शुंग वंश प्राचीन भारत का एक शासकीय वंश था जिसने मौर्य राजवंश के बाद शासन किया। पुष्यमित्र शुंग इस राजवंश का प्रथम शासक था।
महाभाष्य में पतञ्जलि और पाणिनि की अष्टाध्यायी के अनुसार पुष्यमित्र शुंग भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण थे।
शुंग वंश के राजा थे। कालिदास ने इसको अपने नाटक का पात्र बनाया है, जिससे प्रतीत होता है कि कालिदास का काल इसके ही काल के समीप रहा होगा।
अग्निमित्र के बाद वसुज्येष्ठ (141 - 131 ई. पू.),
वसुमित्र (131-124 ई. पू.),
अन्ध्रक (124- 122 ई. पू.),
पुलिन्दक (122- 119 ई. पू.) ,
घोष शुङ्ग,
वज्रमित्र,
भगभद्र,
देवभूति (83-73 ई. पू.) क्रमानुसार शासकों ने 112 वर्ष तक शासन किया ।
पुष्यमित्र शुंग(185 – 149 ई॰पू॰)
उत्तर भारत के शुंग साम्राज्य के संस्थापक और प्रथम राजा थे। इससे पहले वो मौर्य साम्राज्य में सेनापति थे। 185 ई॰पूर्व में उन्होंने अन्तिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की सैन्य समीक्षा के दौरान हत्या कर दी और अपने आपको राजा उद्घोषित किया। उसके बाद उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया और उत्तर भारत का अधिकतर हिस्सा अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। शुंग राज्य के शिलालेख पंजाब के जालन्धर में पुष्यमित्र का एक शिलालेख मिले हैं और दिव्यावदान के अनुसार यह राज्य सांग्ला (वर्तमान सियालकोट) तक विस्तृत था।साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी।
पुष्यमित्र प्राचीन मौर्य साम्राज्य के मध्यवर्ती भाग को सुरक्षित रख सकने में सफल रहा। पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक फ़ैला हुआ था। दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार जालन्धर और स्यालकोट पर भी उसका अधिकार था। साम्राज्य के विभिन्न भागों में राजकुमार या राजकुल के लोगो को राज्यपाल नियुक्त करने की परम्परा चलती रही। पुष्यमित्र ने अपने पुत्रों को साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सह-शासक नियुक्त कर रखा था। और उसका पुत्र अग्निमित्र विदिशा का उपराजा था। धनदेव कौशल का राज्यपाल था। राजकुमार जी सेना के संचालक भी थे। इस समय भी ग्राम शासन की सबसे छोटी इकाई होती थी।
इस काल तक आते-आते मौर्यकालीन केन्द्रीय नियन्त्रण में शिथिलता आ गयी थी तथा सामंतीकरण की प्रवृत्ति सक्रिय होने लगी थीं।
महाभाष्य में पतञ्जलि और पाणिनि की अष्टाध्यायी के अनुसार पुष्यमित्र शुंग भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण थे।
अग्निमित्र (149-141 ई.पू.)
शुंग वंश के राजा थे। कालिदास ने इसको अपने नाटक का पात्र बनाया है, जिससे प्रतीत होता है कि कालिदास का काल इसके ही काल के समीप रहा होगा।
अग्निमित्र के बाद वसुज्येष्ठ (141 - 131 ई. पू.),
वसुमित्र (131-124 ई. पू.),
अन्ध्रक (124- 122 ई. पू.),
पुलिन्दक (122- 119 ई. पू.) ,
घोष शुङ्ग,
वज्रमित्र,
भगभद्र,
देवभूति (83-73 ई. पू.) क्रमानुसार शासकों ने 112 वर्ष तक शासन किया ।
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