भारत से लौटने के पश्चात बेबीलोन में 323 ई.पू. में सिकन्दर की मृत्यु हो जाती है । सिकंदर अपनी मृत्यु के समय एक विशाल साम्राज्य अपने पीछे छोड़ कर गया था । जिसमें से मेसोपोटामिया, फिनीशिया, जुदेआ, गाझा, ईरान, मिस्र, मैसेडोनिया, सीरिया, बैक्ट्रिया, पार्थिया,अफगानिस्तान एवं उत्तरी-पश्चिम भारत (पंजाब) के कुछ भाग शामिल थे ।
सिकन्दर की सेना में कई सेनापति थे जो सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात उसके द्वारा विजित इन क्षेत्रों के बंटवारे को लेकर आपस में लड़ते हैं । सिकन्दर की सेना के दो प्रभावशाली सेनापति थे सेल्यूकस निकेटर और ऐन्टिगोनस । ये दोनों सेनापती मिलकर सिकंदर के बाकी के सेनापतियों से युद्ध करते हैं तथा उनसे उनके (सिकन्दर द्वारा विजित) सभी छोटे -बड़े राज्य छीन लेते हैं । इस प्रकार सिकंदर के द्वारा विजित सभी क्षेत्रों पर सेल्यूकस निकेटर तथा ऐन्टिगोनस दोनों सेनापतियों का अधिकार हो जाता है । कुछ समय तक दोनों ने मिलकर इन राज्यों पर शासन किया । लेकिन 301 ई.पू. में दोनों के मध्य ईम्पस का युद्ध होता है जिसमे ऐन्टिगोनस की पराजय होती है तथा सेल्यूकस सभी क्षेत्रों पर अधिकार कर लेता है । हालांकि इससे पहले 305-304 ई.पू. में सेल्यूकस भारत में सिकन्दर द्वारा जीते गए क्षेत्रों पर पुनः अधिकार करने के उद्देश्य से आक्रमण करता है लेकिन यहाँ चन्द्रगुप्त मौर्य की विशाल सेना के हाथों उसे पराजित होना पड़ता है । सेल्यूकस को चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि करनी पड़ती है जिसके परिणामस्वरूप उसे काबुल,कंधार तथा बलूचिस्तान के कुछ क्षेत्र चन्द्रगुप्त मौर्य को देने पड़ते हैं । इसके साथ ही वह अपनी पुत्री हेलेना का विवाह भी चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ कर देता है तथा अपना एक राजदूत मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में छोड़ता है ।
एण्टियोकस-I तथा फिलाडेल्फस(टॉलेमी-II)
बिन्दुसार मौर्य के समय में सीरिया और मिस्र स्वतंत्र हो गए थे । उस समय मिस्र पर फिलाडेल्फस(टॉलेमी-II) का तथा सीरिया पर एण्टियोकस-I (सेल्यूकस का पुत्र) का अधिकार हो गया था । हालाँकि इन शासकों ने सिकन्दर के शासन से अपने आप को पूरी तरह से अलग नहीं किया था तथा इन्होने सिकन्दर के उत्तराधिकारी के रूप में शासन किया । एण्टियोकस-I (293 ई.पू.) ने एशिया माइनर में रहने वाली गाल जनजाति (एक बर्बर जनजाति) को पराजित कर अपने राज्य के लोगों की उनसे रक्षा की थी तथा उसने सोटर या सेवियर (बचाने वाला) की उपाधि धारण की। बिन्दुसार मौर्य के सीरिया के तत्कालीन शासक एण्टियोकस-I के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे तथा वह अक्सर पत्र व्यवहार द्वारा एण्टियोकस-I से सूखी अंजीर तथा मीठी शराब की मांग करता था । सीरियाई शासक एण्टियोकस-I ने अपने एक राजदूत डायमेकस को बिन्दुसार मौर्य के दरबार में भेजा था । मिश्र के तत्कालीन शासक फिलाडेल्फस(टॉलेमी-II) ने भी अपना एक राजदूत डायोनिसस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था ।
बैक्ट्रिया तथा पार्थिया
बैक्ट्रिया(बल्ख) हिन्दुकुश पर्वत के उत्तर तथा पामीर के पश्चिम में स्थित क्षेत्र को कहा जाता था जिसमें वर्तमान का अफगानिस्तान, तजाकिस्तान तथा उज्बेकिस्तान का कुछ क्षेत्र सम्मलित था । इतिहासकार स्ट्रेबो के अनुसार बैक्ट्रिया को 'आर्यना का गौरव' कहा जाता था । बैक्ट्रिया में सीथियन जनजाती (शक या बर्बर) के लोग रहते थे इसके अलावा यहां यूनानी तथा ईरानी लोग मिश्रित रूप से रहते थे ।
266 ई.पू. में एण्टियोकस-II (सेल्यूकस का पौत्र) एण्टियोकस-I का उत्तराधिकारी शासक बनता है । लेकिन वह एक अयोग्य शासक था वह शराब और अय्याशी में डूबा रहता था ।उसने थियस (देवता) की उपाधि भी धारण की थी ।यही कारण था की एण्टियोकस-II के समय में लगभग 250 ई.पू. में विद्रोह होता है और बैक्ट्रिया तथा पार्थिया स्वतंत्र(सिकन्दर के साम्राज्य से) हो जाते हैं । इस विद्रोह के फलस्वरूप बैक्ट्रिया में डायोडोटस-I तथा पार्थिया में आरेक्सस ने स्वंय को स्वतंत्र सम्राट घोषित कर दिया । डायोटोडस-I एण्टियोकस -I के बैक्ट्रिया प्रान्त का गवर्नर था तथा वह बैक्ट्रिया का सबसे प्रभावशाली नेता था । लेकिन इस समय डायोडोटस-I के पास एक विशाल सेना थी और वहां की जनता का भी सहयोग था इस मौके का फायदा उठाकर उसने विद्रोह कर दिया और बैक्ट्रिया को सिकंदर के साम्राज्य से स्वतंत्र करवाकर वहां का शासक बन गया । वह पार्थिया को भी अपने अधिकार के करना चाहता था । दोनों राज्यों में कई बार झड़प होती हैं लेकिन डायोडोटस-I अपने मकसद में कभी कामयाब नहीं हो पता है क्योंकि पार्थिया पर आरेक्सस का अधिकार था जिसके पास भी डायोडोटस-I का मुकाबला करने के लिए बहुत बड़ी सेना थी ।
डायोडोटस-I के पश्चात् डायोडोटस-II ने बैक्ट्रिया पर शासन किया । हालांकि डायोडोटस-I का शासन अभी सेल्यूकस नीतियों के अधीन था । लेकिन डायोडोटस-II के समय एण्टियोकस-III (सीरिया का शासक तथा सेल्यूकस का उत्तराधिकारी) ने उसे पूरी तरह स्वतंत्रता दे दी थी । डायोडोटस -II एक कुशल प्रशासक था उसने अपने पिता डायोडोटस-I की पार्थिया विरोधी नीतियों में बदलाव किया तथा पार्थियन राज्य से संधि कर ली । लेकिन बाद में एक बहुत बड़ा उलटफेर होता है और डायोडोटस-II की हत्या करके यूथीडेमस-I नामक एक व्यक्ति बैक्ट्रिया पर अधिकार कर लेता है । 212 ई.पू. तक डायोडोटस वंश का शासन पूरी तरह समाप्त हो जाता है ।
एण्टियोकस-III सीरिया का एक शक्तिशाली शासक था । एण्टियोकस-III अपना राज्याविस्तार करने के लिए हिंदुकुश पर्वत पार करके काबुल घाटी होते हुए भारत पहुँचता है । उस समय काबुल पर राजा सोफागसेनस (सुभगसेन) का शासन था जो मौर्य सम्राट अशोक के वंश का था । यूनानी लेखक पोलिबियस ने सुभगसेन को 'भारतीयों का राजा' भी कहा है । एण्टियोकस-III की विशाल सेना देखकर सुभगसेन ने सांकेतिक समर्पण कर दिया तथा उसने एण्टियोकस-III को उपहारस्वरूप हाथी और मुद्राएँ दीं । इसके पश्चात् एण्टियोकस-III काबुल से ही वापिस लौट जाता है । एण्टियोकस-III को 'एण्टियोकस महान' भी कहा जाता था । वह बैक्ट्रिया तथा पार्थिया पर फिर से अधिकार स्थापित करना चाहता था । यही कारण था कि दोनों की सेनाओं के मध्य 223 ई.पू. से 187 ई.पू. तक बार-बार युद्ध हुए । लेकिन आखिर में यूथीडेमस-I अपने एक दूत टेलियस को एण्टियोकस-III के पास शांति वार्ता के लिए भेजता है जिसे एण्टियोकस-III अस्वीकार कर देता है ।
दोस्तों यूथीडेमस-I का एक पुत्र था डेमेट्रियस ,जिसके बारे में शायद आपने सुना होगा जिसे इतिहास में डेमेट्रियस-I के नाम से भी जानते हैं । हमारे पाठ्यकर्मो में भी यहीं से पढ़ाया जाता है जिसका कारण यही है की डेमेट्रियस का सम्बन्ध भारतीय इतिहास से है । डेमेट्रियस अपने पिता यूथीडेमस-I को समझाता है की वह एण्टियोकस-III से संधि वार्ता करने के लिए जायेगा । डेमेट्रियस प्रभावशाली व्यक्तित्व का था । एण्टियोकस-III डेमेट्रियस से इतना प्रभावित होता है कि वह अपनी पुत्री का विवाह उससे करा देता है ।
डेमेट्रियस
डेमेट्रियस यूथीडेमस वंश का था तथा यूथीडेमस-I का पुत्र था । 183 ई.पू. में डेमेट्रियस हिंदुकुश पर्वत पार करके भारत पहुँचता है तथा यहाँ सिंध व पंजाब के क्षेत्रों पर अधिकार कर लेता है । पंजाब में उसने साकल (सियालकोट) को अपनी राजधानी बनाया है जो वर्तमान पाकिस्तान में है । इस प्रकार पश्चिमोत्तर भारत में इंडो-यूनानी सत्ता की स्थापना करने वाला वह पहला यूनानी शासक था । डेमेट्रियस ने राजा की उपाधि धारण की तथा उसने यूनानी और खरोष्ठी लिपि के सिक्के चलवाए । डेमेट्रियस के भारत अभियान की जानकारी हमें पतंजलि के महाभाष्य,गार्गी संहिता तथा मालविकाग्निमित्रम से मिलती है । इस समय मगध पर संभवतः मौर्य सम्राट शालिशुक का शासन था । युगपुराण के अनुसार यवन साकेत,पांचाल,मथुरा तथा पुष्पपुर तक फैले हुए थे । दोस्तों यवनों के भारत पर आक्रमण के समय को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं तथा उस समय मगध पर किस मौर्य शासक का शासन था यह भी सपष्ट नहीं है ।
मिनाण्डर
मिनाण्डर भारतीय यवन शासकों में सबसे प्रसिद्ध शासक था जिसने लगभग 160 ई.पू. से 120 ई.पू. तक शासन किया । मिनाण्डर ने ही भारत में यूनानी सत्ता को स्थायित्व प्रदान किया । मिनाण्डर ने भी अपनी राजधानी साकल को ही रखा क्योंकि साकल उस समय शिक्षा और व्यपार का प्रमुख केन्द्र थी । उसने कांस्य मुद्राओं पर धर्म चक्र का चिन्ह बनवाया । मिनाण्डर का साम्राज्य उत्तर में काबुल,दक्षिण में बुंदेलखंड,पूर्व में मथुरा तथा पश्चिम में सिंध नदी (गांधार ) तक फैला हुआ था । मिनाण्डर ने खरोष्ठी तथा ब्रह्मनि लिपि का उपयोग किया ।मिनांदर के सिक्के भड़ौच गुजरात से प्राप्त हुए हैं । मिनांदर दर्शन,गणित,ज्योतिष और संगीत का ज्ञाता था । हाल ही में कौशाम्बी (रेह) नामक स्थान से मिनाण्डर का अभिलेख भी प्राप्त हुआ है । बौद्ध साहित्यों में मिनाण्डर को मिलिन्द कहा गया है । बौद्ध भिक्षु नागसेन तथा मिनाण्डर के बीच बौद्ध विचारों को लेकर वाद-विवाद होता है जिसके फलस्वरूप मिनाण्डर नागसेन से बहुत प्रभावित होता है तथा बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लेता है । नागसेन ने मिनाण्डर के साथ इस वाद-विवाद का विवरण अपनी पुस्तक 'मिलन्दपन्हो' में दिया है जो पाली भाषा में है ।
यूक्रेटाइडस
भारत आने के पश्चात डेमेट्रियस ने बैक्ट्रिया पर अपना ध्यान हटा लिया जिस वजह से बैक्ट्रिया में यूक्रेटाइडस के नेतृत्व में विद्रोह हो गया तथा उसने बैक्ट्रिया के सिंहासन पर कब्ज़ा कर लिया । इस प्रकार एक बार फिर से बैक्ट्रिया में सत्ता परिवर्तन होता है नए वंश यूक्रेटाइडस का शासन शुरू हो जाता है । बैक्ट्रिया पर अधिकार करने के पश्चात यूक्रेटाइडस भारत आता है और यहाँ तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाता है ।
एण्टियालकीड्स
एण्टियालकीड्स यूक्रेटाइडस वंश का सबसे महत्वपूर्ण राजा था । एण्टियालकीड्स ने भी तक्षशिला को ही अपनी राजधानी बनाया । एण्टियालकीड्स ने अपने एक राजदूत हेलियोडोरस को शुंग शासक भागभद्र के दरबार में विदिशा भेजा । विदिशा आकर वह यहाँ वैष्णव धर्म से प्रभावित होता है तथा वैष्णव धर्म अपना लेता है । उसने विदिशा में बेसनगर के पास गरुड़ स्तम्भ की स्थापना की । यूक्रेटाइडस वंश के समय तक्षशिला (विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय) का वैभव चरम सीमा पर पहुँच गया था । हर्मियस यूक्रेटाइडस वंश का अन्तिम शासक था ।
दोस्तों एक प्राचीन किताब है जिसमे भारत के लगभग 200 बंदरगाहों की एक सूची दी गयी है । इस किताब का नाम है Periplus of the Erythraean Sea जो कि लगभग 80 ई. में एक अनाम व्यक्ति द्वारा लिखी गयी थी । ऐसा अनुमान लगाया जाता है की इस किताब को लिखने वाला एक रोमन नाविक था जिसने अपनी भारत यात्रा के दौरान ये किताब लिखी होगी ।
भारत पर इंडो-ग्रीक ( हिन्द-यवन ) साम्राज्य का प्रभाव
- सबसे पहले यूनानी (Indo Greek) शासकों ने ही सिक्कों पर नाम लिखने और तिथि लिखने का नियम शुरू किया था ।लेख वाले सिक्के तथा सोने के सिक्के भी सबसे पहले यवनों (यूनानियों) ने ही शुरू किये थे ।इसके अलावा द्विभाषायुक्त सिक्के भी यूनानियों ने सर्वप्रथम चलाये थे ।
- उत्तर पश्चिम भारत में (वर्तमान पाकिस्तान) में हेलेनिस्टिक कला का विकास किया जो आगे चलकर गांधार शैली के नाम से जानी गयी ।
- योग ,सप्ताह के 7 दिन होते हैं ये यवनों ने ही भारतियों को बताया ,ज्योतिषी तथा नक्षत्र देखकर भविष्यवाणी करना ये सभी यवनों की देन है ऐसा उल्लेख गार्गी संहिता तथा वराहमिहिर ने किया है ।
दोस्तों यदि पोस्ट अच्छी लगी तो लाइक जरूर करें तथा अपनी प्रतिक्रिया कमेंट बॉक्स में लिखे इसके साथ ही इस ब्लॉग को Follow और Subscribe भी कर लेवें क्योंकि मैं इसी प्रकार की तथ्य पर आधारित जानकारियां आपके लिए हर रोज लेकर आता हूँ ।
धन्यवाद
ConversionConversion EmoticonEmoticon