दोस्तों भोपाल गैस त्रासदी या भोपाल गैस कांड के बारे में तो आप सभी जानते होंगे । यह भारत के इतिहास की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी थी ।
भोपाल गैस दुर्घटना
अदरसल अमेरिका की एक कम्पनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1979 में भोपाल में अपना एक प्लांट लगाया था जो यहां पेस्टिसाइड उत्पादन का काम करती थी । 2 दिसम्बर,1984 की मध्यरात्रि को प्लांट के एक टैंक E610 में से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था । टैंक में गैस की मात्रा लगभग 42 टन थी । धीरे-धीरे यह गैस चिमनी के जरिये भोपाल के वातावरण में फैलने लगी । कुछ ही घंटों में इस गैस ने 8 किलोमीटर के दायरे को पूरी तरह प्रदूषित कर दिया । लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगी,आंखें जलने लगीं । लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे। पूरे भोपाल में अफरा तफरी मच गयी । सुबह होते-होते भोपाल में लाशों के ढेर लग गए ।
भोपाल गैस दुर्घटना के प्रभाव
ऐसा माना जाता है कि इस गैस त्रासदी में 15000 लोगों की जानें गयी थीं , लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना में 3787 लोग मारे गए थे । इस त्रासदी में लाखों लोग घायल हो गए, इन घायलों में बहुत से लोग सांस की बीमारी, विकलांगता व अंधेपन का शिकार हो गए । इस गैस त्रासदी के दीर्घकालीन प्रभाव रहे । इस दुर्घटना में मारे गए लोगों का सामुहिक रूप से संस्कार किया गया व दफनाया गया । इस गैस के दुष्प्रभाव अभी तक समाप्त नहीं हुए हैं । आज भी भोपाल के अन्य इलाकों के मुकाबले इस क्षेत्र के लोगों में सांस की बीमारी,किडनी,गले,फेफड़े, टीबी व केंसर आदि बीमारियों का प्रभाव 10 गुणा अधिक पाई जाता है । यहां पैदा होने वाले बच्चों में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं देखने को मिलती हैं। प्रदूषण बोर्ड व सरकारी - गैर सरकारी एजेंसियों के अनुसार कारखाने के आस-पास की जमीनों में रसायन मिल चुका है जिसकी वजह से यहाँ का भू-जल दूषित हो गया है । 2006 में सरकार द्वारा कोर्ट में प्रस्तुत एक हलफनामे के अनुसार इस गैस दुर्घटना से 558125 लोग प्रभावित हुए हैं । इनमें से 38478 लोग अस्थाई तौर पर आंशिक रूप से तथा लगभग 3900 लोग स्थाई रूप से पूरी तरह से विकलांग हो गए थे । इस गैस दुर्घटना में ना केवल इंसान हताहत हुए बल्कि हजारों पशु-पक्षी व पेड़-पौधे भी नष्ट हुए ।
भोपाल गैस दुर्घटना का कारण
सन 1969 में अमेरीकी कम्पनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (UCC) ने भारत में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) नाम से एक कीटनाशक बनाने का कारखाना खोला । लगभग 10 वर्षों बाद 1979 में इस कंपनी ने भोपाल में एक प्रोडक्शन प्लांट लगाया । इस प्लांट में लगी मशीनों का रख-रखाव व मैनेजमेंट अच्छा नहीं था । 1984 की घटना से पहले भी कई बार इस प्लांट में फॉसजिन, क्लोरीन, कार्बन ट्रेटाक्लोराइड, मोनोमेथलमीन व MIC आदि गैसों के रिसाव की घटनाएं सामने आयी थीं जिसमें कई बार वर्कर्स घायल हुए जबकि एक वर्कर की मौत भी हो गई थी । इस प्लांट में लगे टैंक E610 की भरण क्षमता 40 टन थी जबकि घटना के वक्त इसमें क्षमता से 2 टन अधिक गैस रखी हुई थी । इन टैंक में लगे लोहे की पाइपों में जंग लग चुका था । घटना की रात एक पाइप में पानी घुस गया। पाइप के जरिये पानी व लोहे के कण टैंक में जाने से हुई रासायनिक प्रक्रिया के कारण टैंक के अंदर दबाब बढ़ने लगा । टैंक का तापमान बहुत ज्यादा बढ़ गया था । इस टैंक पर एमरजेंसी प्रेशर पड़ा और एक घंटे में सारी गैस निकलकर भोपाल की हवाओं में फैल गई ।
UCIL के अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन को 7 दिसम्बर, 1984 को गिरफ्तार कर लिया गया । हालांकि 6 घंटों बाद ही उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया। जमानत मिलने के बाद वह अपने देश अमेरिका भाग गया । उसे वापिस भारत लाने का प्रयास किया गया लेकिन भारत को इसमें सफलता नहीं मिली । 29 सितम्बर, 2014 को वॉरेन एंडरसन की मौत हो गई ।
इस घटना पर आधारित फिल्म 'भोपाल:ऐ प्रेयर फॉर रेन' (Bhopal: A Prayer for Rain) 2014 में रिलीज़ हुई। यह फिल्म अमेरिका में 7 नवम्बर, 2014 में तथा भारत में 5 दिसम्बर,2014 को रिलीज हुई ।
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