बी. आर. चोपड़ा सिनेमा जगत की एक ऐसी शख्सियत थे जिन्हें अपनी पारिवारिक, सामाजिक व साफ-सुथरी फिल्मों के लिए हमेशा याद किया जाएगा । उन्होंने लगभग 6 दशकों तक ऐसी फिल्में देकर सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज किया । आइये संक्षिप्त में जानते हैं बी.आर.चोपड़ा के बारे में-
- पूरा नाम- बलदेव राज चोपड़ा (Baldev Raj Chopra)
- जन्म तिथि- 22/04/1914
- पिता का नाम- विलायती राज चोपड़ा
- जन्म स्थान- ग्राम राहोंन, लुधियाना(पंजाब)
- शिक्षा- अंग्रेजी साहित्य में स्नाकोत्तर
- विश्वविद्यालय- गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर
- मृत्यु तिथि- 05/11/2008
- मृत्यु स्थान- मुंबई, महाराष्ट्र
बी. आर. चोपड़ा ने 1944 में अपने केरियर की शुरुआत लाहौर से छपने वाली मासिक फ़िल्मी पत्रिका 'सीने हेराल्ड' में बतौर फिल्मी पत्रकार के रूप में की । कुछ समय बाद उन्होंने इस पत्रिका का सारा भार स्वयं संभाल लिया और 1947 तक निरंतर इस पत्रिका को चलाया । लेकिन वे इसी से संतुष्ट नहीं थे । उनका सपना था की वे स्वयं फिल्म के निर्माता बने और अपनी मनपसंद फिल्में बनायें । इसी सपने के साथ उन्होंने 1946 में अभिनेता नईम हाशमी तथा अभिनेत्री एरिका रुक्षि के साथ आई.एस. जौहर की कहानी पर फिल्म चांदनी चौक का निर्माण कार्य शुरू किया लेकिन लाहौर में भारत विभाजन के दौरान दंगे भड़कने की वजह से फिल्म निर्माण का कार्य बीच में ही रोकना पड़ा। विभाजन के बाद बी. आर. चोपड़ा दिल्ली आ गए और फिर वहां से वे मुंबई चले आये ।
मुंबई आने के बाद 1948 में उन्होंने फिल्म करवट का निर्माण कार्य पूरा किया लेकिन यह फिल्म पूरी तरह से फ्लॉप हो गयी । निर्देशक के रूप में बी. आर. चोपड़ा की पहली फिल्म 1951 में आई फिल्म अफ़साना थी जिसमें अशोक कुमार ने डबल रोल किया था । यह एक सफल फिल्म साबित हुई । इस फिल्म की सफलता के साथ ही बी. आर. चोपड़ा की भारतीय सिनेमा जगत में ख्याति स्थापित हो गई । 1954 में उन्होंने अभिनेत्री मीना कुमारी तथा अभिनेता शेखर के साथ अधूरी फिल्म चांदनी चौक का निर्माण कार्य पूरा किया ।
1955 में बी.आर चोपड़ा ने अपना खुद का बैनर बी.आर.फिल्म्स प्रोडक्शन कंपनी बनाया । 1957 में बनी बी.आर.फिल्म्स प्रोडक्शन कंपनी की पहली फिल्म नया दौर सुपरहिट फिल्म साबित हुई। इस फिल्म में दिलीप कुमार और वैजयंतिमाला ने मुख्य किरदार निभाया । इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने आधुनिक युग व ग्रामीण संस्कृति के मध्य टकराव को पहली बार पर्दे पर पेश किया जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया । इस फिल्म द्वारा आशा भोसले ने पहली बार एक बड़ी हीरोइन के लिए प्लेबैक दिया ।
इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर अपनी सिल्वर जुबली (25 सप्ताह पूरे किए) मनाई । बी. आर. चोपड़ा अपने दर्शकों को हर बार कुछ नया देना चाहते थे । प्रोडक्शन कंपनी ने अपना पहला नाटक 1956 में बनाया जो विधवा पुनर्विवाह जैसे गम्भीर विषय पर आधारित था ।
यह दौर बलदेव राय चोपड़ा की कामयाबी का दौर था । इसके बाद आई फिल्म साधना, कानून, गुमराह तथा हमराज ने उन्हें कामयाबी की नई बुलंदियों तक पहुंचा दिया । फिल्म कानून के बारे में कहा जाता है कि एक बार एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में किसी विदेशी फिल्म के निर्माता ने उन्हें कह दिया कि भारतीय फिल्में नाच गाने व ड्रामेबाजी के अलावा कुछ नहीं है, बिना गानों के भारतीय फिल्मों का कोई अस्तित्व ही नहीं है । बी. आर. चोपड़ा जी को यह बात कुछ जमी नहीं और उन्होंने एक ऐसी फिल्म बना डाली जिसमें एक भी गाना नहीं था । जी हां दोस्तों, 1961 में आई फिल्म कानून में एक भी गीत नहीं है फिर भी इस फिल्म को दर्शकों द्वारा काफी पसंद किया गया ।
जाने माने फिल्म निर्माता-निर्देशक तथा बी. आर. चोपड़ा के छोटे भाई यश चोपड़ा की कामयाबी के पीछे भी इन्ही का हाथ था । उन्होंने अपनी फिल्म धूल का फूल में यश राज चोपड़ा को निर्देशक के रूप में स्थापित किया । इसके बाद उन्होंने यश राज को फिल्म वक्त तथा इत्तेफाक जैसी कामयाब फिल्मों में निर्देशन का मौका दिया । जिसके पश्चात यश राज चोपड़ा की सिनेमा जगत में पहचान बनी ।
पचास के दशक में जब आशा भोंसले को जब बड़ी फिल्मों में काम नहीं मिलता था तब बी.आर.चोपड़ा ने ही उनकी काबिलियत को पहचाना और उन्हें अपनी फिल्म नया दौर में गाने का मौका दिया । आशा भोंसले के यह गीत 'उड़े जब जब जुल्फें तेरी' तथा 'मांग के साथ तुम्हारा' काफी लोकप्रिय हुए जो मोहम्मद रफी के साथ युगल आवाज में हैं । इसके अलावा महेन्द्र कपूर को फिल्म इंडस्ट्री में कामयाबी दिलाने का श्रेय भी बी.आर.चोपड़ा को ही है । उन्होंने महेन्द्र कपूर को वक्त, गुमराह, हमराज, आदमी तथा धुंध जैसी फिल्मों में गायन का मौका देकर फिल्म इंडस्ट्रीज में उनके केरियर को निखारा ।
ये बात कुछ हैरान करती है कि अपनी फिल्मों में बी.आर.चोपड़ा ने फीमेल प्लेबैक में आशा भोंसले तथा मेल प्लेबैक में महेन्द्र कपूर को ही ज्यादातर फिल्मों में गाने का मौका दिया । जबकि मोहम्मद रफी तथा लता मंगेश्कर ने उनकी बहुत ही कम फिल्मों में गीत गाये । इसकी क्या वजह रही यह कोई समझ नहीं पाया ।
अगले कुछ ही वर्षों में इनके छोटे भाई यश चोपड़ा ने अपनी खुद की फिल्म प्रोडक्शन कंपनी खोल ली । लेकिन बी.आर.चोपड़ा का हौसला कम नहीं हुआ बल्कि वे निरंतर अपने प्रगति पथ पर चलते रहे । अपने बेटे रवि चोपड़ा को इन्होंने अपनी फिल्मों का Director बनाया । 1980 में रवि चोपड़ा के डायरेक्शन में आई मल्टी स्टारर फिल्म द बर्निंग ट्रैन काफी चर्चित रही ।
बी.आर.चोपड़ा सिनेमा के साथ साथ टेलीविजन के महत्व को जानते थे । रामानंद सागर द्वारा बनाया गया धारावाहिक रामायण को बहुत पसंद किया गया । वहीं छोटे पर्दे पर बी.आर.चोपड़ा पहली बार लेकर आये महाभारत । जब दूरदर्शन पर हर रविवार प्रातः 9 बजे महाभारत प्रसारित होता था तब सड़कें एकदम खाली हो जाया करती थीं तथा बाजार सुनसान नजर आते थे क्योंकि तब हर घर में टेलीविजन पर महाभारत देखा जाता था ।
यह धारावाहिक दुनिया में सबसे अधिक देखे जाने वाले धारावाहिकों में शुमार हो गया । ब्रिटेन में यह धारावाहिक बीबीसी द्वारा प्रसारित किया जाता था जहाँ इसके दर्शकों की संख्या पचास लाख के आंकड़े को पार कर गई । इस धारावाहिक ने सबसे अधिक दर्शकों तक पहुंचने के कारण अपना नाम 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड' में दर्ज करवा लिया । इसके अलावा उन्होंने बहादुर शाह जफर, सौदा, विष्णुपुराण, रामायण, आप-बीती, कामिनी दामिनी तथा विरासत जैसे सफल टीवी सीरियल बनाये ।
बी.आर.चोपड़ा को अनेकों सम्मान व पुरुष्कार प्राप्त हुए । 1962 में इन्हें फिल्म कानून में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए फिल्मफेयर अवार्ड, 1962 में फिल्म धर्मपुत्र तथा 1968 में फिल्म हमराज के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फिल्म का नेशनल फिल्म अवार्ड(President's Silver Medal for Best Feature Film in Hindi ), 1998 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, 2001 में पदम भूषण तथा 2003 में उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरुस्कार दिया गया ।
5 नवम्बर 2008 को 94 वर्ष की आयु में मुम्बई के जुहू स्थित अपने घर में बी.आर.चोपड़ा का निधन हो गया ।
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