Discovery of India ~ यूरोपीय कंपनियों का आगमन (भाग -3) ~ Ancient India

Discovery of India ~ यूरोपीय कंपनियों का आगमन (भाग -3)

दोस्तों, पिछले भाग में हमने बताया भारत में डच कंपनियों के आगमन के बारे में । आज इस  भाग में आपको जानकारी देंगे भारत में ब्रिटिश कंपनियों के बारे में । ब्रिटिश की कंपनियां पुर्तगाल व डच कंपनियों की तरह ही भारत में व्यापार के उद्देश्य से आई थीं लेकिन धीरे धीरे इन कंपनियों ने भारत में अपनी जड़े मजबूत कर लीं तथा लगभग 350 वर्षों तक सन्न 1947 तक भारत पर अपना आधिपत्य बनाये रखा ।

थॉमस स्टेफन्स (Thomas Stephens)

भारत आने वाल सबसे पहला अंग्रेज व्यक्ति थॉमस स्टेफन्स (Thomas Stephens) था जो की समुंद्र के रास्ते 24 अक्टूबर 1579 को गोवा पहुँचा । वह एक कैथोलिक था और वह भारत में किसी व्यापार के उद्देश्य से नहीं आया था । वह एक वर्ष वसई में रहा तथा फिर पुर्तगालियों के कब्जे वाले उत्तरी बम्बई में भी गया जहाँ 1980 में वह ईसाइयों के पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया ।उसने वहां रहकर स्थानीय भाषाएं मराठी,कोंकणी और तमिल सीखी ।उसने स्थानीय भाषा में 'क्राइस्ट पुराण' (मसीह की कहानी) नामक पुस्तक की रचना की ताकि ईसाई धर्म के बारे में यहाँ के लोगों को सरल भाषा में समझाया जा सके । 70 वर्ष की आयु में 1619 को गोवा में उसका निधन हो गया ।

रोल्फ फिच (Ralph Fitch)

भारत और चीन में व्यापार की संभावनाओं को जानने के उद्देश्य से भारत में अंग्रेजो का सबसे पहला जत्था 5 नवम्बर 1583 ई. को को गुजरात के नजदीक दीव पहुँचता है ।यहाँ उन्हें जासूस होने के आशंका में पकड़ लिया जाता है और गोवा जेल में डाल दिया जाता है । जेल से बाहर लाने में उनकी मदद थॉमस स्टेफन्स करता है जिसका की हम ऊपर जिक्र कर चुके हैं । अंग्रेजों के इस जत्थे में रोल्फ फिच नाम का एक व्यक्ति भी था जिसने अपनी भारत के दौरान अपनी यात्रा का वृतांत लिखा जोकि अंग्रेजो के लिए भारत की जानकारी का महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित हुआ ।

अंग्रेज व्यापारियों के भारत में आने की खबर से पुर्तगालियों के कान खड़े हो जाते थे ।अंग्रेज व्यापारी एशिया में पुर्तगालियों के व्यापारिक एकाधिकार के लिए खतरा थे ।वे अटलांटिक महासागर में अक्सर स्पेन और पुर्तगालियों के जहाजों को लूट लिया करते थे । 1562 ई. में अंग्रेजों ने अफ्रीका से तीन सौ गुलामों को ले जा रहे एक पुर्तगाली जहाज को अगवा कर लिया था तथा इन गुलामों को बेचकर अंग्रेजों ने अत्यधिक लाभ कमाया ।पुर्तगाल एक छोटा सा देश था जिसे 1580 ई. में यहाँ की राजशाही का कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण स्पेन के राजा फिलिप द्वितीय द्वारा स्पेन में मिला लिया गया ।

अंग्रेजों का भारत आगमन (British arrival in India)

एशिया में पुर्तगालियों के एकाधिकार का मुख्य कारण पुर्तग़ालियों को समुंद्री रास्तों का ज्ञान होना था जिसे वे हर हालत में लीक होने से बचने चाहते थे जो बाद में लीक हो जाता है और पूरे यूरोप के व्यापारियों को एशिया के समुंद्री रास्तों की जानकारी हो जाती है ।दरअसल 1583 ई. से 1588 तक जॉन हुएन वान नमक एक डच व्यक्ति गोआ में पुर्तगाली वाइसराय के सचिव पद पर कार्यरत था ।उसने अपने पद का लाभ उठाते हुए अनाधिकृत रूप से पुर्तगालियों के समुंद्री रास्तों से सम्बंधित सभी जानकारियों की एक-एक प्रतिलिपि बना ली ।पदमुक्त होने के बाद जब वह अपने देश हॉलैण्ड लौटा तो वहां उसने 1596 ई. में इन दस्तावेजों की एक किताब छापी जो बाद में अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित हुई ।हालाँकि भारत आने की कवायद में अंग्रेज पहले भी कई बार केप ऑफ़ गुड होप के रास्ते अरब सागर और मलेशिया तक जाकर लौट चुके थे ।लेकिन इस पुस्तक में माध्यम से यूरोप में भारत आने के सम्पूर्ण समुंद्री रास्तों का ज्ञान प्राप्त हुआ और अंग्रेजों और डचों के भारत आने की कवायद शुरू हो गयी।

जॉन मिल्डेनहाल 1599 ई. (John Mildenhall)

1599 ई. में जॉन मिल्डेनहाल नामक ब्रिटिश यात्री थल मार्ग से भारत पहुंचे । वह यहाँ मुगल सम्राट अकबर से गुजरात में व्यापार करने लिए फरमान प्राप्त करने का प्रयत्न करता है ।जॉन मिल्डेनहाल 1606 ई. तक भारत में रहता है ।

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना (Establishment of British East India Company)

इंग्लैण्ड में 1599 ई. में 'ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी' की स्थापना होती है जिसे 'Governor and Company of Merchants of Trading into the East Indies' के नाम से भी जाना जाता था । 31 दिसम्बर 1600 को ब्रिटेन की महारानी 'एलिजाबेथ प्रथम'(Elisabeth First) ने कंपनी को पूर्व के साथ 15 वर्षों तक व्यापार करने का अधिकार पत्र प्रदान किया जिसे बाद में 15 वर्ष पूरे होने पर अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया ।ईस्ट इंडिया कंपनी के 217 साझेदार थे जिनमे से एक महारानी एलिजाबेथ प्रथम स्वयं थीं ।

भारत आने वाला अंग्रेजों का प्रथम जहाज (First British ship to come to India)

5 जहाजों का एक बेड़ा केप्टन लैंकास्टर के नेतृत्व में अप्रैल 1601 ई. में भारत के लिए रवाना हुआ ।केप्टन लैंकास्टर इससे पहले मलेशिया का चक्कर लगा चुका था ।पुर्तगालियों के डर से यह जहाजी बेड़ा अंदमान से होता हुआ इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप जा पहुंचा ।यहीं पर अंग्रेजों ने अपनी पहली फैक्ट्री(भारत से बाहर) स्थापित की । धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाज हिन्द महासागर में दिखाई देने लगे परन्तु पुर्तगालियों के कारण भारत के समुंद्री तट अभी भी उनकी पहुँच से काफी दूर थे । 1604 ईसवी में पुर्तगाल-स्पेन का इंग्लैंड के साथ युद्ध समाप्त होता है तो ईस्ट इंडिया कंपनी यह उम्मीद करती है की अब पुर्तगाली अंग्रेजों के प्रति पहले से विनम्र होंगे । इसी उम्मीद में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कप्तान विलियम हॉकिन्स 24 अगस्त 1608 ई. को भारत पहुँचता है ।

कप्तान विलियम हॉकिन्स (Captain William Hawkins)

1608 ई. में इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम द्वारा भेजा गया 'कैप्टन हॉकिन्स' नामक एक दूत सूरत पहुँचा ।जिसे सूरत पहुंचते ही पुर्तग़ालियों व स्थानीय शासक मुकर्रब खान द्वारा बंदी बना लिया जाता है लेकिन वह खुद को अंग्रेज राजदूत बताकर वहां से छूट जाता है ।यहाँ से वह मुगल सम्राट जहाँगीर से मिलने के लिए आगरा जाता है ।हॉकिन्स जहांगीर से फ़ारसी भाषा में बात करता है जिससे जहाँगीर प्रभावित होकर उसे 'इंग्लिश खान' की उपाधि देता है और 400 मनसब का ओहदा भी प्रदान करता है ।अंग्रेजों ने 1608 ई. में सूरत में एक फैक्ट्री की स्थापना की परन्तु पुर्तग़ालियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध जहांगीर के कान भर दिए ,पुर्तगालियों के इस दबाव में आकर जहांगीर ने अंग्रेजों को इसकी अनुमति नहीं दी इसलिए यह फैक्टरी वैधानिक नहीं मानी गयी ।

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कारखानों की स्थापना (Establishment of East India Company's factories in India)

1611 ई. में अंग्रेजों ने आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में पहली कोठी( फैक्ट्री) की स्थापना की ।हालाँकि यहाँ से थोड़ी दूर पे कोरोमंडल तट था जिस पर डच कंपनी का प्रभुत्व था। यह भारत में अंग्रेजों की पहली फैक्ट्री थी । 5 सिमम्बर 1612 ई. में ब्रिटिश कंपनी के जहाजों का दसवां बेडा कप्तान थॉमस बेस्ट के नेतृत्व में सूरत के बंदरगाह पर पहुँचता है। इसके कुछ दिनों बाद स्वाली (सूरत के निकट) में अंग्रेजों और पुर्तगालियों के मध्य झड़प होती है जिसमें अंग्रेजों के जहाजों को जलाने की कोशिश की जाती है परन्तु केप्टन बेस्ट की सतर्कता की वजह पुर्तगाली नाकाम रहते हैं । तत्पश्चात सूरत के व्यापारियों ने कैप्टन बेस्ट के अधीन अंग्रेजी जहाजों को सूरत में रहने की अनुमति दे दी । 6 फरवरी 1613 ई. को बादशाह जहांगीर ने एक शाही फरमान जारी कर अंग्रेजी कप्तान टॉस एल्डवर्थ को सूरत में एक व्यापारिक कोठी स्थापित करने की अनुमति प्रदान की ।

सूरत में अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत में पहली प्रेसीडेंसी की स्थापना हुई । 18 सितम्बर 1615 ई. को 'सर टामस रो' ब्रिटिश सम्राट 'जेम्स प्रथम' के दूत के रूप में सूरत पहुंचा तथा 1616 ई. में मुगल सम्राट जहांगीर से अजमेर में मिला । वह 3 साल तक 1618 ई. तक मुग़ल दरबार में रहा । टॉमस रो मुग़ल साम्राज्य में कंपनी की तरफ व्यापार करने की अनुमति पाने में सफल रहा जबकि इससे पहले हॉकिन्स यह अनुमति प्राप्त करने में असफल रहा था । 1632 ई. में गोलकुंडा के सुल्तान ने 500 पगोड़ा वार्षिक के बदले अंग्रेजों को सुनहरा फरमान जारी किया जिसके द्वारा अंग्रेजों को गोलकुंडा के सभी बंदरगाहों से व्यापार करने का एकाधिकार मिल गया । भारत के पूर्वी तटों पर 1633 ई. में अंग्रेजों ने अपना पहला कारखाना उड़ीसा के बालासोर तथा हरिहरपुरा में स्थापित किया । 1639 ई. में फ्रांसिस डे नामक एक अंग्रेज को चंद्रीगिरि के राजा दरमेला वेंकटप्पा ने मद्रास पट्टे पर दे दिया ।मद्रास में ही अंग्रेजों ने 'फोर्ट सेंट जॉर्ज' नामक किला बनवाया जो भारत में अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया पहला किला था । फ़्रांसिसी डे को मद्रास का संस्थापक भी माना जाता है ।1647 ई. तक भारत में ब्रिटिश कंपनी की कुल 23 फैक्ट्रियां स्थापित हो चुकी थीं ।गवर्नर सहित एक फैक्ट्री में लगभग 90 कर्मचारी होते थे फैक्ट्री ऊँची-ऊँची किलेनुमा दीवारों से घिरी होती थी ।

बम्बई दहेज में प्राप्त होना (Bambai was received by dowry)

1651 ई. में शाहशुजा ने ब्रिटिश कप्तान ब्रिजमैन को बंगाल के हुगली में कारखाना खोलने की अनुमति दी ।इसके पश्चात् कासिम बाजार,पटना तथा राजमहल में भी अंग्रेजों ने अपने कारखाने खोले । 1658 ई. तक बंगाल,बिहार,उड़ीसा और कोरोमण्डल की समस्त ब्रिटिश फैक्ट्रियाँ फोर्ट सेंट जॉर्ज के अधीन हो गयीं। 1664 ई. में शिवाजी ने सूरत पर हमला कर दिया था परन्तु फैक्ट्री की ऊँची और मजबूत दीवारों की वजह से अंग्रेजो का किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचा सके । 1661 ई. में पुर्तग़ाली राजकुमारी कैथरीन ब्रेगाजा का विवाह इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय से होता है तो पुर्तगाली चार्ल्स को बम्बई दहेज में दे देते हैं । 1668 ई. में चार्ल्स 10 पौंड के वार्षिक किराये पर बम्बई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को दे देता है । 1669 ई. से 1677 ई. तक गेराल्ड ओंगियार बम्बई का गवर्नर रहता है ।उसने यहाँ गोदी (जलयानों के ठहरने के स्थान को गोदी कहते हैं) का निर्माण करवाया इसके अलावा उसने टकसाल की स्थापना की तथा बम्बई की किलेबंदी कराई । गेराल्ड ओंगियार को बम्बई का संस्थापक माना जाता है । गेराल्ड ओंगियार ने लिखा कि अब समय का तकाजा यह है की आप अपने हाथों में तलवार लेकर अपने सामान्य व्यापार का प्रबंध करें ।

बंगाल में कंपनी पर कर बढ़ाना (Increasing tax on company in Bengal)

कंपनी का आरंभिक नारा था 'भू-भाग नहीं,व्यापार' ,लेकिन धीरे-धीरे अंग्रेजों का उग्र रूप दिखाई देने लगा वे लूटपाट पर उतर आये थे। 1682 ई. में कंपनी के आवेदन पर उसे बंगाल में अपना व्यापार केंद्र बनाने की अनुमति दी गयी ,लेकिन कुछ समय बाद जब अंग्रेजों ने बंगाल के शासक शाइस्ता खाँ से चटगाँव में क़िला बनाने की अनुमति मांगी जिसे अस्वीकार कर दिया गया ,उलटे बंगाल में कंपनी पर 3.50 प्रतिशत कर बढ़ा दिया (सम्भवतः दक्कन युद्ध के घाटे को पूरा करने के लिए करों में वृद्धि की गयी) ।कंपनी चटगाँव पर अपनी संप्रभुता चाहती थी जिसके चलते 1685 ई. में कंपनी ने मुगलों के साथ युद्ध की तैयारी कर ली । ईस्ट इंडिया कंपनी की ओर से जॉब चार्नक के नेतृत्व में जॉन निकोल्सन ब्रिटिश आर्मी जहाजों,तोपों और हथियारों को लेकर चटगाँव रवाना हुआ लेकिन हवा ने साथ नहीं दिया और जहाज हुगली के किनारे जा पहुंचे और निकोल्सन ने वहीँ गोलीबारी शुरू कर दी । अंग्रेजों की इस हरकत पर कार्यवाही करते सूबेदार शाइस्ता खाँ ने अंग्रेजों की सभी फैक्ट्रियों को जबत करने के आदेश दे दिए और बड़ी संख्या में वहां सेना बुलाई गयी । चार्नक को इस बात का पता चल गया था । स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तथा बड़ी तादाद में मुग़ल सेनाओं को करीब आते देख वे वहां से भाग निकले और एक छोटे से द्वीप पर शरण लेते हैं जहाँ शेरो और मच्छरों के काटने से कई अंग्रेज मारे जाते हैं और जो बचते हैं उन्हें मुगलों से माफीनामे द्वारा यथावत स्थिति में समझौता करना पड़ता है ।

मुग़ल प्रशासन द्वारा कंपनी की संपत्तियां जब्त करना (The property of the company seized by the Mughal administration)

1687 ई. तक सूरत की जगह अब बम्बई अंग्रेजों की व्यापारिक बस्ती हो गयी थी जिसकी किलेबंदी करने के लिए अंग्रेजों ने ओरंगजेब से अनुमति मांगी क्योंकि अंग्रेजों को मराठों से सबसे अधिक खतरा था । 1688 ई. में अंग्रेजों ने सूरत से मक्का जा रहे हिंदुस्तानी जहाजों को बंधक बना लिया ।इसके अलावा बंगाल की हार के बावजूद कप्तान हैराथ अपने सैनिकों के साथ उड़ीसा के बालासोर में लूट-पाट करने लगा ।अंग्रेजों की इन सभी हरकतों से क्रोधित होकर औरंगजेब ने पुरे भारत में अंग्रेजों की संपत्तियों को जबत करने के आदेश दिए ।बड़ी संख्या में अंग्रेजों की संपत्ति को जबत कर दिया गया,अंग्रेजों को जेल में डाल दिया गया तथा कईयों को फांसी पर लटका दिया गया ।तत्पश्चात अपनी जान के बदले अंग्रेजों को ओरंगजेब से माफ़ी मांगनी पड़ी तथा हर्जाना चुकाना पड़ा ।

अन्य ब्रिटिश कंपनियों का भारत में आना (The arrival of other British companies in India)

1694 ई. के ब्रिटेन की संसद ने यह प्रस्ताव पारित कर दिया कि यूरोप के सभी व्यापारियों को भारत में व्यापार करने का अधिकार है जिसके चलते 1698 ई. में 'ईस्ट इंडिया कंपनी' की प्रतिद्वंदी कंपनी 'English Trading Company in the East' बनी ।इस नई कंपनी ने अपना एक राजदूत 'विलियम नोरिस' को व्यापारिक विशेषाधिकार प्राप्त करने के लिए औरंगजेब के दरबार में भेजा । 1702 ई. में मुनाफा न होने की वजह से दोनों कंपनियों का विलय कर दिया जाता है तथा 1708-1709 ई. में संयुक्त कंपनी का नाम 'The United Company of Merchants of England Trading to the East Indies' रखा गया ।

फोर्ट विलियम की स्थापना (Establishment of Fort William)

1698-1699 ई. में बंगाल के सूबेदार अजीमुश्शान की अनुमति के पश्चात् कंपनी ने जमींदार इब्राहिम खान से 1200 रुपये में सुतनाती,गोविन्दपुर व कालिकाता की जमीदारी खरीदी ।जॉब चार्नक ने 1699 ई. में इन तीनों गांवों को मिलाकर आधुनिक कलकत्ता की नीवं रखी तथा यहाँ 'फोर्ट विलियम' का किला बनवाया गया । 1700 ई. में चार्ल्स आयर को फोर्ट विलियम का प्रथम गवर्नर बनाया गया तथा इसी वर्ष बंगाल को मद्रास से स्वतंत्र प्रेसीडेंसी बनाया गया ।

ब्रिटिश शिष्टमंडल का मुगल दरबार में आना (British delegation presence in the Mughal court)

1715 ई. में जॉन सुरमन के नेतृत्व में एक ब्रिटिश शिष्टमंडल व्यापारिक रियायतें प्राप्त करने के उद्देश्य से मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर के दरबार में पहुंचा ।इस शिष्टमंडल में एक डॉक्टर भी था ।जिसका नाम विलियम हैमिल्टन था फर्रुखसियर उस समय एक जानलेवा बीमारी से ग्रसित था ।वह डॉक्टर फर्रुखसियर का इलाज करता है और इस बीमारी से मुक्ति दिलाता है ।इससे खुश होकर सम्राट 1717 ई. में दस्तक (एक फरमान अथवा आज्ञा पत्र था जो कर मुक्त व्यापार करने का अधिकार प्रदान करता था) जारी करता है तथा 3000 रूपये वार्षिक में कंपनी के बंगाल व्यापार को कर मुक्त कर देता है ।कंपनी द्वारा बम्बई में ढाले गए सिक्कों को मुग़ल साम्राज्य में मान्यता दे दी गयी सूरत को 10000 रूपये वार्षिक पर आयत-निर्यात शुल्क से मुक्त कर दिया ।

ब्रिटिश और फ्रांस कंपनी के मध्य सम्बन्ध (Relationship between the British and France company)

173े9 के पश्चात मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर होने लगा ।धीरे-धीरे अंग्रेजों की पकड़ भारत पर मजबूत होने लगी ।इसी बीच ,अंतिम यूरोपीय कंपनी के रूप में फ्रांसीसियों (फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी) का भारत में आगमन हो चूका था । 1668 ई. में फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी पहली फैक्ट्री सूरत के अलावा ,मछलीपट्टनम,पोंडिचेरी और भारत के अन्य हिस्सों में स्थापित की जिसका सीधा असर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार पर पड़ रहा था ।इस कारण दोनों कंपनियों के बीच वैमनस्यता का आना स्वाभाविक था ।दोनों कंपनियों के बीच यही वैमनस्य तथा अंग्रेजों की व्यापार व साम्राज्य विस्तार की नीति आगे चलकर 1757 ई. प्लासी युद्ध तथा 1746 ई. में कर्नाटक के युद्धों का कारण बनती है ।

भारत पर ब्रिटिश शासन की शुरुआत (The beginning of British rule over India)

धीरे-धीरे कम्पनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक तथा प्रशासनिक आधिपत्य जमा लिया था ।लॉर्ड डलहौजी द्वारा दत्तक प्रथा(गौद लेने की प्रथा) को समाप्त कर उन सभी राज्यों को कंपनी के अधीन कर लिया जिन राज्यों का कोई उत्तराधिकारी नहीं था ।इतना ही नहीं दत्तक पुत्रों के हिस्से की जो जागीरें थीं उन्हें भी छीन लिया गया।जनता में अंग्रेजों के प्रति असंतोष इतना अधिक बढ़ गया था कि यह 1857 ई. की क्रांति के रूप में सामने आया । 1858 ई. में कंपनी राज को समाप्त कर दिया गया तथा ब्रिटिश राज लागू कर दिया गया । बहरहाल 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों ने भारत छोड़ा और सम्पूर्ण सत्ता जनता के हाथों में सौंप दी और इस प्रकार भारत 1947 में एक नए प्रजातंत्रीय देश के रूप में दुनिया के सामने आया ।

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