सालासर बालाजी धाम (Salasar Balaji ) उत्तरी राजस्थान में चुरू जिले के सुजानगढ़ तहसील क्षेत्र में स्थित है । यह जयपुर से लगभग 170 किलोमीटर की दूरी पर है। पूरे भारत में एकमात्र सालासर में दाढ़ी मूंछों वाले हनुमानजी यानी बालाजी के दर्शन मिलते हैं। सालासर बालाजी की मूर्ति को एक जाट की पत्नी ने पहली बार बाजरे के चूरमे का भोग लगाया था तब से आज भी उन्हें चूरमे का भोग लगता है । बालाजी के मूर्ति को नागौर के आसोटा गांव से एक बैलगाड़ी में सालासर लाया गया था । सालासर में बालाजी के मूर्ति स्थापना के समय भक्त मोहनदास ने पवित्र अग्नि (धूनी) जलाई थी जो 265 वर्ष बाद आज भी निरंतर जल रही है । मोहनदास सालासर में हनुमानजी के पक्के भक्त थे । मोहनदास की सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमानजी उससे मिलने आते थे तथा फिर यहीं विराजमान हो गए ।
भक्त शिरोमणि मोहनदास
बात आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व की है । सीकर के रुल्याणी गांव में लिच्छिराम जी पाटोदिया के घर एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम था मोहनदास । उनके जन्म के समय ही ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक आगे चलकर एक बहुत बड़ा संत बनेगा । मोहनदास अपने माता-पिता की संतानों (चार बेटे व एक बेटी) में सबसे छोटे थे । मोहनदास बचपन से ही संत परवर्ती के थे । मोहनदास अपनी बहिन कान्ही के साथ सालासर आकर रहने लगे थे । कान्ही का विवाह सालासर में सुखराम के साथ हुआ था । कान्ही के एक पुत्र था जिसका नाम उदय था । पुत्र प्राप्ति के कुछ समय पश्चात ही वह विधवा हो गई थी । अपनी बहिन की मदद करने व खेती के कार्यों में हाथ बंटाने के लिए मोहनदास सालासर आ गए थे ।
भक्त शिरोमणि मोहनदास सालासर में अपनी बहिन के घर रहते हुए खेती के साथ-साथ बालाजी के भक्ति भी करते । उनके साथ अक्सर कई बार आश्चर्यजनक घटनाएं घटित होतीं । उन्हें ऐसी अनुभूति होती जैसे उनके इर्द-गिर्द कोई दैवीय शक्ति है जो उनसे बात कर रही है । एक बार मोहनदास खेत में काम कर रहे थे, तभी कोई अदृश्य शक्ति उसके हाथों से बार-बार घंडासी छीनकर फैंक रही थी और उससे कह रही थी कि उसका जन्म भक्ति व भजन करने के लिए हुआ है अतः मोह माया को त्यागकर उसे भक्ति करनी चाहिए । दरअसल दोस्तों, वो हनुमानजी थे जो भक्त मोहनदास के साथ अक्सर अठखेलियाँ करते थे । कभी ग्वाले के रूप में तो कभी एक साधु के रूप में उनसे मिलने आते वहीं कभी-कभी वो अदृश्य रूप में आकर उससे बातें करते थे ।
एक बार हनुमानजी एक साधु के वेश में भक्त मोहनदास के घर भी आये। मोहनदास के आग्रह पर उन्होंने उनके यहां चूरमे का भोजन भी किया। मोहनदास जान गए थे कि वह कोई साधारण साधु या महात्मा नहीं हैं बल्कि स्वयं भगवान हनुमान हैं । बालाजी ने मोहनदास को वचन दिया कि वो सालासर में हमेशा निवास करेंगे । मोहनदास ने आजीवन एक सन्यासी के रूप में जीवन जीना पसंद किया । अपनी बहिन कान्ही के काफी दबाब के बाद भी उन्होंने शादी नहीं की। एक बार बहिन कान्ही ने मोहनदास के लिए लड़की देखने का प्रयास किया भी था लेकिन अगले ही दिन वह लड़की भी परलोक सिधार गई। हनुमानजी के साक्षात दर्शन के बाद मोहनदास ने पूरी तरह से वैराग्य धारण कर लिया । उन्होंने गांव से बाहर एक रेतीले टीले पर एक पेड़ के नीचे अपना आसन लगा लिया । वहीं पर धुना जगाकर वह अपना ज्यादातर समय ध्यानमग्न रहते थे ।
तत्कालीन सालासर गांव उस समय बीकानेर शासन के अधीन था । गांव के ठाकुर धीरज सिंह व ठाकुर सालम सिंह को खबर मिली कि डाकुओं का एक विशाल जत्था सालासर व उनके आसपास के गांवों को लूटने के लिए उनकी तरफ बढ़ रहा है । उनके पास इतना समय नहीं था कि वे बीकानेर से सैन्य सहायता मंगा पाते । दोनों ने सोच समझकर एक फैसला लिया और वे मोहनदास से मिलने उनके आश्रम पहुंचे । दोनों ने इस संकट के बारे में मोहनदास को बताया तथा इससे निजात पाने के लिए सुझाव मांगा । संत मोहनदास ने उन्हें भरोसा दिलाया कि यदि आप किसी तरह डाकुओं की पताका को काटकर वहां बालाजी की पताका लगा दोगे तो निश्चित रूप से डाकू गांव पर हमला नहीं करेंगे। बालाजी के चमत्कार से वैसा ही हुआ जैसा मोहनदास ने कहा था ।
सालासर बालाजी मूर्ती की स्थापना
इसी तरह समय बीतता गया और आखिर वो वक्त आ गया जब हनुमानजी को भक्त मोहनदास को दिया वचन पूरा करना था । वचन था मूर्त रूप में भक्त मोहनदास व सालासर के लोगों को दर्शन देने का व सदैव के लिए सालासर में विराजमान होने का । यह घटना विक्रमी संवत 1811 (1754 ई.) की है नागौर जिले के आसोटा गांव में एक जाट हल से अपने खेतों को जोत रहा था । खेत जोतते समय उसके हल की नोक जमीन में किसी कठोर चीज से टकरा गई । जब उसे खोदकर देखा तो वह एक पत्थर के समान कोई चीज थी । जब जाट ने अपने अंगोछे से मिट्टी को साफ किया तो उसमें बालाजी की छवि उभर आई । उस जाट ने मूर्ति को पेड़ के नीचे रखा ही था कि तब तक उसकी पत्नी उसके लिए खाना लेकर आ गई । खाने में बाजरे का चूरमा था । जाटनी ने पहला भोग बालाजी को लगाया ।
पूरे गांव में मूर्ति के मिलने की यह खबर फैल गई। लोग मूर्ति को देखने के लिए आने लगे । गांव के मुखिया ठाकुर चंपावत भी मूर्ति के दर्शन करने के लिए आये । वे मूर्ति को अपने साथ अपनी हवेली पर ले गए । उसी रात ठाकुर को सपने में बालाजी ने मूर्ति को सालासर गांव पहुंचाने का आदेश दिया उधर भक्त शिरोमणि मोहनदास को भी बालाजी के सपने में दर्शन दिए और कहा कि मैं अपना वचन निभाने के लिए काले पत्थर की मूर्ति के रूप में बैलगाड़ी पर आ रहा हूँ । बैल चलते-चलते जहाँ रूक जाएं वहीं मूर्ति को स्थापित कर देना । वैसा ही हुआ बैल वर्तमान में जहाँ सालासर बालाजी की मूर्ति स्थापित है वहीं रुक गए थे । ठाकुर सलाम सिंह व ग्रामवासियों सहित बाबा मोहनदास ने मूर्ति का स्वागत किया । विक्रमी संवत 1811 श्रावण शुक्ल नवमी वार शनिवार के दिन पूरे विधि-विधान के साथ भक्त मोहनदास द्वारा हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की गई तथा पवित्र अग्नि (धूना) प्रज्वलित की गई । कालांतर में भक्त मोहनदास ने अपने भांजे उदयराम को अपना चोला प्रदान कर मंदिर का पहला पुजारी नियुक्त किया । विक्रमी संवत 1854 बैशाख शुक्ल त्रयोदशी को ब्रह्ममुहूर्त में भक्त मोहनदास ने जीवित समाधि ले ली । भक्त मोहनदास द्वाराप्रज्वलित किया गया धूना आज 265 वर्षों बाद भी निरंतर जल रहा है ।
दोस्तों जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट जरूर करें। यदि आप सालासर बालाजी मंदिर में आआने के इच्छुक हैं तो नीचे दी गई जानकारी जरूर पढ़ें ।
सालासर गांव चुरू जिले में है । यह चुरू से 76 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ।
- दिल्ली से सालासर की दूरी-317 किलोमीटर
- बीकानेर से सालासर की दूरी-177 किलोमीटर
- जयपुर से सालासर की दूरी-172 किलोमीटर
- जोधपुर से सालासर की दूरी-268 किलोमीटर
- गूगल मैप:https://maps.google.com/?cid=10545155348459071454
सालासर का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट
- सांगानेर एयरपोर्ट, जयपुर
- जोधपुर एयरपोर्ट,जोधपुर
- इंद्रा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट, दिल्ली
सालासर का नजदीकी रेलवे स्टेशन
- तालछापर रेलवे स्टेशन (26 किलोमीटर)
- सुजानगढ़ रेलवे स्टेशन (26 किलोमीटर)
उपयुक्त एयरपोर्ट व रेलवे स्टेशन पर पहुंचने के बाद आप टेक्सी व बसों के माध्यम से सालासर पहुंच सकते हैं । श्रद्धालुओं के लिए यहां पर धर्मशालाओं का इंतजाम है । दूर-दराज से आने वाले पर्यटकों के लिए यहां होटल व रेस्टोरेंट की भी काफी अच्छी व्यवस्था है ।
हमारी वेबसाइट अपने विजिटर्स को भारतीय इतिहास (History of India in Hindi) से सम्बंधित जानकारियां बिलकुल मुफ्त प्रदान करती है । हमारा संकल्प है की हम अपने सब्सक्राइबर्स को सही और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करें तथा हमारी हर नई पोस्ट की जानकारी आप तक सबसे पहले पहुंचाएं । इसीलिए आपसे अनुरोध करते हैं की आप हमारी वेबसाइट को सब्सक्राइब करें तथा जानकारी अच्छी लगे तो लाइक या कमेंट जरुर करें ।
ConversionConversion EmoticonEmoticon