ताम्र युग अथवा मेहरगढ़ सभ्यता ~ Ancient India

ताम्र युग अथवा मेहरगढ़ सभ्यता

ताम्र युग नवपाषाण काल के तुरंत बाद का समय था नवपाषाण युग का अंत आते-आते लोगों ने धातु से बने हथियारों का उपयोग करना शुरू कर दिया था धातु के रूप में ये लोग सिर्फ ताम्बें का उपयोग करते थे। उस समय तक लोगों को कांसे और लोहे के बारें में बिल्कुल भी नहीं पता था| ये लोग अब बस्तियों में रहने लगे थे। पशुपालन और कृषि इनकी अर्थव्यवस्था का मुख्य स्त्रोत थे। कृषि में काम आने वाले औजारों में अब पत्थर के औजारों के साथ-साथ तांबे के औजार भी शामिल हो गए थे
mehargarh civilization
भारत में ताम्र पाषाण युग की बस्तियां दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण पूर्वी भारत में पाई गई है। और ऐसी ही एक विकसित सभ्यता मिली हैं, जिसका नाम हैं मेहरगढ़ जो बँटवारे के बाद पाकिस्तान में शामिल हो गयी





मेहरगढ़ सभ्यता का समय


मेहरगढ़ पुरातात्विक दृष्टि से एक बहुत ही महत्वपूर्ण जगह हैं जहाँ नवपाषाण काल से जुड़े हुए बहुत ही अधिक प्रमाण मिले हैं वर्तमान में यह पुरातात्विक स्थल पाकिस्तान के बलोचिस्तान नामक शहर की कच्छी मैदानी क्षेत्रों में हैं मेहरगढ़ आज के बलोचिस्तान में बोलन नदी के किनारे स्थित हैं

मेहरगढ़ सभ्यता विश्व की उन सबसे पुरानी (लगभग 7,000 ई.पू. से 3,300 ई.पू.) सभ्यतों में से एक हैं जहाँ पुशपालन और कृषि से सम्बंधित अवशेष प्राप्त हुए हैं खुदाई से मिले साक्ष्यों से पता चलता हैं की ये लोग गेहूँ और जौ की खेती करना जानते थे साथ ही पशुपालन में ये लोग भेड़, बकरी, गाय एवं अन्य जानवर पलते थे

भारतीय इतिहास में भी मेहरगढ़ सभ्यता का एक महत्वपूर्ण स्थान हैं जिसका एक कारण यह भी हैं कि यह सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप को भी गेहूँ और जौ की मूल खेती करने वाले क्षेत्र में शामिल कर देता हैं ओर नवपाषाण युग के भारतीय निर्धारण को विश्व के नवपाषाण निर्धारण के ओर अधिक समीप ले जाता हैं विश्व इतिहास में यह सभ्यता भारत के एक विकसित और सभ्य समाज को दर्शाती हैं यहीं से हमें सिन्धु घाटी सभ्यता की विकास प्रणाली समझ में आती हैं मेहरगढ़ सभ्यता के लोगों ने हड़प्पा संस्कृति से हजारों साल पहले ही हड़प्पा में बने इंटों के जैसे घर बना लिए थे अगर इस स्थान की ओर खुदाई की जाये तो हड़प्पा से सम्बंधित और अधिक जानकारियाँ हम यहाँ से जुटा सकते हैं मगर दुर्भाग्यवश पाकिस्तान की अस्थिरता के कारण विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता आज तक उपेक्षित पड़ी हैं अगर इस स्थल की समुचित खुदाई की जाये तो यह स्थल मानव विकास से जुडी कई अनसुलझी गुथियों को सुलझा सकता हैं

मेहरगढ़ सभ्यता के लोग 6,500 ई.पू. में ही बेहतरीन औजार बनाने लग गए थे साक्ष्यों में मिले एक बेहद दिलचस्प चीज ने सबका अपनी ओर ध्यान खींचा है और वो है तांबे की बनी एक ड्रिल मशीन यह ड्रिल मशीन आधुनिक दन्त चिकित्सकों की ड्रिल से मिलती-जुलती हैं और सबसे कमाल की बात तो यह है कि मेहरगढ़ स्थल से प्राप्त कुछ दांतों पर इस ड्रिल के प्रयोग के साक्ष्य भी मिले हैं इस ड्रिल को देखकर तो यही लगता हैं कि आरंभिक मनुष्य की भी नयी धातुओं को खोजने में बेहद ही दिलचस्पी थी खुदाई से मिली एक ओर महत्वपूर्ण वस्तु है सान पत्थर जो धातु के धारदार औज़ार और हथियार बनाने के काम आता था।

अगर नवपाषाण काल के संदर्भ में देखा जाये तो ताम्र सभ्यताएँ और कांस्य सभ्यताओं के विकास लगभग साथ-साथ ही हुआ हैं इनमे कुछ ज्यादा समय का अंतर नहीं हैं

मेहरगढ़ सभ्यता से मिले अन्य वस्तुएँ बुनाई की टोकरियाँ, औजार और मनके हैं जो बहुत अधिक मात्र में मिले हैं इनमे से कुछ मनके दूसरी सभ्यताओं के भी हैं जो इस बात की और इंगित करते हैं कि ये मनके या तो व्यापार के दौरान या फिर प्रवास के दौरान लाये गए होंगे बाद के स्तरों में की गयी खुदाई में मिट्टी के बर्तन, तांबे के औज़ार, हथियार और समाधियाँ भी मिली हैं इन समाधियों में मानव शव के साथ ही वस्तुएँ भी हैं जो इस बात का संकेत हैं कि मेहरगढ़ वासी धर्म के आरंभिक स्वरूप से परिचित थे।

अभी तक की मेहरगढ़ की खुदाई से नवपाषाण काल से ताम्रयुग होते हुए कांस्य काल के हजारों साक्ष्य मिले हैं जो कुल 8 पुरातात्विक स्तरों में बिखरें हैं ये 8 स्तर हमें 5,000 वर्षो तक की तीन सभ्यताओं का ज्ञान देते हैं जो नवपाषाण काल लगभग 9,000 ई.पू. से लेकर कांस्य युग लगभग 4,000 ई.पू. तक के राज अपने अन्दर समाए हुए हैं मेहरगढ़ जैसी सभ्यताओं का अध्ययन हमें उस प्रवासी जीवन को समझाने में मदद करता हैं जो कभी अफ्रीका के जंगलों से शुरू हुआ था जो यूरोप होता हुआ भारत और दक्षिण- पूर्व एशिया तक आ पहुंचा

Previous
Next Post »