हूण वंश के शासक(455 ई.-567 ई.) ~ Ancient India

हूण वंश के शासक(455 ई.-567 ई.)

हूण वंश का संस्थापक:तोरमाण

सम्राट तोरमाण हूण को हूण राजवंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। हूण साम्राज्य की राजधानी सियालकोट ( आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में) थी। इनके साम्राज्य में अफगान, पाक व भारत का बडा भूभाग शामिल था। यह चौथी सदी की बात है।
उस समय भारत में गुप्तवंश का शासन था। हूणराज तोरमाण का गुप्त शासको के साथ युद्ध होता रहता था जिसमें कभी इन्हें पीछे हटना पडता था कभी गुप्त शासकों को।
समस्त हूण राजवंश शैव उपासक थे व भगवान शिव को आराध्य देव स्वीकारते थे। हूणो को भारतीय इतिहास में बौद्घो व जैनो पर की गयी बर्बर कारवाइयो के लिये भी जाना जाता है। ये ब्राह्मणो को गाँव के गाँव दान देते थे। इन्हें इतिहास में इनकी ध्वंसात्मक प्रवृत्ति के लिये भी जाना जाता है।
हूणो का दूसरा नाम मिहिर भी है । मिहिरकुल हूण सम्राट तोरमाण के पुत्र थे। ये मिहिर यानी सूर्य व अतर यानी अग्नि अपने कबीलाई देवो के पूजन के साथ शिवजी के बहुत बडे उपासक के रूप में विख्यात रहे हैं । ये वराह को भी पूजते थे,वराह इनके साम्राज्य का शाही निशान था,वराह को ताकत का पर्याय माना जाता है ।
राजस्थान में इनका बनाया शिव मन्दिर बेहद विख्यात है हर साल लाखो श्रद्धालु वहाँ जाते हैं कश्मीर में भी कई शिव मन्दिर बनाने का इन्हें दिया जाता है। श्रीनगर को इनके ही एक राजा ने बसाया था ।
ये स्वयं को गुर्जरो के प्राचीन कुषाण साम्राज्य के उत्तराधिकारी समझते थे व शाहनुशाही की उपाधियाँ भी धारण करते थे।
भारतीय इतिहास में इनके शासनकाल को हूणकाल कहा जाता है।
ग्वालियर भी कुछ समय के लिये इनकी राजधानी रही वहाँ एरण में वराह की मूर्तियाँ इनके द्वारा ही बनवायी गयी।
एक समय मेवाड को हूणप्रदेश भी कहा जाता था ।
हूणराज तोरमाण को एक सिद्धहस्त तीरंदाज यानी धनुष बाण का महान संचालक माना जाता है। ये एक महान यौद्धा थे जिन्होने गुप्त साम्राज्य को ढहाकर हूण राजवंश की नींव रखी।
shivbhakt Mihirkul










मिहिरकुल

तोरमाण के बाद उसका पुत्र मिहिरकुल हूणों का राजा बना मिहिरकुल तोरमाण के सभी विजय अभियानों हमेशा उसके साथ रहता था। उसके शासन काल के पंद्रहवे वर्ष का एक अभिलेख ग्वालियर एक सूर्य मंदिर से प्राप्त हुआ हैं। इस प्रकार हूणों ने मालवा इलाके में अपनी स्थति मज़बूत कर ली थी। उसने उत्तर भारत की विजय को पूर्ण किया और गुप्तो सी भी नजराना वसूल किया। मिहिरकुल ने पंजाब स्थित स्यालकोट को अपनी राजधानी बनाया।मिहिकुल हूण एक कट्टर शैव था। उसने अपने शासन काल में हजारों शिव मंदिर बनवाये। मंदसोर अभिलेख के अनुसार यशोधर्मन से युद्ध होने से पूर्व उसने भगवान स्थाणु (शिव) के अलावा किसी अन्य के सामने अपना सर नहीं झुकाया था। मिहिरकुल ने ग्वालियर अभिलेख में भी अपने को शिव भक्त कहा हैं। मिहिरकुल के सिक्कों पर जयतु वृष लिखा हैं जिसका अर्थ हैं- जय नंदी। वृष शिव कि सवारी हैं जिसका मिथकीय नाम नंदी हैं।



यात्रा वृतांतों में मिहिरकुल का वर्णन

कास्मोस इन्दिकप्लेस्तेस नामक एक यूनानी ने मिहिरकुल के समय भारत की यात्रा की थी, उसने “क्रिस्टचिँन टोपोग्राफी” नामक अपने ग्रन्थ में लिखा हैं की हूण भारत के उत्तरी पहाड़ी इलाको में रहते हैं, उनका राजा मिहिरकुल एक विशाल घुड़सवार सेना और कम से कम दो हज़ार हाथियों के साथ चलता हैं, वह भारत का स्वामी हैंमिहिरकुल के लगभग सौ वर्ष बाद चीनी बौद्ध तीर्थ यात्री हेन् सांग 629 ई. में भारत आया , वह अपने ग्रन्थ “सी-यू-की” में लिखता हैं की सैंकडो वर्ष पहले मिहिरकुल नाम का राजा हुआ करता था जो स्यालकोट से भारत पर राज करता था  वह कहता हैं कि मिहिरकुल नैसर्गिक रूप से प्रतिभाशाली और बहादुर था

हेन् सांग बताता हैं कि मिहिरकुल ने भारत में बौद्ध धर्म को बहुत भारी नुकसान पहुँचाया वह कहता हैं कि एक बार मिहिरकुल ने बौद्ध भिक्षुओं से बौद्ध धर्म के बारे में जानने कि इच्छा व्यक्त की परन्तु बौद्ध भिक्षुओं ने उसका अपमान किया, उन्होंने उसके पास, किसी वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु को भेजने की जगह एक सेवक को बौद्ध गुरु के रूप में भेज दिया मिहिरकुल को जब इस बात का पता चला तो वह गुस्से में आग-बबूला हो गया और उसने बौद्ध धर्म के विनाश कि राजाज्ञा जारी कर दी उसने उत्तर भारत के सभी बौद्ध बौद्ध मठो को तुडवा दिया और भिक्षुओं का कत्ले-आम करा दिया हेन् सांग कि अनुसार मिहिरकुल ने उत्तर भारत से बौधों का नामो-निशान मिटा दिया




'राजतरंगिणी' के अनुसार मिहिरकुल

गांधार क्षेत्र में मिहिरकुल के भाई के विद्रोह के कारण, उत्तर भारत का साम्राज्य उसके हाथ से निकल कर, उसके विद्रोही भाई के हाथ में चला गया किन्तु वह शीघ्र ही कश्मीर का राजा बन बैठा कल्हण ने बारहवी शताब्दी में “राजतरंगिणी” नामक ग्रन्थ में कश्मीर का इतिहास लिखा हैं उसने मिहिरकुल का, एक शक्तिशाली विजेता के रूप में ,चित्रण किया हैं वह कहता हैं कि मिहिरकुल काल का दूसरा नाम था, वह पहाड से गिरते हुए हाथी कि चिंघाड से आनंदित होता था उसके अनुसार मिहिरकुल ने हिमालय से लेकर लंका तक के इलाके जीत लिए थे उसने कश्मीर में मिहिरपुर नामक नगर बसाया कल्हण के अनुसार मिहिरकुल ने कश्मीर में श्रीनगर के पास मिहिरेशवर नामक भव्य शिव मंदिर बनवाया था उसने गांधार इलाके में 700 ब्राह्मणों को अग्रहार (ग्राम) दान में दिए थे कल्हण मिहिरकुल हूण को ब्राह्मणों के समर्थक शिव भक्त के रूप में प्रस्तुत करता हैं



हूण शिवभक्त थे 

मिहिरकुल ही नहीं वरन सभी हूण शिव भक्त थे हनोल ,जौनसार –बावर, उत्तराखंड में स्थित महासु देवता (महादेव) का मंदिर हूण स्थापत्य शैली का शानदार नमूना हैं, कहा जाता हैं कि इसे हूण भट ने बनवाया था यहाँ यह उल्लेखनीय हैं कि भट का अर्थ योद्धा होता हैं 

हर हर महादेव का जय घोष भी हूणों से जुडा प्रतीत होता है क्योकि हूणों कि दक्षिणी शाखा को हारा-हूण कहते थे, संभवत हारा-हूण से ही हारा/हाडा गोत्र कि उत्पत्ति हुई हैं हाडा लोगों के आधिपत्य के कारण ही कोटा-बूंदी इलाका हाडौती कहलाता हैं राजस्थान का यह हाडौती सम्भाग कभी हूण प्रदेश कहलाता था आज भी इस इलाके में हूणों गोत्र के गुर्जरों के अनेक गांव हैं यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रसिद्ध इतिहासकार वी. ए. स्मिथ, विलियम क्रुक आदि ने गुर्जरों को श्वेत हूणों से सम्बंधित माना हैं इतिहासकार कैम्पबेल और डी. आर. भंडारकर गुर्जरों की उत्त्पत्ति श्वेत हूणों की खज़र शाखा से मानते हैं  बूंदी इलाके में रामेश्वर महादेव, भीमलत और झर महादेव हूणों के बनवाये प्रसिद्ध शिव मंदिर हैं बिजोलिया, चित्तोरगढ़ के समीप स्थित मैनाल कभी हूण राजा अन्गत्सी की राजधानी थी, जहा हूणों ने तिलस्वा महादेव का मंदिर बनवाया था यह मंदिर आज भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता हैं कर्नल टाड़ के अनुसार बडोली, कोटा में स्थित सुप्रसिद्ध शिव मंदिर पंवार/परमार वंश के हूणराज ने बनवाया था


इस प्रकार हम देखते हैं की हूण और उनका नेता मिहिरकुल भारत में बौद्ध धर्म के अवसान और शैव धर्म के विकास से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।


मिहिरकुल की शाक्यमुनियों के प्रति क्रूरता

मिहिरकुल हूण एक कट्टर शैव था। उसने अपने शासनकाल में हजारों शिव मंदिर बनवाए और बौद्धों के शासन को उखाड़ फेंका।कर्नल टाड के अनुसार बडोली, राजस्थान के प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण हूणराज मिहिरकुल ने कराया था इसी प्रकार मिहिरकुल हूण ने भारत में कश्मीर स्थित मिहिरेश्वर नामक प्रसिद्ध शिव मंदिर सहित हजारो शिव मंदिरों का निर्माण कराया था उसने संपूर्ण भारतवर्ष में अपने विजय अभियान चलाए और वह बौद्ध, जैन और शाक्यों के लिए आतंक का पर्याय बन गया था, वहीं विक्रमादित्य और अशोक के बाद मिहिरकुल ही ऐसा शासन था जिसके अधीन संपूर्ण अखंड भारत आ गया था। उसने ढूंढ-ढूंढकर शाक्य मुनियों को भारत से बाहर खदेड़ दिया।
मिहिरकुल इतना कट्टर था कि जिसके बारे में बौद्ध और जैन धर्मग्रंथों में विस्तार से जिक्र मिलता है। वह भगवान शिव के अलावा किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाता था। यहां तक कि कोई हिन्दू संत उसके विचारों के विपरीत चलता तो उसका भी अंजाम वही होता, जो शाक्य मुनियों का हुआ।

मिहिरकुल के लगभग 100 वर्ष बाद चीनी बौद्ध तीर्थ यात्री ह्वेनसांग 629 ई. में भारत आया, वह अपने ग्रंथ सी-यू-की में लिखता है कि कई वर्ष पहले मिहिरकुल नाम का राजा हुआ करता था, जो स्यालकोट से भारत पर राज करता था। ह्वेनसांग बताता है कि मिहिरकुल ने भारत में बौद्ध धर्म को बहुत भारी नुकसान पहुंचाया। ह्वेनसांग के अनुसार मिहिरकुल ने भारत से बौद्धों का नामो-निशान मिटा दिया। क्यों? इसके पीछे भी एक कहानी है। वह यह कि बौद्धों के प्रमुख ने मिहिरकुल का घोर अपमान किया था। उसकी क्रूरता के कारण ही जैन और बौद्ध ग्रंथों में उसे कलिराज कहा गया है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने लिखा है कि राजा बालादित्य ने तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल को कैद कर लिया था, पर बाद में उसे छोड़ दिया था। यह बालादित्य के लिए नुकसानदायक सिद्ध हुआ।


हूण साम्राज्य का अंत

528 ई. में मालवा के राजा यशोवर्मा तथा गुप्त वंश के सम्राट बालादित्य के नेतृत्व में कई राजाओं ने मिलकर मिहिरगुल को पराजित कर भारत में हूण शासन का अंत कर दिया। भारतीय राज्य हाथ से निकल जाने पर हूणों की शक्ति बहुत क्षीण हो गई थी। अन्त में फ़ारस के शाह ख़ुसरो नौशेर ख़ाँ ने 563 ई. और 567 ई. के बीच हूणों की रही-सही शक्ति को भी नष्ट कर दिया।

भारत में निवास

भारत में हूणों की शक्ति समाप्त हो जाने के बाद वे हिन्दुओं में घुलमिल गये और यहाँ स्थाई तौर पर निवास करने लगे। विश्वास किया जाता है कि आठवीं शताब्दी में तथा उसके बाद जिन राजपूत वंशों का उत्कर्ष हुआ, उनके रक्त में हूणों का रक्त मिश्रित था।

हूण वंश के मुख्य शासक:तोरमण हूण और मिहिरकुल हूण


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1 comments:

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Unknown
admin
5 जुलाई 2022 को 10:08 pm बजे ×

Very good

Congrats bro Unknown you got PERTAMAX...! hehehehe...
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