राजिया सुल्तान के उत्तराधिकारी ~ गुलाम वंश ~ Ancient India

राजिया सुल्तान के उत्तराधिकारी ~ गुलाम वंश

तुर्क अमीरों ने राजिया सुल्तान को अपदस्थ कर मुइनुद्दीन बहरामशाह को दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा दिया । राजिया सुल्तान व बहरामशाह के मध्य संघर्ष में वह पराजित होती है तथा अक्टूबर,1240 ई. में कैथल के निकट डाकुओं द्वारा उसकी हत्या कर दी जाती है ।

राजिया सुल्तान के उत्तराधिकारी

मुइनुद्दीन बहरामशाह

बहरामशाह इल्तुतमिश का पुत्र तथा राजिया का सौतेला भाई था । बहरामशाह का शासनकाल मात्र दो वर्षों (1240 ई.-1242 ई.) का था । अपने शासनकाल में उसने तुर्क अमीरों के परामर्श पर नायब-ए-मुमलकत का पद सृजित किया । इख़्तियारूद्दीन एलतगिन प्रथम नायब था । एलतगिन बहरामशाह का बहनोई भी था । उसने बहरामशाह की विधवा बहिन से शादी की थी । नायब का पद सुल्तान बहरामशाह की प्रशासनिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाता था क्योंकि दिल्ली की सत्ता के अब तीन केंद्र हो चुके थे प्रथम सुल्तान,दूसरा नायब तथा तीसरा वजीर । नायब बनने के पश्चात एलतगिन भी स्वंय को सुल्तान के समान समझने लगा था तथा सुल्तान के अधिकारों में हस्तक्षेप करने लगा था । एलतगिन के मनमानेपन से क्रोधित होकर बहरामशाह ने उसकी हत्या करवा दी थी । एलतगिन की मृत्यु के पश्चात नायब के सभी अधिकार अमीर-ए-हाजिब संकर रूमी खाँ के पास आ गए । कुछ समय पश्चात संकर रूमी खाँ व तुर्क सरदार सैयद ताजुद्दीन की भी सुल्तान की हत्या का षड्यंत्र रचने के कारण हत्या कर दी गई । इन सभी हत्याओं के कारण तुर्क अमीरों व सरदारों(चालीसा) में सुल्तान बहरामशाह के प्रति असंतोष व्याप्त था । 1241 ई. तातार के नेतृत्व में मंगोलों ने पंजाब पर आक्रमण किया । मुल्तान के करीब खाँ अयाज को वह पराजित नहीं कर पाये । इसके पश्चात मंगोलों ने लाहौर पर आक्रमण किया । यहां मलिक कारकश को पराजित कर उन्होंने अत्यधिक लूटपाट व हत्याकांड किया । वजीर निजामुलमुल्क के नेतृत्व में मंगोलों के विरुद्ध भेजी गई सेना को बहरामशाह के विरुद्ध भड़का दिया गया । बहरामशाह को बंदी बनाकर 15 मई, 1242 ई. में उसकी हत्या कर दी गई तथा उसके भाई के पुत्र अलाउदीन मसूदशाह को सुल्तान बना दिया गया । बहरामशाह ने बलबन को हांसी व रेवाड़ी की जागीर प्रदान की थी । बलबन राजिया के समय से ही शिकारगाह के पद पर था ।

अलाउदीन मसूदशाह

अलाउदीन मसूद शाह का शासनकाल चार वर्ष (1242 ई.- 1246 ई.) तक था । वह बहरामशाह के भाई रुकनुद्दीन फिरोज शाह का पुत्र तथा इल्तुतमिश का पौत्र था । वह नाम मात्र का शासक था जबकि शासन की प्रमुख शक्तियां तुर्क सरदारों (चालिसा) के पास थी । चालिसा ने बलबन को अमीर-ए-हाजिब के पद पर नियुक्त किया । 1245 ई. में मंगोलों ने पुनः भारत पर आक्रमण किया । बलबन ने मंगोल नेता मंगु के विरुद्ध सेना का संचालन किया तथा मंगोलों को खदेड़कर लाहौर, मुल्तान व उच्छ को अपने अधिकार में ले लिया । बलबन चालीसा का विश्वासपात्र बन गया था । धीरे-धीरे उसने अमीर-ए-हाजिब के पद पर रहते हुए शासन का वास्तविक अधिकार अपने हाथों में ले लिया । अंततः बलबन ने नासिरुद्दीन महमूद व उसकी माँ के साथ मिलकर मसूदशाह के विरुद्ध षड्यंत्र रचा तथा उसे सिंहासन से हटाकर नासिरुद्दीन महमूद को बैठा दिया ।

नासिरुद्दीन महमूद

बलबन के सहयोग से 10 जून,1246 ई. में नासिरुद्दीन महमूद दिल्ली सल्तनत का शासक बना । बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नासिरुद्दीन महमूद से कराया था । नासिरुद्दीन महमूद के गद्दी पर बैठने के बाद तुर्क अमीरों (चालिसा) व सुल्तान के मध्य वर्षों से चला आ रहा संघर्ष पूर्णतय समाप्त हो गया ।

नासिरुद्दीन महमूद एक धर्म परायण व्यक्ति था । वह इल्तुतमिश का पौत्र था । वह अपने सभी प्रशासनिक कार्यों में चालीसा की सलाह लेता था तथा उनकी सहमति के बिना कोई कार्य नहीं करता था । वह सुल्तान के पद की महत्वकांक्षाओं से रहित सादा जीवन जीता था यही कारण था कि उसके समय में सुल्तान व अमीरों के मध्य संघर्ष की समाप्ति हुई । वह हस्तलिपि का बड़ा शौकीन था तथा अपने खाली समय में कुरान की नकल उतरता था ।

अगस्त 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद से करा दिया । 7 अक्टूबर,1249 ई. को नासिरुद्दीन महमूद ने बलबन को 'उलूग खाँ ' की उपाधि प्रदान की । इसी वर्ष उसने बलबन को नायब के पद पर नियुक्त किया । इससे पहले वह अमीर-ए-हाजिब के पद पर नियुक्त था । हालांकि एक साजिश के तहत उसे हटाकर इमादुद्दीन रेहान ने नायब का पद प्राप्त कर लिया था जो 1253 ई. तक इस पद पर बना रहा । बलबन की सुल्तान से निकटता व उसके बढ़ते प्रभाव से इमादुद्दीन रेहान बहुत परेशान थे । वह भारतीय मुसलमानों का नेता व दिल्ली सल्तनत के नायब के पद पर था । रेहान ने भारतीय मुसलमानों व कुछ तुर्क नेताओं के साथ मिलकर बलबन के विरोध में एक दल बनाया । हालांकि कुछ समय पश्चात इस दल में फुट पड़ गई । ये रेहान को छोड़कर पुनः बलबन के साथ जा मिले । दोनों पक्षों के मध्य संघर्ष हुआ अन्ततः एक समझौते के अनुसार नासिरुद्दीन महमूद ने रेहान को नायब के पद से हटाकर बलबन को पुनः यह पद दे दिया । कुछ समय पश्चात इमादुद्दीन रेहान की हत्या कर दी गई ।

मिन्हाजुद्दीन सिराज ने नासिरुद्दीन महमूद को दिल्ली का आदर्श सुल्तान माना है । मिन्हाजुद्दीन सिराज नासिरुद्दीन महमूद का काजी व उस पर आधारित पुस्तक 'तबकात-ए-नासिरी' का लेखक था । सिराज के अनुसार नासिरुद्दीन को उसकी साधारण आदतों के कारण दरवेश राजा के नाम से जाना जाता था । 1265 ई. में सुल्तान नासिरुद्दीन की मृत्यु हो गई इसके पश्चात बलबन गुलाम वंश का उत्तराधिकारी व दिल्ली सल्तनत का शासक बना ।


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