भारत पर अरब आक्रमण ~ Arab aakraman ~ Ancient India

भारत पर अरब आक्रमण ~ Arab aakraman

अरब देश का ज्यादातर हिस्सा मरुस्थल है तथा यहां बहुत ही कम मात्रा में वर्षा होती है । पानी की कमी के कारण यहां के लोग खेती की बजाय पशुपालन व व्यापार पर निर्भर थे । अरब का भारत के साथ प्राचीन व्यापारिक संबंध रहा है। इस्लाम धर्म के उदय से पहले अरब के लोग व्यापार के लिए भारत आते-जाते थे । गुप्त काल में भारतीय व्यापारी अरब के रास्ते ही रोम के साथ व्यापार करते थे । लेकिन गुप्तोत्तर काल आते-आते भारतीय व्यापारियों की रोम के साथ ये व्यापारिक गतिविधियां कम हो गईं और अरब के व्यापारियों ने रोम के साथ व्यापार शुरू कर दिया, जो भारत से व्यापार की वस्तुएँ जैसे रेशम, मलमल के कपडे, हाथी दांत की वस्तुएँ, मसाले तथा बहुमूल्य रत्न आदि खरीदकर विदेशों में बेचने के लिए ले जाये करते थे तथा विदेशों से कई वस्तुएं भारत में लाकर बेचते थे । मालाबार के तट के आसपास अरबी व्यापारियों ने अपनी बस्तियां भी बसा ली थीं । ऐसा भी कहा जाता है कि अरब के लोगों ने ही सिंधु नदी के पार रहने वाले लोगों को हिन्दू तथा सिंधु देश को हिंदुस्तान नाम दिया । लेकिन यह सही नहीं है क्योंकि अरबों के भारत आगमन से पहले भी हिन्दू नाम के प्रचलित होने के साक्ष्य मिलते हैं ।

7वीं शताब्दी में अरब में इस्लाम धर्म का उदय होता है । 632 ईसवी में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद साहब की मृत्यु के पश्चात खलीफा पद शुरू हो गया । इस्लाम धर्म का प्रचार बड़ी तीव्रता से पूरे अरब में होने लगा । ख़लीफ़ाओं ने इस्लाम धर्म का प्रचार करने के लिए अपने प्रतिनिधि दूर-दराज देशों में भेजने शुरू कर दिए । भारत आने वाले इन अरबी व्यापारियों ने सिंध में व्यापार के साथ-साथ इस्लाम का प्रचार करना भी शुरू कर दिया ।


भारत पर अरब आक्रमण (Arab invasion in India)

712 ई. में मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सिंध पर अरब का सफल आक्रमण हुआ । इससे पहले भी कई बार अरबी आक्रांताओं ने सिंध पर अधिकार करने का प्रयत्न किया परन्तु वे असफल रहे । 636 ईसवी में जब उमर बिन अल खतब के पास खलीफा पद था तब अरब के मुस्लिम आक्रांताओ ने समुद्र के रास्ते मुम्बई के ठाणे बंदरगाह पर असफल सैनिक अभियान किया । 647 ईस्वी में अब्दुल्ला बिन उमर के नेतृत्व में मकरान के रास्ते सिंध पर मुस्लिम आक्रमण हुआ । यह अभियान सफल रहा । उस समय उस्मान बिन अफ़्फ़ान खलीफा पद पर थे । हालांकि अरब आक्रमणकारियों ने सिंधु नदी पार नहीं की थी बल्कि पश्चिमी सिंध के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार किया था जहां संसाधनों की कमी की वजह से उस क्षेत्र को छोड़कर वापिस लौटना पड़ा । 659 ई. में अल हैरिस के नेतृत्व में सिंध पर पुनः आक्रमण हुआ जो विफल रहा । अली बिन अबी तालिब उस समय खलीफा थे । 664 ई. में जब उमय्यद वंश के पास खलीफा पद था उस समय भी सिंध पर असफल अभियान हुआ । 711 ई. में मोहम्मद बिन कासिम के अभियान से भी पहले उबेदुल्लाह तथा बर्दूल के नेतृत्व में सैनिक अभियान हुए जो भी असफल रहे ।

भारत में अरब आक्रमणों के कारण

भारत पर अरब आक्रमण का कोई एक कारण नहीं था बल्कि कई कारणों ने मिलकर अरब आक्रमणों की पृष्ठभूमि तैयार की ।

लूटपाट करना

अरबों द्वारा भारत पर आक्रमण का प्रमुख कारण भारत में लूटपाट करना था । अरब के लोग भारत से व्यापार करते थे अतः उन्हें इस बात का भली-भांति ज्ञान था कि भारत में प्रचूर मात्रा में सोना-चांदी व हीरे जवाहरात हैं । अतः अरब आक्रमणकारी यह सब लूटकर अपने देश ले जाना चाहते थे ।

साम्राज्यवादी नीति

अरबों ने सीरिया, उत्तरी अफ्रीका, स्पेन तथा ईरान को जीतकर उस पर अपना अधिकार कर लिया था । 8वीं शताब्दी के प्रारम्भ में अरब सेनापति इब्न-अल-हरिअल-विहिट्टी ने मकरान (बलूचिस्तान) पर अधिकार कर लिया था । अतः इनकी दृष्टि अब भारत में अपना साम्राज्य विस्तार करने की थी । भारत पर उम्मयद वंश के खलीफाओं का अभियान सफल रहा था जिनका एक सेनापति मोहम्मद बिन कासिम था । इन्होंने दमिश्क(सीरिया) को अपनी राजधानी बनाया ।

इस्लाम का प्रचार

7वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस्लाम धर्म का उदय हो चुका था । इस्लाम धर्म का प्रचार अरब के अतिरिक्त आसपास के पड़ोसी देशों में बड़ी तीव्रता से हो रहा था । सीरिया, अफ्रीका, स्पेन, ईरान तथा ईराक के बाद अब खलीफाओं का उद्देश्य भारत में धर्म प्रचार था ।

अरब व्यापारियों के मालवाहक जहाजों की लूट

अरब के व्यापारी भारत से जो माल खरीदकर रोम बेंचने के लिए ले जाते थे वो जहाज देवल बंदरगाह के पास समुद्री लुटेरों द्वारा लूट लिए जाते थे जिससे उन्हें व्यापार में काफी नुकसान हो रहा था । देवल के आसपास के तटीय क्षेत्रों में लुटेरा जनजाती रहती थी जिनका जीवनयापन का मुख्य साधन लूटपाट ही था । अतः इन लूटेरों से परेशान होकर अरब सिंध पर अधिकार करना चाहता था।

तत्कालीन कारण 

ऐसा कहा जाता है कि 708 ई. में सिंघल द्वीप के अरब व्यापारी एक समुद्री दुर्घटना में मारे गए । जिनका परिवार महिलाएं व बच्चे जो वहां द्वीप पर बस्तियों में रहते थे उन्हें तथा उनकी व्यापार सामग्री, सोना-चांदी तथा कुछ उपहारों को 8 जहाजों में भरकर सिंघल(श्रीलंका) के राजा ने खलीफा तथा ईरान के प्रान्तपाल अल्ल हज्जाज बिन यूसुफ को भेजे । लेकिन देवल के पास फिर समुद्री लुटेरों ने इन जहाजों को लूट लिया । उस समय सिंध का राजा दाहिर था । जब अल्ल हज्जाज ने दाहिर से समुद्री लुटेरों को पकड़ने तथा इस लूटपाट का हर्जाना देने का आग्रह किया तो दाहिर ने ऐसा करने में अपनी असमर्थता जताई । इस बात से अल्ल हज्जाज क्रोधित था अतः उसने अपने भतीजे व दामाद मोहम्मद बिन कासिम को सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा ।

मोहम्मद बिन कासिम (Muhammad Bin Qasim) का परिचय

मोहम्मद बिन कासिम का जन्म 31 दिसम्बर 695 ई . में सऊदी अरब के ताइफ़ नामक शहर में हुआ था । उसके पिता का नाम कासिम बिन यूसुफ था । बचपन में ही उसके पिता को मृत्यु हो गई थी । उसके पिता की मृत्यु के बाद उसके ताऊ अल्ल हज्जाज बिन यूसुफ ने उसका पालन पोषण किया । अल्ल हज्जाज उम्मयद खलीफा वंश से मान्यता किसी प्रशासनिक पद पर था तथा उस समय ईराक का प्रान्तपाल पद था । उस समय खलीफा के पद पर उम्मयद वंश का अल वालिद इब्न अब्द अल-मलिक  था । अल्ल हज्जाज ने ही मोहम्मद बिन कासिम को प्रशासन व युद्ध कलाओं से अवगत कराया । अल्ल हज्जाज ने अपनी बेटी जुबैदाह का विवाह भी मोहम्मद बिन कासिम से कराया । इस प्रकार मोहम्मद बिन कासिम अल्ल हज्जाज का भतीजा व दामाद था । जब अल्ल हज्जाज ने मोहम्मद बिन कासिम को सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजा तब उम्र मात्र 16 वर्ष थी ।

दाहिर सेन (Dahir Sen) का परिचय

राजा दाहिर सेन का जन्म 663 ई. में सिंध प्रदेश के अरोर में एक  पुष्करणा ब्राह्मण राजघराने में हुआ । उनके पिता का नाम चच तथा माता का नाम सोहन्दी (राजा राय साहसी की विधवा) था । राजा दाहिर की पत्नी का नाम रानीबाई तथा बहिन का नाम पद्मा था । रानी लाडी के एक पुत्र (जयशाह) तथा दो पुत्रियां (क्रमशः सूर्या कुमारी व परमाल देवी) था । राजा दाहिर के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि उसने ज्योतिषों की सलाह पर अपनी ही बहिन से शादी कर ली थी ।

दाहिर ने 679 ई. में सिन्ध की गद्दी संभाली। वह एक कट्टर हिन्दू शासक था । वह अन्य धर्मों के प्रति भी सहिष्णु था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि राजा दाहिर राज्य के अन्य धर्मों व जातियों का विरोधी था । लेकिन यह सच नहीं है दोस्तों । साक्ष्यों के अभाव में राजा दाहिर के बारे में दुषप्रचार किया गया है । दरअसल बात कुछ यूं थी, चच से पहले सिंध पर राय वंश के राजा राय साहसी का शासन था जिनकी एक बीमारी की वजह से मृत्यु हो गई थी । राजा राय साहसी का कोई उत्तराधिकारी नहीं था इसलिए अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने चच को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया जो उस समय सिंध के प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त थे । चच ने राजा बनते ही गुर्जर, जाट तथा लोहाणा समाज के लोगों को जो शासन के महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त थे को निलम्बित कर दिया था जिससे ये लोग नाराज हो गए थे ।

चच की मृत्यु के पश्चात चच का भाई चंद्र सेन सिंध की गद्दी पर बैठ गया । उसने कुल 7 वर्षों तक शासन किया । वह बौद्ध धर्म से बड़ा प्रभावित था इसीलिए उसने बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया । बौद्ध धर्म को राजधर्म घोषित करने पर ब्राह्मण समाज के लोग चंद्र सेन से नाराज हो गए थे । 679 ई. में जब दाहिर सेन राजा बने तो उन्होंने उन्होंने सनातन धर्म को पुनः राजधर्म घोषित कर ब्राह्मण समाज की नाराजगी दूर की लेकिन इस बात को लेकर कुछ कट्टर बौद्ध नाराज हो गए ओर राजा दाहिर सेन के विरोधी हो गये थे । यही कारण था कि गुर्जर, जाट,लोहाणा तथा बौद्ध मत के लोग दाहिर सेन से नाराज थे । मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के समय दाहिर सेन की बेटियों के आग्रह पर इनमें से कुछ लोग पुनः शासन की सेवा में आ गए थे लेकिन जो लोग अभी भी नाराज थे उन्होंने अरबी आक्रमणकारियों का साथ दिया । स्वंय ब्राह्मण जाति का होने के नाते उसने ब्राह्मणों को कुछ विशेषाधिकार अवश्य दिए थे । मगर इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि उसने अन्य धर्म व जाती के अधिकारों का हनन किया था । राजा दाहिर ने बौद्ध धर्म के अनुयायियों को भी वहां बौद्ध विहार व मठ बनाने से नहीं रोका जो उसकी धार्मिक उदारता का परिचायक है ।

मोहम्मद बिन कासिम का सिंध पर आक्रमण

710 ई. में मोहम्मद बिन कासिम ईरान के प्रान्तपाल अल्ल हज्जाज के आदेश पर 15000 पैदल सैना तथा कुछ अश्वसेना व ऊंट सैना के साथ ईरान के शिराज शहर से रवाना हुआ । 711 ई. दिसम्बर माह के आसपास अपने सैनिकों के साथ मकरान होता हुआ वह सिंध की सीमा पर पहुंचा । उस समय सिंध का शासक दाहिर सेन था । मोहम्मद बिन कासिम ने अपना पहला अभियान सिंध के देवल (दैबुल अथवा देबल) से शुरू किया । मोहम्मद बिन कासिम ने देवल पर दो तरफ से, जल मार्ग तथा स्थल मार्ग से आक्रमण किया । राजकुमार जयशाह के नेतृत्व में सिंध सेना ने अरब सेना का डटकर मुकाबला किया । लेकिन कुछ विश्वासघाती सैनिकों की सहायता से मोहम्मद बिन कासिम ने देवल किले पर अधिकार कर लिया तथा जयशाह को पराजित होकर अपनी जान बचाकर वहां से भागना पड़ा ।

जब देवल पर अरब सेना के कब्जे की खबर राजा दाहिल के पास पहुंची तो वह अपनी सेना के साथ राजधानी ब्राह्मणाबाद से सिंध नदी के पूर्वी तट पर स्थित रावर नामक स्थान पर पहुंचा । उधर मोहम्मद बिन कासिम देवल पर सफलता के पश्चात आगे बढ़ा और सेहवन पर अधिकार कर लिया । धीरे-धीरे मोहम्मद बिन कासिम ने पश्चिमी सिंध के सभी छोटे-छोटे सूबों को जीत लिया । पश्चिमी सिंध के इन अभियानों में वहां के कुछ गद्दार किस्म के लोगों ने मोहम्मद बिन कासिम का साथ दिया जिनमें कुछ जाटों के तथा कुछ बौद्ध मत के लोग थे जो दाहिर को अपना दुश्मन मानते थे । ये लोग दाहिर के शासन से नाखुश थे । इनका आरोप था कि दाहिर ने उनकी अवहेलना करते हुए शासन के सभी महत्वपूर्ण पदों पर ब्राह्मणों को नियुक्त किया है तथा उनके समाज पर अत्याचार किया है । इन गद्दारों के अरबी सेना में मिलने से अरबी सेना की स्थिति ओर अधिक मजबूत हो गई । पश्चिमी सिंध पर अपनी सफलता के पश्चात सिंध नदी पार कर मोहम्मद बिन कासिम रावर पहुंचा ।

20 जून, 712 ई. में रावर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर युद्ध हुआ । राजा दाहिर व सिंध सेना वीरतापूर्वक अरब सेना का मुकाबला करती रही । लेकिन तभी अचानक राजा दाहिर के हाथी की आँख में तीर लगने से हाथी अनियंत्रित हो जाता है और राजा दाहिर नीचे गिर पड़ता है । नीचे खड़ी अरब सेना ने भाले व तलवार से राजा दाहिर सेन के शरीर को छलनी कर दिया । अपने राजा की मौत के बाद सिंध सेना का मनोबल टूट गया और युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ी हुई । इस प्रकार मोहम्मद बिन कासिम ने सफलतापूर्वक रावर पर अधिकार कर लिया ।

रावर से आगे बढ़ता हुआ मोहम्मद बिन कासिम राजधानी ब्राह्मणबाद पहुंचा जहां महल की ओरतों ने अरब सेना से लड़ने का बीड़ा उठाया । दाहिर की रानी, बहिन तथा बेटियों के नेतृत्व में महल की औरतों ने अरब सेना का जमकर मुकाबला किया लेकिन जब अरब सेना उन पर भारी पड़ने लगी तो उन्होंने अपने सतीत्व की रक्षार्थ सामुहिक रूप से जोहर कर लिया । लेकिन इस बीच मोहम्मद बिन कासिम ने दाहिर की दोनों बेटियों तथा महल की कुछ औरतों को बंदी बनाकर उपहारस्वरूप खलीफा के पास दमिश्क भेज दिया ।

ब्राह्मणबाद किले पर अधिकार करने के पश्चात मोहम्मद बिन कासिम अरोर (अलवर भी कहा जाता था) पहुंचा जहां दाहिर के परिवार के कुछ लोग रहते थे । यहां के लोग अरब सेना का मुकाबला करने में असमर्थ रहे अतः उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया । इस प्रकार मोहम्मद बिन कासिम की पूरे सिंध पर विजय प्राप्त की । सिंध पर विजय प्राप्त करने के बाद 713 ई. में उसने मुल्तान पर भी अधिकार कर लिया । मोहम्मद बिन कासिम को मुल्तान की विजय से इतना अधिक सोना प्राप्त हुआ कि उन्होंने मुल्तान का नाम ही सोने का नगर रख दिया ।

मोहम्मद बिन कासिम की मौत

मोहम्मद बिन कासिम की मौत 18 जुलाई 715 को हुई । उसकी मौत कैसे हुई इस पर विवाद है । उसकी मौत के पीछे कई कहानियां हैं -

दरअसल 23 फरवरी 715 को खलीफा 'अल वालिद इब्न अब्द अल-मलिक' की मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई 'सुलेमान-इब्न अब्द अल मलिक' उम्मयद वंश के 7वें खलीफा बने । खलीफा सुलेमान तथा ईरान के प्रधानमंत्री अल्ल हज्जाज के बीच किसी बात को लेकर दुश्मनी थी । हालांकि 1 जून 714 ई.में अल्ल हज्जाज की मृत्यु हो गयी थी लेकिन सुलेमान का गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ था । वह अल्ल हज्जाज के दामाद मोहम्मद बिन कासिम को भी मार डालना चाहता था । मोहम्मद बिन कासिम के सिंध पर सफल अभियान को देखते हुए सुलेमान को यह भी आशंका थी कि कहीं वह सिंध का स्वतंत्र शासक ना बन जाये । यही कारण था कि उसने सिंध में अपने मंत्रियों को सिंध की बागडोर संभालने तथा मोहम्मद बिन कासिम को बंदी बनाकर लाने का आदेश दिया । मोहम्मद बिन कासिम को मोसुल की जेल में डाल दिया गया । जेल में मोहम्मद बिन कासिम को कड़ी यातनाएं दी गईं । अन्ततः असहनीय पीड़ा के कारण 18 जुलाई 715 ई. में उसकी मृत्यु हो गई ।

दूसरी कहानी जिसका जिक्र 'अरबी ग्रंथ चचनामा' में है के अनुसार मोहम्मद बिन कासिम ने दाहिर सेन की जिन दो बेटियों (सूर्या कुमारी व परमाल देवी) को बंदी बनाया उन्हें उसने खलीफा 'सुलेमान-इब्न अब्द अल मलिक' के पास उपहारस्वरूप भेज दिया । दाहिर सेन की बेटियों ने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए खलीफा से यह झूठ कह दिया कि मोहम्मद बिन कासिम ने उनके सतीत्व को भंग किया है । इससे खलीफा क्रोधित हो गया और उसने सैनिकों को आदेश दिया कि वो मोहम्मद बिन कासिम को बैल की खाल में सीलकर दमिश्क लेकर आएं । लेकिन दम घुटने की वजह से रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई । जब खलीफा को सच्चाई का पता चला तो उसने दाहिर की दोनों बेटियों को दीवार में चिनवा दिया (ऐसा भी कहा जाता है कि दोनों बहनों ने एक-दूसरे के पेट में जहरीले खंजर घोंपकर आत्मबलिदान दे दिया था) ।

चचनामा सिंध पर अरब आक्रमण का सर्वाधिक प्रमाणिक स्त्रोत है । यह मोहम्मद बिन कासिम के किसी अज्ञात सैनिक/सेवक ने अरबी में लिखी थी । बाद में इस पुस्तक का फारसी में अनुवाद किया गया ।

अन्य अरब आक्रमण

राजा दाहिर के पुत्र जयशाह ने सिंध के सामन्तों से मिलकर अरब सेना को सिंध से उखाड़ फेंकने का निर्णय लिया । उसने अरब सेना को पराजित कर ब्राह्मणाबाद तथा अरोर पर पुनः अधिकार कर लिया । उस समय उमर इब्न अब्द अल-अजीज खलीफा थे । उमर ने सेनापति हबीब के नेतृत्व में अपनी एक सेना सिन्ध भेजी । हबीब ने जयशाह को पराजित कर अरोर तथा छोटे-छोटे प्रांतों पर अधिकार कर लिया । तभी खलीफा उमर ने जयशाह के सामने यह शर्त रखी कि यदि वह इस्लाम स्वीकार कर लेता है तो वह स्वतन्त्र रूप से ब्राह्मणाबाद पर शासन कर सकता है । जयशाह तथा सिन्ध के अन्य सामंतों ने झगडे से बचने के लिए इस्लाम स्वीकार कर लिया । लेकिन कुछ वर्षों बाद जब जयशाह को अपनी इस गलती से आत्मग्लानि हुई तो उसने इस्लाम त्याग दिया । इस बात से खलीफा भड़क उठा । उस समय हिशाम इब्न अब्द अल-मालिक खलीफा था । खलीफा ने जुनैद के साथ अपनी सेना सिन्ध भेजी ।जयशाह जुनैद के साथ युद्ध में पराजित होकर बंदी बना लिया जाता है तथा बाद में उसकी हत्या कर दी जाती है । 

सिंध में अपनी सफलता के बाद अरब आक्रमणकारी अब मेवाड़, मालवा तथा अन्य प्रांतों पर भी अधिकार करना चाहते थे । 730 ईसवी के आसपास सिंध का प्रान्तपाल जुनैद अपने सेनापतियों के साथ मेवाड़, गुजरात, सौराष्ट्र तथा मालवा की तरफ बढ़ा । लेकिन जल्द ही गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट, चित्तौड़ के शासक बप्पारावल तथा चालुक्य शासक ने उन्हें वहां से खदेड़ दिया । नागभट्ट तथा बप्पारावल की सेनाओं ने राजस्थान-सिंध सीमा पर एक बड़े युद्ध में जुनैद की सेना को पराजित किया । जुनैद युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया । जुनैद की मौत के बाद अरब सेना सिंध से भाग खड़ी हुई । इस प्रकार सिन्ध के मात्र कुछ क्षेत्रों के छोड़कर सम्पूर्ण सिन्ध को अरबों से मुक्त करा लिया गया था । लगभग 871 ईसवी तक सम्पूर्ण सिन्ध अरबों के नियंत्रण से मुक्त हो गया था।

भारत पर अरब आक्रमण के प्रभाव

अरब आक्रमण के भारत पर अल्पकालिक राजनैतिक प्रभाव रहे जबकि संस्कृतिक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण घटना थी ।

  • अरब भारत पर पहले मुस्लिम आक्रमणकारी थे । इस्लाम का भारत (मालाबार तट,केरल) में पहली बार आगमन हुआ ।
  • अरबों ने हमारे प्रचीन तक्षशिला विश्वविद्यालय को अंतिम रूप से नष्ट कर दिया । कई बौद्ध स्तूपों को भी नष्ट किया गया ।
  • भारत में सिंध से पहली बार जजिया कर वसूला गया ।
  • अरबों को चिकित्सा, दर्शन शास्त्र, नक्षत्र विज्ञान, गणित व शून्य पद्धति, चित्रकला तथा शासन प्रबंध की शिक्षा भारत से प्राप्त हुई । 
  • अरबों ने पंचतंत्र का कलिला व दिम्ना नाम से अरबी भाषा में अनुवाद किया । 
  • ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त (ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित) एव संस्कृत रचना खण्डनखण्डखाद्यक का अरबी अनुवाद किया । 
  • अरबों ने भारत आने के बाद जाना कि उनके एकेश्वरवाद के सिद्धांत से भारतीय पहले से ही परिचित हैं । भारतीय हर दृष्टि से उनसे आगे थे ।

  • अरबों में सिंधु नदी के तट पर महफूजा नामक नगर बसाया ।

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1 comments:

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Unknown
admin
26 जनवरी 2024 को 1:00 am बजे ×

अरब तथा तुर्कों के आर्कमण के समय भारत की राजनीतिक दशा पर आलेख लिखिए

Congrats bro Unknown you got PERTAMAX...! hehehehe...
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