प्रागैतिहासिक काल उस प्राचीन समय को कहा जाता है जब मानव की उत्पत्ति तो हो चुकी थी परंतु लिपि का आविष्कार ना होने के कारण उस समय का कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है । यानी लिखित इतिहास से पहले का जो समय है वह प्रागैतिहासिक युग कहलाता है या यूँ कहें वैदिक युग से भी पहले का जो समय है वह प्रागैतिहासिक युग है । कई बार आपने कहते सुना होगा 'क्या यार तू भी बाबा आदम के जमाने की बात कर रहा है', तो दोस्तों वह बाबा आदम का ज़माना यही प्रागैतिहासिक काल है ।
इतिहासकारों ने इतिहास को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में रखा है-
- प्रागैतिहासिक काल- यह वह काल है जिसका कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है । इस काल का इतिहास पूरी तरह से उत्खनन में मिले साक्ष्यों पर निर्भर करता है।
- आद्य ऐतिहासिक काल- इस काल की लिखित लिपि तो है परंतु उसे आज तक पढ़ा नहीं जा सका है ।
- ऐतिहासिक काल- इस काल का इतिहास लिखित साधनों पर निर्भर करता है । इस काल के पुरातात्विक व साहित्यिक दोनों प्रकार के साक्ष्य उपलब्ध हैं तथा लिपि को भी सफलतापूर्वक पढ़ लिया गया है ।
आज प्रागैतिहासिक काल के इस भाग में हम आपको जानकारी देने जा रहें हैं पाषाण काल/पाषाण युग की । कृपया ध्यान से पढ़िएगा क्योंकि यहाँ पर बड़े ध्यान लगाकर पढ़ने के साथ-साथ समझने की भी जरुरत है , और यदि फिर भी आपको कोई चीज न समझ में आये तो मुझे कम्मेंट करके पूछ सकते हैं ।
इतिहासकारों ने प्रागैतिहासिक काल को भी तीन भागों में बांटा है जैसे-
- पाषाण युग
- कांस्य युग
- लौह युग
पाषाण युग से तात्पर्य है पत्थरों का युग । इस काल में मानव पत्थरों से बने उपकरणों का उपयोग करता था । यहाँ पाषाण युग को भी तीन भागों में बांटा गया है-
- पुरापाषाण काल (2500000 ई.पू.- 10000 ई.पू.)
- मध्य पाषाण काल ((10000 ई.पू.- 4000 ई.पू.)
- नवपाषाण काल (4000 ई.पू.- 1000 ई.पू.)
पुरापाषाण काल (2500000 ई.पू.- 10000 ई.पू.)
पुरापाषाण काल को आसानी से समझने के लिए निम्नलिखित तीन भागों में बांटा गया है ।- पूर्व पुरापाषाण काल (Lower Palaeolithic Age)
- मध्य पुरापाषाण काल (Middle Palaeolithic Age)
- उच्च पुरापाषाण काल (Upper Palaeolithic Age)
रॉबर्ट ब्रुसफूट ने सर्वप्रथम 1863 ई में मद्रास के पास स्थित पल्लवरम नामक स्थान से पुरापाषाण कालीन उपकरण प्राप्त किया था जो एक हस्त-कुठार (Hand Axe) थी । डी. टेरा तथा पीटरसन के नेतृत्व में येल केम्ब्रिज अभियान दल ने 1935 ई. में शिवालिक पहाड़ी के पोतवार पठार का सर्वेक्षण कर वहां से पाषाण कालीन संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त किये ।
इस काल के लोगों का जीवन खानाबदोश था जिनका मुख्य भोजन शिकार से प्राप्त होता था । इस समय के लोग खेती नहीं करते थे बल्कि जंगलों से कंद-मूल व फूल-फल जो भी प्राप्त होता था उसे खाकर अपना जीवनयापन करते थे । इस काल का मानव आज के मानव की तरह सभ्य और विकसित नहीं था । यही कारण है कि इस काल का मानव आदि मानव कहलाता था। इस समय के लोग अग्नि से भी परिचित नहीं थे ।
महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान से उत्खनन के दौरान प्राप्त अवशेषों के आधार पर मानव का अस्तित्व 14 लाख वर्ष पूर्व माना जा सकता है ।
पूर्व पुरापाषाण काल (2500000 ई.पू.- 100000 ई.पू.)
पूर्व मध्यकालीन उपकरणों को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है ।
चापर-चापिंग पेबुल संस्कृति (Chopper-Chopping Pebble Culture):- डी एन वाडिया ने सर्वप्रथम 1928 ई. में इस संस्कृति के उपकरण सोहन नदी घाटी, पंजाब(पाकिस्तान) से प्राप्त किये । यही कारण है कि इस संस्कृति को सोहन संस्कृति भी कहा जाता है ।
हस्त-कुठार संस्कृति (Hand-Axe Culture):- इस संस्कृति के उपकरण सर्वप्रथम भारत में मद्रास के समीप बदमदुरै तथा अतिरमपक्कम से प्राप्त हुए हैं ।
हस्त-कुल्हाड़ी/कुठार ( Hand Axe) , विदारणी (Cleavers), गण्डासा/खंडक (Chopper) इस काल के प्रमुख औजार है । इस काल के उपकरण क्वार्टजाइट (स्फटिक) पत्थर के बने होते थे ।
पेबुल- ये उपकरण पानी के बहाव में रगड़ खाकर गोल-मटोल व सपाट हुए पत्थर के टुकड़े थे ।
चापर (गंडासा)- ये बड़े आकार के पेबुल पत्थर के टुकड़े थे जिनके एक ओर से फलक निकालकर धार बनाई जाती थी । यानी इन बड़े पेबुल पत्थरों को तोड़ने पर पत्थर के बड़े टुकड़े में कोर निकालकर आती थी जिसे उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाता था । इस बड़े पत्थर को चापर कहा जाता था जबकि छोटा हिस्सा फलक कहलाता था । इस संस्कृति को सोहन संस्कृति के साथ-साथ कोर संस्कृति भी कहा जाता है ।
चापिंग (खंडक)- इन उपकरणों में पेबुल के दोनों किनारों में धार बनाई जाती थी ।
भारत में पूर्व पुरापाषाण काल स्थल-
- सोहन नदी घाटी
- कश्मीर
- थार रेगिस्तान (डीडवाना व चितौड़गढ़)
- बेलन घाटी (मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश)
- भीमबेटका (नर्मदा घाटी)
नर्मदा घाटी से होमो इरेक्टस मानव के अस्थि मानव के अवशेष मिले हैं । सन्न 1982 में नर्मदा घाटी के हथनोरा ग्राम से अरुण सोनकिया ने प्रागैतिहासिक मानव का जीवाश्म खोज निकाला । यह भारत में खोजा गया प्रागैतिहासिक मानव का पहला जीवाश्म था । आंध्रप्रदेश में गिद्दलूर तथा करीम पुड़ी पूर्व पुरापाषाण काल के स्थल हैं। मध्य प्रदेश में सोहन नदी घाटी के सिहावल में पूर्व पुरापाषाण काल के उपकरण प्राप्त हुए हैं ।
मध्य पुरापाषाण काल (100000 ई.- 40000 ई.)
इस काल के उपकरण शल्क पर आधारित होते थे । भारी पत्थरों से मुलायम पत्थर को रगड़कर ये उपकरण बनाये जाते थे । ये उपकरण चर्ट, जैस्पर व फ्लिण्ट आदि पत्थरों से बनाये जाते थे । इस काल के मुख्य उपकरण फलक, वेधनी, वेधक तथा शल्क की खुरचनी हैं । यही कारण है कि इस काल को खुरचनी वेधक संस्कृति भी कहा जाता है ।
भारत में मध्य पुरापाषाण काल के प्रमुख स्थल-
- नेवासा (महाराष्ट्र)
- सिंहभूमि तथा पलामू (झारखंड)
- चकिया (वाराणसी, उ. प्र.)
- बेलन घाटी (इलाहाबाद, उ. प्र.)
- सिंगरौली बेसिन (मिर्जापुर, उ. प्र.)
- भीमबेटका गुफा (जिला रायसेन, म.प्र.)-इस गुफा से भारत में चित्रकारी के प्राचीनतम(पाषाण कालीन) साक्ष्य मिले हैं।
- व्यास-बाणगंगा तथा सिरस्का घाटी (हि. प्र.)
- सौराष्ट्र (गुजरात)
- बागन, बेराच तथा कादमली घाटी (राजस्थान)
उच्च पुरापाषाण काल (40000 ई.पू.-10000 ई.पू.)
इस काल के उपकरण फलक (Blade) पर आधारित थे । इस काल में ब्लेडनुमा उपकरणों का उपयोग अधिक किया जाता था । इसी कारण इसे फलक संस्कृति अथवा तक्षणी संस्कृति कहा जाता है । ये उपकरण चर्ट, जैस्पर, फ्लिण्ट आदि पत्थरों से बने होते थे ।
भारत में उच्च पुरापाषाण के स्थल-
- सिंहभूमि (झारखंड)
- जोगहदा, भीमबेटका, बबुरी, रामपुर, बाघोर (म.प्र.)
- पटणे, भदणे, इनाम गांव (महाराष्ट्र)
- रेनिगुंटा,वेमुला,कर्नूल की गुफाएं, बेटमचर्ला (आं. प्र.)
- शोरापुर दौआब (कर्नाटक)
- विसदी (गुजरात)
- बुड्ढा पुष्कर (राजस्थान)
उच्च पुरापाषाण काल की हड्डी की बनी मातृदेवी की प्रतिमा इलाहाबाद की बेलनघाटी में स्थित लोहदा नाले से प्राप्त हुई है ।
इस काल के समाप्त होते-होते आधुनिक स्वरूप वाले मानव यानी होमो सेपियन्स का उदय हो चुका था । इस काल में नए चकमक पत्थर का उपयोग होने लगा था जिसे आपस में रगड़ने पर आग उत्पन्न होती थी ।
मध्य पाषाण काल (10000 ई.पू.- 4000 ई.पू.)
मध्य पाषाण काल में मिक्रोलिथीक (लघु पाषाण) उपकरणों का उपयोग होने लगा था । मध्य पाषाण कालीन उपकरणों की सर्वप्रथम खोज सी.एल.कार्लाइक ने 1867 में विंध्याचल पर्वतीय क्षेत्रों से की थी ।
मध्यप्रदेश के जिला होशंगाबाद में आदमगढ़ की गुफाओं से तथा राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के बागोर से 5000 ई.पू. के आसपास के पशुपालन के सर्वप्रथम प्रमाण मिले हैं । बागोर से ही पांच नर कंकाल भी प्राप्त हुए हैं जिन्हें सुनियोजित ढंग से दफनाया गया था । इसी स्थल से वी.एन. मिश्र को 1968 ई.-1970 के बीच लौहयुग के उपकरण प्राप्त हुए हैं ।
भारत में मध्य पाषाण के महत्वपूर्ण स्थल-
- लंघनाज (गुजरात)- पुरातत्वविदों ने लंघनाज के इतिहास को दो कालों में बांटा है । पहले काल के मृदभांड (मिटटी के बर्तन) हस्तनिर्मित थे , जबकि दूसरे काल के नवपाषाण कालीन मृदभांड चाक पर बनाये जाते थे ।
- नागार्जुनाकोंड, रेनिगुंटा तथा गिद्दलूर (आंध्र प्रदेश)
- संगनकल्लू (बेल्लारी, कर्नाटक)- उत्खनन से यहाँ वृत्ताकार झोपड़ियों के अवशेष मिले हैं । झौंपडियां बांस की बनी होती थीं । झोंपड़ी में चूल्हे के अवशेष मिले हैं ।
- तिन्नेवेल्ली (तमिलनाडु)
- वीरभानपुर (वर्धमान, पश्चिम बंगाल)- इस स्थल पर बी.बी.लाल द्वारा 1957 में उत्खनन करवाया गया ।
- भीमबेटका - भीमबेटका मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है । 1957-1958 में भीमबेटका में 500 की संख्या में शिलाश्रय एवं गुफाएं हैं । इन शिलाश्रयों पर मध्य पाषाण काल संस्कृति के पुरावशेष व चित्रकला के साक्ष्य मिले हैं । भीमबेटका में डॉ. वी.एस. वाकणकर द्वारा 1972 में यहां उत्खनन कराया । यहां पर हिरण, बारहसिंगा, रीछ ,सुअर, भैंसा आदि के शिलाचित्र प्राप्त हुए हैं जिनमें तो कुछ शिलाचित्र ऐसे हैं जिनमें मानव को जानवरों के साथ अन्तरंग मित्र के रूप में दिखाया गया है । भीमबेटका से मध्य पाषाण युग के उपकरणों के साथ ही मानव अंत्येष्टि संस्कार के भी प्रमाण मिले हैं ।
- आदमगढ़- आदमगढ़ से मध्य पाषाण कालीन पशुपालन के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं । इसके अलावा आदमगढ़ शिलाश्रय से मध्य पाषाण काल के लगभग 25000 अत्यंत सूक्ष्म उपकरण प्राप्त हुए हैं । आदमगढ़ मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में नर्मदा नदी के पास स्थित है । इस स्थल की आर.वी.जोशी द्वारा 1964 ई. में खोज की गई ।
- मोरहना पहाड़ी, बघहीघोर, लेहखहिया (मिर्जापुर) चोपानीमाण्डो, महरूडीह (इलाहाबाद, उ.प्र.)- इन क्षेत्रों से भी काफी मात्रा में मध्य पाषाण कालीन लघु उपकरण व मृदभांड प्राप्त हुए हैं ।
- सराय नाहर राय, महदहा व दमदमा(प्रतापगढ़,उ.प्र.)- इन क्षेत्रों से बड़ी संख्या में समाधियां, गर्त चूल्हे प्राप्त हुए हैं । यहां पुरुष व महिलाओं की युगल समाधियां मिलीं हैं । पुरुषों के कंकाल के गले से सींग से बनी माला व कानों में इसी के बने कुंडल मिले हैं । यहां के चूल्हों से प्राप्त छोटी छोटी हड्डियों के टुकड़ों से ऐसा प्रतीत होता है कि ये लोग मास को भूनकर खाते थे । सराय नहर राय प्रतापगढ़ जिले में सुखी गोखुर झील के किनारे है । बरसात के दौरान मिट्टी के कटाव के कारण पुरावशेष ऊपर ही दिखते हैं । यहां लघु पाषाण उपकरण, जानवरों की हड्डियां, मानव समाधियां तथा 8 गर्त चूल्हे मिले हैं । भारत में मध्य पाषाण कालीन मानव के अस्थिपंजर का सबसे पहला अवशेष सराय नाहर राय तथा महदहा से प्राप्त हुआ है । सराय नहर राय में मानवीय आक्रमण अथवा युद्ध के साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं ।
- तिलवाड़ा व बागोर- राजस्थान में साबरमती नदी के तट पर तिलवाड़ा, जाड़न, कनवास तथा अजमेर जिले में बुड्ढा पुष्कर झील,उदयपुर, जोधपुर, चितौड़, कोटा आदि जिलों से मध्य पाषाण काल के उपकरण प्राप्त किये हैं ।इसके अलावा भीलवाड़ा जिले के बागोर गांव के पास स्थित महासती टीले की खुदाई से मध्य पाषाण काल व लौह काल के सूक्ष्मावशेषों का भंडार मिला है ।
ये उपकरण क्वार्ट्ज व चर्ट आदि पत्थरों के ब्लेड पर बने थे । यहां प्रमुख उपकरणों में खुरचनी, चंद्रिका,वणाग्रह के अलावा हथौड़ा, सिलबट्टा व अंकनयुक्त मृदभांड भी प्राप्त हुए हैं ।इसके अतिरिक्त यहां पशुपालन के साक्ष्य मिले हैं। यहां पालतू पशुओं में खरगोश, सुअर, गाय, हिरण, बैल व भेड़-बकरियों की हड्डियों के टुकड़े प्राप्त हुए हैं । इसके अलावा यहां चिता, सांभर व लोमड़ी की हड्डियां प्राप्त हुई हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि भोजन के लिए इन जंगली जानवरों का शिकार किया गया होगा ।
इस टीले से ताम्र उपकरण भी प्राप्त हुए हैं जिनमें भाला, बाण व तकुआ आदि हैं । इस काल के चाक के बर्तन भी इस टीले से प्राप्त हुए हैं । यहां पर कई कंकाल भी मिले हैं । सम्भवतः शवों को पश्चिम की ओर सिर करके दफनाया जाता था । इस काल का मानव घासफूस व बांस की लकड़ियों से बने झोंपड़ों में रहता था ।
मध्य पाषाण काल में पालतू जानवरों में कुत्ता सर्वप्रमुख था । लंघनाज में गैंडे की हड्डियों के प्रयोग के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं । लंघनाज से प्राप्त उपकरण भारत में मध्य पाषाण काल के मिक्रोलीथिक उपकरणों के सर्वोत्तम नमूने हैं । मध्य पाषाण काल की चित्रकला के साक्ष्य भीमबेटका के अतिरिक्त आदमगढ़, मिर्जापुर व प्रतापगढ़ आदि स्थानों से भी मिले हैं । भारत में अग्नि के प्रयोग के साक्ष्य मध्य पाषाण काल के अंतिम चरण में अथवा नव पाषाण काल के प्रारंभिक चरण में मिले हैं ।
नव पाषाणकाल (4000 ई.पू.-1000 ई.पू.)
भारत में नव पाषाण काल की पहली खोज लेनमेसुरियर ने 1860 ई. में टोंस नदी घाटी (उ.प्र.) में की । भारतीय उपमहाद्वीप में नवपाषाण काल की प्राचीनतम बस्ती 7000 ईसा पूर्व की है जो वर्तमान पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में बोलन नदी के किनारे स्थित मेहरगढ़ से प्राप्त हुई है । इसके पश्चात नव पाषाण काल के जितने भी स्थल प्राप्त हुए हैं वो सभी 4000 ई. पू. से 1000 ई.पू. बीच के हैं । नव पाषाण काल का मानव पुरा पाषाण काल अथवा मध्य पाषाण काल के मानव से बहुत अधिक विकसित हो चुका था । इस युग में मानव उपभोक्ता के साथ-साथ उत्पादक भी बन गया था । मानव धरती और बीज के संबंध को समझने लग गया था । उसे यह जानकारी हो गई थी कि बीज से अंकुर निकलता है, फिर अंकुर से पौधा और पौधे से अनाज । इससे पहले वह जंगलों की वनस्पति, फल, फूल व शिकार पर निर्भर था ।
नव पाषाण काल की निम्न विशेषताएं हैं-
- खेती- नव पाषाण काल के लोगों को कृषि का ज्ञान हो गया था । नव पाषाण काल में गेंहूँ , जौ व कपास की खेती के साक्ष्य मेहरगढ़ से प्राप्त हुए हैं । इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को 'बलूचिस्तान की रोटी की टोकरी' की संज्ञा दी है । इस काल में रागी व कुल्थी की खेती भी होती थी ।
- पशुपालन- इस काल में पशुपालन को भी महत्व दिया जाने लगा था । कुत्ते को पालतू जानवर बनाकर पाला जाने लगा ।
- चाक -इस काल में पूरी तरह से चाक से बने बर्तनों (मृदभांडों) का उपयोग होने लगा था ।
इस काल के पाषाण उपकरण ओर अधिक विकसित अवस्था में प्राप्त हुए हैं । कृषि कार्यों व अन्य उपयोग के लिए पाषाण उपकरणों को घिसकर धारदार किया जाता था । पाषाण उपकरणों व मृदभांडों पर पॉलिश के साक्ष्य इन स्थलों से प्राप्त हुए हैं । पत्थर की कुल्हाड़ी नव पाषाण काल का मुख्य उपकरण था । मानव अब जंगलों में भटकने की बजाय गर्त -आवास (गड्ढे का घर) बनाकर निवास करने लगा था । नवपाषाण काल में मनुष्य ने पहिये का आविष्कार कर लिया था । इनके साथ ही इस काल में नाव का भी आविष्कार कर लिया गया था ।
भारत में नव पाषाण युग के स्थल
- बलूचिस्तान(पाकिस्तान)- वर्तमान पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में मेहरगढ़ तथा सरायखोल से नव पाषाण काल के अवशेष मिले हैं ।
- कश्मीर- भारत के कश्मीर में नव पाषाणकालीन संस्कृति के प्रमुख स्थल बुर्जहोम तथा गुफ्फाकराल हैं । बुर्जहोम का 1935 में डी. टेरा व पीटरसन नें तथा गुफ्फाकराल का ए. के शर्मा ने 1981 में उत्खनन कराया ।गुफ्फाकराल का अर्थ है कुम्हार की गुफा । गुफ्फाकराल के लोग कृषि तथा पशुपालन का कार्य करते थे । गुफ्फाकराल की खुदाई से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि इस समय तक मानव अनाज को पीसने व कपड़ों को सीलने की विधि से परिचित हो गया था । गुफ्फाकराल में पालतू कुत्तों को मालिक के शव के साथ कब्र में दफनाये जाने के साक्ष्य मिले हैं । ऐसी प्रथा की जानकारी भारत के किसी अन्य नव पाषाण कालीन स्थल से नहीं मिली है । बुर्जहोम का अर्थ है जन्म स्थान । बुर्जहोम के लोग खुरदरे धूसर मृदभांड का उपयोग करते थे ।
- चिरांद- चिरांद बिहार के छपरा जिले में स्थित नव पाषाण काल का एक महत्वपूर्ण स्थल है । चिरांद गंगा, सोन, गंडक व घाघरा नदी के संगम पर स्थित है । यहाँ पर अत्यधिक मात्रा में हड्डियों के उपकरण प्राप्त हुए हैं जो मुख्य रूप से हिरणों के सींगों से बने हैं । हालाँकि इस स्थल से कोई पाषाण उपकरण प्राप्त नहीं हुआ है ।
- इलाहाबाद- उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में कोल्डिहवा, महगड़ा तथा पंचोह आदि स्थानों से नव पाषाण काल के साक्ष्य उपलब्ध हुए हैं । कोल्डिहवा से नव पाषाणकालीन उपकरणों के साथ ही ताम्र कालीन व लौहकालीन उपकरण भी प्राप्त हुए हैं । यह पुरातात्विक स्थल बेलन घाटी में स्थित है । यह एकमात्र नव पाषाणकालीन स्थल है जहां से 6000 ई.पू. का प्राचीनतम चावल (धान) का साक्ष्य प्राप्त हुआ है । उत्तर प्रदेश के महगड़ा (महागरा) नामक स्थान से पशुओं को बांधने का एक विशाल बेड़ा मिला है । इलाहाबाद के पास स्थित चौपानी मांडो पुरास्थल लगभग 15000 वर्ग किलोमीटर के विस्तृत भू भाग में फैला है । यहां से विश्व के प्राचीनतम मृदभांड व पाषाण उपकरण प्राप्त हुए हैं । इन उपकरणों का काल निर्धारण 17000 ई.पू. से 7000 ई.पू. के बीच किया गया है जो नव पाषाण काल की तिथि को ओर अधिक पीछे ले जाने की ओर इशारा करते हैं ।
दक्षिण भारत में सर्वप्रथम संगनकल्लू तथा नागार्जुन कोंडा से नव पाषाण काल के साक्ष्य मिले हैं । बेल्लारी दक्षिण भारत का सबसे महत्वपूर्ण पाषाणकालीन स्थल है । इसके अलावा दक्षिण भारत के निम्नलिखित नव पाषाणकालीन पुरातात्विक स्थल हैं-
- कर्नाटक- कर्नाटक में नव पाषाण काल के महत्वपूर्ण स्थल मास्की, ब्रह्नगिरि, संगनकल्लू, हल्लुर, कोडैकल, टी. नरसिंहपुर तथा टेक्काल कोटा है ।
- आंध्रप्रदेश- आंध्रप्रदेश में नवपाषाणकाल के साक्ष्य नागार्जुनकोंडा, उतनूर, पलवोय तथा संगनपल्ली से मिले हैं ।
- तमिलनाडु- तमिलनाडु में पैय्यमपल्ली से नवपाषाण काल के साक्ष्य मिले हैं ।
कर्नाटक के पिक्कलीहल में नवपाषाण कालीन राख के टीले पाये गए हैं । सम्भवतः यहां मवेशी पालने वालों की बस्ती थी । यहां मवेशियों को एक बाड़े में रखा जाता था । मवेशियों का गोबर एक तरफ इक्कठा कर दिया जाता था जिसमें बाद में आग लगा दी जाती थी ।
केरल के कोल्लम जिले के आदिच्च्नलूर गाँव से बहुत सी ऐसी कब्रें प्राप्त हुई हैं जिनमें मानव शवों की हड्डियों को पात्रों में भरकर दबाई गयी थीं ।
नवपाषाण काल के लोग पत्थरों से बने औजारों का उपयोग करते थे इसलिए ये पहाड़ियों के आसपास ही अपना निवास बनाते थे । आसाम व मेघालय की गारो पहाड़ियों से भी नवपाषाण काल के उपकरण मिले हैं ।
चाक से मिट्टी के बर्तन बनाने की वास्तविक शुरुआत नवपाषाण काल में ही हुई थी । जब आदमी ने खेती करना प्रारंभ किया तो अनाज का संग्रहण करने के लिए उसे इन बर्तनों की आवश्यकता महसूस हुई । शुरुआत में तो हाथ निर्मित मृदभांड प्राप्त हुए हैं लेकिन बाद में मृदभांड बनाने के लिए कुम्हारों ने चाक का प्रयोग किया । इन बर्तनों में पॉलिशदार काला मृदभांड, धूसर मृदभांड तथा मन्द वर्ग मृदभांड शामिल हैं ।
मध्य पाषाण काल तक मानव आज के मानव की तरह पूरी तरह विकसित हो चुका था । अब मानव पुरापाषाण काल के मानव की तरह आदि मानव नहीं था । उसमें समझ व सूझबूझ का विकास हो गया था । नए नए आविष्कारों से , नई-नई खोजों से मानव जीवन प्रगतिशील होता चला गया । नव पाषाण काल, पाषाण काल का आखिरी पड़ाव माना जाता है क्योंकि इसके पश्चात पाषाण युग पूरी तरह समाप्त हो गया था ।
पाषाण युग का इतिहास
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