इक्ष्वाकु वंश(रघुकुल वंश) का इतिहास(ब्रह्मा जी से सगर,भागीरथ और श्री राम तक) ~ Ancient India

इक्ष्वाकु वंश(रघुकुल वंश) का इतिहास(ब्रह्मा जी से सगर,भागीरथ और श्री राम तक)

इक्ष्वाकु वंश की वंशावली-पीढ़ी दर-पीढ़ी




1 – ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,



पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्र:- मन से मारिचि, नेत्र से अत्रि, मुख से अंगिरस, कान से पुलस्त्य, नाभि से पुलह, हाथ से कृतु, त्वचा से भृगु, प्राण से वशिष्ठ, अंगुषठ से दक्ष, छाया से कंदर्भ, गोद से नारद, इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार, शरीर से स्वायंभुव मनु, ध्यान से चित्रगुप्त आदि।


 पुराणों में ब्रह्मा-पुत्रों को 'ब्रह्म आत्मा वै जायते पुत्र:' ही कहा गया है। 

ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जिन चार-सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार पुत्रों का सृजन किया। उनकी सृष्टि रचना के कार्य में कोई रुचि नहीं थी। वे ब्रह्मचर्य रहकर ब्रह्म तत्व को जानने में ही मगन रहते थे।


 इन वीतराग पुत्रों के इस निरपेक्ष व्यवहार पर ब्रह्मा को महान क्रोध उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा के उस क्रोध से एक प्रचंड ज्योति ने जन्म लिया। उस समय क्रोध से जलते ब्रह्मा के मस्तक से अर्धनारीश्वर रुद्र उत्पन्न हुआ। ब्रह्मा ने उस अर्धनारीश्वर रुद्र को स्त्री और पुरुष दो भागों में विभक्त कर दिया। पुरुष का नाम 'का' और स्त्री का नाम 'या' रखा।


 प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वयंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया। इन दोनों ने ही प्रियव्रत, उत्तानपाद, प्रसूति और आकूति नाम की संतानों को जन्म दिया। फिर आकूति का विवाह रुचि से और प्रसूति का विवाह दक्ष से किया गया।


 दक्ष ने प्रसूति से 24 कन्याओं को जन्म दिया। इसके नाम श्रद्धा, लक्ष्मी, पुष्टि, धुति, तुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, ऋद्धि, और कीर्ति हैं। 

तेरह का विवाह धर्म से किया और फिर भृगु से ख्याति का, शिव से सती का, मरीचि से सम्भूति का, अंगिरा से स्मृति का, पुलस्त्य से प्रीति का पुलह से क्षमा का, कृति से सन्नति का, अत्रि से अनसूया का, वशिष्ट से ऊर्जा का, वह्व से स्वाह का तथा पितरों से स्वधा का विवाह किया। आगे आने वाली सृष्टि इन्हीं से विकसित हुई।



2 – मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,



3 – कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,



4 – विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए । वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,



5 – वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की |



6 – इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,



7 – कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,



8 – विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,



9 – बाण के पुत्र अनरण्य हुए,



10- अनरण्य से पृथु हुए,



11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,



12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,



13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,



14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,



15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,



16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,



17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,



18- भरत के पुत्र असित हुए,



19- असित के पुत्र सगर हुए,



20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,



21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,



22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,



23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था



24- भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे ।

25- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है ।



26- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,



27- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,



28- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,



29- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,



30- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,



31- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,



32- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,



33- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,



34- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,



35- नहुष के पुत्र ययाति हुए,



36- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,



36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,



37- अज के पुत्र दशरथ हुए,



38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए,



  इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ l


इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर भगीरथ और श्रीराम के पूर्वज हैं। राजा सगर की 2 रानियां थीं- केशिनी और सुमति। 

जब दीर्घकाल तक दोनों पत्नियों को कोई संतान नहीं हुई तो राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे।तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को 60 हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथा दूसरी से एक वंशधर पुत्र होगा। 

वंशधर अर्थात जिससे आगे वंश चलेगा।बाद में रानी सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। वह सिर्फ एक बेजान पिंड था। 

राजा सगर निराश होकर उसे फेंकने लगे, तभी आकाशवाणी हुई- 'सावधान राजा! इस तूंबी में 60 हजार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में 60 हजार पुत्र प्राप्त होंगे।' राजा सागर ने इस आकाशवाणी को सुनकर इसे विधाता का विधान मानकर वैसे ही सुरक्षित रख लिया जैसा कहा गया था। 

समय आने पर उन मटकों से 60 हजार पुत्र उत्पन्न हुए। जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने 60 हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया। देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के 60 हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोली, राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए।


सगर के पुत्रो की आत्माएँ भूत बनकर विचरने लगे क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था। सगर के पुत्र अंशुमान ने आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी। 

भगीरथ राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया, जिससे उनके संस्कार की राख गंगाजल में प्रवाह कर भटकती आत्माएं स्वर्ग में जा सके।



भगीरथ ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों के आत्माओं की मुक्ति संभव हो सके। 

तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊंचाई से जब पृथ्वी पर गिरूंगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तब भगीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया, और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। 

वह धारा भगीरथ के पीछे पीछे गंगा सागर संगम तक गई, जहां सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिये बहुत ही श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं।





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