गुरु अमरदास साहिब का जन्म गाँव बसरका, अमृतसर में 5 अप्रैल 1479 ई. को हुआ । वह सिखों के तीसरे गुरु थे । 26 मार्च 1552 में उन्हें गुरुपद की प्राप्ति हुई । उनके पिता का नाम तेजभान भल्ला तथा माता का नाम बख्त कौर था । उनके माता-पिता सनातनी हिन्दू थे तथा वे हर साल गंगा जी के दर्शनार्थ हरिद्वार जाया करते थे। 24 वर्ष की आयु में गुरू अमरदास जी का विवाह मनसा देवी से हुआ जिनसे उन्हें दो पुत्र तथा दो पुत्रियां प्राप्त हुईं । उनके दो पुत्रों के नाम मोहन तथा मोहरी था तथा बेटियों का नाम बीबी दानी व बीबी भानी था । बीबी भानी का विवाह गुरु रामदास जी से हुआ । यानी ये चौथे सिख गुरु रामदास जी के ससुर थे ।
एक बार गुरु अमरदास ने गुरु अंगद देव की पुत्री बीबी अमरो के मुख से गुरु नानक देव के शब्द सुने जिनसे वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गांव खडूर साहिब जाकर गुरु अंगद देव से मिलने का निर्णय लिया । वह खडूर साहिब जाकर गुरु अंगद देव के शिष्य बन गए और वहीं उनकी सेवा में लग गए। गुरु अंगद देव उनके सेवा भाव व पंथ के प्रति निष्ठा को देखते हुए मार्च 1552 ई. में उन्हें गुरुपद का उत्तरदायित्व प्रदान किया । उन्होंने गोइन्दवाल में गुरु नानक देव के विचारों का प्रचार प्रारम्भ किया । यहाँ इन्होने सुव्यवस्थित ढंग से संगतों के माध्यम से सिख विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया । उन्होंने लंगरों के आयोजन को विशेष महत्व दिया । उन्होंने पहले पंगत फिर संगत को अनिवार्य कर दिया । बादशाह अकबर को भी गुरु अमरदास से मिलने के लिए इन नियमों का पालन करना पड़ा । गुरु अमरदास के आग्रह पर बादशाह अकबर ने हिंदुओं व सिखों पर से जजिया कर हटा दिया था ।
उन्होंने समाज में फैली सती प्रथा व् पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध किया । उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया। उन्होंने दिवाली, बैशाखी व् माघी को सिखों के सामाजिक व सांस्कृतिक त्योहारों के रूप में मनाना शुरू किया । गुरु अमरदास ने आनंद साहिब की रचना की जो गुरु ग्रन्थ साहिब के पेज 917 से 922 में अंकित है । गुरु अमरदास जी की बेटी बीबी भानी व् दमाद रामदास सिख सिद्धांतों को अच्छी तरह समझते थे । सिख धर्म में उनके सेवा भाव व सच्ची श्रद्धा को देखते हुए गुरु अमरदास जी ने 30 अगस्त 1574 को अपने दामाद रामदास को गुरु पद प्रदान किया । 1 सितम्बर 1574 को गाईन्दवाल में गुरु अमर दास का निधन हो गया ।
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