पृथ्वीराज चौहान का इतिहास ~ Prithviraj Chouhan ~ Ancient India

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास ~ Prithviraj Chouhan

पृथ्वीराज चौहान भारतवर्ष के अंतिम हिन्दू राजा थे । उन्होंने दिल्ली व अजमेर पर लगभग 24 वर्षों तक शासन किया । दिल्ली का महत्व जितना आज है उतना ही महत्व उस जमाने में भी था । सामरिक, आर्थिक, व्यापारिक व भौगोलिक दृष्टि से दिल्ली एक शक्तिशाली राज्य था । दिल्ली पर जिसका अधिकार होता था वह पूरे भारतवर्ष का राजा माना जाता था।

पृथ्वीराज चौहान

दोस्तों, तराईन में पृथ्वीराज चौहान की हार ने इस देश को गुलामी की गर्त में धकेल दिया । पहले तुर्कों ने, फिर मुगलों ने व बाद में अंग्रेजों ने इस देश को गुलाम बनाये रखा । इस प्रकार लगभग 800 वर्षों तक भारत पर विदेशियों का शासन रहा । अनेकों कुर्बानियों व संघर्षों के बाद वर्ष 1947 में भारत को इस गुलामी से मुक्ति मिली ।


पृथ्वीराज चौहान का प्रारंभिक जीवन

पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही वीर, साहसी, पराक्रमी व सभी युद्ध कलाओं में निपुण व्यक्ति थे । उन्हें पृथ्वीराज तृतीय व राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है । पृथ्वीराज चौहान को संस्कृत, प्राकृत, मागधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश आदि भाषाओँ का अच्छा ज्ञान था इसके अलावा वह मीमांसा, वेदान्त, वेद, पुराण, गणित, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी अच्छा खासा ज्ञान रखते थे । पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने, हाथी व अश्व नियंत्रण विद्या में भी निपुण थे।

पृथ्वीराज चौहान की जन्म तिथि को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है । कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनका जन्म गुजरात में 1 जून 1149 ई. को हुआ वहीं कुछ इतिहासकार उनकी जन्म तिथि 1168 ई. बताते हैं । पृथ्वीराज महाकाव्य के अनुसार पृथ्वीराज का जन्म 1 जून 1163 ई. में गुजरात के पाटन में हुआ था  । इनके पिता सोमेश्वर चौहान थे जो पृथ्वीराज चौहान के जन्म के कुछ वर्षों बाद अजमेर के शासक बने । इनकी माता का नाम कर्पूर देवी था जो दिल्ली के तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी थीं । पृथ्वीराज चौहान का एक छोटा भाई भी था जसका नाम हरिराज था । 

पृथ्वीराज चौहान अपने माता-पिता व भाई के साथ पाटन (गुजरात ) में रहते थे । यहीं पर पृथ्वीराज चौहान का पालन पोषण हुआ । उस समय अजमेर पर पृथ्वीराज द्वितीय का राज था । पृथ्वीराज द्वितीय की मृत्यु के पश्चात सोमेश्वर चौहान अपने परिवार के साथ अजमेर आ गए । अजमेर पहुंचकर सोमेश्वर चौहान ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली । कुछ वर्षों पश्चात सोमेश्वर चौहान की मृत्यु हो गई । पिता की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान को अजमेर की गद्दी पर बैठाया गया ।

पृथ्वीराज चौहान का राज्याभिषेक

1179 ई. में पिता की मृत्यु के पश्चात उन्होंने अजमेर की गद्दी संभाली तथा अपनी माँ की देखरेख में शासन किया । दिल्ली में उस समय तोमर वंश के शासक अनंग पाल द्वितीय का शासन था जो पृथ्वीराज चौहान के नाना थे । अनंग पाल के कोई पुत्र नहीं था बल्कि उनके दो पुत्रियां थीं सुंदरी व कमला । सुंदरी का विवाह कन्नौज के राजा विजयपाल के साथ हुआ जिसका पुत्र जयचंद था जबकि कमला (कर्पूर देवी) का विवाह सोमेश्वर चौहान के साथ हुआ । पुत्र न होने के कारण अनंग पाल ने पृथ्वीराज चौहान को अपना उत्तराधिकारी बनाया । 1168 ई. में अनंगपाल की मृत्यु की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली की गद्दी संभाली । दिल्ली की सीमाएं काफी विस्तृत भू भाग में फैली हुई थीं । 

पृथ्वीराज चौहान के युद्धाभियान

नागार्जुन से युद्ध

1178 ई. में पृथ्वीराज चौहान के चचेरे भाई नागार्जुन ने विद्रोह कर गुडपुर (सम्भवतः वर्तमान गुरुग्राम) पर अधिकार कर लिया । नागार्जुन, विग्रहराज चतुर्थ का पुत्र था । दोनों पक्षों में भीषण झड़पें हुईं जिसमें नागार्जुन पृथ्वीराज चौहान के हाथों मारा गया । पृथ्वीराज चौहान ने नागार्जुन व उसके सहयोगियों के सिर काटकर दुर्ग के द्वारा पर लटकवा दिए ।

गुजरात के भीमदेव चालुक्य से युद्ध

पृथ्वीराज चौहान के चाचा कान्हदेव ने भीमदेव के चाचा सारंगदेव के सात पुत्रों की हत्या कर दी थी । इस बात का प्रतिशोध लेने के लिए भीमदेव ने अजमेर राज्य पर आक्रमण किया तथा सोमेश्वर चौहान की हत्या कर नागौर पर अधिकार कर लिया । प्रतिउत्तर में  पृथ्वीराज चौहान ने गुजरात पर आक्रमण कर भीमदेव को मार डाला ।

महोबा का युद्ध

1182 ई. में पृथ्वीराज चौहान ने बुंदेलखंड पर अधिकार करने के उद्देश्य से आक्रमण कर दिया । बुंदेलखंड पर उस समय चंदेल राजा परमर्दिदेव (परमाल) का शासन था । इनकी राजधानी महोबा थी । 

राजा परमाल के सेनापति आल्हा व ऊदल पर महोबा की रक्षा की जिम्मेदारी थी । आल्हा व ऊदल दोनों भाई थे । दोनों ने पृथ्वीराज चौहान की सेना का डटकर मुकाबला किया । इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान का पुत्र सूरज सिंह, राजा परमाल का पुत्र रंजीत सिंह तथा वीर अभई मारे गए । ऐसा कहा जाता है वीर अभई का सिर धड़ से अलग होने के बावजूद भी घंटों युद्ध लड़ता रहा । 

आल्हा का भाई ऊदल पृथ्वीराज चौहान के हाथों युद्ध में मारा गया । ऊदल की मौत पर आल्हा ने अपना आपा खो दिया । उसने पृथ्वीराज चौहान को मारने की शपथ ली । आल्हा काल बनकर पृथ्वीराज चौहान की सेना पर टूट पड़ा । आल्हा के जबरदस्त प्रहार से पृथ्वीराज चौहान घायल हो गया । हालांकि आल्हा ने अपने गुरु गोरखनाथ के आदेश पर पृथ्वीराज चौहान को जीवित छोड़ दिया । ऐसा कहा जाता है कि यह युद्ध आल्हा का अंतिम युद्ध था इसके पश्चात उसने युद्ध से सन्यास ले लिया ।

संयोगिता की कहानी

पृथ्वीराज चौहान व कन्नौज के शासक जयचंद गहड़वाल मौसेरे भाई होने के बावजूद एक दूसरे के कट्टर शत्रु थे । इसके पीछे दो प्रमुख कारण थे पहला राजा अनंग पाल द्वारा जयचंद के बजाय पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का उत्तराधिकारी बना देना तथा दूसरा कारण पृथ्वीराज चौहान का जयचंद की पुत्री संयोगिता से प्रेम करना । हालांकि कुछ इतिहासकार इन दोनों की प्रेम कहानी को मनघडंक बताते हैं । कहानी के अनुसार राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता बेहद खूबसूरत थी । उसकी खूबसूरती के चर्चे दूर- दराज तक थे । पृथ्वीराज चौहान ने जब संयोगिता की खूबसूरती के चर्चे सुने तो वह उससे प्रेम करने लगा । इधर संयोगिता ने भी पृथ्वीराज चौहान की बहादुरी के किस्से सुने तो वह भी प्रभावित होकर पृथ्वीराज चौहान से प्रेम करने लगी । कुछ समय पश्चात संयोगिता के स्यंवर का आयोजन किया गया । जयचंद द्वारा देश-भर से सभी राजाओं को इस स्यंवर में आमंत्रित किया गया लेकिन दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान को नहीं बुलाया गया । बल्कि पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए उसका पुतला बनवाकर द्वारपाल की जगह खड़ा कर दिया । स्वयंवर का कार्यक्रम आरम्भ हुआ । संयोगिता ने दरबार में बैठे सभी राजाओं को छोड़कर द्वार पर खड़े पृथ्वीराज चौहान के पुतले को माला पहना दी । तभी घोड़े पर सवार होकर पृथ्वीराज चौहान भी वहां पहुंच गया ओर संयोगिता को वहां से उठाकर ले गया । अजमेर में पहुंचकर दोनों ने शादी कर ली । इसी अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद ने मोहम्मद गोरी को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया ।

तराईन की पहली लड़ाई (1191 ई.)

दोस्तों, तराईन को वर्तमान में तरावड़ी के नाम से जाना जाता है जो हरियाणा राज्य के करनाल में स्थित है । इस स्थान पर 1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान व गोर वंश के अंतिम शासक मोहम्मद गोरी युद्ध हुआ जिसे तराईन का प्रथम युद्ध कहा जाता है । इस युद्ध का कारण मोहम्मद गोरी की दिल्ली पर अधिकार करने की लालसा थी । उसने बठिंडा (तरबहिन्द) पर अधिकार कर लिया था जो दिल्ली राज्य की सीमा में आता था । मोहम्मद गोरी का दिल्ली की सीमा पर पहुंच जाना पृथ्वीराज चौहान के लिए एक चुनौती के रूप में था अतः दोनों के मध्य युद्ध अवश्यम्भावी हो गया था । दोनों सेनाओं के मध्य भीषण संघर्ष हुआ । राजपूती सेना के प्रहार से तुर्की सेना भाग खड़ी हुई । मोहम्मद गोरी भी बुरी तरह घायल हो गया था । उसे बंदी बना लिया गया लेकिन कुछ महीनों बाद पृथ्वीराज चौहान ने उसे दया की भीख दे दी व उसे रिहा कर दिया ।

तराईन की दूसरी लड़ाई (1192 ई.)

एक वर्ष बाद ही तराईन का दूसरा युद्ध हुआ । इस युद्ध में मोहम्मद गोरी की सेना पूरी तैयारी व जोश के साथ उतरी । इसके विपरीत पृथ्वीराज चौहान ने तुर्की सेना को हल्के में लिया क्योंकि पिछले युद्ध में यह सेना पीठ दिखाकर भाग खड़ी हुई । इसके अलावा इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के पास 3 लाख सैनिक थे जबकि मोहम्मद गोरी की पास मात्र 1 लाख 20 हजार सैनिक । पहले तो पृथ्वीराज चौहान की सेना तुर्कों पर भारी पड़ती दिखी लेकिन वह ज्यादा समय तक टिक नहीं पाई । पृथ्वीराज चौहान का प्रमुख सामंत गोविन्दराज लड़ता हुआ मारा गया । पृथ्वीराज चौहान भी बुरी तरह घायल हो गए थे । इस युद्ध में जयचंद गहड़वाल ने मोहम्मद गोरी का साथ दिया था । मोहम्मद गोरी ने दिल्ली व अजमेर पर अधिकार कर लिया । पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया गया । दिल्ली व अजमेर का भार कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपकर मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान को लेकर गजनी चला गया ।

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु

मोहम्मद गोरी ने गजनी पहुंचकर पृथ्वीराज चौहान को काल कोठरी में डाल दिया । यहां पृथ्वीराज चौहान को अत्यधिक शारीरिक पीड़ाएं दी गईं । पृथ्वीराज चौहान की गर्म सरिये डालकर दोनों आँखे फोड़ दी गईं । पृथ्वीराज चौहान का प्रिय मित्र चंदबरदाई उससे मिलने गजनी के दरबार में पहुंचा । गजनी पहुंचते ही चंदबरदाई को पृथ्वीराज चौहान के साथ जेल में डाल दिया । यहां दोनों ने मोहम्मद गोरी को मारने की योजना बनाई । मोहम्मद गोरी ने उन दिनों गजनी में एक तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया । पृथ्वीराज चौहान व चंदबरदाई के लिए यह अच्छा मौका था मोहम्मद गोरी की हत्या करने का । चंदबरदाई ने मोहम्मद गोरी को संदेश भिजवाया की इस तीरंदाज प्रतियोगिता में पृथ्वीराज चौहान भी भाग लेना चाहता है क्योंकि वह शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर है । मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान की हत्या करने से पहले उसके इस हुनर को देखना चाहता था ।

प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । योजना के अनुसार चंदबरदाई ने कविता की भाषा में पृथ्वीराज चौहान को यह बता दिया कि इस समय मोहम्मद गोरी कहाँ, किस दिशा में व पृथ्वीराज चौहान से कितनी दूरी पर बैठा है । पृथ्वीराज चौहान ने अंधे होने के बावजूद मोहम्मद गोरी की छाती पर सटीक निशाना लगाया ओर वह तुरंत ही मारा गया । मोहम्मद गोरी को मारने के बाद पृथ्वीराज चौहान व चंदबरदाई ने एक-दूसरे के पेट में छुरा घोंपकर हत्या कर ली । हालांकि कुछ इतिहासकार इस दावे को सही नहीं मानते हैं । उनके अनुसार मोहम्मद गोरी 1206 ई. तक जीवित था ।

पृथ्वीराज चौहान का मूल्यांकन

पृथ्वीराज चौहान भारत का अंतिम हिन्दू राजा था । वह एक वीर, प्रतापी व प्रजावत्सल शासक था । वह कला व साहित्य का संरक्षक था । चंदरबरदाई (पृथ्वीराज रासो के रचयिता) उनके मित्र व प्रमुख कवि थे इसके अलावा पृथ्वीराज के दरबार में  जयानक भट्ट (पृथ्वीराज विजय के रचयिता), विद्यापति गौड़, जनार्दन, विष्वरूपा व बागेष्वर आदि विद्वान थे ।

हालांकि कुछ इतिहासकार पृथ्वीराज चौहान की प्रशंसा के साथ-साथ उसकी आलोचना करते हुए लिखते हैं कि पृथ्वीराज एक अदूरदर्शी शासक था । उसने अपने पड़ोसी राज्यों के साथ कभी अच्छे संबंध नहीं रखे । उसने कन्नौज जैसे शक्तिशाली राज्य को अपना दुश्मन बनाकर अदूरदर्शिता का परिचय दिया । यदि वह कन्नौज के साथ मैत्री संबंध रखता तो मोहम्मद गोरी भारत पर आक्रमण करने की कभी हिम्मत नहीं करता । व्यापक साम्राज्य होने के कारण उसके ऐशो-आराम भी बढ़ गए थे वह भोग-विलास में डूबा रहता था । उसकी इन्हीं गलतियों के कारण इस देश की सत्ता विदेशी आक्रांताओं के हाथों में चली गयी जिसका खामियाजा देश को 800 वर्षों की गुलामी के रूप में भुगतना पड़ा । इन आक्रांताओं ने 800 वर्षों तक देश को जी भर कर लूटा ।

दोस्तों ये सभी जानकारियां इतिहास की अलग अलग लेखकों द्वारा लिखी गई किताबों व इंटरनेट से ली गई है । हमने सभी का समावेश इस आर्टिकल में किया है ताकि आपको सही व सटीक जानकारी एक पेज पर मिल सके । किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिये हम क्षमाप्रार्थी हैं ।

धन्यवाद

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