जलियांवाला बाग हत्याकांड -1919 ~ Ancient India

जलियांवाला बाग हत्याकांड -1919

पंजाब के गवर्नर सर माइकल ओ डायर ने अत्यन्त कठोर एवं दमनकारी शासन स्थापित कर रखा था। ब्रिटिश सरकार भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से 18 मार्च, 1919 को एक कानून लेकर आई जिसे रोलेट एक्ट (अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919) के नाम से जाना जाता है । इस अधिनियम के अनुसार ब्रिटिश सरकार किसी भी भारतीय को बिना मुकदमा चलाये जेल में डाल सकती है तथा उस व्यक्ति को मुकदमा दर्ज कराने वाले व्यक्ति का नाम जानने का अधिकार भी नहीं था । इस कानून को काला कानून भी कहा जाता है । देश भर में इस काले कानून के विरोध में हड़ताल, जूलूस व प्रदर्शन हो रहे थे । महात्मा गांधी ने बड़े पैमाने पर बंद का आह्वान किया । इस विरोध प्रदर्शन से जुड़े सभी बड़े बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था ।

जलियांवाला बाग हत्याकांड

13 अप्रेल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की इस दमनकारी नीति का विरोध करने के लिए एक सार्वजनिक सभा आयोजित की गई। 13 अप्रेल बैशाखी का दिन भी था अतः बैशाखी के मौके पर  जलियांवाला बाग के नजदीक स्थित स्वर्ण मंदिर में आयोजित मैले में शामिल होने के लिए पंजाब, हरियाणा व देशभर से हजारों लोग अमृतसर में जमा हुए थे। जलियांवाला बाग में उस समय लगभग 20 हजार लोग उपस्थित थे। जनरल डायर 90 सैनिकों के साथ सभा में पहुंचा ओर बिना चेतावनी दिये भीड़ पर गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया। जनरल डायर तथा उसके सैनिकों ने लगभग 10 मिनट तक 1650 गोलियाँ चलाईं। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे । बाहर निकलने के लिए एकमात्र व संकरा रास्ता था जहाँ से गोलियां चल रही थीं। कुछ लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए वहां मौजूद कुँए में छलांग लगा दी । कुँए में से लगभग 120 शव बरामद हुए ।


सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 379 व्यक्ति मारे गए तथा 1200 व्यक्ति घायल हुए । परन्तु कांग्रेस की जाँच समिति की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 1000 व्यक्ति मारे गए थे। घायलों की देखभाल के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई । गैर सरकारी संस्थाओं की रिपोर्ट के अनुसार इस हत्याकांड में 1800 लोग मारे गए थे । यही घटना 'जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड' के नाम से प्रसिद्ध है। जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड से भारतवासियों में तीव्र आंक्रोश उत्पन्न हुआ। सम्पूर्ण देश में इस हत्याकाण्ड की घोर निन्दा की गई। कांग्रेस ने पंजाब के अत्याचारों के लिए उत्तरदायी अधिकारियों को उचित दण्ड देने की माँग की, परन्तु सरकार ने इस माँग पर कोई ध्यान नहीं दिया। हालांकि बाद में अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते ब्रिटिश सरकार को जांच सीमित गठित करनी पड़ी जिसकी रिपोर्ट के बाद जनरल डायर को उसके पद से हटा दिया गया ।
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