महमूद गजनवी Mahmood Gajanavi ~ यामिनी वंश ~ Ancient India

महमूद गजनवी Mahmood Gajanavi ~ यामिनी वंश

महमूद गजनवी भारत में लूटपाट के उद्देश्य से आया था । उसने भारत पर बारम्बार 17 आक्रमण किये । इन आक्रमणों में उसने भारत में जमकर लूटपाट की ओर यहां से भारी मात्रा में सोना चांदी लूटकर अपनी राजधानी गजनी ले गया । वर्तमान में गजनी, अफगानिस्तान का एक शहर है जो राजधानी काबुल से 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।

यामिनी वंश/गजनवी वंश

अलप्तगीन नामक एक तुर्क गुलाम ने 932 ई. में गजनी में गजनवी वंश की स्थापना की । गजनवी वंश ईरान के शासकों की एक शाखा थी जो अरब आक्रमण के दौरान भागकर तुर्किस्तान चले गए थे । वहां ये तुर्क लोगों में इतना घुल मिल गए थे की ये भी तुर्क कहलाने लगे । अलप्तगीन भी एक तुर्की मुसलमान था जो अब्बासी खलीफा के अधीन बुखारा(उज्बेकिस्तान) के समानी वंश के शासक अबुल मलिक का गुलाम था । समानी वंश के शासक मूल रूप से ईरानी थे । इनका शासन ट्रांस-अक्सियाना, खुरासान तथा ईरान के कुछ भागों में स्थित था ।

दरअसल 9वीं शताब्दी के अंत में अब्बासी खलीफा की स्थिति कमजोर हो गई जिसके फलस्वरूप कई छोटे-छोटे राजवंशों का उदय हुआ । हालांकि औपचारिक रूप से ये वंश खलीफा के अधीन थे परंतु वास्तव में ये स्वतंत्र रूप से शासन करते थे । समानी वंश का उदय भी इन्हीं परिस्थितियों में 874 ई. में हुआ । अलप्तगीन के सैनिक गुणों से प्रभावित होकर अबुल मलिक ने उसे खुरासान का प्रान्तपाल बना दिया । अबुल मलिक की मृत्यु के पश्चात अलप्तगीन ने अमीर अबू बक्र लाविक से जबुलिस्तान (अफगानिस्तान) छीनकर वहां अपना नया शासन स्थापित किया । उसने गजनी को अपनी राजधानी बनाया । इस प्रकार अलप्तगीन ने गजनी वंश की नींव रखी ।

सुबुक्तगीन (977 ई.-997 ई.)

977 ई. में गजनवी वंश का नया शासक सुबुक्तगीन बना । सुबुक्तगीन,अलप्तगीन का गुलाम था । सुबुक्तगीन की प्रतिभा से प्रभावित होकर अलप्तगीन ने उसे अपना दामाद बना लिया । अलप्तगीन की मृत्यु के पश्चात सुबुक्तगीन गजनी का शासक बना । सुबुक्तगीन के शासनारम्भ के साथ ही यामिनी वंश का उदय होता है । तभी से गजनी वंश को यामिनी वंश के नाम से भी जाना जाने लगा । तुर्कों ने पहली बार 977 ई. में सुबुक्तगीन के नेतृत्व में भारत पर आक्रमण किया । उस समय काबुल (अफगानिस्तान) व पंजाब पर हिन्दू शाही शासक जयपाल (हतपाल का पुत्र) का शासन था । उसकी राजधानी वैहिन्द थी जिसे उद्भाण्डपुर के नाम से भी जाना जाता है । अलबरूनी के अनुसार हिन्दुशाही वंश के शासक कुषाण नरेश कनिष्क के वंशज थे । राजा जयपाल का राज्य लंघमान से कश्मीर तक तथा सरहिंद से मुल्तान तक फैला था । पेशावर भी उसके शासन के अधीन था । इस युद्ध मे जयपाल पराजित हुआ जिसके चलते उसे सुबुक्तगीन के साथ सन्धि करनी पड़ी । हालांकि बाद में जयपाल ने इस संधि को मानने से इन्कार कर दिया । जिसके चलते 986 ई. में जयपाल तथा सुबुक्तगीन की सेना के मध्य गुजुक नामक स्थान पर युद्ध हुआ । जयपाल ने दिल्ली, अजमेर, कालिंजर तथा अन्य निकटवर्ती हिन्दू राजाओं से सुबुक्तगीन के विरुद्ध सहायता मांगी । जयपाल के पास लगभग एक लाख सेना हो गई थी । जयपाल तथा तुर्क सेना के मध्य यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा लेकिन अचानक एक बर्फीला तूफान आने की वजह से जयपाल की सेना को भारी नुकसान हुआ । सुबुक्तगीन ने लमगान से पेशावर तक के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया । पराजित जयपाल को सुबुक्तगीन के साथ पुनः सन्धि करने के लिए विवश होना पड़ा । इसके बाद के कई तुर्क आक्रमणों में असफलता से क्षुब्ध होकर हिन्दुशाही राजा जयपाल ने स्वंय को जीवित जलाकर आत्महत्या कर ली ।

997 ई. में सुबुक्तगीन ने अपनी मृत्यु से पहले अपने छोटे पुत्र इस्माइल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया । लेकिन सुबुक्तगीन की मृत्यु के कुछ माह पश्चात 998 ई. में उसके बड़े पुत्र महमूद ने इस्माइल के विरुद्ध विद्रोह कर दिया । इस युद्ध में इस्माइल की पराजय के साथ ही गजनी पर महमूद का अधिकार हो गया । इतिहास में महमूद को महमूद गजनवी के नाम से जाना जाता है ।

महमूद गजनवी Mahmood Gajnavi (998 ई.-1030 ई.)

महमूद गजनवी (Mahmood Gajnavi) का जन्म 2 नवम्बर 771 ई. में गजनी में हुआ। वह सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला पहला मुस्लिम शासक था । तारीख के गुजिदा के अनुसार सीस्तान के शासक खलफ बिन अहमद को पराजित कर महमूद ने सुल्तान की उपाधि धारण की थी । यद्दपि उसके सिक्कों पर सिर्फ 'अमीर महमूद' अंकित मिलता है । बगदाद के खलीफा अल-कादिर-बिल्लाह ने उसे 'यमीन-उद्-दौला' तथा 'आमीन-उल-मिलाह' की उपाधियाँ प्रदान कीं । इन्हीं उपाधियों से प्रेरित होकर उसने भारत पर हर वर्ष आक्रमण करने की शपथ ली ।

उसने अपने पिता सुबुक्तगीन के साथ अनेकों युद्धों में भाग लिया था । वह बचपन से ही भारत की अपार समृद्धि व धन सम्पन्न होने की बात सुनता आ रहा था। वह अपने पिता सुबुक्तगीन द्वारा हिन्दुशाही राजा जयपाल के राज्य से लूटकर लाई गई बेशुमार दौलत देखकर बड़ा अचम्भित था । वह भारतवर्ष से सारी दौलत लूटकर ले आना चाहता था । उसने भारतवर्ष पर कुल 17 बार आक्रमण किया। भारत पर उसके आक्रमणों का सिलसिला 1000 ई. से प्रारंभ होता है । सर हेनरी इलियट के अनुसार महमूद गजनवी ने भारत पर कुल 17 आक्रमण किये थे । जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार महमूद ने भारत पर केवल 12 बार आक्रमण किया था जिनमें सभी अभियानों में वह सफल रहा था ।

भारत में महमूद गजनवी के आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य यहां की अपार दौलत को लूटना तथा यहां इस्लाम का विस्तार करना था ना कि यहां साम्राज्य विस्तार करना । महमूद गजनवी ने भारत पर पहला आक्रमण 1000 ई. में हिन्दुशाही राजा जयपाल ले विरुद्ध किया । उसने जयपाल के सीमावर्ती कुछ किलों पर अपना अधिकार कर लिया तथा अपनी सेनाएँ वहां स्थापित कर दीं । 1001 ई. में अपने दूसरे आक्रमण में महमूद ने जयपाल को पेशावर के निकट पराजित किया । जयपाल को बंदी बना लिया गया । बाद में भारी मात्रा में स्वर्ण मुद्राएं व हाथी देकर राजा जयपाल को मुक्त कराया गया । तुर्कों से अपनी बार बार पराजय से जयपाल बहुत आहत हुआ। अतः शासन का सारा भार उसने पुत्र आनन्दपाल को सौंपकर जयपाल ने आत्मदाह कर लिया ।

1004 में महमूद गजनवी ने भारत पर तीसरा आक्रमण किया । इस युद्ध में महमूद ने भेरा के निकट हिन्दुशाही राजा आनन्दपाल को पराजित किया तथा वहां से लूटपाट में उसने अत्यधिक मात्रा में धन प्राप्त किया । इसके पश्चात उसने मुल्तान पर आक्रमण कर वहां के शिया शासक अब्दुल फतह दाऊद को 20000 दिरहम प्रतिवर्ष देने के लिए बाध्य किया ।

महमूद गजनवी का चौथा आक्रमण मुल्तान के शासक अब्दुल फतह दाऊद के विरुद्ध था । उसने दाऊद को पराजित कर मुल्तान को अपने राज्य में मिला लिया । महमूद द्वारा मुल्तान पर आक्रमण का कारण दाऊद का 20000 दिरहम प्रतिवर्ष गजनी में भिजवाने की शर्त से मुकरना था । इससे क्रोधित होकर महमूद गजनवी ने 1008 ई. में मुल्तान पर आक्रमण किया तथा दाऊद को पराजित कर वहां अपनी सैनिक चौकियां बना दीं । मुल्तान पर महमूद गजनवी के आधिपत्य से हिन्दुशाही राज्य की सीमाएं खतरे में पड़ गईं । राजा आनन्दपाल ने इसके विरोध में आक्रामक नीति अपनाई परंतु उसे कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई ।

महमूद गजनवी ने आनन्दपाल की आक्रामक नीतियों के फलस्वरूप 1009 ई. में भारत पर पांचवां आक्रमण किया । दोनों सेनाओं के मध्य वैहन्द के निकट युद्ध हुआ जिसमें आनन्दपाल पराजित हुआ । आनन्दपाल को नगरकोट के आसपास के क्षेत्रों से हाथ धोना पड़ा । आनन्दपाल की यह पराजय भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रही। आनन्दपाल महमूद गजनवी के भारत की तरफ बढ़ते कदमों को रोकने में असफल रहा । महमूद गजनवी ने सिंध से नगरकोट तक के क्षेत्र अपने अधीन कर लिए । 1009 ई. में छठे आक्रमण में उसने वर्तमान भारत की सीमा को लांघ लिया । उसने यहां राजस्थान के अलवर में नारायणपुर नामक स्थान पर लूटपाट मचाई।

1014 में उसने भारत पर पुनः आक्रमण किया । यह उसका सातवां आक्रमण माना जाता है । उसने वर्तमान थानेश्वर में भारी लूटपाट की तथा यहां के मंदिरों में अनेकों मूर्तियों को तोड़ दिया । यहां चक्रधारी भगवान विष्णु का प्रसिद्ध प्राचीन 'चक्रस्वामी' मंदिर था । वह चक्रस्वामी की मूर्ति को अपने साथ गजनी ले गया जिसे उसने गजनी के मुख्य चौक में रास्ते पर डाल दिया, जिससे वह मुसलमानों के पैरों तले रोंदी जा सके । इससे पूर्व के भारत अभियानों में महमूद गजनवी की नीति केवल लूटपाट की थी लेकिन अब वह इस्लाम को भारत में स्थापित करना चाहता था । 1015 ई. में उसने कश्मीर पर आक्रमण किया ।

1018 ई. में महमूद गजनवी ने भारत पर आठवां आक्रमण किया । वह हिन्दुशाही राजवंश के शासक त्रिलोचन पाल (आनन्दपाल का पुत्र) को पराजित करता हुआ कन्नौज की तरफ बढ़ा । रास्ते में उसने महाबन के यदुवंशी शासक कुलचंद को पराजित किया । तत्पश्चात उसने मथुरा को जीतकर वहां मंदिरों को तोड़ा तथा बेशकीमती मूर्तियां व सोना-चांदी,हीरे-जवाहरात लूटकर अपने साथ ले गया । पूरे नगर को नष्ट कर दिया तथा अनेकों स्त्री-पुरुषों को मार डाला गया । मथुरा को जीतने के बाद उसने अपना रुख कन्नौज की तरफ किया जहां उस समय गुर्जर प्रतिहार वंश के राजा राज्यपाल का शासन था । राज्यपाल ने बिना युद्ध किये ही महमूद गजनवी के समक्ष समर्पण कर दिया और यथास्थिति में अपने राज्य को छोड़कर वहां से भाग खड़ा हुआ । कन्नौज पर महमूद गजनवी का आसानी से अधिकार हो गया । महमूद गजनवी ने कन्नौज में जमकर लूटपाट मचाई । इसके पश्चात महमूद गजनवी ने ब्राह्मणों के गढ़ मंझावन नगर व वृंदावन पर आक्रमण किया तथा के दिनों के संघर्ष में उसने यहां से अत्यधिक मात्रा में धन एकत्रित किया ,ततपश्चात वह सिरसा व भटनेर में लूट मचाता हुआ वापिस गजनी लौट गया । राज्यपाल की इस कायरता से क्रोधित होकर कालिंजर (बुंदेलखंड) के शासक विद्याधर(गंड का पुत्र) ने उसे युद्ध में पराजित कर मार डाला तथा स्वंय कन्नौज का शासक बन गया ।

अपने नौवें अभियान के अंतर्गत महमूद गजनवी 1019 ई. में वह बुंदेलखंड की सीमा पर आ पहुंचा । यहां विद्याधर की सेना ने महमूद की सेना से कड़ा मुकाबला किया लेकिन अंततः विद्याधर की पराजय हुई तथा कालिंजर पर महमूद गजनवी का अधिकार हो गया । महमूद गजनवी ने यहां से जमकर धन लूटा तथा वापिस गजनी चला गया ।

1021 में उसने भारत पर दसवां आक्रमण किया । उसने कश्मीर पर दूसरी बार आक्रमण किया । इससे पहले उसने 1015 ई. कश्मीर पर आक्रमण किया था । लेकिन बार-बार कश्मीर पर अपनी असफलता के चलते उसने अपना ध्यान कश्मीर से हटा लिया । अतः महमूद ने अपना रुख ग्वालियर की तरफ कर लिया । उस समय ग्वालियर का शासक किर्तिराज था । महमूद गजनवी ने किर्तिराज को पराजित कर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया तथा यहां से उसने बड़ी मात्रा में धन प्राप्त किया।

महमूद गजनवी ने भारत पर 11वां आक्रमण 1025 ई. में गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर किया । इतिहास में इसे महमूद गजनवी का 16वां आक्रमण भी कहा गया है । लेकिन जैसा हमने आपको बताया कि हम यहां महमूद गजनवी के भारत के मुख्य अभियानों के बारे में बता रहे हैं । सोमनाथ का शिव मंदिर उत्तर भारत का सर्वप्रसिद्ध मंदिर था । यह मंदिर काठियावाड़(गुजरात) के समुद्री तट पर स्थित था । इस मंदिर में प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते थे तथा चढ़ावा चढ़ाते थे । महमूद गजनवी का इस मंदिर पर आक्रमण का मुख्य उद्देश्य यहां उपलब्ध बेशुमार दौलत को लूटना था । मुल्तान के रास्ते 1025 ई. में महमूद गजनवी काठियावाड़ पहुंचा । यहां उसने कठियावाड़ की राजधानी अन्हिलवाड़ापाटन में जमकर लूट पाट मचाई । इस समय कठियावाड़ का शासक भीमदेव प्रथम था । पहले तो भीमदेव प्रथम महमूद गजनवी से लड़ने के लिए तत्पर हुआ लेकिन महमूद गजनवी के सैनिकों की भारी संख्या देखकर उससे लड़ना मुनासिब नहीं समझा अतः उसने भयभीत होकर किले में शरण ले ली । महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर में भयंकर लूट मचाई । यहां उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को मार डाला गया । महमूद की सेना ने मंदिर से सभी कीमती वस्तुएं सोना , चांदी, हीरे, जवाहरात व यहां तक कि मंदिर के चंदन के दरवाजे भी उखाड़ लिये । यहां उसे अब तक कि भारत में सभी लूटों के कई गुना मात्रा में धन प्राप्त हुआ । जब महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर को लूटकर वापिस लौट रहा था तो रास्ते में राजा भीम ने महमूद की सेना को घेरना चाहा । इसी उद्देश्य से भीमदेव प्रथम अपनी सेना के साथ राजस्थान की सीमा पर खड़ा था । लेकिन महमूद गजनवी की इस बात का पहले ही आभास हो गया था अतः उसने अपना रास्ता बदल लिया । वह कच्छ के रण के दुर्गम रेगिस्तानी रास्ते से मुल्तान होता हुआ गजनी पहुंचा । लेकिन इसी बीच रास्ते में उसका जाटों से संघर्ष हुआ । इस संघर्ष में महमूद गजनवी की सेना का काफी नुकसान हुआ । उनसे बदला लेने की भावना से महमूद गजनवी ने भारत अपना बारहवां अथवा अंतिम आक्रमण किया ।

1027 ई. में महमूद गजनवी ने अपना अंतिम भारत अभियान जाटों के विरुद्ध किया था । यह महमूद गजनवी का 12वां आक्रमण था । इतिहासकारों के मतानुसार इसे महमूद गजनवी का 17वां आक्रमण कहा जा सकता है । जब महमूद गजनवी सोमनाथ में लूटपाट करके वापिस लौट रहा था तो रास्ते में सिंध के जाटों ने महमूद की सेना को बहुत परेशान किया । अतः थकी हुई सेना उस समय युद्ध करने में समर्थ नहीं थी । ऐसा कहा जाता है कि जाटों ने महमूद की सेना से सोमनाथ में लूटा हुआ काफी धन छीन लिया था । उस समय महमूद गजनवी की सेना भूख-प्यास से बेहाल थी । अतः इस धन को पुनः प्राप्त करने व जाटों से बदला लेने के लिए वह पुनः भारत आया ।

जाटों तथा महमूद गजनवी के मध्य भयंकर युद्ध हुआ । हजारों की संख्या में जाटों व उनके परिवार के लोगों को मार डाला गया। अनेकों स्त्री, पुरूष व बच्चों को गुलाम बना लिया गया । यह महमूद गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण था । महमूद गजनवी ने न केवल भारत से बेसुमार दौलत प्राप्त की अपितु उसने अफगानिस्तान,पंजाब, सिंध तथा मुल्तान में गजनी साम्राज्य की स्थापना की । महमूद गजनवी के इन आक्रमणों ने भारत में आगामी मुस्लिम आक्रमणों के लिए राह खोल दी । 30 अप्रैल 1030 ई. में उस समय की भयंकर व लाईलाज बीमारी टीबी से उसकी मौत हो गई ।

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