विदेशी आक्रमण ~ भारत पर ईरानी आक्रमण ~ Ancient India

विदेशी आक्रमण ~ भारत पर ईरानी आक्रमण

जिस समय मगध के शासक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार कर रहे थे उस समय ईरान (फारस) के हखमनी (एकमेनियन) वंश के शासक भी अपनी राज्य की सीमा को बढ़ाने में लगे हुए थे । इनकी राजथानी पर्सपोलिस थी । अपने साम्राज्य विस्तार की योजना के तहत हखमनी वंश के शासक साइरस (558 ई.पू.-530 ई.पू.) ने भारत पर प्रथम आक्रमण किया था । हखमनी वंश का संस्थापक साइरस (कुरुष) था जो यूनानी लेखक हेरोडोटस, एरियन, स्ट्रैबो के अनुसार जेड्रोसिया के रेगिस्तान के रास्ते भारत आया और यहां आक्रमण किया था परन्तु वह असफल रहा । भारतीय इतिहास में यह पहला विदेशी आक्रमण था ।

डरियस-।/दारयबाहु-। (522 ई.पू.-486 ई.पू.)


भारत पर आक्रमण करने में पहली सफलता डेरियस-। को प्राप्त हुई थी । डरियस-। ने भारत के उत्तर-पश्चिम सीमा पर व्याप्त राजनीतिक फूट का फायदा उठाते हुए 518 ई.पू. में सिंधु के तटवर्ती क्षेत्रों (सिंध,पंजाब,सिंधु नदी के पश्चिमी इलाके) को जीतकर उसे ईरान का 20वां क्षत्रपी(प्रान्त) बनाया । इस विजय अभियान में सेना का नेतृत्व स्काईलार्क ने किया । इस विजय की पुष्टि डरियस-। के बेहिस्तून, पर्सपोलिस व नक्श-ऐ-रुस्तम से प्राप्त अभिलेखों से होती है ।

कम्बोज व गान्धार पर भी डरियस-। ने अधिकार कर लिया था । यह 20वां क्षत्रपी ईरान का सबसे अधिक आबादी वाला तथा सबसे अधिक उपजाऊ क्षेत्र था । इस प्रान्त से ईरान को 360 टैलेन्ट (मुद्रा तथा भार का एक माप) सोना राजस्व के रूप में प्राप्त होता था ।

डेरियस के उत्तराधिकारी


डेरियस का उत्तराधिकारी इसका पुत्र जेरसिस/ क्षयार्ष (486 ई.पू.-465 ई.पू.) ने यूनानियों के खिलाफ लम्बी लड़ाई में भारतीयों को अपनी सेना में इस्तेमाल किया था ।

कई उत्तराधिकारियों के बाद डेरियस-।।। ईरान का शासक बना था जिसे 330 ई.पू. में गौगामेला में यूनानी शासक सिकन्दर महान ने परास्त किया था । इसके साथ ही भारत के लिए ईरान की चुनौती समाप्त हो गई थी ।

भारत में ईरानी आक्रमण के प्रभाव

  • समुन्द्री मार्ग की खोज हुई तथा विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला ।
  • ईरानी लोग भारत में 'कातिब' (लिपिकार) का एक खास रूप लेकर आये जो आगे चलकर खरोष्ठी लिपि के नाम से जानी गयी । यह लिपि अरबी लिपि की तरह दायीं से बाएं ओर लिखी जाती थी ।
  • अभिलेख उत्कीर्ण करने की कला का प्रचार हुआ।
  • ईरानियों की आरमाईक लिपि का भारत में प्रचार हुआ ।
  • ईरानियों की क्षत्रप प्रणाली को शक-कुषाणों ने अपनाया ।
  • अशोककालीन स्मारकों में (विशेषकर घंटा आकर के गुम्बजों में) व राज्यादेश की प्रस्तावना में ईरानी प्रभाव देखा जा सकता है ।
  • मौर्य काल में दंड के रूप में सर मुंडवाने की प्रथा , स्त्रियों की अंगरक्षकों के रूप में नियुक्ति, मंत्रियों के कक्ष में हर समय अग्नि के प्रज्ज्वलित रहने की प्रथा आदि ईरानियों से ग्रहण की गई है ।

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