अंग्रेजों ने मार्च, 1757 ई. में फ्रांसीसी बस्ती चन्द्रनगर जीत लिया। 23 जून, 1757 ई. को बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के दक्षिण में 22 मील की दूरी पर प्लासी गाँव में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी व बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ । ब्रिटिश सेना का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव ने किया । इस युद्ध को प्लासी का युद्ध कहा जाता है । प्लासी बंगाल में नदिया जिले में गंगा (भागीरथी) नदी के किनारे है।
बंगाल का नवाब सिराजुद्दौला विश्वासघात का शिकार हुआ । मीर जाफर, यार लतीफ खाँ व राय दुर्लभ ने नवाब की सेना में विश्वासघात किया। ये बिना लड़े ही मैदान छोड़कर चले गए।
इस युद्ध में नवाब के वफादार मीर मदान व मोहन लाल लड़ते हुए मारे गये । सेनापति मीर जाफर ने सिराजुद्दौला को महल जाने की सलाह दी जहाँ मीर जाफर के बेटे मीरन ने उसकी हत्या कर दी ।
28 जून, 1757 ई. को मीर जाफर बंगाल का नवाब बना। पन्निकर के शब्दों में 'प्लासी एक सौदा था जिसमें बंगाल के धनी लोगों और मीर जाफर ने नवाब को अंग्रेजों को बेच दिया।'
मीर जाफर (मीर बख्शी), अमीचन्द (धनी व्यापारी), जगत सेठ (बंगाल का बैंकर), मानिक चन्द (कालकत्ता का अधिकारी), खादिम खान (नवाब की सेना का कमाण्डर) आदि नवाब सिराजुद्दौला के खिलाफ षड्यन्त्र रचने वाले प्रमुख षड्यन्त्रकारी थे।
प्लासी के युद्ध से अंग्रेजों को भारत का सबसे समृद्ध प्रान्त हाथ लगा व बंगाल की लूट से अंग्रेजों ने भारत में अपने साम्राज्य की जड़ें जमाई।
प्लासी के बाद बंगाल का नवाब कंपनी के हाथों में कठपुतली बन गया।
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