344 ई.पू. - 322 ई.पू.
नंद वंश मगध, बिहार का लगभग 344-322 ई॰पू॰ के बीच का शासक वंश था, जिसका आरंभ महापद्मनंद से हुआ था।नंद शासक मौर्य वंश के पूर्ववर्ती राजा थे। मौर्य वंश से पहले के वंशों के विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं है और जो है वो तथ्य और किंवदंतियों का मिश्रण है।
महापद्म ने अपने पूर्ववर्ती शिशुनाग राजाओं से मगध की बाग़डोर और सुव्यवस्थित विस्तार की नीति भी जानी। उनके साहस पूर्ण प्रारम्भिक कार्य ने उन्हें निर्मम विजयों के माध्यम से साम्राज्य को संगठित करने की शक्ति दी। इसी ने सर्वप्रथम कलिंग की विजय की तथा वहाँ एक नहर खुदवायी गयी। इसका उल्लेख प्रथम शताब्दी ई.पू. में खारवेल के हाँथी गुम्फा अभिलेख में मिलता है।
वह कलिंग जिनसेन की जैन प्रतिमा भी उठा लाया। इससे पता चलता है कि महापदम्नन्द जैन धर्म का अनुयायी था पुराणों में इसे एकराट् और एकछत्र शासक कहा गया है। प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनी और काव्यायन इसके काल के थे।
पुराणों में उन्हें सभी क्षत्रियों का संहारक बतलाया गया है।
उन्होंने उत्तरी, पूर्वी और मध्य भारत स्थित इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अश्मक, कौरव, मैथिल, शूरसेन और वितिहोत्र जैसे शासकों को हराया। इसका उल्लेख स्वतंत्र अभिलेखों में भी प्राप्त होता है, जो नन्द वंश के द्वारा गोदावरी घाटी- आंध्र प्रदेश, कलिंग- उड़ीसा तथा कर्नाटक के कुछ भाग पर कब्ज़ा करने की ओर संकेत करते हैं।
इस वंश के शासकों की राज्य-सीमा व्यास नदी तक फैली थी। उनकी सैनिक शक्ति के भय से ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी से आगे बढ़ना अस्वीकार कर दिया था।
महान सम्राट महाराजा महापद्मनंद जो एक (नाई) शासक था जिन्होंने शासन मे क्षत्रिय कुल के एकाधिकार को खत्म किया।
उसके 10 निमन्लिखित बेटे थे:-
(1) गंगन पाल,
(2) पंडुक,
(3) पंडुगति,
(4) भूतपाल,
(5) राष्ट्रपाल,
(6) गोविषाणक,
(7) दशसिद्धक,
(8) कैवर्त और
(9) धननन्द,
(10) चन्द नन्द।
उसने राज्य की सुख समृद्धि को स्थाई रखने के लिए कुछ कठोर नियम बनाये उन्ही नियमों में से एक था ब्राह्मणों का राज्य की सीमा में प्रवेश निषिद्ध करना और इसको सुनिश्चित करने के लिए उसने एक गुप्तचरों की टुकड़ी बनाई हुई थी जिसका काम था ब्राह्मणों की राज्य के बाहर की देशद्रोही गतिविधियों पर नजर रखना !
एक बार राजा ने बुद्ध्पूर्निमा पर सामूहिक भोज का आयोजन करवाया और राज्य भर की जनता को न्योता भिजवा दिया ! इस भोज में विष्णुगुप्त नामक एक ब्राह्मण घुसपैठिया भी भेष बदल कर सम्मिलित हो गया था ! उसने स्वयं को मूलनिवासियों जैसा दिखने के लिए श्यामवर्ण में बदल लिया था लेकिन बुद्धिमान गुप्तचरों की निगाहों को धोखा ना दे पाया और पकड़ा गया उसे सम्राट के सामने लाया गया सम्राट ने उसपर दया कर उसे कुछ अपमानित करके ही छोड़ दिया जो की आगे चलकर सम्राट की भयंकर भूल साबित हुई !
यही विष्णुगुप्त आगे चलकर चाणक्य बना और सम्राट धनानंद के पतन का कारण बना ! धनानद को बर्बाद करने के लिए इस कुटिल चाणक्य ने विदेशी आक्रमणकारियों को निमंत्रण देकर देश को भयंकर युद्ध की विभीषिका में धकेल दिया !
इस ऐतिहासिक दुर्घटना को अधिक महत्त्व न दिए जाने का एक कारन यह भी है की चाणक्य ने नन्दसत्ता का पतन करवा कर चन्द्रगुप्त मौर्य को सत्ता दिलवाई और चन्द्रगुप्त का पोता महान बौद्ध सम्राट अशोक हुए !
इस सत्ताहस्तांतरण के खेल में चाणक्य स्वयं राजा नहीं बना ये उसकी कोई महानता नहीं मानी जा सकती क्यूंकि ये उसकी मज़बूरी थी की सत्ता के केंद्र में कोई मूलनिवासी ही हो !
ब्राह्मणसत्ता जनता कभी स्वीकार ना करती और विद्रोह कर देती इसलिए चाणक्य ने मूलनिवासी चन्द्रगुप्त का इस्तेमाल किया क्युकी चन्द्रगुप्त मौर्य उसके बाद बिदुसार मौर्य जैसे राजा उसके लिए वैसे ही थे जैसे ब्राह्मणों के षड्यंत्र में फंसा राजा राम I
उन्होंने मौर्य वंश द्वारा भारत को अपना धार्मिक गुलाम बनाने का पूरा षड्यंत्र किया था वो तो उनके दुर्भाग्य वश और हमारे सौभाग्यवश सम्राट अशोक ब्राह्मणवाद को शीघ्र समझ गए और उन्होंने बुद्धिज्म को स्वीकार कर देश को ब्राह्मणों के भयंकर षड्यंत्रों से बचा लिया !
इस वंश में 10 शासक हुए! महापद्मनंद के 8 पुत्रों ने बारी बारी से शासन किया !इस प्रकार इस वंश की 2 पीढ़ियों ने 40 वर्ष तक शासन किया !
नंद वंश का संस्थापक:-महापद्मनंद
स्थानीय और जैन परम्परावादियों से पता चलता है कि इस वंश के संस्थापक महापद्म, जिन्हें महापद्मपति या उग्रसेन भी कहा जाता है, समाज के निम्न वर्ग के थे।यूनानी लेखकों ने भी इस की पुष्टि की है।महापद्म ने अपने पूर्ववर्ती शिशुनाग राजाओं से मगध की बाग़डोर और सुव्यवस्थित विस्तार की नीति भी जानी। उनके साहस पूर्ण प्रारम्भिक कार्य ने उन्हें निर्मम विजयों के माध्यम से साम्राज्य को संगठित करने की शक्ति दी। इसी ने सर्वप्रथम कलिंग की विजय की तथा वहाँ एक नहर खुदवायी गयी। इसका उल्लेख प्रथम शताब्दी ई.पू. में खारवेल के हाँथी गुम्फा अभिलेख में मिलता है।
वह कलिंग जिनसेन की जैन प्रतिमा भी उठा लाया। इससे पता चलता है कि महापदम्नन्द जैन धर्म का अनुयायी था पुराणों में इसे एकराट् और एकछत्र शासक कहा गया है। प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनी और काव्यायन इसके काल के थे।
पुराणों में उन्हें सभी क्षत्रियों का संहारक बतलाया गया है।
उन्होंने उत्तरी, पूर्वी और मध्य भारत स्थित इक्ष्वाकु, पांचाल, काशी, हैहय, कलिंग, अश्मक, कौरव, मैथिल, शूरसेन और वितिहोत्र जैसे शासकों को हराया। इसका उल्लेख स्वतंत्र अभिलेखों में भी प्राप्त होता है, जो नन्द वंश के द्वारा गोदावरी घाटी- आंध्र प्रदेश, कलिंग- उड़ीसा तथा कर्नाटक के कुछ भाग पर कब्ज़ा करने की ओर संकेत करते हैं।
इस वंश के शासकों की राज्य-सीमा व्यास नदी तक फैली थी। उनकी सैनिक शक्ति के भय से ही सिकंदर के सैनिकों ने व्यास नदी से आगे बढ़ना अस्वीकार कर दिया था।
महान सम्राट महाराजा महापद्मनंद जो एक (नाई) शासक था जिन्होंने शासन मे क्षत्रिय कुल के एकाधिकार को खत्म किया।
उसके 10 निमन्लिखित बेटे थे:-
(1) गंगन पाल,
(2) पंडुक,
(3) पंडुगति,
(4) भूतपाल,
(5) राष्ट्रपाल,
(6) गोविषाणक,
(7) दशसिद्धक,
(8) कैवर्त और
(9) धननन्द,
(10) चन्द नन्द।
उसने राज्य की सुख समृद्धि को स्थाई रखने के लिए कुछ कठोर नियम बनाये उन्ही नियमों में से एक था ब्राह्मणों का राज्य की सीमा में प्रवेश निषिद्ध करना और इसको सुनिश्चित करने के लिए उसने एक गुप्तचरों की टुकड़ी बनाई हुई थी जिसका काम था ब्राह्मणों की राज्य के बाहर की देशद्रोही गतिविधियों पर नजर रखना !
एक बार राजा ने बुद्ध्पूर्निमा पर सामूहिक भोज का आयोजन करवाया और राज्य भर की जनता को न्योता भिजवा दिया ! इस भोज में विष्णुगुप्त नामक एक ब्राह्मण घुसपैठिया भी भेष बदल कर सम्मिलित हो गया था ! उसने स्वयं को मूलनिवासियों जैसा दिखने के लिए श्यामवर्ण में बदल लिया था लेकिन बुद्धिमान गुप्तचरों की निगाहों को धोखा ना दे पाया और पकड़ा गया उसे सम्राट के सामने लाया गया सम्राट ने उसपर दया कर उसे कुछ अपमानित करके ही छोड़ दिया जो की आगे चलकर सम्राट की भयंकर भूल साबित हुई !
यही विष्णुगुप्त आगे चलकर चाणक्य बना और सम्राट धनानंद के पतन का कारण बना ! धनानद को बर्बाद करने के लिए इस कुटिल चाणक्य ने विदेशी आक्रमणकारियों को निमंत्रण देकर देश को भयंकर युद्ध की विभीषिका में धकेल दिया !
इस ऐतिहासिक दुर्घटना को अधिक महत्त्व न दिए जाने का एक कारन यह भी है की चाणक्य ने नन्दसत्ता का पतन करवा कर चन्द्रगुप्त मौर्य को सत्ता दिलवाई और चन्द्रगुप्त का पोता महान बौद्ध सम्राट अशोक हुए !
इस सत्ताहस्तांतरण के खेल में चाणक्य स्वयं राजा नहीं बना ये उसकी कोई महानता नहीं मानी जा सकती क्यूंकि ये उसकी मज़बूरी थी की सत्ता के केंद्र में कोई मूलनिवासी ही हो !
ब्राह्मणसत्ता जनता कभी स्वीकार ना करती और विद्रोह कर देती इसलिए चाणक्य ने मूलनिवासी चन्द्रगुप्त का इस्तेमाल किया क्युकी चन्द्रगुप्त मौर्य उसके बाद बिदुसार मौर्य जैसे राजा उसके लिए वैसे ही थे जैसे ब्राह्मणों के षड्यंत्र में फंसा राजा राम I
उन्होंने मौर्य वंश द्वारा भारत को अपना धार्मिक गुलाम बनाने का पूरा षड्यंत्र किया था वो तो उनके दुर्भाग्य वश और हमारे सौभाग्यवश सम्राट अशोक ब्राह्मणवाद को शीघ्र समझ गए और उन्होंने बुद्धिज्म को स्वीकार कर देश को ब्राह्मणों के भयंकर षड्यंत्रों से बचा लिया !
इस वंश में 10 शासक हुए! महापद्मनंद के 8 पुत्रों ने बारी बारी से शासन किया !इस प्रकार इस वंश की 2 पीढ़ियों ने 40 वर्ष तक शासन किया !
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