हर्यंक वंश का इतिहास(544 ई. पू. 412 ई.पू.) ~ Ancient India

हर्यंक वंश का इतिहास(544 ई. पू. 412 ई.पू.)

मगध के इतिहास का वास्तविक आरम्भ हर्यंक वंश के साथ होता है,इससे पूर्व का  इतिहास बहुत स्पष्ट नहीं है या जो है वह भी बहुत भी प्रमाणिक हैं  हर्यंक वंश के सम्बन्ध में निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।इस वंश के पहले कुछ वंशों का उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है,जिसके अनुसार मगध के प्राथमिक राजवंश की स्थापना वृहद्रथ ने की थी जो जरासंध का पिता और वसु का पुत्र था।

पुराणों के अनुसार मगध का अगला राजवंश शिशुनाग वंश का था जिसकी स्थापना शिशुनाग ने की ।परन्तु अनेक विद्वान पुराणों के इस कथन को स्वीकार नहीं करते।
डॉ.आर.सी.मजूमदार तथा डॉ.आर.के.मुखर्जी के अनुसार बिम्बिसार नें ही हर्यंक वंश की स्थापना की थी और शिशुनाग ने उसके बाद किसी वंश की स्थापना की।
डॉ.विमलचंद्र पाण्डेय का कथन है कि"यही निष्कर्ष प्रतीत होता है कि बिम्बिसार शिशुनाग से पूर्व हुआ था और वह शिशुनाग वंश का न था वरन हर्यंक वंश का था जैसा कि बौद्ध साहित्य में लिखा है।


 बिम्बिसार

Image of Bimbisar Haryank Dynasty
बिम्बिसार हर्यंक वंश का संस्थापक था।वह एक महत्वकांक्षी राजा था।उसने वैवाहिक संबंधों,संधियों और विजयों के द्वारा मगध के मान और यश को बढ़ाया।
टर्नर और ऐन.ऐल.डे.के अनुसार,"बिम्बिसार के पिता का नाम भट्टिय था ,तिब्बत साहित्य में उसका नाम महापद्म दिया गया है।" बिम्बिसार के पिता के नाम के सम्बन्ध में काफी मतभेद हैं।बिम्बिसार का दूसरा नाम श्रेणिक था।वह महात्मा बुद्ध का समकालीन था। "महावंश" में कहा गया है कि उसने 52 वर्ष राज्य किया।
पुराणों में उसके शासन की अवधि 28 वर्ष बतायी गयी है,जिसका समर्थन डॉ.स्मिथ करतें हैं।।डॉ.आर.सी.मजूमदार के अनुसार बिम्बिसार ने 544 ई.पू. से 492 ई.पू. तक राज्य किया। 
बिम्बिसार एक कुशल राजनीतिज्ञ था।अपने राज्य को सुदृढ़ व संगठित करने तथा कौशल,वत्स और अवन्ती जैसे विस्तारवादी राज्यों से मगध की रक्षा करने हेतु उसने वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी स्थिति सुदृढ़ की।उसने कौशल के राजा महाकौशल की पुत्री कौशल देवी से विवाह कर लिया और कौशल राज्य की मित्रता प्राप्त कर ली।


अंग विजय

मगध के पूर्व में स्थित अंग राज्य एक शक्तिशाली राज्य था। अतएव बिम्बिसार ने अंग विजय की योजना बनाई। इसके लिए सुदृढ़ सेना का संगठन किया। उसने अंग पर आक्रमण कर वहां के राजा ब्रह्मदत्त को पराजित कर उसे मार डाला। 
उसका राज्य मगध में मिला लिया और अपने पुत्र अजातशत्रु को अपने नए प्रदेश का उपराजा(वायसराय) बना दिया।अंग  बहुत सम्रद्धिशाली राज्य था और उसकी राजधानी चम्पानगरी गंगा के तट पर एक प्रसिद्ध बंदरगाह था जहाँ से जहाज जलमार्ग से होते हुए दक्षिण भारत की और जाते थे तथा वहां से मसाले व मणी-माणिक्य लेकर लौटते थे जिनसे धनवान बन गया। बिम्बिसार के समय उसके राज्य में 80000 गाँव थे तथा संपूर्ण राज्यब 1700 वर्गमील तक विस्तृत था।

'महावग्ग' के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियाँ थीं। उसने अवंति के शक्‍तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। सिन्ध के शासक रूद्रायन तथा गांधार के मुक्‍कु रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग राज्य को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था। वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्‍त किया।


बिम्बिसार की मृत्यु


बौद्ध ग्रन्थ 'विनयपिटक' के अनुसार, बिम्बिसार ने अपने पुत्र अजातशत्रु को युवराज घोषित कर दिया था परन्तु अजातशत्रुने जल्द राज्य पाने की कामना में बिम्बिसार का वध कर दिया। उसे ऐसा कृत्य करने के लिये बुद्ध के चचेरे भाई 'देवदत्त' ने उकसाया था और कई षड्यन्त्र रचा था।

जैनियों के ग्रन्थ 'आवश्यक सूत्र' के अनुसार, जल्द राज्य पाने की चाह में अजातशत्रु ने अपने पिता बिम्बिसार को कैद कर लिया, जहां रानी चेल्लना ने बिम्बिसार की देखरेख की। 
बाद में जब अजातशत्रु को पता चला कि उसके पिता उसे बहुत चाहतें हैं और वे उसे युवराज नियुक्त कर चुकें हैं, तो अजातशत्रु ने लोहे की डन्डा ले कर बिम्बिसार की बेडियां काटने चला पर बिम्बिसार ने किसी अनिष्ठ की आशंका में जहर खा लिया।

                                   अजातशत्रु

image of Ajatshatru Haryank Dynasty
लगभग 493 ई. पू. मगध का एक प्रतापी सम्राट और बिंबिसार का पुत्र जिसने पिता को मारकर राज्य प्राप्त किया। उसने अंग, लिच्छवि, वज्जी, कोसल तथा काशी जनपदों को अपने राज्य में मिलाकर एक विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। 
अजातशत्रु के समय की सबसे महान घटना बुद्ध का महापरिनिर्वाण थी (464 ई. पू.)। उस घटना के अवसर पर बुद्ध की अस्थि प्राप्त करने के लिए अजात शत्रु ने भी प्रयत्न किया था और अपना अंश प्राप्त कर उसने राजगृहकी पहाड़ी पर स्तूप बनवाया। 
आगे चलकर राजगृह में ही वैभार पर्वत की सप्तपर्णी गुहा से बौद्ध संघ की प्रथम संगीतिहुई जिसमें सुत्तपिटक और विनयपिटक का संपादन हुआ। यह कार्य भी इसी नरेश के समय में संपादित हुआ।

बिंबिसार ने मगध का विस्तार पूर्वी राज्यों में किया था, इसलिए अजातशत्रु ने अपना ध्यान उत्तर और पश्चिम पर केंद्रित किया। उसने कोसल एवं पश्चिम में काशी को अपने राज्य में मिला लिया। वृजी संघ के साथ युद्ध के वर्णन में 'महाशिला कंटक' नाम के हथियार का वर्णन मिलता है जो एक बड़े आकर का यन्त्र था, इसमें बड़े बड़े पत्थरों को उछलकर मार जाता था। इसके अलावा 'रथ मुशल' का भी उपयोग किया गया। 'रथ मुशल' में चाकू और पैने किनारे लगे रहते थे, सारथी के लिए सुरक्षित स्थान होता था, जहाँ बैठकर वह रथ को हांककर शत्रुओं पर हमला करता था।

पालि ग्रंथों में अजातशत्रु का नाम अनेक स्थानों पर आया है; क्योंकि वह बुद्ध का समकालीन था और तत्कालीन राजनीति में उसका बड़ा हाथ था। उसका मंत्री वस्सकार कुशल राजनीतिज्ञ था जिसने लिच्छवियों में फूट डालकर साम्राज्य का विस्तार किया था। 
कोसल के राजा प्रसेनजित को हराकर अजातशत्रु ने राजकुमारी वजिरा से विवाह किया था जिससे काशी जनपद स्वतः यौतुक रूप में उसे प्राप्त हो गया था। इस प्रकार उसकी इस विजिगीषु नीति से मगध शक्तिशाली राष्ट्र बन गया। परंतु पिता की हत्या करने के कारण इतिहास में वह सदा अभिशप्त रहा। प्रसेनजित का राज्य कोसल के राजकुमार विडूडभ ने छीन लिया था। उसके राजत्वकाल में ही विडूडभ ने शाक्य प्रजातंत्र का ध्वंस किया था।


अजातशत्रु की मृत्यु


461 ई. पू. में अजातशत्रु की मृत्यु हो गयी,उदायिन ने उसने अपने पिता अजातशत्रु की हत्या करके राजसिंहासन प्राप्त किया था।ऐसा विवरण मिलता है की अजातशत्रु के वंश के पांच राजाओं ने लगभग सभी ने अपने अपने पिता की हत्या करके मगध पर शासन किया था। इसिलए इतिहास में इन्हें पितृहन्ता वंश के नाम से भी जाना जाता है।

                              उदायिन

अजातशत्रु के बाद 460 ई. पू. उदायिन मगध का राजा बना। बौद्ध ग्रन्थानुसार इसे पितृहन्ता लेकिन जैन ग्रन्थानुसार पितृभक्‍त कहा गया है। इसकी माता का नाम पद्‍मावती था।

उदायिन शासक बनने से पहले चम्पा का उपराजा था। वह पिता की तरह ही वीर और विस्तारवादी नीति का पालक था।इसने पाटलिपुत्र (गंगा और सोन के संगम) को बसाया तथा अपनी राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र स्थापित की।मगध के प्रतिद्वन्दी राज्य अवन्ति के गुप्तचर द्वारा उदायिन की हत्या कर दी गई।


हर्यक राजवंश के शासक एवं शासन अवधि


1.बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.)

2.अजातशत्रु (493 ई.पू. से 461 ई.पू.)

3.उदायिन (461 ई.पू. से 445 ई.पू.)

4.अनिरुद्ध

5.मंण्डक

6.नागदशक


हर्यक राजवंश का पतन

बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदायिन के तीन पुत्र थे- ‘अनिरुद्ध’, ‘मंडक’ और ‘नागदशक’ थे। उदायिन के इन तीनों पुत्रों ने राज्य किया था। हर्यक वंश का अन्तिम राजा नागदशक था। नागदशक के पुत्र शिशुनाग ने 412 ई. पू. में उन्हें हटा कर ‘शिशुनाग वंश’ की स्थापना की। कुछ इतिहासकारों के अनुसार शिशुनाग अपने राजा नागदशक का अमात्य था। क्योंकि नागदशक अत्यन्त विलासी और निर्बल सिद्ध हुआ था, इसीलिए शासन तन्त्र में शिथिलता के कारण व्यापक असन्तोष जनता में फैल गया। इसी समय राज्य विद्रोह कर अमात्य शिशुनाग ने सिंहासन पर अधिकार कर लिया राजा बन गया। इस प्रकार हर्यक वंश का अन्त हुआ और 'शिशुनाग वंश' की स्थापना हुई। 



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