मोहम्मद गोरी ~ Ancient India

मोहम्मद गोरी

लूटपाट के उद्देश्य से आये मुहम्मद बिन कासिम  महमूद गजनवी जैसे मुस्लिम आक्रांताओं के बाद अब मोहम्मद गोरी भी भारत की तरफ आकर्षित हुआ । हालांकि मोहम्मद गोरी का उद्देश्य लूटपाट नहीं बल्कि भारत में मुस्लिम साम्राज्य का विस्तार करना था । अपने इसी उद्देश्य को लेकर उसने भारत पर कई आक्रमण किये। हालांकि शुरुआत के आक्रमणों में उसे सफलता नहीं मिली लेकिन अंततः वह सफल हुआ । उसकी इसी सफलता ने दिल्ली सल्तनत की नींव रखी ।

मोहम्मद गोरी का जन्म अफगानिस्तान के हजारा क्षेत्र के गोर नामक स्थान पर हुआ था । हालांकि उसके जन्म स्थान व जन्म तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद है । लेकिन विद्वानों द्वारा आपसी सहमति से उसकी जन्म तिथि 1149 मानी गई है । मोहम्मद गोरी को मुइज्जुद्दीन उर्फ शिहाबुद्दीन मुहम्मद बिन साम नाम से भी जाना जाता था ।

गोरी राजवंश

शंसबनी वंश से सम्बंधित अल्लाउद्दीन हुसैन नामक व्यक्ति ने 1148 के आसपास गोरी राजवंश की नींव रखी । शंसबनी वंश के लोग पहले पूर्वी ईरान में निवास करते थे जो बाद में गोर प्रदेश में आकर बस गए थे । यहां स्थित घोर की पहाड़ियों व आसपास के क्षत्रों पर गजनी साम्राज्य के अधीनस्थ सामंत के रूप में शासन करने लगे थे । धीरे-धीरे शंसबनी शासकों ने अपनी स्थिति को मजबूत किया तथा गजनी शासकों की कमजोर स्थिति का फायदा उठाकर उन्हें पराजित कर दिया ।

अल्लाउद्दीन हुसैन ने गजनी साम्राज्य को पूरी तरह से लूटपाट कर जला दिया था । तब से अल्लाउद्दीन हुसैन को अल्लाउद्दीन जहांसोज (जहां-सोज~विश्व को जलाने वाला) नाम से भी जाना जाने लगा । अल्लाउद्दीन जहांसोज मोहम्मद गोरी का चाचा था । मोहम्मद गोरी व उसके भाई गयासुद्दीन को जहांसोज ने किसी कारणवश कैद में डाल दिया था । लेकिन कुछ वर्षों उपरांत अल्लाउद्दीन जहांसोज की मौत गई तो उसका पुत्र सेफ-उद-दिन गोर का राजा बना जिसने इन दोनों को रिहा कर दिया । गोर पर निरंतर सलजूकों के आक्रमण होते रहते थे । सलजूकों ने कुछ समय के लिए गोर पर अधिकार कर लिया था लेकिन सैफुद्दीन ने गोर पर पुनः अधिकार कर लिया था । अन्ततः एक अफगान सरदार ने सैफुद्दीन व उसके भाई कुतुबुद्दीन मुहम्मद की भाला मारकर हत्या कर दी ।

मोहम्मद गोरी

सैफुद्दीन की मृत्यु के बाद 1172 ई. में गयासुद्दीन गोरी राजवंश का शासक बना तथा मोहम्मद गोरी उसका सेनापति। दोनों भाइयों ने गजनी पर आक्रमण कर गजनी पर पूरी तरह अधिकार कर लिया । 1173 ई. गयासुद्दीन ने अपने छोटे भाई मोहम्मद गोरी को गोर का राजा बना दिया तथा स्वयं गजनी पर अधिकार कर ख्वारिज्मी राजवंश के विरुद्ध संघर्ष शुरू कर दिया । मोहम्मद गोरी की सेना में बहुत बड़ी संख्या में तुर्क गुलाम थे जो अपनी जान पर खेलकर बड़ी से बड़ी हार को भी जीत में बदल देते थे । इन तुर्क गुलामों को गोरी ने प्रशासनिक पद व प्रशिक्षण भी दिया था ।

गोर का शासक बनने के बाद मोहम्मद गोरी ने अपना रुख भारत की ओर किया तथा 1175 में मुल्तान पर सफल आक्रमण किया । उस समय मुल्तान पर करमाथि मुसलमानों का शासन था । इसके पश्चात मोहम्मद गोरी ने 1178 ई. में गुजरात पर आक्रमण किया । उस समय गुजरात पर भीमदेव द्वितीय (मूलराज द्वितीय का भाई~अक्सर भीमदेव द्वितीय व मूलराज द्वितीय को एक ही माना जाता है) का शासन था जिसकी राजधानी अन्हिलवाड़ा (पाटन) थी । भीमदेव द्वितीय ने अपनी विधवा माँ नायिका देवी के नेतृत्व में माउंट पर्वत की तलहटी में कायाद्रा नामक स्थान पर मोहम्मद गोरी को पराजित किया । मोहम्मद गोरी को बंदी बना लिया गया लेकिन बाद में उसे छोड़ दिया । यह मुहम्मद गोरी की भारत में पहली पराजय थी । मोहम्मद गोरी को यह भली भांति ज्ञान हो गया था कि सिंध व मुल्तान के रास्ते वह भारत पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता है अंतः उसने पंजाब का रास्ता चुना । 1179 में उसने पेशावर पर आक्रमण कर अपने अधीन कर लिया । उस समय पश्चिमी पंजाब पर यामनी वंश (गजनी वंश) के अंतिम शासक खुसरो मलिक का शासन था ।

1185 ई. में उसने पंजाब पर पुनः आक्रमण किया तथा वहां के गांव-देहातों को लूटा । अंततः सियालकोट किले को भी कब्जे में ले लिया । 1186 ई. में मोहम्मद गोरी ने लाहौर व पश्चिम पंजाब के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को जीत लिया । खुसरो मलिक को बंदी बना लिया गया तथा अन्त में सन्न 1192 में उसकी हत्या कर दी गई । ऐसा कहा जाता है कि जम्मू के शासक राव चंद्रदेव ने मोहम्मद गोरी को पंजाब पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था । धीरे धीरे गोरी ने पंजाब के कई सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों को जीत लिया था । 1191 ई. में मोहम्मद गोरी ने चाहमान साम्राज्य में स्थित तरब-हिन्द (भठिंडा,पंजाब) पर अधिकार कर लिया था । चाहमान वंश (चौहान वंश) का शासक पृथ्वीराज चौहान उस समय दिल्ली व अजमेर पर शासन करता था । उसके राज्य की सीमाएं दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान व पंजाब के कुछ क्षेत्रों तक फैली हुई थीं । तरब-हिन्द पृथ्वीराज चौहान के राज्य की पश्चिमी सीमा पर स्थित था । तरब-हिन्द पर मोहम्मद गोरी का अधिकार होने के कारण पृथ्वीराज चौहान से उसका युद्ध अवश्यम्भावी हो गया था । सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मुहम्मद लगभग इन्ही दिनों गोरी के लश्कर के साथ भारत आये थे जो बाद में अजमेर आकर बस गए ।

तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.)

तरब-हिन्द पर मोहम्मद गोरी का अधिकार होने की सूचना पाते ही पृथ्वीराज चौहान अपने लगभग 2 लाख सैनिकों जिनमें हाथी, घुड़सवार व पैदल सेना थी के साथ मोहम्मद गोरी का सामना करने के लिए निकल पड़ा । दोनों सेनाओं के मध्य थानेश्वर के निकट तराइन (तरावड़ी) के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ । राजपूत सेना की जबरदस्त टक्कर से गोरी सेना छिन्न भिन्न हो गई । पृथ्वीराज चौहान के सामंत तौमरवंशी गोविन्दराज के भाले के वार से मुहम्मद गोरी भी बुरी तरह घायल हो गया था अतः उसका एक सैनिक उसकी जान बचाकर वहां से भगा ले गया । मोहम्मद गोरी के भागते ही उसकी सेना भी वहां से भाग खड़ी हुई । भागती हुई तुर्क सेना का राजपूत सेना ने पीछा नहीं किया जो अगले वर्ष पृथ्वीराज चौहान के लिए घातक सिद्ध हुआ । इस प्रकार चौहानों की विजय हुई तथा तरब-हिन्द पर पृथ्वीराज चौहान का पुनः अधिकार हो गया । इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को आसपास के कई राजाओं ने सैन्यबल प्रदान किया था ।

तराइन का दूसरा युद्ध (1192 ई.)

अपनी पराजय का बदला लेने के लिए मोहम्मद गोरी ने तैयारी आरम्भ कर दी । एक वर्ष की पूरी तैयारी के बाद 1192 ई. में वह पुनः तराइन के मैदान पर आ गया । उसने पृथ्वीराज चौहान को संदेश भेजा कि या तो वह इस्लाम ग्रहण कर उसकी अधीनता स्वीकार कर ले अन्यथा वह उसका मुकाबला करने के लिए तराइन के मैदान में आ जाये। पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी की चुनोती को स्वीकार किया तथा वह अपने लाखों सैनिकों के साथ युद्ध के मैदान में आ पहुंचा । दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध हुआ । राजपूतों की बहादुर सेना ने तुर्कों का डटकर मुकाबला किया लेकिन वो ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई । इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान का सामंत गोविन्दराज मारा गया । पृथ्वीराज चौहान भी बुरी तरह घायल हो गया था । पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया गया । इस तरह मोहम्मद गोरी ने दिल्ली व अजमेर पर अधिकार कर लिया । पृथ्वीराज चौहान दिल्ली का अंतिम हिन्दू शासक था । पृथ्वीराज चौहान की इस हार से इतिहास में एक नया मोड़ आ गया । दिल्ली पर तुर्कों के अधिकार के साथ ही दिल्ली सल्तनत की नींव रखी जा चुकी थी ।

इस युद्ध में कन्नौज के गहड़वाल शासक जयचंद राठौड़ ने मुहम्मद गोरी का साथ दिया था । जयचंद की बेटी संयोगिता व पृथ्वीराज चौहान एक दूसरे से प्रेम करते थे । स्वयंवर के दिन पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को उठा ले आया व दिल्ली लाकर उससे विवाह कर लिया । तब से जयचंद व पृथ्वीराज चौहान में दुश्मनी ओर भी गहरी हो गई। इसी दुश्मनी के चलते जयचंद पृथ्वीराज चौहान को मार डालना चाहता था । अतः उसने मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करने को उकसाया । मोहम्मद गोरी एक क्रूर व निर्दयी शासक था । वह पृथ्वीराज चौहान को गजनी ले जाया गया । जहां उन्हें अनेकों शारिरिक यातनाएँ दी गईं । लोहे की गर्म राड़ से पृथ्वीराज चौहान की आंखें फोड़ दी गईं । 1192 ई. में पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी गई ।

इन सभी अभियानों में मोहम्मद गोरी के प्रतापी व युद्धकौशल तुर्क गुलाम व सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक तथा इख्तियारुद्दीन-बिन-बख्तियार खिलजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । मोहम्मद गोरी की अनुपस्थिति में कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली में शासन संबंधी कार्यों को संभालता था ।

कन्नौज पर गोरी का आक्रमण

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु से गहड़वाल शासक जयचंद राठौड़ बहुत प्रसन्न था । वह यह नहीं जान पाया था कि उसकी एक गलती ने स्वयं को व भारतवर्ष को गुलामी की खाई में धकेल दिया है । भारत साढ़े सात सौ वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा । यदि जयचंद वैमनस्य को भूलाकर पृथ्वीराज चौहान का साथ देता तो शायद इतिहास कुछ ओर होता । मगर अहंकार के मद में चूर दोनों शासक आने वाली इस आपदा से अनभिज्ञ थे । मात्र दो वर्षों बाद ही 1194 ई. में मोहम्मद गोरी ने कन्नौज राज्य पर आक्रमण कर दिया । कन्नौज धन-सम्पदा से समर्द्ध राज्य था । कन्नौज का शासक उस समय भारत का महान सम्राट माना जाता था । अतः इसी महत्व को देखते हुए गोरी ने कन्नौज पर आक्रमण कर दिया । दोनों सेनाओं के मध्य फिरोजाबाद के निकट चंदावर नामक स्थान पर भयंकर हत्याकांड हुआ । जयचंद की आंख में तीर लगने से वह हाथी से नीचे गिर पड़ा जिससे उसकी मृत्यु हो गई । मोहम्मद गोरी ने बनारस में अनेकों मंदिरों को तोड़ा तथा उनके स्थानों पर मस्जिदें बनवा दीं । उसने कन्नौज राज्य में जमकर लूटपाट की व सभी बहुमूल्य वस्तुएं ऊंटों पर लादकर गजनी ले गया ।

1195 ई. -1196 ई. के मध्य गोरी ने चुनार पर आक्रमण कर वहां के जाटों व राजपूतों को परास्त किया । इसके पश्चात वह आगे बढ़ा तथा बिहार के कुछ भू-भागों पर अपना अधिकार कर लिया । इसके पश्चात वह दिल्ली का उत्तरदायित्व अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपकर गजनी वापिस चला गया । वहां वह मध्य एशिया के तुर्कों के साथ युद्ध में व्यस्त हो गया । इधर कुतुबुद्दीन ऐबक व सेनापति बख्तियार खिलजी भारत में मुस्लिम जड़ों को मजबूत करने में लग गए ।

कुतुबुद्दीन ऐबक

1197 ई. से 1198 ई. के मध्य कुतुबुद्दीन ऐबक ने राष्ट्रकूट वंश के शासक को पराजित कर बदायूँ पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक ने कन्नौज के उन कुछ क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया था जिन्हें मोहम्मद गोरी जयचंद को पराजित करने के बाद अपने अधीन नहीं कर पाया था ।

1202 ई.-1203 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बुंदेलखंड के चंदेल शासक परमारदेव की युद्धकालीन राजधानी कालिंजर को घेर लिया । परमारदेव सन्धि करने को तैयार था लेकिन उसी दौरान उसकी मृत्यु हो जाती है । दोनों पक्षों में संघर्ष जारी रहा। अंत में चंदेल सन्धि की शर्तों को मानने के लिए तैयार हो गए क्योंकि किले के भीतर जाने वाला पानी बंद कर दिया गया था । इस प्रकार कुतुबुद्दीन ऐबक ने कालिंजर,महोबा व खजुराहो आदि किलों को अपने अधीन कर लिया ।

इख्तियारुद्दीन-बिन-बख्तियार खिलजी

बख्तियार खिलजी एक बहुत ही क्रूर सेनापति था । उसने बिहार व बंगाल के कई महत्वपूर्ण स्थल जीत लिये । 1197 ई. में उसने बिहार में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी जिससे उसमें मौजूद पुस्तकालय पूरी तरह जल गया । इस पुस्तकालय में बौद्ध धर्म से संबंधित लाखों पुस्तकें व पांडुलिपियां जलकर नष्ट हो गईं । बिहार में बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया गया तथा हजारों बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया गया । यहां का राजा इंदुमन मिरु बिना युद्ध लड़े ही वहां से भाग गया । बख्तियार खिलजी ने राजधानी ओदंतपुरी को पूरी तरह से लूट लिया ।

बिहार के बाद बख्तियार खिलजी ने बंगाल की चढ़ाई की । इस समय यहां सेन वंश के शासक लक्ष्मण सेन का शासन था। लक्ष्मण सेन एक बहुत ही आलसी व लापरवाह शासक था । यहां की अव्यवस्था का लाभ उठाकर 1204 ई.- 1205 ई. के मध्य बख्तियार खिलजी सेन वंश की राजधानी नवद्वीप (नदिया) पर हमला कर दिया । अचानक हुए इस हमले से राजा घबरा गया व अपना राजकोष, पत्नी, बच्चे सब छोड़कर वहां से भाग गया । बख्तियार खिलजी ने महल में मौजूद अनेकों लोगों को मार डाला । महल का कोष व अनगिनत हाथी उसके हाथ लग गए । लक्ष्मण सेन ने भागकर पूर्वी बंगाल में शरण ली ।

1205 ई. में बख्तियार खिलजी ने तिब्बत की ओर रूख किया। कामरूप (आसाम) के राजा ने बख्तियार खिलजी के साथ संधि कर ली तथा उसे रास्ते में परेशान ना करने का वचन दिया । हिमालय पर्वत के दुर्गम रास्तों से होता हुआ वह तिब्बत पहुंचा । हालांकि यह कहना बहुत मुश्किल है कि उसने वहां किस स्थान पर आक्रमण किया था लेकिन इतना अवश्य है की तिब्बत जाना उसके लिए बेहद नुकसानदेह साबित हुआ। बड़ी संख्या में उसके सैनिक भूख-प्यास व नदी में डूबने से मर गए ।तिब्बत से वापिस आने के बाद बख्तियार खिलजी ने बंगाल पर पुनः आक्रमण कर दिया । उसने यहां लखनौती ( गौड़ के निकट) में भयंकर तबाही मचाई ।

इधर भारत में कुतुबुद्दीन ऐबक व बख्तियार खिलजी दिल्ली साम्राज्य की सीमाएं बढ़ाने में लगे हुए थे तो वहीं मध्य एशिया में मुहम्मद गोरी गजनी की सीमा का विस्तार कर रहा था । 1202 ई. में अपने भाई गयासुद्दीन की मृत्यु के बाद गजनी की शासन व्यवस्था मोहम्मद गोरी के हाथों में आ गई थी । 1204 ई. को मोहम्मद गोरी को अदखुंड के खोखरों के हाथों पराजित होना पड़ा । यह अफवाह फैल गई कि मोहम्मद गोरी मारा जा चुका है । खोखरों ने अपने नेता रायसाल के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया तथा मुल्तान के उपराज्यपाल को पराजित कर दिया। खोखरों ने पंजाब स्थित गोरी के क्षेत्रों में लूटपाट की तथा पंजाब से गजनी जाने वाले मुख्य मार्ग को बाधित कर दिया । 1205 ई. में मोहम्मद गोरी व कुतुबुद्दीन ऐबक की संयुक्त सेना ने झेलम व चिराब नदी के मध्य खोखरों को पराजित किया । अनगिनत खोखरों को मौत के घाट उतार दिया गया । बड़ी संख्या में खोखरों को दास बना लिया गया । 1206 ई. में मोहम्मद गोरी जब लाहौर से गजनी वापिस लौट रहा था तो रास्ते में ही 15 मार्च 1206 ई. को विद्रोहियों ने उसकी हत्या कर दी । हालांकि इस बात के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं कि उसकी हत्या किसने की , पर ऐसा माना जाता है कि उसकी हत्या खोखरा जाती के लोगों ने अथवा शिया मुसलमानों ने की होगी । उसके शव को गजनी ले जाकर दफनाया गया ।

मोहम्मद गोरी व पृथ्वीराज चौहान की मौत के पीछे एक और भी कहानी है । चंदबरदाई की रचना पृथ्वीराज रासो के अनुसार 1192 ई. में तराइन के दूसरे युद्ध के बाद घायल पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी अपने साथ गजनी ले जाता है । वहां वह पृथ्वीराज चौहान पर बहुत अत्याचार करता है । गर्म सरिये से पृथ्वीराज चौहान की आंखे फोड़कर अंधा कर दिया जाता है । चंदबरदाई जो पृथ्वीराज चौहान का बचपन का मित्र व दरबारी कवि था अपने मित्र के लिए गजनी जाता है । गजनी दरबार पहुंचने के बाद चंदबरदाई ने गोरी की हत्या करने की योजना बनाई । अंत में जब मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान की हत्या करने ही वाला होता है कि चंदबरदाई ने मोहम्मद गोरी को बताया कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर है । मुहम्मद गोरी भी पृथ्वीराज चौहान की इस कला को देखने के लिए उत्सुक था । उसने पृथ्वीराज चौहान को काष्ठ की बनी चिड़िया को निशाना लगाने को कहा ।

तब चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को एक दोहा सुनाया जो कुछ इस तरह से था, ' चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान' पृथ्वीराज चौहान चंदबरदाई का भाव समझ गया । पृथ्वीराज चौहान ने निशाना साधा ओर तीर मोहम्मद गोरी की छाती में घोम्प दिया । मोहम्मद गोरी मौके पर ही मारा गया । दुर्गति से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान व चंदबरदाई ने एक-दूसरे की हत्या कर दी । कुछ विद्वान पृथ्वीराज रासो में लिखे इस दोहे का कुछ और ही अर्थ निकाल रहे हैं । उनका मानना है कि यदि मोहम्मद गोरी 1192 ई. में ही मारा गया था तो उसने दो वर्ष बाद कन्नौज पर भी तो आक्रमण किया था । इसके पश्चात उसने चुनार व बिहार में भी युद्ध लड़े तत्पश्चात वह खोखरों से भी लड़ा । यदि वह 1192 ई. में ही मारा जाता तो दिल्ली सल्तनत की शुरुआत 1206 ई. में क्यों होती । इस प्रकार के कुछ तर्क विद्वानों ने प्रस्तुत किये हैं । लेकिन इस पर कुछ स्पष्ट कहा नहीं जा सकता है ये तर्क सही भी हो सकते हैं गलत भी । हो सकता है कि पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु ही 1206 ई. में हुई हो । या हो सकता है कि मोहम्मद गोरी को कन्नौज, चुनार व बिहार अभियानों के बाद मारा गया हो अतः इसके बाद जो अभियान किये गए हों वह कुतुबुद्दीन ऐबक, बख्तियार खिलजी व भाई गयासुद्दीन के द्वारा किये गए हों । या ये भी हो सकता है कि गोरी के भाई गयासुद्दीन की मृत्यु 1206 ई. में हुई हो जिसकी वजह से कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ई. में की हो क्योंकि दिल्ली साम्राज्य उस समय गजनी के ही तो अधीन था ।

एक बार सलजूकों ने गोर प्रान्त पर कब्जा कर लिया था । उस समय गोर पर सैफुद्दीन का शासन था । सलजूकों ने प्रान्त में लूटपाट मचाई ओर यहां तक कि सलजूक सैफुद्दीन की पत्नी के गहने-जहावरात भी लूट कर ले गए । बाद में सलजूकों को वहां से खदेड़ दिया गया । कुछ समय बाद सैफुद्दीन ने एक स्थानीय सरदार को इन जेवरों को देखा और क्रोधवश सैफुद्दीन ने उस सरदार की हत्या कर दी । सरदार के भाई को बहुत दुख हुआ और उसने सैफुद्दीन व उसके परिवार को खत्म करने की ठान ली । उसने गजनी के शासक बहराम की सहायता से सैफुद्दीन व कुतुबुद्दीन मुहम्मद की भाला घोंफकर हत्या कर दी थी । कुतुबुद्दीन मुहम्मद के बड़े बेटे कयामत खान ने किसी तरह से अपनी जान बचाई ओर अपनी पत्नी शाहबानो व पुत्री शबाना के साथ दिल्ली भाग आया । उस समय दिल्ली का शासक आनंदपाल था । कयामत खान ने अपनी बेटी शबाना का विवाह आनंदपाल से करा दिया । शबाना से एक पुत्र पैदा हुआ । लेकिन मलेच्छ होने के कारण उसे राजकुमार नहीं स्वीकार किया गया । कालांतर में कयामत खान गोर जाकर बस गया था । वहीं इस लड़के का पालन पोषण हुआ । बाद में यही लड़का मोहम्मद गोरी के नाम से जाना जाने लगा । चूँकि मोहम्मद गोरी के कोई संतान नहीं थी अतः दिल्ली पर कुतुबुद्दीन ऐबक का स्वतंत्र रूप से अधिकार हो गया जिसने 1206 ई. में गुलाम वंश की स्थापना की ।


गुलाम वंश का इतिहास भाग-1


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