुर्तगाली व्यापारियों को भारत आने के लिए प्रोत्साहन मिला ।
1500 ई. में वास्कोडिगामा के बाद दूसरा पुर्तग़ाली व्यापारी 'पेट्रो अलब्रेज कैब्रल' भारत आया जिसने ब्राजील नामक देश की खोज की थी ।1502 ई. में वास्कोडिगामा दूसरी बार भारत आया यहाँ उसने कन्नानूर में एक फैक्ट्री स्थापित की ।1503 ई. में पुर्तगालियों ने कोचीन में पहली व्यापारिक कोठी स्थापित की तथा इसकी सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक किले का निर्माण करवाया क्योंकि वहां अरब व्यापारियों का सबसे ज्यादा खतरा था ।पुर्तगालियों की कंपनी का नाम 'एस्तादो -द-इंडिया' था।
वायसराय फ्रांसिस्को-डी-अल्मीडा
फ्रांसिस्को-डी-अल्मीडा भारतीय क्षेत्रों का पहला वायसराय बना जो 1505 ई. से 1509 ई. तक रहा ।अल्मीडा ने भारत के साथ व्यापार पर एकाधिकार बनाये रखने व समुंद्र पर नियंत्रण रखने के लिए ब्लू वाटर पॉलिसी(नीले पानी की नीति) अपनाई ।इस नीति के तहत अल्मीडा ने केवल तटीय प्रदेशों पर ही बस्तियां बसाई,आंतरिक भागों पर नियंत्रण नहीं किया ।पुर्तगाली धीरे-धीरे तटीय क्षेत्रों पर अधिकार करते हुए गुजरात की तरफ बढ़ रहे थे ।गुजरात में तुर्की और मिस्र के व्यापारिक केन्द्र भी थे ।अल्मीडा की यह नीति गुजरात के शासक महमूद बेगारा,तुर्की और मिस्र के व्यापारियों को पसंद नहीं आयी ।इस बात को लेकर तीनों की संयुक्त सेनाओं और अल्मीडा के मध्य 1508 ई. चौल का युद्ध होता है जिसमे अल्मीडा की विजय होती है और वह दीव पर भी अधिकार कर लेता है ,हालांकि इस लड़ाई में अल्मीडा का बेटा मारा जाता है ।
वायसराय अल्फांसो डी अल्बुकर्क
पुर्तगालियों द्वारा 1509 ई. में अल्फांसो डी अल्बुकर्क को भारत का वायसराय नियुक्त किया ।अल्फांसो डी अल्बुकर्क 1503 ई. में भारत में स्कवैड्रन के रूप में आया था ।अल्बुकर्क को भारत में पुर्तगाली साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है ।उसका उद्देश्य पुर्तगाल के व्यापारिक एकाधिकार की स्थापना करना था । 1510 ई. में अल्बुकर्क ने बीजापुर के शासक युसुफ आदिलशाह से गोवा छीनकर उस पर अपना अधिकार कर लिया ।अल्बुकर्क ने अपनी सेना में भारतीयों को भर्ती किया तथा मुसलमानों को वहां से भगा दिया ।उसने गोआ में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया । 1511 ई. में अल्बुकर्क ने मलक्का तथा हरमुज पर अधिकार कर लिया जो दक्षिण-पूर्व एशिया की व्यापारिक मण्डियां थीं । 1515 ई. में अल्बुकर्क की मृत्यु हो जाती है परंतु अपनी मृत्यु के समय तक वह पुर्तगालियों को भारत की सबसे शक्तिशाली समुंद्री शक्ति के रूप में स्थापित कर देता है।
वायसराय नीनू-डी-कुन्हा
1529 ई. में नीनू-डी-कुन्हा पुर्तगालियों के वायसराय के रूप में आता है जिसने 1530 ई. में कोचीन की बजाय गोआ को अपनी राजधानी बनाया ।डी कुन्हा ने सैन थोमा(मद्रास),हुगली(बंगाल) तथा दीव में पुर्तगाली बस्तियों की स्थापना करता है ।पुर्तगालियों ने सालसेट,चाउल,बम्बई तथा बेसिन(बसीं) पर भी अधिकार कर लिया था ।दक्षिणी -पूर्वी देशों से व्यापार के लिए पुर्तगाली व्यापारी नागपत्तनम बंदरगाह को उपयोग में लेते थे। 1534 ई. में बंगाल के शासक महमूद शाह ने चटगॉंव तथा सतगॉंव में व्यापारिक फैक्ट्री खोलने की अनुमति दी ।मुगलों ने भी पुर्तगालियों को हुगली में कारखाना स्थापित करने की अनुमति दी ।क्योंकि उस समय तक मुगलों का भी भारत में प्रवेश हो जाता है जिनका मुख्य उद्देश्य भारत पर शासन करना होता है जबकि पुर्तगालियों का उद्देश्य व्यापार करना ।
पुर्तगालियों के मुख्य रूप से दो उद्देश्य थे पहला अरब व् वेनिश के व्यापारियों को हिन्द महासागर से हटाना तथा दूसरा ईसाई धर्म का प्रचार करना ।पुर्तगाल की व्यापारिक कम्पनियों का उद्देश्य महँगी वस्तुएं जैसे काली मिर्च और मसलों पर एकाधिकार स्थापित करना था ।पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर से होने वाले व्यपार पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था ।पुर्तगाली कंपनी ने कार्ट्ज़ पद्धति द्वारा बिना अनुमति के भारतीय व् अरबी जहाजों का अरब सागर में प्रवेश वर्जित कर दिया था ।यहाँ तक की मुगल शासकों को भी पुर्तगालियों से कार्टज या परमिट लेना पड़ता था ।
मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के समय 1632 ई. में कासिम खान (बंगाल का गवर्नर) ने पुर्तगालियों के अधिकार से हुगली छीन लिया । चटगांव बंदरगाह को पुर्तगाली 'पोर्टो ग्रान्डो' के नाम से जानते थे ।औरंगजेब के समय तक चटगांव से सभी समुद्री लुटेरों का सफाया हो गया था ।
1542 ई. में पुर्तगाली गवर्नर अलफ्रांसो डिसूजा भारत आया जो अपने साथ प्रसिद्ध संत जेसुइट फ्रांसिस्को जेवियर को भी लेकर आया ।1556 ई. में पुर्तगालियों ने पहली प्रिंटिंग प्रेस गोआ में स्थापित की तथा भारतीय जड़ी-बूंटियों व वनस्पति पर 1563 ई. में पहली किताब गोआ में छापी ।इसके साथ ही भारत में तम्बाकू और आलू की खेती की शुरुआत की ।भारत में जहाज बनाने की कला भी पुर्तगालियों की ही देन है ।पुर्तगालियों ने भारत में गोथिक स्थापत्य शैली की शुरुआत की ।
पुर्तगाली उस समय में कोलम्बो, जकार्ता, मलक्का,फारस की खाड़ी (हरमुज) पर नियंत्रण स्थापित करके एक बहुत बड़ी ताकत के रूप में उभरे हालांकि तब तक अंग्रेजों और डचों का भारत में आगमन हो चुका था ।जिन्होंने पुर्तगालियों से सभी मुख्य व्यापारिक केंद्र छीन लिए थे और पुर्तगालियों के वर्चस्व को कम कर दिया था लेकिन गोआ पर पुर्तगालियों का अधिकार बना रहा । 1580 ई. में पुर्तगाल का स्पेन में विलय हो गया और उसका सवतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया लेकिन यह विलय 1640 ई. तक रहा । 1630 ई. में अंग्रेजों और पुर्तगालियों के बीच एक संधि होती है जिसे 'मेड्रिड की संधि' कहते हैं जिसके अनुसार पूर्वी क्षेत्रों में दोनों एक -दूसरे के व्यापार में हस्तक्षेप नहीं करेंगे ।23 जनवरी 1661 में इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाली राज्य बेंग्राजा की राजकुमारी कैथरीन से विवाह किया । पुर्तगालियों ने मुंबई अंग्रेजों को दहेज के रूप में दे दिया ।हालाँकि अंग्रेजों ने मुंबई को पहले ही पुर्तगालियों से हथियाने की हर संभव कोशिशें की लेकिन तब वे सफल नहीं हुए । 1739 ईसवी में मराठों ने सालसेट और बेसिन में पुर्तगालियों को हराकर अधिकार कर लिया ।
गोआ पुर्तगालियों के व्यापार का प्रमुख केन्द्र था । अंग्रेजों और डचों के आगमन के बाद पुर्तगालियों का व्यापार सिमित हो गया था । 1947 में भारत की आजादी के पश्चात् तक गोआ,दमन और दीव पुर्तगालियों के उपनिवेश के रूप में बने रहे जिसे भारत सरकार ने 1961 में आजाद करवाया ।
दोस्तों 'भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन भाग -2' में आप जानिये डचों के बारे में जो पुर्तगालियों के बाद भारत में आने वाली दूसरी यूरोपीय कंपनी थी ।
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