विजय स्तम्भ ~ The tower of Victory ~ Ancient India

विजय स्तम्भ ~ The tower of Victory

विजय स्तम्भ (Vijay Stambh) को Victory Tower तथा कीर्ति स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है । इस भव्य इमारत का निर्माण मेवाड़ के शासक महाराणा कुम्भा ने मालवा के शासक महमूद खिलजी से सारंगपुर युद्ध में विजय के उपलक्ष्य में 1440 ई.- 1448 ई. के मध्य चितौड़गढ़ में करवाया था । 9 मंजिला विजय स्तम्भ की ऊंचाई 37.19 मीटर (लगभग 122 फीट) तथा चौड़ाई लगभग 30 फीट है ।

नीचे से चौड़ाकार, बीच में संकरा तथा ऊपर से पुनः चौड़ा डमरु के आकार का यह स्तम्भ भारतीय स्थापत्य कला की बारीक एवं सुंदर कारीगरी का एक अद्भुत नमूना है । ऊपर चढ़ने के लिए इसमें 157 सीढियां हैं ।

महाराणा स्वरूप सिंह के शासनकाल (1842 ई.-1861 ई.) में विजय स्तम्भ की 9वीं मंजिल पर आसमानी गिरने के कारण उनके द्वारा इस मंजिल का पुननिर्माण करवाया गया था ।

भगवान विष्णु को समर्पित इस स्तम्भ को हिन्दू देवी-देवताओं का अजायबघर तथा भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोश भी कहा जाता है । विजय स्तम्भ में भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों की मूर्तियां होने के कारण इसे विष्णुधवज स्तम्भ भी कहा जाता है । विजय स्तम्भ की तीसरी मंजिल पर नौ बार अल्लाह लिखा हुआ है । 15 अगस्त 1949 को विजय स्तम्भ पर राजस्थान की पहली डाक टिकट जारी हुई थी । माध्यमिक शिक्षा बोर्ड,राजस्थान तथा राजस्थान पुलिस ने विजय स्तम्भ को अपने प्रतीक चिन्ह के रुप में अपनाया ।

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