प्राचीन भारत की जानकारी: विदेशी स्रोत (Indian History) ~ Ancient India

प्राचीन भारत की जानकारी: विदेशी स्रोत (Indian History)

हमारे देश के इतिहास की जानकारी के कई विदेशी स्त्रोत व देशी स्त्रोत उपलब्ध हैं, जिसमें आज हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं कुछ विदेशी स्रोतों की ।

भारतीय इतिहास की जानकारी

विदेशी स्त्रोत

विदेशी विवरणों को चार वर्गों में विभाजित किया जाता है-युनानी, चीनी, तिब्बती एवं अरबी।

यूनानी लेखक

  • हिकेटिअस मिलेट्स (549 ई.पू. - 496 ई.पू.) ने 'ज्योग्राफी' नामक ग्रंथ की रचना की।उसका ज्ञान भी सिन्ध घाटी तक ही सीमित था।
  • हेरोडोटस(484 ई.पू. - 425 ई. पू.)ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'हिस्ट्रीज' में ईरानी व यूनानी आक्रमणों तथा भरतीय-ईरानी संबंधों पर पर्याप्त प्रकाश डाला है।हालांकि हेरोडोटस कभी भारत नहीं आया लेकिन वह हमें अपने समय के उत्तर-पश्चिम भारत की सांस्कृतिक जानकारी व राजनीतिक स्थिति का ज्ञान प्रदान करता है।उसने लिखा है:"हमारे ज्ञात राष्ट्रों में सबसे अधिक जनसंख्या भारत की है।उत्तरी भारत का भू-क्षेत्र डेरियस के सम्राज्य का 20वाँ प्रान्त है,जो 360 टैलेंट्स गोल्ड डस्ट वार्षिक भेंट चुकता है।"
  • सिकन्दर के समकालीन लेखकों के नाम -नियार्कस, आनेसिक्रिटिस एवं अरिस्टोबुल्स । इस लेखकों ने तत्कालीन भारतीय जीवन की झांकी अपने-अपने यात्रा-वृत्तान्त में प्रस्तुत किया है।
  • नियार्कस सिकन्दर का सहपाठी था तथा जहाजी बेड़े का अध्यक्ष(एडमिरल) था।इसे सिकन्दर ने सिन्धु और फारस की खाड़ी के बीच के तट का पता लगाने के लिए भेज था। इसके लेखों के उद्वरण स्ट्रेबो तथा एरियन के लेखों में मिलते हैं।
  • आनेसिक्रिटिस सिकन्दर के जहाजी बेड़े का पायलेट था। इसने नियार्कस की समुंद्री यात्रा में उसका साथ दिया था और बाद में उसने अपनी इस यात्रा तथा भारत के बारे में एक पुस्तक लिखी।इसने 'सिकन्दर की जीवनी' भी लिखी है।
  • अरिस्टोबुल्स एक भूगोलविद था।इसे सिकन्दर ने कुछ उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सोंपे थे इसने 'हिस्ट्री ऑफ द वार'(युद्ध का इतिहास)में अपने निजी अनुभवों का वर्णन किया है।
  • मेगस्थनीज(350 ई.पू. -290 ई.पू.)का जन्म एशिया माईनर(आधुनिक तुर्की)में हुआ।वह फारस ओर बेबीलोन के यूनानी शासक सेल्यूकस के राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया और 6 वर्षों तक(302 ई. पू.-296 ई. पू.) पाटिलपुत्र में निवास किया।उसने भारत की तत्कालीन सामाजिक तथा राजनीतिक परिस्थिति के विषय में लिखा।यद्धपि उसकी मूल पुस्तक 'इण्डिका'(Indica) उपलब्ध नहीं किन्तु अन्य ग्रन्थों में इसके उध्दरण प्राप्त होते हैं।
  • डायमेकस को सेल्यूकस के उत्तराधिकारी व सीरिया के तत्कालीन शासक एण्टियोकस I ने अपना राजदूत बनाकर मौर्य शासक बिन्दुसार(298 ई.पू.-273 ई. पू.) के दरबार में भेजा।इसका लिखा हुआ मूल ग्रंथ उपलब्ध नहीं है,किन्तु स्ट्रैबो ने अपने लेखों में एक-दो बार उसके कथनों का उद्धरण दिये हैं।
  • डायोनिसस को मिस्र के तत्कालीन शासक फिलाडेलफ़(टॉलेमी II) ने अपना राजदूत बनाकर बिन्दुसार(298 ई.पू.-273 ई.पू.) के दरबार मे भेजा।इसका भी मूल ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है किन्तु उसके विवरण का उपयोग बाद के लेखकों ने अपने ग्रन्थों में किया है।
  • पेट्राक्लीज (250 ई.पू.)यूनानी शासक सेल्यूकस और एण्टियोकस I के अधीन केस्पियन सागर व सिन्धु नदी के बीच के प्रान्तों का गवर्नर था।इसके अपने ग्रन्थ 'पूर्वी देशों का भूगोल'के भारत तथा अन्य देशों का विवरण किया है।
  • टिमोस्थीन, फिलाडेलफ़ के बेड़े का नौसेनाध्यक्ष था।
  • एलीयन(100 ई.पू.), जो कि एक यूनानी इतिहासकार था, के ग्रन्थ 'ए कलेक्शन ऑफ मिस्सेलिनीयस हिस्ट्री' में पश्चिमोत्तर प्रान्त के वर्णन मिलता है।
  • डियोडोरस (36 ई.पू.) यूनान का प्रसिद्ध इतिहासकार था। 'बिबलियोथिका हिस्टोरिका' इसकी प्रसिद्धि का आधार है।इसने मेगस्थनीज़ से प्राप्त विवरण के आधार पर भारत के बारे में लिखा है।इसके ग्रन्थ से सिकंदर के भारत अभियान और भारत के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
  • स्ट्रैबो (64 ई.पू. - 19 ई.पू.) एक प्रसिद्ध इतिहासकार व भूगोलवेत्ता था।इसने देश-विदेश में भ्रमण का व्यापक अनुभव प्राप्त किया था।इसका ग्रन्थ 'ज्योग्राफिया' इतिहास में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है।स्ट्रैबो ने सेल्यूकस और सेन्ड्रोकोटस(चन्द्रगुप्त मौर्य) के बीच वैवाहिक संबंधों का उल्लेख किया है।इसने चन्द्रगुप्त मौर्य की महिला अंगरक्षकों का जिक्र किया है।
  • कर्टियस(1 सदी ई.)रोमन सम्राट क्लॉडियस(41 ई.-54 ई.) का समकालीन था।इसकी पुस्तक में सिकन्दर के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
  • प्लूटार्क (45 ई.-125ई.)के विवरणों में सिकन्दर के जीवन और भारत का सामान्य विवरण सम्मिलित है।इसके विवरण में चन्द्रगुप्त का उल्लेख एंड्रोकोट्टस के रूप में मिलता है।इसमें लिखा है:''युवावस्था में वह सिकन्दर से मिला था।''
  • 'पेरिप्लस ऑफ एरिथ्रियन सी' अर्थात लाल सागर का भ्रमण(80 ई.-115 ई.) का अज्ञातनामा यूनानी लेखक 80 ई.के लगभग हिन्द महासगार की यात्रा पर आया था।इसने इस ग्रंथ में भारत के तटों, बंदरगाहों एवं उसमे होने वाले व्यपार का जिक्र किया है।यह ग्रन्थ 'समुद्री व्यापार की गाईड' के रूप में जानी जाती है।
  • एरियन (130 ई.-172 ई.) एक प्रसिद्ध यूनानी इतिहासकार था।इसने 'इण्डिका' और 'एनाबेसिस' (सिकन्दर के अभियान का इतिहास)नामक दो ग्रन्थ लिखे।ये दोनों ग्रन्थ सिकन्दर के समकालीन लेखकों व मेगस्थनीज के विवरणों पर आधारित है।भारत के सम्बंध में उपलब्ध यूनानी विवरणों में एरियन का विवरण सर्वाधिक सही और प्रमाणिक है।इसके विवरण में चन्द्रगुप्त का उल्लेख एंड्रोकोट्टस के रूप में हुआ है।
  • कोसम्स इंडिकोपलुस्ट्स(537 ई.-547 ई.) एक यवन(युनानी) व्यपारी था जो बाद में बौद्ध भिक्षु हो गया।इसने इन 10 वर्षों तक भूमध्यसागर, लाल सागर और फारस की खाड़ी के क्षेत्रों तथा श्रीलंका व भारत की यात्रा की।इसके प्रसिद्ध ग्रन्थ 'क्रिश्चियन टोपोग्राफी ऑफ द यूनिवर्स' से श्रीलंका तथा पश्चिम समुन्द्री तट पर स्थित अन्य देशों के साथ भारत के व्यपार के संबंद्ध में बहुमूल्य जानकरी मिलती है।

रोमन/लातिनी लेखक

  • प्लिनी(23 ई.-79 ई.):प्लिनी एक रोमन इतिहासकार था।यह कनिष्क  का समकालीन था।इसने विश्वकोशिय रचना  'नेचुरलिस हिस्टोरिया' की रचना की।इसने यूनानी तथा पसश्चिमी व्यापारियों की सूचनाओं के आधार पर भारत का विवरण दिया है।इस ग्रन्थ में भारत के पशुओं ,पौधों व खनिज-पदार्थों का विस्तृत विवरण मिलता है।साथ ही रोम(इटली) के साथ भारत के संबंधो पर प्रकाश पड़ता है।
  • टॉलेमी(2 सदी ई.):यह एक रोमन इतिहासकार था।इसके प्रसिद्ध ग्रन्थ 'ज्योग्राफी' से प्राचीन भारतीय भूगोल व व्यापार के संबंध में जानकारी मिलती है।
  • जस्टिन(2 सदी ई.): यह एक रोमन इतिहासकार था। इसने 'एपिटोम' नाम से एक ग्रन्थ लिखा। इसकी रचना यूनानी रचनाओं पर आधारित है।इसने भारत में सिकन्दर के अभियानों ओर सेन्ड्रोकोटस (चंद्रगुप्त) की सत्ता का विवरण दिया है।उत्तर-पश्चिमी भारत से यूनानी सत्ता को समाप्त करने में चन्द्रगुप्त की भूमिका के बारे में जस्टिन ने लिखा है: ''सिकन्दर की मृत्यु के बाद भारत नें अपनी गर्दन से दासता का जुआ उतार कर फेंक दिया और अपने (यूनानी) क्षत्रपों(गवर्नरों)की हत्या कर डाली।यूनानी शासक के विरुद्ध इस मुक्ति युद्ध का नायक चंद्रगुप्त था।''

चीनी लेखक

  • सुमाशिन(1सदी ई.पू.): भारत के बारे में लिखने वाला पहला लेखक था ।

  • फाह्यान (399-414 ई.): गुप्त शासक चंद्रगुप्त-II विक्रमादित्य के शासन काल में 399 ई.में भारत आया । 15-16 वर्षों तक (399-414) यह धर्मजिज्ञासु भारत में रहा और बौद्ध धर्म सम्बन्धी तथ्यों का ज्ञानार्जन करता । वह मूलतः 'विनयपिटक' की एक प्रति की प्राप्ति हेतु भारत आया था । चीन वापिस लौटकर 'फ़ो-क्वो-की'(बौद्ध राज्यों का विवरण) नाम से यात्रा वृतांत लिखा ।यह ग्रन्थ आज भी अपने मूल रूप में प्राप्य है । इससे गुप्तकालीन इतिहास,सभ्यता  और संस्कृति पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है ।

तिब्बती लेखक

तारानाथ (12 वीं सदी ईसा पूर्व)

प्राचीन काल से ही विदेशी व्यपारी, राजदूत, इतिहासकार, धर्मनिष्ठ यात्री, पर्यटक आदि के रूप में भारत आते रहें हैं और उनमें से कईयों ने अपने विवरण लिख छोड़े हैं। इन विवरणों से प्राचीन भरतीय इतिहास लेखन में, विशेषकर तिथिक्रम की गुत्थी सुलझानें में बड़ी मदद मिली है।

यूनानी लेखक

सिकन्दर के पूर्ववर्ती यूनानी (ग्रीक) लेखकों के नाम हैं-स्काइलैक्स, हिलेटिअस मिलेट्स, हेरोडोटस एवं टेसियस।

स्काइलैक्स (6ठी सदी ई. पू.): भारत के बारे में लिखने वाला प्रथम यूनानी लेखक था। वह फारस (ईरान) के सम्राट डेरियस (550 ई. पू.-486 ई.पू.) का यूनानी सैनिक था।वह सम्राट के आदेशानुसार सिंधु घाटी का पता लगाने भारत आया था।उसने अपनी यात्रा का विवरण तैयार किया,किन्तु उसकी जानकारी विशेषकर सिंधु घाटी तक ही सीमित थी।

टेसियस(416 ई.पू.- 398 ई.पू.): यूनानी राजवैद्य था तथा फारस के सम्राट अर्टाजेमेमन के दरबार मे रहता था। उसने पूर्वी देशों से लौटकर आये हुए यात्रियों के मुँह से सुन-सुनकर भारत के सम्बंध में अद्भुत कहानियों का संग्रहण किया था। 'पर्शिका' उसका प्रमुख ग्रंथ है, जो अब उपलब्ध नहीं है लेकिन उद्धरण अवश्य मिल जाते हैं जिनसे कुछ सहायता मिल जाती है। किन्तु प्रमाणिकता की दृष्टी से अधिकांश सामग्री संदेहास्पद है।

Bharat ka itihas v uski jaankari ke strot
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