पहलवों का मूल निवास स्थान ईरान था । इंडो-पार्थियन को पहलव के नाम से भी जाना जाता है । इतिहास में सिकंदर के समय से ही इनका उल्लेख मिलता है । इसके अलावा महाभारत में भी पहलवों का उल्लेख मिलता है । इतिहास में कहीं-कहीं इनको शकों के साथ उल्लेखित किया गया है । बैक्ट्रिया के साथ ही पार्थिया ने भी स्वंय को यूनानी शासन से स्वतंत्र करा लिया था । जिस प्रकार बैक्ट्रिया के यवनों ने भारत में अपने राज्य स्थापित किये उसी प्रकार पार्थिया के लोग भी भारत में अपने राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से आये । सेल्युलस द्वारा स्थापित सिरियाई साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर पार्थिया ने स्वतंत्रता हासिल की थी । पार्थिया के शक्तिशाली शासक मिथिदातस द्वितीय द्वारा दमन किये जाने पर ही शक भारत में आने को विवश हुए थे ।
सिक्कों के अनुसार इंडो-पार्थियन लोग एक ईरानी कबीला था । इनमे से कुछ लोग ऐसे थे जो पहले सम्भवतः पार्थिया शासकों के गवर्नर थे । मिथ्रेडेट्स प्रथम इस वंश का प्रथम वास्तविक शासक था जिसका शासनकाल 171 ई.पू.- 130 ई.पू. के आसपास था । वह यूक्रेटाईड्स के समकालीन था । भारत में इनका पहला शासक माउस था जिसका शासनकाल 90 ई. पू. से 70 ई. पू. तक था । पेशावर से प्राप्त एक शिलालेख 'तख्त-ए-बाही' के अनुसार गोंडोफर्नीज इस वंश का सबसे शक्तिशाली इंडो-पार्थियन(पह्लव) शासक था । यह अभिलेख खरोष्ठी लिपि में लिखा गया था । पहली शताब्दी ई.पू. में पह्लव भारत आये और इन्होने उत्तर-पश्चिम भारत को अपनी सत्ता का केंद्र बनाया ।
गोंडोफर्नीज
तख्त-ए-बाही अभिलेख के अनुसार गुदुवहार (गोंडोफर्नीज) ने 20 ई. से 41 ई. तक शासन किया । गोंडोफर्नीज ने तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया । आरम्भ में गोंडोफर्नीज का शासन अफगानिस्तान तक था परन्तु बाद में उसने पेशावर तथा सिंधु घाटी के निचले क्षेत्रों पर भी अधिकार कर लिया था । उसने अंतिम हिन्द-यवन शासक हर्मियस को हराकर उत्तरी काबुल घाटी पर अधिकार कर लिया था । अस्पवर्मन (इन्द्रवर्मन वंशीय शक क्षत्रप) के सिक्कों से ज्ञात होता है कि गोंडोफर्नीज ने कुछ क्षेत्रों से एजेज द्वितीय की सत्ता को उखाड़ फेंका था । अस्पवर्मन पहले तो हर्मियस का स्ट्रैटेगो (प्रमुख कमांडर) था लेकिन बाद में उसने गोंडोफर्नीज की अधीनता स्वीकार कर ली ।
गोंडोफर्नीज के सिक्के सिन्ध, पंजाब, कांधार, सिस्तान तथा काबुल घाटी से प्राप्त हुए हैं जिससे यह प्रमाण मिलता है कि उसका साम्राज्य विस्तृत था ।
गोंडोफर्नीज के शासनकाल में सेंट थॉमस/सेंट टॉमस ईसाई धर्म का प्रचार करने भारत आया था । इसका उल्लेख सीरियाई ग्रंथ Acts of Judas Thomas the Apostle मिलता है । इस ग्रंथ के अनुसार गोंडोफर्नीज ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था तथा बाद में सेंट थॉमस दक्षिण भारत भी गया । 72 ई. में दक्षिण भारत में चेन्नई के निकट म्यालपुर में सेंट थॉमस की हत्या कर दी गयी थी जिसे वहीं पर दफनाया गया ।
गोंडोफर्नीज के समय कोषाणों का दबाव इन क्षेत्रों में बढ़ने लगा था । कुषाणों ने पहले तो इंडो-पार्थियन शासक गोंडोफर्नीज से मित्रता की परन्तु गोंडोफर्नीज की मृत्यु के बाद में जब इंडो-पार्थियन शासन छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त हो गया तो इस स्थिति का फायदा उठाते हुए कुषाण शासक कुजुल कडफिसस ने पार्थियनों को गांधार प्रदेश, सिंध व पंजाब से खदेड़ कर सत्ता पर कब्जा कर लिया । इस प्रकार भारत से इंडो-पार्थियन शासन समाप्त हो गया ।
दोस्तों, इंडो-पार्थियन शासकों के ऐतिहासिक साक्ष्य बहुत कम प्राप्त हुए हैं इसलिए इनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है । पार्थियन का इतिहास शकों के इतिहास के साथ इतना मिश्रित हो गया है कि यह पता चला पाना बहुत ही मुश्किल हो गया है कि कोनसे शासक पार्थियन थे और कोनसे शासक शक ।
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