यूनान के एक नगर में एक अनाथ लड़का रहता था। वह लकड़ी बेचकर गुजारा करता था। एक दिन डेमोक्रिटीज की नजर उस पर पड़ी।
वह लड़का लकड़ी बेचने वालों के साथ खड़ा होकर अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। उसने लकड़ियों का अपना गट्ठर बेहद सलीके से बांध रखा था। डेमोक्रिटीज ने उसके पास जाकर पूछा, “क्या तुम गट्ठर को खोलकर फिर से उसे इसी तरह से बांध सकते हो ?”
लड़के ने कहा, “क्यों नहीं?" उसने गट्ठर खोलकर सारी लकड़ियों को बिखेर दिया। फिर जमीन पर दोबारा चादर बिछाई। फिर उसने चुन-चुनकर बड़ी लकड़ियों को नीचे रखा और उनके ऊपर छोटी लकड़ियों को जमाने लगा। वह लड़का संजीदगी से पूरा ध्यान गट्ठर बनाने पर लगा रहा था। डेमोक्रिटीज उतने ही ध्यान से उसके काम करने के तरीके को देख रहा था। अंतत: गट्ठर बनने के बाद डेमोक्रिटीज ने उस लड़के से पूछा, “क्या तुम पढ़ना चाहते हो ?” लड़के ने ऊपर देखते हुए कहा, “हाँ!” डेमोक्रिटीज तत्काल उसे अपने साथ लेकर चल पड़े। वही लड़का बाद में यूनान का नामी दार्शनिक-गणितज्ञ, पाइथागोरस बना।
सभी बच्चे सिर्फ अपनी प्रतिभा से पाइथागोरस नहीं बन जाते, उनकी प्रतिभा को पहचानने और उन्हें सही रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए डेमोक्रिटीज जैसे गुरु की भी जरूरत होती है।
शिक्षा- सफलता प्रतिभा देखती है, न कि आदमी की हैसियत ।
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