पाषाण युग(30,00,000 ई. पू.-10,000 ई. पू.) ~ Ancient India

पाषाण युग(30,00,000 ई. पू.-10,000 ई. पू.)


पाषाण युग से तात्पर्य ऐसे काल से है जब लोग पत्थरों (पाषाण-संस्कृत भाषा) आश्रित थे। पत्थर के औज़ार, पत्थर की गुफ़ा ही उनके जीवन के प्रमुख आधार थे। यह मानव सभ्यता के आरंभिक काल में से है जब मानव आज की तरह विकसित नहीं था। इस काल में मानव प्राकृतिक आपादाओं से जूझता रहता था और शिकार तथा कन्द-मूल फल खाकर अपना बसर करता था।

पाषाण युग के औजारों, जलवायु परिवर्तनों के आधार पर तीन चरण माने जाते हैं:- (1.)पुरापाषाण काल(Stone Age)

आरंभिक या निम्न पुरापाषाण युग (30,00,000 ई. पू.- 10,000 ई. पू.)

यूनानी भाषा में Palaios प्राचीन एवं Lithos पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था। इन्हीं शब्दों के आधार पर Paleolithic Age (पाषाणकाल) शब्द बना । यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है। अभी तक भारत में पुरा पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाये हैं,जो कुछ भी अवशेष के रूप में मिला है, वह है उस समय प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर के उपकरण। प्राप्त उपकरणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ये लगभग 25,00,000 ई.पू. के होंगे। अभी हाल में महाराष्ट्र के 'बोरी' नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर 'मनुष्य' की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पुरानी है। गोल पत्थरों से बनाये गये प्रस्तर उपकरण मुख्य रूप से सोहन नदी घाटी में मिलते हैं।सामान्य पत्थरों के कोर तथा फ़्लॅक्स प्रणाली द्वारा बनाये गये औजार मुख्य रूप से मद्रास, वर्तमान चेन्नई में पाये गये हैं। इन दोनों प्रणालियों से निर्मित प्रस्तर के औजार सिंगरौली घाटी, मिर्ज़ापुर एंवं बेलन घाटी, इलाहाबाद में मिले हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल नगर के पास भीम बेटका में मिली पर्वत गुफायें एवं शैलाश्रृय भी महत्त्वपूर्ण हैं। 
इस समय के मनुष्यों का जीवन पूर्णरूप से शिकार पर निर्भर था। वे अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे। सम्भवतः इस समय के मनुष्य नीग्रेटो (Negreto) जाति के थे। पुरापाषाणकालीन मानव का जीवन पूर्णतया प्रकृतिक था । वे मुख्य रूप से आखेट पर निर्भर रहते था । अग्नि के प्रयोग से अपरिचित रहने के कारण वे मांस कच्चा ही खाते थे । परन्तु बाद में 2 लाख ई.पू. और एक लाख  ई.पू. के बीच कभी मनुष्य ने आग का आविष्कार किया । उनके पास कोई निश्चित निवास स्थान नहीं था तथा उनका जीवन ख़ानाबदोश अथवा घुमक्कड़ था । जरुरत पड़ने पर वे गुफाओं,जंगलों व पेड़ों का आश्रय लेते थे । कुछ शिलाश्रयों/गोफओं जैसे की भीमबेठका / भीमबेतका आदि में चित्रकला के नमूने भी मिले हैं जोकि पुरापाषाण काल के अन्तिम चरण यानि उत्तर पुरापाषाण काल के हैं । इससे यह स्पष्ट होता है की मानव द्वारा शिला चित्र कला का आरम्भ उत्तर पाषाण काल में हो चुका था सभ्यता के इस आदिम युग में मनुष्य पषुपालन व् कर्षि-कर्म से परिचित नहीं था और न ही वह बर्तनों का निर्माण जानता था । इस काल का मानव केवल खाद्य-पदार्थों का उपभोगता था । वह अभी तक खाद्य-उत्पादक नहीं बन सका था । मनुष्य और जंगली जीवों के रहन-सहन में कोई विशेष फर्क नहीं था.वे लोग अन्तेय्ष्टि संस्कार से परिचित नहीं थे । ये लोग व्यक्ति के मरने पर बिना कोई संस्कार किये लाश को खुले में छोड़ देते थे,जहाँ वे पशु-पक्षियों के खाने के काम आते थे 


पुरापाषाणकालीन उपकरण

पुरापाषाणकालीन उपकरणों में भिन्नता के आधार पर पुरापाषाण काल को तीन कालों में विभाजित किया है-(I)निम्न पुरापाषाण काल,(II)मध्य पुरापाषाण काल (III) उतर पुरापाषाण काल

(I) निम्न पुरापाषाण काल 

निम्न पुरापाषाणकाल जिसकी कालावधि 30,00,000 ई. पू.-1,00,000 ई. पू. थी अतः इस काल में इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरणों में प्रमुख थे गँड़ासा  खंडक हस्त कुठार व विदारणी आदि 

(II)मध्य पुरापाषाण काल

मध्य पुरापाषाण काल जिसकी कालावधि 1,00,000 ई. पू- 40,000 ई. पू थी अतः इस काल में इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरणों में शल्क से बने उपकरण प्रमुख थे 

(III) उतर पुरापाषाण काल

उच्च / उतर पुरापाषाण काल  जिसकी कालावधि 40,000 ई. पू- 10,000 ई. पू थी अतः इस काल में इस्तेमाल किये जाने वाले उपकरणों में शल्क व फलक से बने उपकरण प्रमुख थे 


निम्न / पुरापाषाणकालीन स्थल


सिंधु क्षेत्र,सरस्वती क्षेत्र,गांगेय क्षेत्र,बर्ह्म्पुत्र क्षेत्र,केरल आदि को छोड़कर अधिकांश भागों में निम्न पुरापाषाणकालीन स्थल स्थित है,इन स्थलों का विस्तार क्षेत्र इस प्रकार है-
पंजाब(पाकिस्तान)-पोतवार के कोठरी भाग में स्थित सोहन नदी घाटी में पिंडी गे,अदियाल,खसरकलां,चौंतरा, बलबल, गरियाल, कसालकलां,रिवात,रंगजेब,मोगरा आदि प्रमुख पुरास्थल है 
कश्मीर-लिद्दर नदी घाटी का पहलगाम पुरापाषाण काल प्रमुख पुरास्थल है 
हिमाचल प्रदेश -व्यास -वागंगा नदीघाटी में गुलेर,देहरा,घलियाड़ा, काँगड़ा आदि प्रमुख पुरास्थल है 
राजस्थान-राजस्थान में चम्बल नदी घाटी के सोनिता,भेंसोरगढ़,गम्भीरी नदी घाटी का चितौडग़ढ़,बेराच नदी घाटी का नागरी व नागोर जिले में स्थित डिडवाना प्रमुख पुरास्थल है 
गुजरात-साबरमती नदी घाटी का हड़ोल,पाधामली,बीरपुर,हिरण नदी घाटी का उमरेठी आदि पुरापाषाण काल के प्रमुख पुरास्थल है 
मध्य प्रदेश-नर्मदा नदी घाटी क्षेत्र के होशंगाबाद जिले में स्थित हथनोरा,आजमगढ़ व् महादेव पिपरिया,रायसेन जिले में स्थित भीमबैठका,सोन नदी घाटी में सिहावल,पटपरा,बाघोर,खेतौही,नकझरखुर्द आदि पुरापाषाण काल के प्रमुख पुरास्थल है । हथनोरा में 1982 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के जीवाश्मिकी विभाग के अरुणं सोनकिया को मानव-मादा कपाल / खोपड़ी का जीवाश्म मिला है जो भारत में प्राप्त मानव-अवशेष का सबसे प्राचीन नमूना है 
उत्तर प्रदेश-बेलन नदी घाटी क्षेत्र में मिर्जापुर जिले के बंधौरा से लेकर इलाहाबाद जिले के मेजा तहसील के बेलन-टोंस संगम तक का क्षेत्र पुरापाषाण काल प्रमुख पुरास्थल रहा है 
बिहार-मुंगेर व राजगिरि में विभिन्न पुरास्थल है 
झारखण्ड -सिंहभूम,संथाल परगना,हजारीबाग,रांची जिले    में विभिन्न पुरास्थल हैं 
पश्चिम बंगाल-बांकुड़ा,पुरुलिया,बीरभूम,मिदनापुर जिले में विभिन्न पुरास्थल हैं 
उड़ीसा-बुहार-वलांग घाटी के मयूरभंज जिले में स्थित विभिन्न पुरास्थल,जैसे-कलियाना 
महाराष्ट्र-परवरा नदी घाटी क्षेत्र में नेवासा,गोदावरी नदी घाटी क्षेत्र में गंगापुर,परवरा नदी-चिरकी नाला घाटी के चिरकी-नेवासा तथा कुकड़ी नदी घाटी के बोरी  का क्षेत्र पुरापाषाण काल प्रमुख पुरास्थल रहे है 
आंध्र प्रदेश-कर्नूल,चित्तूर,नागर्जुनकोण्डा,नलकोण्डा,कुड़प्पा, नेल्लोर,प्रकाशम,महबूबनगर,आदि जिलों में विभिन्न पुरास्थल स्थित हैं 
कर्नाटक-मालप्रभा-घाटप्रभा नदी घाटी क्षेत्र  के बीजापुर जिले में आंगनबाड़ी,गुलबर्गा जिले में हूंणसगी पुरापाषाण काल के प्रमुख केंद्र हैं 
तमिलनाडु-कोरतलयार नदी घाटी (पल्ल्वराम-प्रथम पुरापाषाणकालीन स्थल जहाँ से भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण के रॉबर्ट ब्रूस फुट ने प्रस्तर उपकरण -हस्त कुठार -की खोज की,बदमदुरै,अत्तिरपक्कम, मानाजकार,बुदिदा मानुवंका,गुड़िया आदि)

(2)मध्यपाषाण काल एवं

मध्य पाषाण युग  (1,00,000 ई. पू. - 40,000 ई. पू.)

इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हें लघु पाषाणोपकरण माइक्रोलिथ कहते थे। पाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ क्वार्टजाइट के स्थान पर मध्य पाषाण काल में जेस्पर, एगेट, चर्ट और चालसिडनी जैसे पदार्थ प्रयुक्त किये गये। इस समय के प्रस्तर उपकरण राजस्थान, मालवा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश एवं मैसूर में पाये गये हैं। अभी हाल में ही कुछ अवशेष मिर्जापुर के सिंगरौली, बांदा एवं विन्ध्य क्षेत्र से भी प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाणकालीन मानव अस्थि-पंजर के कुछ अवशेष प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के सराय नाहर राय तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाणकालीन जीवन भी शिकार पर अधिक निर्भर था। इस समय तक लोग पशुओं में गाय, बैल, भेड़, घोड़े एवं भैंसों का शिकार करने लगे थे।
जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की संभावना है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं।यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है। कृषि संबंधी प्रथम साक्ष्य 'साम्भर' राजस्थान में पौधे बोने का है जो ईसा से सात हज़ार वर्ष पुराना है। 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता की एक झाँकी मिलती है।

मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में कुछ साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है कि लोग कृषि एवं पशुपालन की ओर आकर्षित हो रहे थे इस समय मिली समाधियों से स्पष्ट होता है कि लोग अन्त्येष्टि क्रिया से परिचित थे। मानव अस्थिपंजर के साथ कहीं-कहीं पर कुत्ते के अस्थिपंजर भी मिले है जिनसे प्रतीत होता है कि ये लोग मनुष्य के प्राचीन काल से ही सहचर थे।बागोर और आदमगढ़ में छठी शताब्दी ई.पू. के आस-पास मध्य पाषाण युगीन लोगों द्वारा भेड़े, बकरियाँ रख जाने का साक्ष्य मिलता है।


(3.)नवपाषाण काल  उच्च पुरापाषाण युग (40,000 ई.पू -10,000 ई.पू.)

साधरणतया इस काल की सीमा 3500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच मानी जाती है। यूनानी भाषा का Neo शब्द नवीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसलिए इस काल को ‘नवपाषाण काल‘ भी कहा जाता है। इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी। सर्वप्रथम 1860 ई. में 'ली मेसुरियर' Le Mesurier ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टौंस नदी की घाटी से प्राप्त किया। इसके बाद 1872 ई. में 'निबलियन फ़्रेज़र' ने कर्नाटक के 'बेलारी' क्षेत्र को दक्षिण भारत के उत्तर-पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया। इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के मुख्य केन्द्र बिन्दु हैं - कश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।

इस समय प्राप्त प्रस्तर औज़ार गहरे ट्रेप Dark Traprock के बने थे जिन पर एक विशेष प्रकार की पॉलिश लगी होती थी। नव पाषाण काल में चावल की खेती का प्राचीनतम साक्ष्य इलाहाबाद के नज़दीक ‘कोल्डिहवा‘ नामक स्थान से मिलता है, जिसका समय 7000-6000 ई.पू. माना जाता है। धान के अतिरिक्त महगड़ा में भी खेती का साक्ष्य मिलता है। महगड़ा में एक पशुवाड़ा भी मिला है। इस समय तक पाषाणकालीन सभ्यता काफ़ी विकसित हो गयी थी। अब मनुष्य आखेटक, पशुपालक से आगे निकल कर खाद्य पदार्थों का उत्पादक एवं उपभोक्ता भी बन गया। अब वह ख़ानाबदोश वाले जीवन को त्याग कर स्थायित्वपूर्ण जीवन की ओर आकर्षित होने लगा। उसे बर्तन बनाने की तकनीक का भी ज्ञान हो गया था। सम्भवतः वस्त्रों की जगह जानवरों की खालों का प्रयोग करते थे। नव पाषाण काल की प्राप्त कुछ पर्वत कन्दराओं और बर्तनों से चित्रकारी का आभास होता है।

कृषि कर्म का प्रारम्भ तो नव पाषाण काल में अवश्य हुआ पर सर्वप्रथम किस स्थान पर कृषि कर्म प्रारम्भ हुआ यह विवाद का विषय है। 1977 से चल रही खुदाई में अब तक प्राप्त साक्ष्यों से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सिंध और बलूचिस्तान की सीमा पर स्थित 'कच्छी मैदान' में 'बोलन नदी' के किनारे 'मेहरगढ़' नामक स्थान पर कृषि कर्म का प्रारम्भ हुआ। इस सभ्यता के लोग अग्नि का प्रयोग प्रारम्भ कर दिये थे। 'कुम्भकारी' सर्वप्रथम इसी काल में दृष्टिगोचर होती है। नव पाषाणकालीन महत्त्वपूर्ण स्थल हैं -

नव पाषाणकालीन महत्त्वपूर्ण स्थल




1. गुफकराल और बुर्ज़होम - कश्मीर


2. महगड़ा, चोपनी माण्डो और कोल्डिहवा - उत्तर प्रदेश की वेलन घाटी


3. चिरांद - बिहार


पाषाण युग मानव इतिहास के आरम्भ (25 लाख साल पूर्व) से लेकर काँस्य युग तक फ़ैला हुआ है।


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