एक बार की बात है बुद्ध एक गांव से अपने शिष्य आनंद और स्वास्तिक के साथ निकल रहे थे तभी अचानक एक व्यक्ति आया और बुद्ध से पूछा...
- तथागत(बुद्ध का दूसरा नाम) क्या ईश्वर है?
- बुद्ध ने पूछा- तुम्हे क्या लगता है ?
- आदमी ने सिर झुकाया और कहा तथागत मुझे तो लगता है की ईश्वर है ।
- बुद्ध आनंद की तरफ देखकर मुस्कुराए और धीरे से कहा बिलकुल गलत लगता है तुम्हे, इस अस्तित्व में ईश्वर जैसी कोई चीज नहीं है ।
आदमी ने हाथ जोड़े और चला गया। बुद्ध गांव की पगडण्डी पर आगे बढ़े।जैसे ही वो गांव से निकले गांव के बाहर एक ओर आदमी आया और उसने बुद्ध से पूछा...
- तथागत में कई दिन से परेशान हूँ मुझे लगता है कि ईश्वर और भगवान की बातें महज एक बकवास है ।
- बुद्ध आनंद और स्वास्तिक की तरफ देखकर थोड़ा मुस्कुराये और बड़े ही प्रेम से उस आदमी से कहा तुम्हे बिलकुल गलत लगता है इस अस्तित्व में केवल ईश्वर ही है और कुछ नहीं, जरा देखो अपनी, आँखें बंद करो और खोजो परमात्मा का अस्तित्व है ।
इस जबाब को सुनकर आनंद और स्वास्तिक आश्चर्य में पड़ गए की एक ही सवाल और दो जवाब ।
दूसरे दिन की बात है एक गाँव से बाहर रात्रि विश्राम के लिए बुद्ध रुके हुए थे । स्वास्तिक और आनंद दोनों थक गए थे ।तभी वहां अचानक एक घबराये हुए व्यक्ति का प्रवेश हुआ, वह बुद्ध के पास आया और जोर से कहा...
- तथागत क्या ईश्वर है या नहीं है, मैं कई दिन से परेशान हूँ, मैं खोज रहा हूँ, मेरा मार्गदर्शन करें ।
- इस तीसरे आदमी के सवाल पर बुद्ध चुप हो गये कुछ नहीं बोले मौन हो गए और आँखें बंद कर ली ।
आनंद और स्वास्तिक के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, एक जैसे तीन सवाल और तीनों के अलग-अलग जवाब, बुद्ध की ये चुप्पी हैरान कर गयी । व्यक्ति के जाते ही आनंद से रहा ना गया और पूछ बैठा तथागत, कल से लेकर आज तक तीन व्यक्ति एक जैसे सवाल लेकर मिले, मैं हैरान हूँ की आपने तीनों का अलग-अलग जवाब दिया कुछ समझ में नहीं आ रहा है। बुद्ध स्वास्तिक की तरफ देखकर थोड़ा मुस्कुराये और बोले आनंद, जो पहला व्यक्ति आया था उसने मान लिया था कि ईश्वर है, मैं उसकी मान्यता को मिटा देना चाहता था ताकि वो खोजना शुरू करे । ईश्वर है ये मानकर बैठ ना जाये, उस सत्य तक पहुंचे । दूसरे व्यक्ति ने भी मान लिया था कि ईश्वर की बातें कोरी हैं, मैंने उसकी भी धारणा को मिटा दिया ताकि वह खोजे कि ईश्वर है या नहीं और तीसरा व्यक्ति अभी संयस में ही था वह खोज रहा था, मैं वहां मौन रह गया वहां मौन रह जाना ही उचित था ताकि वह खोजता रहे, और इसका जवाब अपनी खोज और परिश्रम से वह सवयं प्राप्त करे । इस संसार में कुछ भी मानने वाले लोग, जानने से चूक जाते हैं, उनका विकास रुक जाता है, जिनका स्वयं का कोई बोध नहीं, वो सत्य क्या है कभी नहीं जान पाते । जानते वही हैं जो निरंतर खोजते रहते हैं, जानने की यात्रा मुश्किल है, मानना आसान है,मानाने में कोई खर्च नहीं है, कोई परिश्रम नहीं है, किसी ने कह दिया,समझा दिया,मान लिया और मान कर रूक जाने वाले लोग इस संसार के सबसे अभागि प्राणी हैं ।
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