नमस्कार दोस्तों,स्वागत है आपका एक बार फिर से मेरी इस नई पोस्ट पर । आज इस लेख में जानकारी दी जायेगी मगध के इतिहास की । मगध के उत्थान से लेकर पतन तक की सारी जानकारी आपको अलग-अलग भागों में दी जायेगी । हम ये जानकारी आपके लिए 5 भागों में पेश करेंगे । आपको इन पांचों भागों में वृहद्रथ वंश, हर्यंक वंश, शिशुनाग वंश, नन्द वंश, मौर्य वंश, शुंग वंश, कण्व वंश तथा आंध्र सातवाहन आदि वंशों की जानकारी दी जायेगी ।
मगध के उत्कर्ष का कारण
मगध राज्य का विस्तार वर्तमान बिहार के दक्षिण में स्थित पटना और गया जिलों में हुआ था ।मगध के उत्तर में गंगा नदी तथा पश्चिम में सोन नदी बहती थी,दक्षिण में विंध्य पर्वत की श्रेणियां और पूर्व में चम्पा नदी बहती थी ।इस प्रकार मगध के चारों तरफ प्राकृतिक सुरक्षा कवच था ।मगध गंगा और सोन नदी के दोआब में था जिसकी वजह से यहां की जमीन उपजाऊ थी तथा इस राज्य की आय का मुख्य साधन कृषि था ।यहाँ की जमीन के उपजाऊ होने के कारण यहाँ पर अनाज,फल,फूल और बागन आदि अधिक मात्रा में थे जिसकी वजह से यहाँ खाने-पीने की चीजों की कोई कमी नहीं रहती थी ।
इसके अलावा मगध के उत्कर्ष का एक और मुख्य कारण था मगध की राजधानी राजगिरि में लोहे की खाद्यानों के भण्डार का होना ।लोहे की प्रचुर मात्रा होने के कारण यहाँ पर हथियारों की कोई कमी नहीं थी । इसके अलावा मगध की सेना युद्ध में हाथियों का बहुत ज्यादा उपयोग किया जाता था,हाथियों की अधिक मात्रा होने के कारण मगध की सेना ज्यादातर युद्धों में जीत हासिल करती थी । यही कारण था कि मगध 16 महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली राज्य बनकर उभरा ।
वृहद्रथ वंश
रामायण में वसु नाम का उल्लेख मिलता है जिसने वसुमती(राजगिरि) की स्थापना की थी ।वसु का पुत्र वृहद्रथ था । दोस्तों,महाभारत और पुराणों में यह उल्लेख मिलता है की मगध में प्रथम राजवंश की स्थापना वृहद्रथ ने की थी ।कहीं-कहीं पर हर्यंक के प्रथम राजवंश होने का उल्लेख भी मिलता है ।
जरासंघ
जरासंघ वृहद्रथ का पुत्र था जो एक पराक्रमी राजा था जो अंततःएक युद्ध में श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार भीम के हांथों पराजित होकर मारा गया ।
रिपुंजय
रिपुंजय इस वंश का अन्तिम राजा था । पुराणों में वृहद्रथ वंश के राजाओं की सूची दी गयी है,परन्तु हम यहाँ पर संक्षिप्त में इस वंश के मुख्य राजाओं का उल्लेख कर रहे हैं ।रिपुंजय एक कमजोर और अयोग्य राजा था जिसकी हत्या उसके ही एक मंत्री पुलिक ने करवा दी थी तथा अपने पुत्र बिम्बिसार को गद्दी पर बिठा दिया ।इस प्रकार मगध में एक नए राजवंश हर्यंक वंश का उदय होता है ।
हर्यंक वंश(पितृहन्ता वंश)
हर्यंक वंश को पितृहन्ता वंश भी कहा जाता है क्योंकि इस वंश में जितने भी राजा हुए उनमें से लगभग ने अपने पिता की हत्या करके ही गद्दी प्राप्त की थी,कैसे इसके बारे में बारे में आपको नीचे पढ़ने को मिल जायेगा ।दोस्तों,वैसे तो बिम्बिसार द्वारा हर्यंक वंश की स्थापना किये जाने की कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती है क्योंकि महावंश(दीपवंश )में कहा गया है कि उसके पिता ने 15 वर्ष की आयु में उसका राजतिलक करके गद्दी पर बैठाया था ।लेकिन सर्वसम्मति से यह माना गया है की वह बिम्बिसार ही रहा होगा जो 15 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा और उसने ही हर्यंक वंश की स्थापना की ।
बिम्बिसार(544 ई.पू.- 492 ई.पू.)
बिम्बिसार एक महत्वकांक्षी राजा था जिसने विजय की नीति से और वैवाहिक सन्धियों से मगध राज का मान बढ़ाया ।मतस्यपुराण में बिम्बिसार का नाम क्षेत्रोजस तथा जैन साहित्य में श्रोडिक नाम होने का उल्लेख मिलता है ।बिम्बिसार ने महात्मा बुद्ध को वेलुवन नामक उद्यान भी प्रदान किया था ।
बिम्बिसार के वैवाहिक सम्बन्ध अथवा वैवाहिक संधियाँ
बिम्बिसार का प्रथम विवाह लिच्छवी गणराज्य के शासक चेटक की पुत्री चेलना(छलना) के साथ हुआ था जिसका उल्लेख हमने अपनी पिछली पोस्ट 16 महाजनपदों का इतिहास में किया है ।चेलना चेटक की सात पुत्रियों में सबसे छोटी थी जिसका पुत्र अजातशत्रु होता है ।दोस्तों आपको बताता चलूँ कि यही वो चेटक है जिसकी एक बहन भी थी जिसका नाम त्रिशला था,महावीर स्वामी इसी त्रिशला के पुत्र थे ।यानि यह कह सकते है रिश्ते में बिम्बिसार महावीर स्वामी के जीजा थे ।इस प्रकार इस विवाह से मगध राज्य के सम्बन्ध लिच्छवी गणराज्य के साथ अच्छे और मजबूत हो जाते हैं ।
बिम्बिसार का दूसरा विवाह कौशल नरेश के राजा प्रसेनजीत की बहन महाकौशला के साथ होता है ।इस विवाह से बिम्बिसार को काशी दहेज़ के रूप में प्राप्त होता है ।उस समय काशी से 1 लाख राजस्व की प्राप्ति होती थी ।
बिम्बिसार का तीसरा विवाह मद्रदेश(कुरु के समीप) की राजकुमारी क्षेमा के साथ होता है ।
दोस्तों,उल्लेख यह भी मिलता है कि बिम्बिसार ने अपना चतुर्थ विवाह लिच्छवि की आम्रपाली के साथ किया था ।
इस प्रकार से बिम्बिसार ने उस समय के बड़े बड़े राज्यों के साथ वैवाहिक संबंध बनाकर उन्हें अपने अधीन कर लिया था तथा जिन राज्यों के साथ वैवाहिक संबंध नहीं थे उनके साथ व्यक्तिगत रूप से दोस्ताना संबंध बनाए।जैसे बिम्बिसार ने एक बार अपने वैद जीवक को अवन्ति के राजा चंडप्रद्योत का उपचार करने के लिए भेजा था जो उस समय पीलिया रोग से ग्रसित था ।
बिम्बिसार ने अंग देश के राजा ब्रह्मदत्त को हराकर अंग को मगध में मिला लिया था ।इस प्रकार दोस्तों, बिम्बिसार ने अपने जीवनकाल मे बहुत कम युद्ध किये ।क्योंकि उसका हमेशा यही प्रयत्न रहता था कि बिना किसी युद्ध नीति के वैवाहिक संबंधों तथा व्यक्तिगत संबंधो द्वारा ही मगध राज्य का विस्तार करे तथा मगध की सीमाओं की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करे और जिसमें वह सफल भी रहता है ।
बिम्बिसार की मृत्यु
जैन ग्रन्थों के अनुसार बिम्बिसार अपनी पहली पत्नी के पुत्र अजातशत्रु को राजा बनाना चाहता था ।परन्तु अजातशत्रु को गुप्त सूचना मिलती है कि उसके पिता अजातशत्रु की सौतेली माँ के पुत्रों में से किसी एक को उत्तराधिकारी घोषित कर सकते हैं ।इसी उतावलेपन में उसने अपने पिता बिम्बिसार को बंदी बना लिया तथा उसे कारागार में डाल दिया ।कारागार में रानी चेलना ही बिम्बिसार की देखभाल करती हैं ।
लेकिन बाद में रानी चेलना अजातशत्रु को समझाती है कि तुम्हारे पिता तुमसे बहुत प्रेम करते हैं और वो तुम्हे ही उत्तराधिकारी घोषित करने वाले थे ।इतना समझाने पर जब वह अपने पिता बिम्बिसार से कारागार में मिलने जाता है तो बिम्बिसार इस डर से की कहीं अजातशत्रु फिर से कोई अत्याचार ना करे वह जहर खा लेता है जिससे बिम्बिसार की मृत्यु हो जाती है ।
दोस्तों, अजातशत्रु की मृत्यु का उपर्युक्त तथ्य जैन ग्रन्थों में उल्लेखित है ।लेकिन यह सर्वमान्य तथ्य नहीं है, कहा जाता है कि अजातशत्रु को कोशल नरेश प्रसेनजित की पुत्री वजीरा से प्रेम हो गया था।दोनों के प्रेम प्रसंग की घटना का जब बिम्बिसार ओर प्रसेनजित को पता चलता है तो वो अजातशत्रु का विरोध करते हैं क्योंकि ये दोनों ही नहीं चाहते थे कि यह प्रेम विवाह हो ।जिसकी वजह से वह बिम्बिसार को कारागार में डाल देता है और बाद में उसकी हत्या करवा देता है।
अजातशत्रु/ कुणिक (492 ई.पू.- 460 ई.पू.)
बिम्बिसार की हत्या के बाद अजातशत्रु मगध की गद्दी को संभालता है।बिम्बिसार की मृत्यु के पश्चात कोशल नरेश प्रसेनजित मगध से काशी वापिस ले लेता है जो प्रसेनजित ने बिम्बिसार को दहेज में दिया था ।इस वजह से दोनों राज्यों में फिर से दुश्मनी हो जाती है ।कोशल तथा मगध में फिर से विवाह होता है जिसमें अजातशत्रु हार जाता है परन्तु हार के बावजूद भी प्रसेनजित अपनी पुत्री वजीरा का विवाह अजातशत्रु से कर देता है और उसे काशी दहेज में दे देता है।दोस्तों यहां पर गौर करने वाली बात ये है कि बिम्बिसार ओर अजातशत्रु दोनों को अपने-अपने समय मे काशी दहेज की सूरत में ही मिलता है ।बिम्बिसार के समय प्रसेनजित अपनी बहन महाकोशला के विवाह में काशी बिम्बिसार को दहेज में देता है जबकि अजातशत्रु के समय में वह अपनी बेटी वजीरा के अजातशत्रु के साथ विवाह में काशी दहेज में देता है।वजीरा अजातशत्रु के मामा की लड़की थी।हालांकि वह सगे मामा की बेटी नहीं थी बल्कि अजातशत्रु की सौतेली माँ महाकोशला के भाई प्रसेनजित की बेटी थी जबकि अजातशत्रु की माँ का नाम चेलना था जो लिच्छवी गणराज्य के शासक चेटक की बेटी थी ।
अजातशत्रु की साम्राज्य विस्तार नीति
अजातशत्रु के समय में मगध राज्य का उत्कर्ष और अधिक बढ़ता है । अजातशत्रु की एक रानी थी पद्मावती जिसके निर्देशों पर वह कार्य करता है ।आपको विदित होगा कोशल राज्य पर प्रसेनजित शासन करता है ।अपने जीवन के अंतिम समय में वह कुछ समय के लिए बुद्ध की शरण में चला जाता तो पीछे से उसका एक सेनापति विद्रोह कर देता है और प्रसेनजित को पदच्युत कर देता है ।जब वह वापिस आता है तो अपने दामाद अजातशत्रु से सहायता मांगने जाता है लेकिन रास्ते में जुखाम लगने की वजह से प्रसेनजित की मौत हो जाती है ।प्रसेनजित की मृत्यु से कोशल की गद्दी खाली हो जाती है तत्पश्चात अजातशत्रु कौशल राज्य को स्थायी रूप से मगध में मिला लेता है ।बिम्बिसार ने ब्रह्मदत्त को मारकर अंग राज्य को पहले ही मगध में मिला लिया था ।इस प्रकार कोशल और अंग दो बड़े राज्य मगध में विलीन हो गए थे ।
लिच्छवियों की राजधानी वैशाली थी ।बिम्बिसार के दो लड़के हल्ल और बेहल्ल जो अजातशत्रु के सौतेले भाई थे,वे वैशाली में रहते थे ।एक बार बिम्बिसार इन दोनों को उपहारस्वरूप अपना हाथी सेचनाक तथा मोती की अठारह लड़ियों वाली माला दे देता है ।जिसकी वापसी की मांग अजातशत्रु उनसे करता है।फलस्वरूप ये दोनों भाई वैशाली राज्य की शरण मे चले जाते हैं ।वैशाली उस समय एक शक्तिशाली गणराज्य था जिसके पास एक विशाल सेना थी ।अजातशत्रु और वैशाली के मध्य कई वर्षों तक यद्ध होता है परन्तु कोई निष्कर्ष नही निकलता है तत्पश्चात अजातशत्रु एक चाल चलता है ।जिसके अनुसार वह अपने एक मंत्री वस्साकर को वैशाली भेजता है ।मंत्री लोगों को यह कहता है कि उसका अजातशत्रु से झगड़ा हो गया है और उसने मुझे राज्य से निष्कासित कर दिया है ।यह बात जब वैशाली के राजा के पास पहुंचती है तो वह वस्साकर को अपने पास बुला लेता है ।वस्साकर वैशाली में तीन साल तक रहता है और गुप्त रूप से सूचनाएं अजातशत्रु को देता है ।अन्ततः अजातशत्रु वैशाली को जीतकर मगध में मिला लेता है ।अवन्ति के राजा चंडप्रद्योत की मृत्यु के पश्चात अवन्ति को मगध में मिला लिया जाता है ।
दोस्तों आपको बताता चलूं की अजातशत्रु ने वैशाली के साथ युद्ध मे पहली बार महाशिलाकंटक नामक अस्त्र का इस्तेमाल किया था जो बड़े बड़े पत्थरों को दूर-दूर तक विरोधी सेना पर फेंकता था ।इसके साथ ही अजातशत्रु के पास रथमूसल मशीन भी थी जो एक स्वचालित मशीन की तरह रथ पर लगी होती थी ।दोस्तों,बाहुबली फिल्म में इन हथियारों को दिखाया गया है ।
अजातशत्रु के शासनकाल के 8वें वर्ष(483 ई.पू.) में बुद्ध को निर्वाण प्राप्त होता है ।पहले तो अजातशत्रु बुद्ध का विरोधी होता है लेकिन बुद्ध के संपर्क में आने के बाद वह बुद्ध का अनुयायी बन जाता है और राजधानी राजगिरि में बुद्ध के अवशेषों पर स्तूप का निर्माण करवाता है ।प्रथम बौद्ध महासभा भी अजातशत्रु ने राजगिरि में सतपर्णी नामक गुफा में करवाई थी ।प्रथम बौद्ध महासभा में ही सुत्तपिटक और विनयपिटक नामक बौद्ध ग्रन्थ लिखे जाते हैं जिसमे बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन है ।
बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उदायिन ने मगध का सिंहासन प्राप्त करने के लिए अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर दी ।
उदायिन अथवा उदयभद्र (461 ई.पू.-445 ई.पू.)
उदयिन को पितृहन्ता भी कहा जाता है क्योंकि उसने सिंहासन प्राप्त करने के लिए अपने पिता अजातशत्रु की हत्या कर दी थी ।महावंश के अनुसार उदायिन ने 16 वर्षों तक राज्य किया था ।इनकी माता का नाम पद्मावती था ।पुराणों व जैन ग्रंथों के अनुसार उदायिन ने सोन और गंगा नदी के संगम पर एक नए नगर पाटलिपुत्र की स्थापना की जिसका पुराना नाम कुसुमपुर था।उदायिन ने पाटलिपुत्र को अपनी नई राजधानी बनाया ।जिस प्रकार अजातशत्रु ने राजधानी राजगिरि के मध्य एक बौद्ध स्तूप बनवाया था ठीक उसी प्रकार उदायिन ने भी राजधानी पाटलिपुत्र के मध्य में एक चैत्यगृह या जैन मंदिर बनवाया था।
पुराणों के अनुसार उदायिन के बाद नन्दिवर्धन और महानन्दिन राजा बनते हैं परन्तु परिशिष्टपर्वन में बताया गया है की उदायिन का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था ।किन्तु ऐसे साक्ष्य प्राप्त होते हैं उदायिन के तीन पुत्र थे अनिरुद्ध,मुण्डक और नागदाशक ।
अनिरुद्ध, मुण्डक और नागदाशक (445 ई.पू.-412 ई.पू.)
इन तीनो भाईयों ने आपस में मिल बांटकर बारी-बारी से कई वर्षों तक शासन किया ।इनमे से नागदाशक अधिक समय तक शासन करता है किन्तु बाद में जनता ने इन पितृहन्ताओं को शासन से उतार फेंका और शिशुनाग नामक एक योग्य अमात्य को राजा बना दिया।
शिशुनाग वंश
हर्यंक वंश की समाप्ति के पश्चात मगध में एक नए राजवंश शिशुनाग वंश का उदय होता है ।
शिशुनाग (412 ई.पू.-394 ई.पू.)
शिशुनाग ने इस वंश की स्थापना की थी ।शिशुनाग की सबसे बड़ी सफलता थी अवन्ति और वत्स राज्यों का मगध में विलय करना ।शिशुनाग ने वैशाली को अपनी राजधानी बनाया ।
कालाशोक / काकवर्ण (394 ई.पू.- 366 ई.पू.)
कालाशोक शिशुनाग का पुत्र था ।उसने अपनी राजधानी को पाटलिपुत्र में स्थानांतरित किया ।पुराणों में कालाशोक को काकवर्ण भी कहा गया है।कालाशोक ने 28 वर्षों तक शासन किया।कालाशोक के शासनकाल में 383 ई.पू. में वैशाली में दूसरी बौद्ध महासभा का आयोजन किया गया था।ऐसा कहा जाता है की दूसरी बौद्ध महासभा के दौरान विभेद उत्त्पन्न होने के कारण यह दो संप्रदायों में बंट जाता है पहला स्थाविर संघ तथा दूसरा महासंधि संघ ।बाणभट्ट रचित हर्षचरित के अनुसार काकवर्ण अपनी राजधानी पाटिलपुत्र में घूम रहा था इसी दौरान एक व्यक्ति ने छुरा मारकर उसकी हत्या कर दी ।महाबोधि वंश के अनुसार काकवर्ण के 10 बेटे थे,जिन्होंने 22 वर्षों तक एक साथ राज्य किया था जिनमे से प्रमुख था नन्दिवर्धन अथवा महानन्दिन ।
नन्दिवर्धन अथवा महानन्दिन (366 ई.पू.-344 ई.पू.)
शिशुनाग वंश का अन्तिम राजा महानन्दिन था,इसके शासनकाल में कोई उल्लेखनीय घटना नहीं घटी थी ।ऐसा उल्लेख मिलता है कि महापद्म नामक एक व्यक्ति ने शिशुनाग वंश के अंतिम शासक महानन्दिन की हत्या कर दी थी तथा मगध की गद्दी पर कब्जा कर लिया था तथा एक नए राजवंश नन्द वंश की स्थापना की ।
नन्द वंश (344 ई.पू.-322 ई.पू.)
महापद्मनंद
महापद्मनंद को नन्द वंश का संस्थापक माना जाता है जो एक दासी पुत्र था ।जिसने शिशुनाग वंश के अंतिम शासक की हत्या कर मगध की गद्दी पर कब्जा कर लिया था । महापद्मनंद इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था इसने सर्वप्रथम कलिंग पर विजय प्राप्त की और वहां एक नहर भी खुदवाई जिसका उल्लेख प्रथम शताब्दी ई.पू. में खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख में मिलता है ।पुराणों में उसे सर्वक्षत्रांतक( क्षत्रियों का संहारक) तथा भार्गव(दूसरे परशुराम का अवतार) कहा गया है ।एक विशाल साम्राज्य स्थापित करने के कारण उसने एकराट और एकछत्र की उपाधि धारण की ।
व्याकरणाचार्य पाणिनि इसके मित्र थे । व्याकरणाचार्य के अनुसार उनकी सेनाओं में 20000 अश्वारोही,200000 पैदल सैनिक,2000 चार-चार घोड़ों वाले रथ तथा 3000 हाथी थे ।
महापद्मनंद के 8 पुत्रों पण्डुक, पण्डुगति, भूतपाल, राष्ट्रपाल, दशसिद्धक, गोविषणाक, कैवर्त व घनानन्द ने बारी-बारी से शासन किया लेकिन इनके विषय में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है,परन्तु इनमे से घनानन्द के विषय में थोड़ी सी जानकारी मिलती है ।
घनानन्द
घनानन्द इस वंश का अंतिम राजा था ।घनानन्द सिकंदर का समकालीन सम्राट था । वर्ष,उपवर्ष,वररुचि तथा कात्यायन जैसे विद्वान नंदवंश काल में ही थे । जनता पर अत्यधिक कर लगाने की वजह से जनता इससे असंतुष्ट थी । नन्द वंश के शासक जैन मत के पोषक थे ।घनान्द जैन अमात्य सकटाल और स्थूलभद्र के साथ थे ।घनानंद के सेनापति का नाम भटशाल था तथा उसके दो अमात्यों का नाम शकटार एवं राक्षस था ।बौद्ध,संस्कृत और तमिल ग्रंथों में उसकी अतुल धन-सम्पदा की जानकारी मिलती है।बौद्ध श्रुति के अनुसार घनानन्द घन बटोरने का व्यसन था,उसने 80 करोड़ की धनराशि गंगा के भीतर एक पर्वत गुफा में छुपा रखी थी,उसने एक सुरंग बनवाकर धन वहां गड़वाया था ।उसने पशुओं के चमड़े,वृक्षों के गोंद तथा खानों के पत्थरों पर अत्यधिक मात्रा में कर लगवाकर धन संचित किया था ।
घनानंद के पास अतुल धन सम्पत्ति और असीम शक्ति होने के बावजूद भी वह जनता को संतुष्ट नहीं कर पाया था ।क्योंकि उसने जनता पर अत्यधिक मात्रा में कर थोप रखे थे,जनता उसके अत्याचारों से तंग आ गयी थी,परिणामस्वरूप चारों तरफ घृणा और असंतोष का वातावरण बन गया था ।
325 ई.पू.में घनानन्द में समय में ही सिकन्दर भारत पर आक्रमण करता है लेकिन वह मगध की सीमा तक नहीं पहुँच पाता है और रावी नदी से वापिस लौट जाता है ।एक बार घनानंद ने चाणक्य का दरबार में अपमान किया था जो नन्द वंश के विनाश का सबसे बड़ा कारण बना ।चाणक्य के साथ मिलकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने घनानन्द की हत्या कर दी और नन्द वंश का समूल विनाश कर दिया ।इसके साथ ही मगध में एक नए राजवंश मौर्य वंश का उदय होता है।
दोस्तों,आज हमने इस पोस्ट में आपको बताया मगध वंश के उत्कर्ष के बारे में, की मगध 16 महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली बनकर कैसे उभरा और किन-किन राजवंशों ने यहाँ शासन किया ।दोस्तों अभी हमने मगध के इतिहास का भाग-1 प्रकाशित किया है,हमारी अगली पोस्ट भाग-2 में हम मगध का सम्पूर्ण इतिहास लेकर आएंगे ।दोस्तों आपसे अनुरोध है की आप हमारी वेबसाइट को Subscribe या Follow कर लेवें ताकि हमारी नई पोस्ट की आपको Notification मिल जाये ।
- Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-2)
- Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-3)
- Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-4)
- Magadha empire ~ मगध साम्राज्य (भाग-5)
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