पाण्ड्य राज्य (Pandyan kingdom) सूदूर दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व(भारत के अंतिम दक्षिणी छोर) में स्थित संगमकाल का एक प्रमुख राज्य था । पाण्ड्य (Pandyan) शाब्दिक अर्थ है प्राचीन या पुराना प्रदेश । पाण्ड्य राज्य की राजधानी मदुरै(मदुरई) थी । हालांकि इनकी पहली राजधानी कोरकई (कोल्ची) थी लेकिन बाद में मदुरै अथवा मदुरा अथवा मदुरई हो गयी । पाण्ड्य को मिनावर (मछुआरा), पंचावर (पाण्डवों से सम्बंधित), कवूरियार (कौरवों से सम्बंधित), मरार, तेन्नार(दक्षिणवासी), वालुडी, सेलियार आदि नामों से भी जाना जाता है ।
पाण्ड्यों (Pandyan) के बारे में महाभारत ,रामायण, अर्थशास्त्र (कौटिल्य), वर्तिका(कात्यायन), इण्डिका(मेगस्थनीज), संगम साहित्य, स्ट्रेबो, प्लिनी, अशोक के अभिलेख, खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख आदि में जानकारी मिलती है ।
महाभारत में यह उल्लेख मिलता है कि पाण्डेय सैनिकों के साथ पाण्डवों की सेवा में आये थे तथा ये युधिष्ठिर की सभा में बैठते थे ।
अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने पाण्ड्यों के विषय में जानकारी दी है । अर्थशास्त्र के अनुसार पाण्ड्यों (Pandyan) के कावर नामक क्षेत्र में सुंदर व कीमती मोती मिलते थे । अर्थशास्त्र में पाण्ड्यों की राजधानी मदुरई के कीमती मोतियों, उच्चकोटि के वस्त्रों तथा राज्य के समृद्ध व्यापार का उल्लेख किया है ।
मैगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इण्डिका में पाण्ड्य राज्य (Pandyan kingdom) का नाम 'माबर' बताया है । उसके अनुसार वहां मातृसत्तात्मक (स्त्री प्रधान) समाज था तथा पाण्ड्य राज्य की शासक भी एक स्त्री थी । उसके अनुसार हेराक्लीज की पुत्री पण्डैया माबर (पाण्ड्य राज्य) की शासिका थी । माबर (पाण्ड्य राज्य) मोतियों के लिए प्रसिद्ध था ।
पाण्ड्य राज्य का उल्लेख करने वाले प्रथम पुरातात्विक अभिलेख सम्राट अशोक के वृहत शिलालेख (2रा,5वां तथा 13 वां शिलालेख) है ।
खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख के अनुसार खारवेल नें तमिल देश के त्रामिरदेश संघटम अर्थात तीन देशों के संघ को पराजित किया था । त्रामिरदेश संघटम की पाण्ड्य राज्य (Pandyan kingdom) के रूप में पहचान हुई है क्योंकि इसी अभिलेख में आगे कहा गया है कि खारवेल ने हजारों की संख्या में मोती,रत्न-मणिक तथा हाथी-घोड़े कलिंग में मंगवाये थे ।
पाण्ड्य राज्य के शासक (Pandyan king names)
नेडियोन
नेडियोन पाण्ड्य राजवंश (Pandyan dynasty) का प्रथम उल्लेखनीय शासक था । नेडियोन का अर्थ है लम्बा आदमी । वस्तुतवः यह पौराणिकता के आधार पर माना है परन्तु ऐतिहासिकता के आधार पर इसका अस्तित्व संदिग्ध है । कहते हैं कि नेडियोन ने पहरुली नदी को अस्तित्व प्रदान किया तथा समुन्द्र पूजा की परम्परा आरम्भ कराई ।
पलशालै मुदुकुडमी
इसे पाण्ड्य वंश (Pandyan dynasty) का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट माना जाता है । उसका नाम वेल्लविकुड़ी दान पत्र में मिलता है जिससे उसका ऐतिहासिक पात्र होना प्रमाणित होता है । पलशालै मुदुकुडमी ने अनेकों यज्ञों का अनुष्ठान किया तथा 'पलशालै' (अनेक यज्ञशालायें बनवाने वाला) की उपाधि धारण की ।
अरियप्पदाइकडन्था नेडुनजेलियन (180 ई.)
संगम साहित्य में नेडुनजेलियन नाम के अनेकों शासकों का उल्लेख मिलता है जिनमें से दो प्रमुख थे - अरियप्पदाइकडन्था नेडुनजेलियन तथा तलैयालंगानमतुच्चेरूवेन नेडुनजेलियन । अरियप्पदाइकडन्था एक उपाधि थी जिसका तात्पर्य है ' वह जिसने एक आर्य यानी उत्तर भारत की सेना के विरुद्ध विजय प्राप्त की थी' ।
तलैयालंगानमतुच्चेरूवेन नेडुनजेलियन (210 ई.)
तलैयालंगानमतुच्चेरूवेन नेडुनजेलियन संगमकालीन पाण्ड्य शासकों (Pandyan kings) में सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था । उसने तलैयालंगानमतुच्चेरूवेन की उपाधि धारण की जिसका तात्पर्य है तलैयालंगानम युद्ध का विजेता ।
तलैयालंगानम का युद्ध
राजगद्दी प्राप्त करने के समय नेडुनजेलियन नवयुवक ही था । उसी समय उसे एक बहुत बड़ी विपदा का सामना करना पड़ा । चेर, चोल तथा अन्य पांच राज्यों ने मिलकर पाण्ड्यों की राजधानी मदुरई पर हमला कर दिया । नेडुनजेलियन ने हिम्मत नहीं हारी ओर इनका डटकर मुकाबला किया ।उसने अपने शत्रुओं को राजधानी से खदेड़ दिया और उनका पीछा करते हुए चोल राज्य की सीमा में घुस गया ओर वहां तलैयालंगानम ( तंजौर जिले के तिरवालूर से 13 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में स्थित) के युद्ध में शत्रु सेना को बुरी तरह पराजित किया । नेडुनजेलियन ने चेर शासक जगमुख शेय को बंदी बना लिया ओर कारावास में डाल दिया । अपनी इस विजय से नेडुनजेलियन काफी प्रसिद्ध हुआ । अपनी इस विजय से वह ना केवल अपने पैतृक सिंहासन पर भली-भांति आसीन हुआ बल्कि तमिल देश के सभी छोटे-बड़े राज्यों पर उसका दबदबा कायम हो गया ।
इसके अतिरिक्त नेडुनजेलियन ने मिल्ललई तथा मुत्तुरु नामक दो प्रदेशों पर अधिकार करके उन्हें अपने राज्य में मिला लिया था । 'मदुरइकांची' नामक रचना में नेडुनजेलियन तथा उसके कुशल शासन के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है । उसने किसानों और व्यापारियों के हित के लिए अनेकों कार्य किये । पूर्वी समुंद्री तट मोतियों और मछलियों का अच्छा कारोबार था । यहां के लोगों का नेडुनजेलियन की सेना में महत्वपूर्ण स्थान था । महान विजेता, उदार प्रशासक तथा एक विद्वान होने के साथ -साथ नेडुनजेलियन विद्वानों का आश्रयदाता व एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति था । संगमकालीन कवियों ने उसकी उदार भावना तथा दानशीलता की प्रशंसा की है । वह वैदिक धर्म का पोषक था तथा उसने अनेक यज्ञों का अनुष्ठान कराया था । नेडुनजेलियन के शासनकाल में राजधानी मदुरई तत्कालीन भारत की अत्यंत प्रसिद्ध व्यापारिक एवं सांस्कृतिक नगरी बन गयी थी ।
नल्लीयक्कोडन (275 ई.)
हालांकि संगमकालीन पाण्ड्य वंश (Pandyan dynasty) के बारे में इतिहास में बहुत अधिक व प्रमाणीक जानकारी हमें प्राप्त नहीं होती है फिर भी नत्तत्तनार की एक कविता से यह संकेत मिलता है कि नल्लीयक्कोडन संगमकालीन पाण्ड्य वंश (Pandyan dynasty) का अंतिम शासक था । इस कवि द्वारा दिये गए वर्णन से यह ज्ञात होता है कि तमिल देश की तीनों राजधानियों (वंजी,उरैयूर तथा मदुरई) में उदारशील व दानशील शासकों का काल समाप्त हो चुका था तथा इस राज्य के ह्वास का काल प्रारम्भ हो चुका था ।
नेडुनजेलियन के बाद पाण्ड्य राज्य (Pandyan kingdom) की राजनैतिक पृष्ठभूमि लगभग समाप्त हो गयी थी या यूं कहें कि पाण्ड्य शासकों का शासन उनके हाथों से चला गया था ओर इनका क्षेत्र सीमित हो गया था । 5वीं शताब्दी तक इनका राज्य थोड़े समय के लिए समाप्त प्रायः हो गया लेकिन 6वीं शताब्दी में पाण्ड्य राज्य ऐतिहासिक रंगमंच पर एक बार फिर दिखाई देता है और इनकी शक्ति का पुनः उत्थान होता है ।
पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद दोस्तों, जैसा कि हमने पिछले भागों में बताया कि हमने यह सीरीज चलाई है 'संगमकालीन प्रमुख राज्यों ' के बारे में जानकारी देने के लिए । यानी संगमकाल जिसका समय इतिहास में सर्वसम्मति से 100 ई. से 300 ई. के बीच माना गया है तथा इसका क्षेत्र दक्षिण भारत के तमिलनाडु तथा केरल के क्षेत्र थे । जहां पर उस समय चेर,चोल ओर पाण्ड्य राज्य (Pandyan kingdom) थे । तो उसी काल का आपको इन तीनों भागों इतिहास बताने की कोशिश की गई है । ये वंश हालांकि शुरू तो पहले से ही था परन्तु इनकी कोई स्पष्ट ऐतिहासिक जानकारी नहीं मिलती है और ये इसी संगमकाल में लगभग सिमट गये । हालांकि इन राज्यों की शक्ति का पुनरूत्थान हुआ और इन्होंने इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है । इन्होंने लगभग 13 वीं-14 वीं सदी तक शासन किया ।
इनके आगे के इतिहास की जानकारी हम किसी अन्य पोस्ट में देंगे यानी जहां से इन राज्यों की शक्ति का पुनरूत्थान होता है वहां से आपको इसी क्रम से पूरी जानकारी दी जाएगी । क्योंकि हमारा ध्येय है कि आप इतिहास को समझें उस मे उलझें ना । कई बार क्या होता है कि हम बीच -बीच में इतिहास को पढ़ लेते हैं फिर हम खुद ही इस भूल-भुलैया में फंस जाते हैं कि भाई उस जगह किसका शासन था ,इसका था तो मगर उसका भी तो था जैसे-मगध पर घनानंद का शासन था मगर मगध पर तो चंद्रगुप्त का शासन था । इसी चीज को हम यदि क्रम से पढेंगे तो हमें मालूम होगा कि पहले मगध पर नन्द वंश के शासक घनानंद का शासन था जिसे पराजित कर मौर्य वंश के चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध पर अधिकार कर लिया था और वह मगध का अगला शासक बना । हमारा मकसद यही है कि आपको प्राचीन भारत की पूरी जानकारी क्रमवार मिले । हालांकि हमारी बीच-बीच मे अन्य विषयों पर पोस्ट भी आती है लेकिन जब आप हमारे 'प्राचीन भारत' टेग पर जाएंगे तो वहां आपको प्राचीन भारत के इतिहास की क्रमवार जानकारी ही मिलेगी ।
Sangam era part-2 ( पांड्यन राज्य)
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Click here for commentsHello sir 1st part pr jane ke liye koi link nhi hai, help me
ReplyHello sir 1st part pr jane ke liye koi link nhi hai , please help
ReplyGupt vansh ka itihas,Sangam Yug
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