दोस्तों, हमारा देश वीरों व वीरांगनाओं की कहानियों से भरा पड़ा है । इन वीर देशभक्तों ने अपने रक्त से इस देश की जड़ों को सींचा । इनकी कुर्बानियों का ही फल है कि आज हम आजादी की सांस ले रहे हैं ।
हमारे देश में रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद व सुभाषचंद्र बोस जैसे न जाने कितने ही क्रांतिकारी हुए जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया । इन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की जड़ों को इतना खोखला कर दिया था कि आखिरकार अंग्रेजों को देश छोड़कर जाना पड़ा । बेशक देश की आजादी देखने के लिए ये लोग तब जीवित नहीं थे लेकिन देश की आजादी की वास्तविक आधारशिला इन्हीं के द्वारा रखी गई थी ।
दोस्तों, इन क्रांतिकारियों के बारे में हम बचपन की किताबों से ही पढ़ते आये हैं। इन क्रांतिकारियों में कुछ ऐसे भी थे जिनके बारे में हमने आज तक नहीं पढ़ा । इतिहास के पन्नों में ये देशभक्त गुमनाम हैं । इन्हीं क्रांतिकारियों में से एक थे राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का परिचय
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म हाथरस जिले के मुरसान में एक जाट राजघराने में 01 दिसंबर 1886 ई. को हुआ था । उनके पिता का नाम घनश्याम सिंह तृतीय तथा माता का नाम दनकौर था । बचपन में ही इनकी माता का निधन हो गया था । हाथरस के राजा हरनारायण ने इन्हें 3 वर्ष की आयु में गोद ले लिया था । इनकी शुरुआती शिक्षा वृंदावन में हुई थी । इन्होंने कॉलेज की पढ़ाई अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरियंटल कॉलेज से की । यह कॉलेज आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के नाम से जाना जाता है । राजा महेंद्र प्रताप सिंह उस जमाने में अपने क्षेत्र के सबसे अधिक पढ़े लिखे व्यक्ति थे । वह एक लेखक और पत्रकार भी थे । उनका विवाह जींद के राजा रणवीर सिंह की छोटी बहन बलवीर कौर से हुआ था । उस समय राजा महेंद्र प्रताप सिंह की आयु मात्र 14 वर्ष थी । बारात के लिए 2 स्पेशल रेल गाड़ियाँ मथुरा से जींद के लिए चलवाई गई थीं ।
भारत की पहली अस्थाई सरकार का गठन
भारत के पूर्ण स्वराज्य का बिगुल सबसे पहले राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने ही बजाया था । राजा महेंद्र प्रताप सिंह ब्रिटिश सरकार की नीतियों के घोर विरोधी थे । उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध (1915 ई.) के दौरान अफगानिस्तान में अपनी अध्यक्षता में भारत की पहली स्वतंत्र सरकार का गठन किया था । राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने मोहम्मद बरकतउल्ला खान को प्रधानमंत्री बनाया व स्वंय इस सरकार के राष्ट्रपति थे । उन्होंने भारत की आजादी के पक्ष में दुनिया का समर्थन पाने के लिए कई देशों की यात्रा की । इस दौरान वह जर्मनी, स्विट्जरलैंड, वियना, मिस्र, टर्की, तिब्बत व जापान आदि कई छोटे-बड़े देशों में गये व उनका समर्थन हासिल किया । उनके पास यात्रा करने के भारत सरकार द्वारा जारी कोई वैध वीजा अथवा पासपोर्ट नहीं था । हालांकि उनके पास अफगानिस्तान सरकार द्वारा जारी वीजा व पासपोर्ट था । भारत की ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वीजा नहीं दिया क्योंकि वह राजा महेंद्र प्रताप सिंह को देशद्रोही मानती थी । ब्रिटिश सरकार ने उनकी संपत्ति भी जब्त कर ली थी । अंग्रेजों ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह की गिरफ्तारी का वारेंट जारी कर रखा था । उनके सिर पर इनाम की एक बड़ी रकम रखी हुई थी । लेकिन राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इन सब की परवाह न करते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान निरंतर जारी रखा । अंततः 32 वर्षों तक अंग्रेजों के विरुद्ध एक लंबी लड़ाई के बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह वर्ष 1945 में भारत वापिस लौट आये थे ।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह सुभाषचंद्र बोस के अग्रगामी थे। जिस तरह सुभाष चंद्र बोस ने निर्वासित सरकार बनाई थी उसी प्रकार राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भी अफगानिस्तान में निर्वासित सरकार बनाई । जिस प्रकार रासबिहारी बोस व सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में आजाद हिंद फौज बनाई उसी प्रकार 1915 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने भी एक फौज तैयार की जिसका लक्ष्य अंग्रेजों से लड़कर भारत को आजादी दिलाना था । राजा महेंद्र प्रताप सिंह की सरकार का उद्देश्य भारत की पूर्ण स्वतंत्रता थी । हालांकि बाद में कोंग्रेस ने भी पूर्ण स्वराज्य की इस मांग को 19 दिसम्बर 1929 ई. को लाहौर अधिवेशन में उठाया था ।
अलीगढ़ विश्वविद्यालय को दान दी थी जमीन
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने सन्न 1929 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को 3.04 एकड़ जमीन दी थी । इसमें से कुछ हिस्सा दान में व कुछ हिस्सा 2 रुपये सालाना लीज पर दिया था । अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भारत के प्रमुख केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में से एक है जिसे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की तर्ज पर बनाया गया था । यह ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया भारत का पहला उच्च शिक्षण संस्थान था । अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना सर सैयद अहमद खान ने 1875 ई. में की थी । यह मूलतः एक स्कूल था जिसका विस्तार करके एंग्लो ओरिएंटल कालेज बनाया गया और अंततः 1921 ई. में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय घोषित कर दिया गया । राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने उच्च शिक्षा इसी कॉलेज से प्राप्त की थी । 1909 ई. में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की जो तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में भारत का प्रथम केंद्र था ।
अलीगढ़ विश्विद्यालय को राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर करने की कई बार मांग उठी । लेकिन उत्तर प्रदेश व केंद्र सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए एक ओर विश्वविद्यालय बनाने का फैसला किया जो राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर होगा । इस विश्वविद्यालय का शिलान्यास 14 सितंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा किया गया ।
मथुरा से लड़ा लोकसभा चुनाव
आजादी के बाद साल 1957 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने मथुरा लोकसभा सीट के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा । इन चुनावों में महेंद्र प्रताप सिंह ने विपक्षी पार्टी भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी को बुरी तरह हराया । अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित कुल वोटों का 1/6 वोट भी नहीं मिले जिसके कारण वाजपेयी जी की जमानत राशि जब्त हो गई थी । हालांकि इसके बाद राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अलीगढ़ लोकसभा से भी चुनाव जड़ा जहां उन्हें जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था ।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे । 1932 ई. में राजा महेंद्र प्रताप सिंह को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था । विश्व शांति के लिए एक ऐसा संघ होना चाहिए जो पूरी दुनिया को नियंत्रित करता हो, ऐसी परिकल्पना राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के 30 साल पहले वर्ष 1915 में ही कर ली थी । उनके अनुसार इस प्रकार के संघ को संसार संघ का नाम दिया जाना चाहिए । राजा महेंद्र प्रताप सिंह की मृत्यु आजादी के 32 साल बाद 29 अप्रैल 1979 को हुई थी । इनकी समाधि मथुरा के वृंदावन में है । भारत सरकार ने उनकी स्मृति में वर्ष 2019 में डाक टिकट भी जारी किया ।
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