भारत का प्राचीन राजवंश:चोल राजवंश
चोल प्राचीन भारत का राजवंश था। दक्षिण भारत में और पास के अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9 वीं शताब्दी 13वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य का निर्माण किया।
चोल पल्लव के सामंत थे। पल्लव वंश के ध्वंसावसेसो पर चोल वंश की नींव रखी गयी थी। चोल साम्राज्य का अभ्युदय 9 वीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्रायद्वीप का अधिंकाश भाग उनके अधिकार क्षेत्र में था। चोल शासकों ने श्रीलंका पर विजय प्राप्त कर ली और मालद्वीप के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।चोल प्रशासन व्यवस्था एक जटिल नौकरशाही पर आधारित था। राजा प्रशासन का प्रमुख था। चोल राजाओं के अनेक अभिलेख उस समय की प्रशासन-व्यवस्था पर भी प्रकाश डालते हैं। चोल साम्राज्य के विस्तार के साथ राजा की शक्ति और सम्मान में भी वृद्धि हो गई थी। राजा को असीमित शक्तियां प्राप्त थीं, फिर भी राजा प्रशासन में विभागों के प्रमुख से परामर्श लिया करता था। कुछ चोल राजाओं की मूर्तियां भी मन्दिर में स्थापित की गई और कुछ विशेष मन्दिरों का नाम राजा के नाम पर पड़ा, जैसे तंजौर का राजराजेश्वर मन्दिर।
विजयालय
चोल वंश के संस्थापक विजयालय ( 850 - 871 ई.) थे इन्होंने 9वी शताब्दी में चोल वंश की स्थापना किया। इसकी राजधानी तंजौर या तांजाय या तंजावूर थी। तंजावूर का वास्तुकार कुंजरमल्लन राजराज पेरुथच्चन था। विजयालय ने नरकेसरी की उपाधि धारण किया था। निशुम्भसूदिनी का मंदिर विजयालय ने बनवाया।
आदित्य प्रथम
स्वतंत्र शक्तिशाली शासक आदित्य प्रथम थे इन्होंने पल्लव शासक अपराजित को परास्त कर पल्लव पर पूर्णतःआधिपत्य कायम कर लिया। कावेरी नदी के मुहाने पर शिव मंदिर का निर्माण आदित्य प्रथम ने करवाया।
आदित्य प्रथम के बाद परांतक प्रथम शासक बना इन्होंने पांड शासक नरसिंह को परास्त कर मदुरैकोंडा (मदुरै को जीतने वाला) की उपाधि धारण किया। परांतक प्रथम ने पल्लवों पर जीत हासिल किया और इस उपलक्ष में कोदंडराम की उपाधि धारण किया।
राजराज प्रथम
आदित्य प्रथम के बाद परांतक द्वितीय का पुत्र राजराज प्रथम शासक बना। ये शैव धर्म के अनुयायी थे। ये एक महान शाषक थे। इन्होंने चोल की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः वापस किया वापस किया। सम्राज्य विस्तार के क्रम में मैसूर के गंगों, मदुरै के पांड्यो तथा बेंगी के चालुक्यों को परास्त किया। इन्होंने लंका के उत्तरी भाग पर भी आक्रमण किया और वहां के शासक राजा माहिम पंचम को परास्त कर लंका पर आधिपत्य कायम किया। माहिम पंचम को भागकर श्रीलंका के दक्षिण जिला रोहण में शरण लेनी पड़ी थी। राजराज प्रथम ने श्रीलंका में जीते गए क्षेत्र का नाम मुम्ड़ीचोलमंडलम रखा और इसकी राजधानी अनुराधापुर के स्थान पर पोलन्नरूवा को बनाया साथ ही वहां एक शिव मंदिर का निर्माण कराया जो अभी भी विधमान है। चोल के समय भूमि माप की इकाई वेली थी। राजराज ने तंजोर में 13 मंजिला राजराजेश्वर या वृद्धेश्वर का मंदिर बनवाया।
राजेंद्र प्रथम
राजराज प्रथम के पश्चात् पुत्र राजेंद्र प्रथम शासक बने। यह चोल वंश के सबसे शक्तिशाली शासक हुए। इन्होंने संपूर्ण श्रीलंका पर आधिपत्य कायम कर महेंद्र पंचम को बंदी बना लिया। चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेंद्र प्रथम के काल में हुआ। राजेंद्र प्रथम ने पाल शासक महिपाल को परास्त किया और गंगा घाटी तक आधिपत्य होने के कारण गंगैकोंडचोल की उपाधि धारण किया। राजेन्द्र प्रथम ने तंजौर के समीप चोलगंगम नामक तालाब बनवाया और उस तालाब में गंगा का पानी ला कर डाला और उसके निकट गंगैकोंडचोलपुरम् नामक नगर बसाया। राजेन्द्र प्रथम के पास विशाल नौसेना थी जिनके कारण दक्षिण-पूर्व एशिया की मलाया, सुमात्रा और जावा द्वीप को भी जीता। यह विद्वान शासक थे उन्होंने तंजौर में वैदिक विद्यालय की स्थापना किया और पंडित चोल की उपाधि धारण किया। राजेन्द्र प्रथम गजनी के सुल्तान महमूद का समकालीन था। तिरुवलंगान्डु एव तंजौर अभिलेख से राजेन्द्र प्रथम की विस्तृत जानकारी मिलती है। राजेन्द्र प्रथम ने मुदिकोंड और कुदारकोंड की भी उपाधियां धारण किया था। राजराज प्रथम चोल वंश के प्रथम शासक थे जिन्होंने भूमि का सर्वेक्षण करवाया।
- वेल्लनवगाई : गैर ब्राह्मण किसान स्वामी की भूमि
- ब्राह्मदेय : ब्राह्मणों को उपहार में दी गई भूमि
- शालाभोग : किसी विद्यालय की राख रखाव की भूमि
- देवदान या तिरुनमटडक्कनी : मंदिर को उपहार दी गई भूमि
- पल्लीच्चंदम : जैन संस्थानों को दान दी गई भूमि
राज्य की आय का प्रमुख साधन भूमि-कर था। भूमि-कर को एकत्र करने का कार्य ग्रामसभाएं करती थीं। किसानों को इस बात की सुविधा थी कि वे भूमिकर चाहे नकद दे अथवा अनाज के रूप में। भूमिकर उपज का 1/3 भाग था। विशेष स्थिति, जैसे अकाल पड़ने पर भूमिकर माफ कर दिया जाता था।
राजाधिराज
राजेन्द्र प्रथम के पश्चात राजाधिराज शासक बने इन्होंने चालुक्य शासक विक्रमादित्य को परास्त कर विजय राजेंद्र की उपाधि धारण किया और कल्याणी से एक द्वारपाल की मूर्ति लाकर अपने दरबार में लगा दिया।
राजेन्द्र द्वितीय
राजेन्द्र द्वितीय चोल सम्राट राजेन्द्र प्रथम का द्वितीय पुत्र और राजाधिराज का छोटा भाई था। कोप्पम के युद्ध में जब राजेन्द्र द्वितीय का बड़ा भाई राजाधिराज कल्याणी के शासक सोमेश्वर आहवमल्ल के द्वारा मारा गया, तब वहीं रणभूमि में ही राजेन्द्र द्वितीय ने अपने भाई का मुकुट सिर पर धारण कर लिया और युद्ध जारी रखा।
वीर राजेन्द्र
राजेन्द्र द्वितीय के बाद वीर राजेन्द्र से शासन संभाला । जिसे चालुक्यों ने पराजित किया । 1068 में कडाराम विजय हेतु इसने नौसेना का प्रयोग किया ।
अधिराजेन्द्र या राजेंद्र तृतीय
चोल वंश के अंतिम शासक अधिराजेन्द्र या राजेंद्र तृतीय थे इनके समय जनविद्रोह हुआ और इनको समाप्त कर दिया गया। उसके बाद चोल तथा चालुक्य का संयुक्त शासन प्रारंभ हुआ।
कुलोत्तुंग चोल प्रथम(1070-1120 ई.)
बाद में चोल का काल कुलोत्तुंग चोल प्रथम से 1070-1120 ई से शुरू होता है, जो कुंडवई और चालुक्य विमलदतिया के भव्य पुत्र थे। बेहतर समझने के लिए, कुंडवाई राजराज चोल की बेटी थी (जिन्होंने बिग तंजौर मंदिर का निर्माण किया)। इसका काल शांति का काल था। कुलोत्तुंग ने श्रीलंका के शासक विजयबाहु की स्वतंत्रता को वापिस कर उसके पुत्र राजकुमार वीरधेरुमाल के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया ।
उन्होंने पुनः भूमि का सर्वेक्षण करवाया तथा व्यापार में बाधक करों को हटा दिया इसने 1077 ईस्वी में अपना एक दूत मण्डल चीन भेजा जिसका उद्देश्य व्यपार के लिए चीन से अधिक रियायतें प्राप्त करना था ।
चोल शासक विक्रम चोल(1118-1135 ई.)
चिदंबरम स्थित नटराज मंदिर को नया आकार प्रदान किया तथा श्री रंगम के रंगनाथ मंदिर को सजाया ।
कुलोतुंग द्वितीय (1135-1150 ई.)
विक्रम चोल के पुत्र कुलोतुंग द्वितीय चिदंबरम मंदिर में स्थित गोविन्द राज की मूर्ति को समुन्द्र में फिंकवा दिया । बाद में रामानुजाचार्य द्वारा मूर्ति को तिरुपति में स्थापित किया गया ।
कुलोतुंग तृतीय 1178 ई. अंतिम महान चोल शासक था जिसने कुम्भकोणम के निकट त्रिभुवन में कंपारेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया ।सम्भवतः इसी के शासनकाल में तमिल कवि कम्बन में तमिल रामायण की रचना की थी ।
- विजयालय ( 850 - 871 ई.)
- आदित्य प्रथम (871-907 ई.)
- परांतक प्रथम (907-950 ई.)
- राजराज प्रथम (985 - 1014 ई.)
- राजेंद्र प्रथम (1014-1044)
- चोल काल में भूमि के कई प्रकार रखे गए
- राजाधिराज (1044-1054)
- राजेन्द्र द्वितीय (1052-1064 ई.)
- वीर राजेंद्र(1064-1068 ई.)
- अधिराजेन्द्र(1068-1070 ई.)
- चोल शासन का पुनरोदय
- कुलोतुंग तृतीय
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