दिल्ली सल्तनत के प्रारंभिक काल ( 1206 ई-1290 ई.) को इतिहासकारों ने गुलाम वंश का नाम दिया है । हालांकि इस काल के शासक इल्बारी वंश व मामूलक वंश से सम्बंध रखते थे । इस काल में क्रमवार गुलामों के हाथों में सत्ता आई यानी जो उत्तराधिकारी बनते थे वो पूर्व शासकों के गुलाम थे । जैसे- कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गोरी का गुलाम था जो बाद में दिल्ली का शासक बना । इसके पश्चात इल्तुतमिश शासक बना वह भी कुतुबुद्दीन ऐबक का खरीदा हुआ गुलाम था । इनके बाद के शासक इन्हीं के परिवार से सम्बंध रखते थे । भारत में पहली बार मुसलमानों का शासन शुरू हुआ । इस काल को ( 1206 ई.- 1526 ई. ) दिल्ली सल्तनत के नाम से जाना जाता है । इसके पश्चात मुगलों का शासन शुरू हुआ जो 1857 की क्रांति तक जारी रहा । हालांकि तब तक अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार कर लिया था । इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद भारत गुलामी की बेड़ियों में फस गया था । भारत को पूर्ण स्वतंत्रता सन्न 1947 में मिली ।
कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था । 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनारोहन के साथ ही गुलाम वंश की नींव रखी गई । एक शासक के रूप में उसने मात्र 4 वर्ष ( 1206 ई.- 1210 ई.) तक शासन किया । इससे पहले वह मुहम्मद गोरी का गुलाम व सेनापति था । 1192 ई. में पृथ्वीराज चौहान को पराजित करने के बाद मुहम्मद गोरी ने उसे दिल्ली का संरक्षक नियुक्त किया था । 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की मृत्यु तक उसने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया । एक सेनापति के रूप में मुहम्मद गोरी के भारत अभियानों में उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली के महरौली में कुतुब मीनार का निर्माण करवाया । इसका निर्माण कार्य 1199 ई. में प्रारंभ किया गया जिसे बाद में इल्तुतमिश व उसके उत्तराधिकारियों ने पूर्ण करवाया । इसके अलावा उसके द्वारा अजमेर में अढाई दिन का झोंपड़ा बनवाया गया ।
कुतुबुद्दीन ऐबक का प्रारम्भिक जीवन
कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म 1150 ई. में तुर्किस्तान में हुआ । उसके बचपन का नाम ऐबक था । तुर्की भाषा में इस शब्द का तातपर्य होता है 'चंद्रमा का देवता' । बचपन में ही ऐबक अपने माता-पिता से बिछड़ गया था । कुतुबुद्दीन ऐबक तुर्क जाती का था । उन दिनों तुर्क गुलामों की खरीद फरोख्त का कार्य एक व्यवसाय के रूप में था । एक व्यापारी निशापुर (पेरिस) के बाजार में कुतुबुद्दीन ऐबक को बेंचने के लिए लाया जहां काजी फखरुद्दीन अजीज कूफी ने उसे खरीद लिया । काजी साहब ने उसकी परवरिश की तथा उसे धनुर्विद्या व घुड़सवारी सिखाई । कुतुबुद्दीन ऐबक एक प्रतिभाशाली बालक था । उसने धीरे-धीरे सभी कलाओं में कुशलता हासिल कर ली । वह बहुत ही मधुर स्वर में कुरान का पाठ पड़ता था जिस कारण उसे कुरान खाँ नाम से भी जाना जाता था । काजी फखरुद्दीन अजीज कूफी की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने कुतुबुद्दीन ऐबक को पुनः एक व्यापारी के हाथों बेंच दिया । व्यापारी उसे गजनी ले आया जहां अंत में उसे मुहम्मद गोरी ने खरीद लिया ।
कुतुबुद्दीन ऐबक एक बुद्धिमान एंव स्वामिभक्त व्यक्ति था । जल्द ही वह मुहम्मद गोरी का विश्वासपात्र बन गया था । मुहम्मद गोरी ने उसे अपना सेनापति बनाया व प्रशासन से संबंधित सभी अनुभव दिये । कुतुबुद्दीन ऐबक ने मुहम्मद गोरी के साथ गजनी, मुल्तान, लाहौर, गुजरात, तराइन, कन्नौज व अन्य छोटे-बड़े युद्धों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । तराइन के दूसरे युद्ध में जीत हासिल करने के बाद मुहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का सूबेदार नियुक्त किया था । अपने भारत अभियानों में उसने अजमेर व मेरठ जैसे कई विद्रोहों का दमन किया । 1195 ई. में उसने पुनः गुजरात पर आक्रमण किया लेकिन उसे वहां से खदेड़ दिया गया । इससे पहले भी 1178 ई. में उसने मुहम्मद गोरी के साथ गुजरात पर आक्रमण किया था लेकिन तब भी वह असफल रहे थे । गुजरात में उस समय चंदेल वंश के शासक भीमदेव द्वितीय का शासन था । 1197 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने पुनः गुजरात पर आक्रमण किया तथा भीमदेव द्वितीय को पराजित कर राजधानी अन्हिलवाड़ा पर अधिकार कर लिया । इस युद्ध ने भयंकर तबाही मचाई । हजारों सैनिक मारे गए व बंदी बना लिए गए । राजधानी अन्हिलवाड़ा को जमकर लूटा गया । हालांकि मुसलमानों का अधिकार यहां कुछ वर्षों तक ही रहा । 1201 ई. में भीमदेव द्वितीय ने पुनः गुजरात पर अधिकार कर लिया । 1202 ई. में उसने बुंदेलखंड पर आक्रमण किया तथा यहां के शासक परमर्दिदेव को पराजित कर कालिंजर, महोबा व खजुराहो पर अधिकार कर लिया । बिहार व बंगाल में कुतुबुद्दीन ऐबक के निर्देशन में बख्तियार खिलजी को भेजा गया जिसने वहां के कई महत्वपूर्ण स्थलों को जीतकर पूर्वोत्तर में दिल्ली साम्राज्य (मुस्लिम साम्राज्य) की जड़ों को मजबूत किया ।
मार्च 1206 ई. में मुहम्मद गोरी की हत्या कर दी गई । 25 जून 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक के राज्यारोहण के साथ दिल्ली सल्तनत की शुरुआत हुई । इस प्रकार कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली का प्रथम मुस्लिम शासक बना । हालांकि अभी कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली का स्वतंत्र शासक नहीं बन पाया था । उसे सत्ता की औपचारिक मान्यता व मुक्ति-पत्र 1208 ई. में प्राप्त हुये । मुहम्मद गोरी ने अपनी मृत्यु से पहले अपने किसी उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की थी अतः यह मुमकिन था कि गजनी तथा मुहम्मद गोरी द्वारा विजित अन्य प्रदेशों पर अधिकार के लिए उत्तराधिकार संघर्ष हो ।
1206 ई. में अली मर्दान खिलजी नामक एक खिलजी सरदार ने बख्तियार खिलजी की हत्या कर स्वंय को बंगाल व बिहार का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया । वहां के दूसरे वर्ग के खिलजी सरदारों ( मलिक हुसमुद्दीन एवज खिलजी व मुहम्मद शीरान) ने अली मर्दान का विरोध किया तथा उसे बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया । अली मर्दान किसी तरह बंदीगृह से भाग गया व कुतुबुद्दीन ऐबक के पास लाहौर पहुँचा । लाहौर पहुंचकर उसने कुतुबुद्दीन ऐबक से बंगाल के मामले में हस्तक्षेप करने की याचना की । कुतुबुद्दीन ऐबक ने सेनानायक कैमाज रूमी की सहायता से इन खिलजी सरदारों का दमन कर बंगाल पर पुनः अधिकार कर लिया । अली मर्दान को लखनौती सहित सम्पूर्ण बंगाल पर शासन का अधिकार दे दिया गया ।
1206 ई. तक मुहम्मद गोरी व अन्य तुर्क दासों द्वारा अधिकृत भारतीय प्रदेशों में दिल्ली,अजमेर, सियालकोट, लाहौर, मुल्तान, तरब-हिन्द, तराइन, उच्छ, पुरशोर, नहरवाला, सरसुती, मेरठ, बदायूँ, ग्वालियर, बनासर, कन्नौज, हांसी, कालिंजर, अवध, बिहार व लखनौती आदि प्रदेश शामिल थे । इन भारतीय क्षेत्रों पर शासन के लिए तीन प्रबल दावेदार यलदौज, कुतुबुद्दीन ऐबक तथा नसुरुद्दीन कुबाचा थे लेकिन उससे भी पहले गजनी के लिए उत्तराधिकारी को चुनना था ।
गजनी के उत्तराधिकारी को लेकर गोर अमीरों व मुहम्मद गोरी के दासों में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई । गोर अमीरों ने बामियान शाखा अर्थात सुल्तान बहाउद्दीन साम के पुत्रों जलालुद्दीन अली व अलाउदीन मुहम्मद का समर्थन किया वहीं मुहम्मद गोरी के दासों ने गयासुद्दीन महमूद (गयासुद्दीन मुहम्मद का पुत्र व मुहम्मद गोरी का भतीजा) का समर्थन किया । सत्ता को लेकर यह संघर्ष चार माह तक चलता रहा अंत में गोरी अमीरों की पराजय हुई । बामियान शाखा के प्रतिनिधि मारे गये । बामियान शाखा का प्रभाव हमेशा के लिए समाप्त हो गया । अन्ततः गयासुद्दीन महमूद ने गोर, गर्जिस्तान, तालिकान आदि प्रान्तों पर अधिकार कर लिया । इसके पश्चात यलदौज, कुतुबुद्दीन ऐबक, कुबाचा व मुहम्मद गोरी के अन्य दासों ने गयासुद्दीन महमूद के दरबार में अपने दूत भेजकर मुक्तिपत्रों की याचना की तथा भारतीय क्षेत्रों में शासन करने की स्वीकृति मांगी । सुल्तान गयासुद्दीन महमूद ने यलदौज को गजनी का शासक बना दिया । बाद में सुल्तान ने कुतुबुद्दीन ऐबक को भी भारतीय प्रान्तों पर शासन करने का अधिकार दे दिया ।
यलदौज के गजनी पर अधिकार से कुतुबुद्दीन ऐबक की समस्याएं बढ़ गईं थीं क्योंकि इसके भारतीय प्रदेश पहले गजनी साम्राज्य का हिस्सा थे । गजनी में यलदौज की स्थिति सुदृढ़ होने से वह इन भारतीय प्रदेशों के लिए चुनौती बन सकता था । हालांकि कुचाबा जो कुतुबुद्दीन ऐबक का दामाद था ने उसकी प्रभुसत्ता स्वीकार कर ली थी । लेकिन उधर यलदौज के साथ-साथ खवारिज्म के सुल्तान जलालुद्दीन ख्वारिज्म शाह की भी दृष्टि गजनी व दिल्ली पर थी । भारत में अधिकृत इन क्षेत्रों पर अपना वैध अधिकार प्रकट करने व पंजाब को अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में लेने हेतु यलदौज ने अपनी सेना के साथ गजनी से प्रस्थान किया । 1208 ई. में दोनों के मध्य संघर्ष हुआ जिसमें यलदौज को पराजित होकर कोहिस्तान भागना पड़ा । कुतुबुद्दीन ऐबक ने गजनी पर अधिकार कर लिया लेकिन उसे वहां की जनता के विरोध के कारण लाहौर वापिस लौटना पड़ा । यलदौज ने पुनः गजनी पर अधिकार कर लिया जो कुतुबुद्दीन ऐबक के लिए फिर से समस्याएं खड़ी कर सकता था । इसी लिहाजे से कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपनी राजधानी को दिल्ली से लाहौर स्थानांतरित कर लिया ।
कुतुबुद्दीन ऐबक का मूल्यांकन व उसकी मृत्यु
कुतुबुद्दीन ऐबक एक महान सेनानायक था । उसने मुहम्मद गोरी के समय अनेकों विजय प्राप्त कीं तथा तुर्क सल्तनत का विस्तार किया । 1206 ई. के बाद उसने नवीनतम क्षेत्रों की विजय की नीति त्यागकर सल्तनत की सुरक्षा व संगठन पर ध्यान दिया । वह एक उदार व दानी प्रवृत्ति का व्यक्ति था । उसकी दानशीलता के कारण उसे लाखबख्श कहा जाता था । वह विद्वानों का आश्रयदाता था । फख-ऐ-मुदबिर व हसन निजामी जैसे विद्वान उसके दरबार में आश्रय प्राप्त थे । वह कला का भी संरक्षक था । दिल्ली में उसने कुतुबुद्दीन मीनार के निकट कुवात-अल-इस्लाम व अजमेर में अढाई दिन का झोंपड़ा नामक मस्जिदों का निर्माण कराया । हालांकि यह कहना उचित नहीं होगा कि वह हिंदुओं के प्रति भी उदार था । अन्हिलवाड़ा व कालिंजर के युद्ध में उसने अनेकों हिंदुओं को दास बनाया था तथा मंदिरों के स्थान पर मस्जिदों का निर्माण करवाया था । 1210 ई. में लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिरने से कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु हो गई ।
आरामशाह ( 1210 ई- 1211 ई.)
कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद उसका पुत्र आरामशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा । कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद इल्तुतमिश दिल्ली का शासक बना । कुतुबुद्दीन ऐबक की अकस्मात मृत्यु होने के कारण उसने अपने किसी उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं कि थी । अतः यह विवादित है कि आरामशाह नाम का कोई व्यक्ति था जो दिल्ली की गद्दी पर बैठा था । बहरहाल जानकारी के अनुसार दिल्ली के निकट जड़ नामक स्थान पर आरामशाह व इल्तुतमिश के मध्य संघर्ष हुआ जिसमें आरामशाह की पराजय हुई । आरामशाह को बंदी बना लिया गया तथा बाद में उसकी हत्या कर दी गई । इस प्रकार कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद 1210 ई. में इल्बारी वंश का इल्तुतमिश दिल्ली का शासक बना ।
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