सिंधु सभ्यता के लोगों का जीवन (How was the life of people of Indus Civilization) ~ Ancient India

सिंधु सभ्यता के लोगों का जीवन (How was the life of people of Indus Civilization)


सिंधु सभ्यता के लोगों की जाती(Which caste was the people of Indus Civilization)

(Indus or Harappan Civilization)

सिंधु सभ्यता  के निर्माताओं के सम्बन्ध में विद्वानों में बहुत मतभेद है।

सर जॉन मार्शल के अनुसार सिंधु सभ्यता के निर्माता द्रविड़ जाती के लोग थे।

प्रो.गार्डन चाइल्ड के अनुसार सिन्धु सभय्ता के निर्माता सुमेरियन लोग थे।

लक्ष्मण स्वरूप ,रामचन्द्रन,शंकरानंद,दीक्षितार तथा पूसालकर के अनुसार सिंधु सभ्यता के निर्माता आर्य लोग थे।कुछ विद्वानों का मत है कि कई जातियों के मिश्रण से सिंधु सभ्यता का निर्माण हुआ था। इन जातियों में आदि-ऑस्ट्रियाई,भूमध्य सागरीय,मंगलोइंन तथा अल्पाइन उल्लेखनिय थी।अतः इस विषय में अभी निच्यपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि सिंधु सभ्यता के निर्माता कौन थे।

पशुपालन
यहाँ के लोग पशुपालन का कार्य भी करते थे हङप्पा स्थलों से मिली जानवरों की हड्डीयों में मवेशियों , भेङ , बकरी , भैंस , तथा सूअर की हड्डीयाँ शामिल थी । ये सभी जानवर पालतू थे । जंगली प्रजातीयों जैसे वराह(सूअर) , हिरण और घङियाल की हड्डीयाँ मिली हैं। मछली एवं पक्षियों की भी हड्डीयाँ मिली हैं। इससे पता लगाया जा सकता है कि सैंधव लोग मांस भी खाते थे।

कृषि
हङप्पाई लोग कृषि भी करते थे इसके प्रमाण हमें कई हङप्पा स्थलों से मिले हैं। कालीबंगा से जुते हुए खेतों के प्रमाण तथा बनावली और चोलिस्तान से मिट्टी के बने हल तथा वृषभ की मृण्मूर्तियाँ इसी ओर संकेत करती हैं कि सैंधव लोग के जीवन निर्वाह का प्रमुख आधार कृषि ही था । अनाज का उत्पादन अधिक मात्रा में होता था इस बात के साक्ष्य हङप्पा तथा मोहनजोदङो से मिले अन्नागारों से मिलते हैं।अधिकांश हङप्पा स्थल अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पङती थी अफगानिस्तान में शोर्तुघई नामक हङप्पा स्थल से नहरों के अवशेष मिले हैं , परंतु पंजाब और सिंध से नहीं। ऐसा हो सकता है कि प्राचीन नहरें बहुत पहले ही गोद से भर गई थी । कुओं से प्राप्त पानी से सिंचाई होती हो। धौलावीरा (गुजरात)में मिले जलाशयों का प्रयोग कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था।


पहनावा
सैंधव लोग सूती और ऊनी कपङे पहनते थे । स्रीयाँ घाघरे का प्रयोग करती थी तथा अंगरखे का प्रयोग विशेष रक्षा के लिए होता था। पुरुष मुच्छे तथा दाढी रखते थे । वे लोग अपनी कमर के उपर एक पट्टी बाँधा करते थे । स्त्री और पुरुष दोनों ही जेवर पहनते थे। हार , बालों के भूषण , कंगन, अँगूठी का प्रयोग दोनों करते थे, किन्तु तगङी, नाक के काँटे , पायल का प्रयोग केवल स्त्रीयाँ ही करती थी । अमीर लोग सोने, चाँदी, हाथी-दाँत और कीमती मोतियों के बने आभूषण पहनते थे । निर्धन लोग सीपियों , हड्डियों , ताँबे और पत्थर के जेवर पहनते थे। उत्खनन में ताँबा का दर्पण भी प्राप्त हुआ है। इससे पता लगाया जा सकता है कि स्त्रीयाँ श्रृंगार भी करती होंगी।

मनोरंजन
हङप्पाई लोग घर में ही रहकर मनोरंजन करना अधिक पसंद करते थे।रथों की दौङ और शिकार में उनकी रुचि नहीं थी। उन्हें नाच और गाना अधिक पसंद था।पासा खेलना उन्हें अच्छे से आता था । मोहनजोदङो से खिलौने प्राप्त हुए हैं। ये खिलौने मिट्टी के बने होते थे। झुनझुना, सीटी, पक्षी, बैलगाङी, स्त्री-पुरुषों के भूत आदी खिलौनों के रूप में प्राप्त हुए हैं। खिलौने टैरीकोटा के बने होते थे।


कला
इस सभ्यता के लोग कला में भी निपुण थे उनकी निपुणता का पता मोहरों पर खुदी हुई जानवरों की तस्वीरों से चलता है। हङप्पा की कुछ मूर्तियों की कला यूनान की कला की भाँति उत्कृष्ट है। इस घाटी के मिट्टी के बर्तन चाक पर ही बनाए जाते थे । इन्हें लाल तथा काले  रंगों से रंगा जाता था। कुछ बर्तनों को चिकना और नक्काशीदार बनाया जाता था। इस तरह के (चमकीले )बर्तन संसार में बर्तनों में सबसे अधिक पुरानें हैं। घरेलू बर्तन मिट्टी के होते थे  । लोहे के बर्तनों को छोङकर काँसी, ताँबा, और चाँदी के बर्तन भी मिलते हैं। 

हथियार
सैंधव लोगों के हथियारों के बारे में हम यही कह सकते हैं कि वो लोग कुल्हाङी, बरछी, गोफन, चोब नामक आदि हथियारों का प्रयोग अपनी रक्षा करने में करते थे। अधिकतर हथियार  ताँबे तथा काँसा से बने हैं। तीर कमान बहुत ही कम मात्रा में मिले हैं। कुछ हथियार पत्थर के भी मिले हैं। ढाल, शिरस्त्राण जैसे किसी भी हथियार के प्रमाण नहीं मिले हैं।
भवन
हङप्पा का स्थल मोहनजोदङो एक योजनानुसार निर्मित नगर प्रतीत होता है । मैके का कथन है कि सङकों का विन्यास कुछ इस प्रकार था कि हवा स्वयं ही सङकों को साफ करती रहे। वे सङकें समकोण पर एक दूसरे को काटती थी। इनके घर पक्की ईंटों से बनाये जाते थे। घरों में सादगी झलकती है, खिङकियो का प्रयोग नहीं किया गया है। लोगों में पर्दा प्रथा नहीं थी। अनाज रखने के लिए फर्श के अंदर बङे – बङे मर्तबान थे। उनमें गेहूँ आदि खाने की चीजें रखी जाती थी। गलीयों से गंदे पानी के निकास के लिए ईंटों की नालियाँ थी ।प्रत्येक घर में एक या उससे अधिक स्नानागार होते थे।  इन सभी बातों से यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सैंधव लोग अपने घरों को साफ तथा व्यवस्थित रखते थे।

शवाधान (अंतिमसंस्कार)
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग तीन प्रकार से शवों की अन्तेष्टी करते थे। कुछ कब्रों में मृदभांड तथा आभूषण मिले हैं, पुरुषों तथा महिलाओं दोनों के शवाधानों से ही आभूषण मिले हैं । 1980 के दशक के मध्य में हङप्पा के कब्रिस्तान में हुए उत्खननों में एक पुरुष की खोपङी के समीप शंख के तीन छल्लों , जैस्पर(एक प्रकार का रत्न) के मनके तथा सैकङों की संख्या में मनकों का बना एक आभूषण मिला है। कहीं-कहीं पर मृतकों को ताँबे के दर्पणों के साथ दफनाया गया था। इससे अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव लोग मृतकों के साथ बहुमूल्य वस्तुएँ दफनाने में विश्वास नहीं करते थे। 

शवों की अन्तेष्टी के कई  प्रकार के प्रमाण मिले हैं–

पूर्ण समाधिकरण- इसमें संपूर्ण शव को भूमि में दफनाया जाता था।
आंशिक समाधिकरण – इसमें पशु- पक्षियों के खाने के बाद शव का बचा हुआ भाग जमीन में गाङा जाता था।
दाह संस्कार- इसमें शव को पूर्ण रुप से जलाकर भस्म को भूमि में गाङा जाता था।
हङप्पा दुर्ग के दक्षिण – पश्चिम में स्थित कब्रिस्तान को एच. कब्रिस्तान का नाम दिया गया है।
लोथल से प्राप्त शव का सिर पूर्व एवं पश्चिम की ओर एवं शव शरीर करवट लिए हुए है।
लोथल से ही एक कब्र में दो शव आपस में लिपटे हुए मिले हैं।
सुरकोटडा से अण्डाकार कब्र के अवशेष मिले हैं।
रूपनगर (रोपङ) की एक कब्र से आदमी के साथ कुत्ते के भी अवशेष मिले हैं।
मोहनजोदङो की खुदाई के अंतिम स्तर से प्राप्त कुछ सामूहिक नर कंकालों के प्रमीण मिले हैं।
शाकाहार तथा मांसाहार दोनों का प्रचलन था।
दास प्रथा के साक्ष्य माने गए हैं कारण-अन्नागारों के पास श्रमिक आवासों का मिलना।
उस समय सती प्रथा नहीं थी।
अपवादस्वरूप लोथल से महिला व पुरुष का संयुक्त शवाधान मिला है।
हङप्पाई लोग कढाईदार वस्त्र पहनते थे।
मोहनजोदङो से पत्थर की मूर्ति पर तिपतिया (तीन पत्तियाँ ) शॉल हैं।

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